मुझे बार-बार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय जाना अच्छा लगता है। पत्रकारिता में मेरे गुरु अच्युतानंद मिश्र जब वहां के कुलपति थे तो उनके घर हीं रुकना होता था। बाद में प्रो ब्रज किशोर कुठियाला जी के जमाने में भी लगातार जाना हुआ। कुठियाला जी ने हीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में मुझे पत्रकारिता पढ़ाया था और उनके आशीर्वाद से मैंने पत्रकारिता एवं जनसंचार में प्रथम श्रेणी से एम ए (2007-8)। पास किया था। उनके बाद प्रो के जी सुरेश जब कुलपति हुए तो जब भी मैं भोपाल गया, एक बार विश्वविद्यालय जरूर जाना हुआ। मुझे वहां के युवा छात्र छात्राओं के बीच संस्कृति, साहित्य और सिनेमा पर चर्चा करना हमेशा सुखद लगता है। 27 मार्च 2017 को वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर जी से मिलने के बाद तो मेरे लिए भोपाल का मतलब ही बदल गया है।
अभी हाल ही में जब मेरे मित्र और वरिष्ठ पत्रकार विजय मनोहर तिवारी जी यहां के कुलपति बनाए गए तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ और मैंने मध्य प्रदेश सरकार के इस निर्णय की सराहना की। उनके कुलपति बनने के बाद 21-22 अप्रैल 2025 को मेरी यह पहली यात्रा थी। भोपाल आने पर दैनिक भास्कर कार्यालय में जाना तो एक जरूरी काम बन गया है। इस बार डिजिटल संपादक प्रसून मिश्र से लंबी चर्चा हुई। समयाभाव के कारण कई मित्रों से मिलना न हो पाया, इसका अफसोस रहेगा।
इस विश्वविद्यालय में आम तौर पर मुझे भारतीय सिनेमा, विश्व सिनेमा और ऐसे ही विषयों पर बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है पर इस बार यहां के विद्यार्थियों द्वारा आयोजित साहित्य महोत्सव में उद्घाटन भाषण के लिए आमंत्रित किया गया तो मुझे आश्चर्य हुआ। हालांकि मैंने करीब बीस वर्षों तक विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में साहित्यिक पत्रकारिता की है पर इस समय विश्व सिनेमा का छात्र हूं। साहित्य हमें कैसे बदलता है और किताबें क्यों जरूरी है आदि पर बोलते हुए मुझे लगा कि हमारे लेखकों कवियों और किताबों के कारण हीं ईश्वर और उनके अवतार अस्तित्व में आए होंगे। कवि जयदेव के गीत गोविंद से राधा कृष्ण की प्रेम कथा जन्मी और तुलसीदास के रामचरितमानस ने भगवान राम को जन जन में व्याप्त कर दिया। वेद व्यास रचित पुराणों ने देवताओं को जन्म दिया और उनके महाभारत से गीता सामने आई। कुरान और बाइबिल भी तो एक किताब ही है जिसे लिखा गया होगा और जिसपर इस्लाम और इसाई धर्म आधारित है। और जिन प्रेम कथाओं को हम याद करते हैं, वे भी तो कवियों की हीं रचनाओं से सामने आई है। शेक्सपियर नहीं होते तो रोमियो जूलियट की कहानी नहीं होती और वारिस शाह ने हीर रांझा की दास्तान को अमर कर दिया। और लैला-मजनूं, ईरान के कई फारसी कवियों ने हीं तो इस प्रेम कहानी को कालजयी बनाया।
विजय मनोहर तिवारी जी से पत्रकारिता के युवा विद्यार्थियों को बहुत उम्मीदें हैं। उनसे मिलने के बाद यह जानकर खुशी हुई कि उन्हें पता है कि वे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते। उन्हे मैंने अपनी दोनों बेस्ट सेलर किताबें भेंट की, बालीवुड की बुनियाद और दृश्यांतर। बालीवुड की बुनियाद वे एक बैठक में उसी रात पढ़ गए। दूसरी सुबह उन्होंने मेरी किताब पर विस्तार से चर्चा की। मुझे यह देखकर और खुशी हुई कि मेरे पुराने मित्र और भारतीय जन संचार संस्थान नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक संजय द्विवेदी जी भी मेरा भाषण सुनने आए। यह भी एक संयोग ही है कि जब भी मैं इस विश्वविद्यालय में पढ़ाने गया हूं, छात्रों की इतनी अधिक भीड़ जमा हो जाती है कि मेरी क्लास जनसभा में बदल जाती है। पिछली बार जब के जी सुरेश जी ने बुलाया था तो इतनी भीड़ हो गई कि सभागार का दरवाजा बंद करना पड़ा। फिलहाल मैं इंदौर के ऐतिहासिक अखबार नई दुनिया की कहानी पर आधारित विजय मनोहर तिवारी जी की किताब पढ़ रहा हूं – ‘ स्याह रातों के चमकीले ख्वाब।’