शशिप्रभा तिवारी
युवा कथक नृत्यांगना उन्नति मिश्रा को कला विरासत में अपनी मां से मिली है। कथक नृत्यांगना उर्मिला शर्मा के सानिध्य में उन्नति ने बचपन से ही कथक नृत्य सीखना आरंभ कर दिया था। वह पांच साल की उम्र से कथक नृत्य सीख रही हैं। जब कभी मौका मिला तब विभिन्न मंचों पर वह नृत्य प्रस्तुति देती रहीं हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी से बतौर बाल कलाकार कई पुरस्कार भी मिला है। बहरहाल, इनदिनों वह कथक नृत्य सीख रहीं हैं और अपनी औपचारिक शिक्षा को जारी रखी हुई हैं। वह भविष्य में एक बेहतरीन नृत्यांगना बनना चाहती हैं। प्रस्तुत है, उनसे बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत है-
आपने कथक नृत्य को क्यों चुना?
उन्नति-दरअसल, मेरी मम्मी कथक नृत्यांगना हैं। उन्होंने कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज जी से सीखा। मैंने बचपन से ही कथक नृत्य ही देखा। हमारे घर में बहुत से कलाकारों का आना-जाना भी होता रहता है। उन्हें यह नृत्य करते देखती रही हूं। मेरी मम्मी ने आधुनिक लखनऊ घराने के कथक नृत्य के जनक ईश्वरी प्रसाद जी और उनके पैतृक निवास हंडिया के संदर्भ में शोध कार्य किया है। वहां हर साल हमलोग हंडिया माटी महोत्सव का आयोजन करते हैं। इसमें देश-विदेश से कलाकार परफाॅर्मेंस देने आते हैं। शायद, उन्हीं सब से प्रभावित होकर मैं इस ओर प्रेरित होती गई।
आप कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज को कैसे मिलीं?
उन्नति-यह हमारा सौभाग्य है कि हमारे घर महाराज जी का कई बार आना हुआ। मम्मी ने प्रयाग में कथक केंद्र की स्थापना की है। वहां बच्चों से मिलने के लिए भी महाराज जी आए। जब हमलोग दिल्ली जाते थे, तब मेरी गुरु व मम्मी हमें उनसे मिलाने के लिए जरूर ले जाती थीं। मुझे याद है कि हमारी पहली घंुघरू को खरीदने के लिए उन्होंने आशीर्वाद स्वरूप मम्मी को कुछ पैसे भी दिए थे। अंतिम बार हमलोग 2021 में दिल्ली में उनके निवास पर मिलने गए थे। उस समय उन्होंने मेरे डांस का वीडियो देखकर बोला था कि मेरा आशीर्वाद है, तुम अच्छी कलाकार बनोगी। हमलोग को देखकर महाराज जी बहुत खुश होते थे। क्या पता था कि यह उनसे अंतिम बार मुलाकात हो रही है।
आप ने किन कथक कलाकारों की प्रस्तुतियों को देखा है?
उन्नति-मैं दिल्ली और लखनऊ में महाराज जी को नृत्य करते देखीं हूं। आज भी जब भी मन करता है या कुछ देखना-समझना होता है तब यूट्यूब में उनके वीडियो देखती हूं। उनका नृत्य देखकर आश्चर्य होता है कि ऐसी तिहाइयां, अनूठे तोड़े-टुकड़े वह बना कर चले गए। उनको देखते रहिए और रोज सीखते रहिए। उसका कोई अंत ही नहीं है। मम्मी का नृत्य भी मुझे बहुत अपील करता है। वह जब नृत्य करती हैं, तो लगता है बस उनको देखती रहूं। उन्होंने बहुत मेहनत किया है। वह बताती हैं कि दिल्ली कथक केंद्र में वह सीखतीं थीं, उनदिनों छह-सात घंटे लगातार रियाज करती थीं। वैसे पंडित राममोहन महाराज जी का कथक नृत्य मुझे अच्छा लगता है। रूद्र शंकर, सौरव-गौरव बंधु, आकांक्षा श्रीवास्तव और अनुकृति विश्वकर्मा से भी मैंने बहुत कुछ सीखा है।
आपका यादगार परफाॅर्मेंंस कौन सा है?
उन्नति-मैं अपनी मम्मी के ग्रुप के साथ ही नृत्य करती हूं। कई बार मैं सोलो डंास करती हूं। मम्मी इसके लिए बहुत पें्ररित करती हैं। उन्ही के ग्रुप के साथ समुद्र मंथन, रामोत्सव, शिव सती, कृष्ण लीला, निझर्णि महोत्सव आदि में नृत्य किया है। दूरदर्शन के लिए भी काम किया है। हमें कुंभ जैसे आयोजन में कथक नृत्य करने का अवसर मिला। हाल ही में, द्रौपदी नृत्य नाटिका में मैंने द्रौपदी की भूमिका को निभाया। इसमें डांस, अभिनय और संवाद सब कुछ करना था। नृत्य करते हुए, द्रौपदी की भावनाओं को अपने भीतर महसूस की। उसके दर्द, उदासी, हताशा, निराशा को समझते हुए, नृत्य करते हुए, मेरे आंसू बहने लगे। जब मंच से उतरी तो सबने मेरी तारीफ की। मेरी को-डांसर्स ने मुझे गले से लगा लिया। वह दिन मुझे कभी भूलता नहीं।