मोती बैगा छत्तीसगढ़ के नए बने जिले मुंगेली से ताल्लुक रखते हैं। लोरमी प्रखंड के मजुरहा गांव में जहां सरकार की चिकित्सकीय सेवा और एम्बुलेन्स भी नहीं पहुंचता । सरकार और मोबाइल दोनों के नेटवर्क से जो गांव बाहर है, ऐसे गांव में मोती का मोटर साइकिल एम्बुलेन्स का काम कर रहा है। मतलब गांव वालों को मोती वह सुविधा उपलब्ध करा रहा है, जो इसे सरकार भी उपलब्ध नहीं करा पाई। यहां गौरतलब है कि मोती के गांव मजुरहा से लोरमी अस्पताल बीस किलोमीटर दूर है और मोती ना सिर्फ मजुरहा बल्कि जरूरत पड़ने पर आस पास के लोगों को भी अस्पताल तक लेकर जाते हैं क्योंकि इनके गांव तक एम्बुलेन्स नहीं आती। जब गांव के लोग नेटवर्क में पहुंच कर फोन करते हैं तो अस्पताल जरूर आष्वासन देता है कि एम्बुलेन्स भिजवा रहे हैं लेकिन वह आती नहीं।
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MOTI BAIGA SATH ME SUNIL BHAI
एम्बुलेन्स ना आने के राज से पर्दा हटाया सामाजिक गांधीमार्गी कार्यकर्ता रष्मि ने। वे बिलासपुर और उसके आसपास बैगाओं के अधिकारों के लिए लंबे समय से संघर्शरत हैं। बकौल रष्मि यहां दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां एम्बुलेन्स की सेवा नहीं पहुंच रही है। कई मामले हुए जिसमेें एम्बलेन्स के अभाव में लोगों की जान भी गई है। रष्मि सवाल उठाती हंै, एक तरफ बैगाओं की जनसंख्या को लेकर सरकार चिन्तित नजर आती है और उनके बीच नसबंदी को भी प्रतिबंधिति कर दिया जाता है और दूसरी तरफ उनके स्वास्थ्य को लेकर किसी प्रकार की चिन्ता सरकार में नजर नहीं आती। कवर्धा तो मुख्यमंत्री रमण सिंह का गृह जिला है, वहां भी बैगाओं की जिन्दगी अन्य जिलों से बेहतर नहीं है। एम्बुलेन्स की सेवा सिर्फ उन्हीं गांव के लिए है जहां मोबाइल का नेटवर्क है। मोबाइल का नेटवर्क खत्म सेवा खत्म। सरकार को चाहिए कि वह या तो जंगलों में मोबाइल का टावर पहुंचा दे या फिर जंगल में रहने वालों के स्वास्थ्य की भी चिन्ता करे।
मोती बातचीत में कहते हैं, हमारा पूरा क्षेत्र नक्सल से मुक्त रहा है। वर्शों से सरकारी उपेक्षा, पलायन और सरकारी विस्थापन की मार झेल रहे गांव वालांे के बीच आक्रोष है। कहीं ऐसा ना हो इनमें से भी कुछ लोग गलत रास्ते पर निकल जाएं।
यहां गौरतलब है कि जिन इलाकांे में मोबाइल का नेटवर्क नहीं होता वहां एम्बुलेन्स जाने को तैयार नहीं होते हैं। ऐसे में यह लाभ सिर्फ सड़क के किनारे रहने वाले लोगों को मिल रहा है।
सड़क से पांच सात किलोमीटर दूर जंगल के गांवांे में जाने को ना ही एम्बुलेन्स और ना ही गैर सरकारी और सरकारी संस्थाएं तैयार हैं। कुल मिलाकर सभी संस्थाएं समाज सेवा सड़क के किनारे-किनारे ही करना चाहती हंैं। ऐसे में जो गांव सड़क से दूर हैं, वहां रहने वाले लोग बीमारी की स्थिति में ईलाज के अभाव में मरने के लिए मजबूर हैं।
मोती बैगा का काम मजूरहा में इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी तत्परता की वजह से कई जाने बची हैं। वह मरीजों को अक्सर मोटर साइकिल पर बिठाकर लोरमी अस्पताल तक छोड़ कर आता है। उसकी पुरानी मोटर साइकिल लोरमी और उसके आस पास के गांवों मंे एम्बुलेन्स के तौर पर इस्तेमाल हो रही है।
मजूरहा के गौतू बैगा की बीमारी किसी को समझ नहीं आ रही थी। उसका भाई झंगल बैगा कुछ समझ नहीं पा रहा था। पिता की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेवारी बड़े भाई पर ही थी। झंगल ने बताया कि पिछले कुछ समय से उसका भाई बिल्कुल कमजोर होता जा रहा है। षरीर सुखता जा रहा है। अस्पताल फोन करवाने पर एम्बुलेन्स के लिए सिर्फ आष्वासन ही आता है। प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र जैसी कोई चीज गांव के आस पास नहीं है। मरीज को लेकर लोरमी अस्पताल जाना होगा, जो बीस किलोमीटर है। यह बात चल ही रही थी कि मोती बैगा अपनी मोटर साइकिल के साथ आ गए। गौतू बैगा की हालत उठने वाली नहीं थी लेकिन किसी तरह उन्हें उठाकर मोटर साइकिल पर बिठाया गया और फिर मोती बैगा उसे अपने साथ लेकर बीस किलोमीटर की यात्रा पर निकल गए।
इतने कम संसाधनांे के साथ गांव वालों की मदद कर रहे मोती बैगा से राज्य की सरकारों को सबक लेना चाहिए, जो सभी तरह से सम्पन्न होकर भी अपने संसाधनों का रोना रोते रहते हैं। मोती का काम वाकई काबिले सलाम है।