अरविन्द केजरीवाल के कुछ गुमनाम मित्र

66e3d52d7aa11-delhi-cm-arvind-kejriwal-130116720-16x9-1.jpg

कुछ मित्रों से पिछले दिनों मिला था। ये सभी अरविन्द केजरीवाल के 2011 के मित्र थे। वे जब अपना काम काज छोड़कर अरविन्द के साथ आए थे तब भी चुपके से आए थे। सोशल मीडिया पर किसी तरह की सोशेबाजी नहीं की थी। वे अपना नाम चमकाने नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में अरविन्द का साथ देने आए थे।

अरविन्द के ये सभी मित्र आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे लेकिन आंदोलन जब राजनीतिक पार्टी में तब्दील हुआ तो इन्होंने उस वक्त भी केजरीवाल पर विश्वास किया। जब उनके इस निर्णय पर अन्ना हजारे स्वयं संदेह जता चुके थे। उनके मित्रों ने सोचा, अरविन्द जो भी करेंगे अच्छा करेंगे।

इन मित्रों का साथ बहुत अधिक दिनों तक नहीं रहा। अरविन्द मुख्यमंत्री बने। उन्हें सत्ता मिली और वे बदल गए। फिर धीरे-धीरे मित्रों का मोहभंग हुआ। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी बातचीत और व्यवहार में परिवर्तन आ गया था। जिस तरह की राजनीति का विरोध करने के लिए उन्होंने जंतर मंतर से कथित नई राजनीति की शुरूआत की। अरविन्द उसी तरह की राजनीति में मुब्तिला हो गए थे।

उनके मित्र मानते हैं कि अरविन्द ने दिल्ली की जनता के साथ विश्वासघात किया है। आने वाले सालों में किसी भी आंदोलन पर जनता को विश्वास नहीं होगा क्योंकि उनके पास अरविन्द केजरीवाल की मिसाल होगी।

इसीलिए अन्ना आंदोलन के बाद कोई भी आंदोलन जनता का विश्वास नहीं जीत पाया। इस पाप की जिम्मेवारी अरविन्द केजरीवाल को लेनी होगी। उन्होंने आंदोलन के नाम पर दिल्ली की जनता के साथ छल किया।

इस बार दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की पुरानी टीम में शामिल ये महत्वपूर्ण मित्र नई दिल्ली सीट पर सक्रिय थे। अरविन्द केजरीवाल के प्रचार के लिए नहीं बल्कि जनता को उनकी सच्चाई बताने के लिए। वे खबर में नहीं थे लेकिन जमीन पर काम कर रहे थे।

अरविन्द के ये मित्र आंदोलन से लेकर पार्टी बनने तक साथ थे। पार्टी चलाने के तौर तरीके पर उन्होंने अपनी असहमति भर जताई थी, जिसे आप में सुना नहीं गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद अरविन्द भी असमतियों को अधिक महत्व देने के मूड में नहीं थे। उन्होंने पार्टी के अंदर ऐसे कथित शिकायती लोगों को सुनना बंद कर दिया था। जिन्हें उन्होंने आंदोलन से जोड़ा था। वे अपनी नौकरी और कारोबार छोड़कर अरविन्द के बुलावे पर आए थे। उन्हें महत्व ना देकर अरविन्द ने उन्हें संदेश दे दिया था कि उनकी अब पार्टी को कोई जरूरत नहीं है।

इस तरह विचारवान और सार्थक काम करने वाले लोग धीरे-धीरे पार्टी छोड़कर जाते रहे। कुछ की चर्चा मीडिया में हुई। अधिकांश का लोगों ने नाम तक नहीं जाना।

2025 के विधानसभा चुनाव में अरविन्द को हराने के लिए उनके कुछ पुराने मित्र नई दिल्ली सीट पर सक्रिय थे। मीडिया में उनकी खबर नहीं आई लेकिन अपने कम संसाधनों के बीच उन्होंने मतदाताओं से ‘वास्तविक’ अरविन्द केजरीवाल का परिचय कराया। अब उनके अभियान की नई दिल्ली की सीट पर आए परिणाम में क्या भूमिका रही? यह बताना थोड़ा मुश्किल है लेकिन वह समूह कल भी गुमनाम था और आज भी उनके संबंध में लोग नहीं जानते।

Share this post

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top