यह घटना उड़ीसा के ढेकनाॅल क्षेत्र की है । जब क्रान्तिकारियों को पकड़ने जा रहे अंग्रेज सैनिकों को नाव में ले जाने से इस बारह वर्षीय बाजी राउत ने इंकार कर दिया था तो सैनिकों ने गोली मार दी थी ।
बाजी राउत का जन्म 5अक्टूबर 1926 को ओडिशा के ढेंकनाल में हुआ । उनके पिता हरि राउत नाविक थे। जो ब्राह्मणी नदी में नाव चला कर अपना परिवार पोषण करते थे । बाजी राउत जब नौ वर्ष के थे तब पिता का देहान्त हो गया । घर में उनके दो छोटे भाई बहन और थे । तब माँ ने अपने बड़े बेटे बाजी के साथ नाव चलाकर परिवार चलाना आरंभ किया । यह वह समय था जब पूरे भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोश पनप रहा था । इस क्षेत्र में वनवासी आँदोलन हो चुके थे । सेना और पुलिस की क्रूरता की कहानियों ने और गुस्सा बढ़ाया । इससे नवयुवकों ने एक क्राँतिकारी दल प्रजा मंडल गठित किया और अंग्रेजी शासन का प्रतिकार करने लगे । तभी समाचार आया कि कुछ प्रजा मंडल के कुछ क्राँतिकारी युवक नदी पार करके वन में छिप गये हैं। उन्हे तलाश करने के लिये पुलिस आ रही है । तब प्रजा मंडल के कार्य कर्ताओं ने नाविकों से आग्रह किया कि वे सैनिकों को नाव से उस पार न ले जायें। सभी नाविकों ने अपनी अपनी नावें किनारे से हटाकर नदी के मध्य में ले जाकर छोड़ दीं और तैर कर निकल गये ।
सैनिक आये । उन्हे बस्ती के बाहर बाजी राउत मिल गये । एक सिपाही पहचानता था कि बाजी राउत नाविक है और नाव चलाना जानता है । सैनिकों ने पकड़ लिया और नाव पर बिठाकर नाव चलाने को कहा । बाजी ने इंकार कर दिया तो सैनिकों ने पहले पिटाई की और बाद में गोली मार दी । इस घटना से क्षेत्र में आक्रोश फैला और एक बड़ा आंदोलन हुआ । यह घटना 11 अक्टूबर 1938 की है । एक अन्य विवरण में इस घटना के बारे में कहा गया है कि सेना और पुलिस की एक टुकड़ी आंदोलनकारियों को पकड़ने ब्राह्मणी नदी के नीलकंठ घाट से उसपार जाना चाहती थी । गाँव वालों ने विरोध किया और वे घाट के आगे खड़े हो गयेश। पुलिस ने हटाना चाहा। गोली चली और बारह वर्षीय बाजी राउत का बलिदान हुआ । यह घटना के बाद गाँव में आक्रोश फैला गाँव वाले एकत्र हुये लेकिन पुलिस की टुकड़ी को घेर लियाव। पुलिस ने गोली चलाई इसमें गाँव के लक्ष्मण मलिक, फागू साहू, हर्षी प्रधान और नाता मलिक का भी बलिदान हुआ । ये सब तरुण आयु के बच्चे थे । इस संघर्ष की चर्चा पूरे देश में हुई । गाँधी जी सहित लगभग सभी नेताओं ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया ।
इस घटना का कवि कालिंदी चरण पामिग्रही ने अपने शब्दों में वर्णन किया कि-
”आओ लक्षन, आओ नट, रघु, हुरुसी प्रधान, बजाओ तुरी, बजाओ बिगुल, मरा नहीं है, मरा नहीं है, बारह साल का बाजिया मरा नहीं…।”
बाजी राउत के भाई का परिवार के कुछ सदस्य आज भी गाँव में रहते हैं और कुछ कटक में नौकरी आदि करते हैं।
शत शत नमन् बलिदानी वीर को