डा सचिदानंद जोशी, डॉ सोनल मानसिंह पद्मा सुब्रमण्यम आदि आईंजीएनसीए के न्यासी ने सिर्फ प्रशंसा या सराहना नहीं की अपितु डांस कलेक्शन का संरक्षण किया और संभाला भी है
तिब्बती भाषा में भारत का नाम ‘ग्यागर‘ है। ग्यागर का अर्थ है-कला और नृत्य की भूमि। नृत्य के आदि जनक नटराज यानि शिव और नटनागर यानि कृष्ण की कला और नृत्य की भारत भूमि में नृत्य के जरिए सौंदर्यबोध और आनंद की पराकाष्ठा की परिकल्पना की गई है। इसके लिए कलाकार अंग-प्रत्यंग, भाव, मुद्राओं, भंगिमाओं, अभिनय से रस की सृष्टि करता है। सौंदर्य और सृजन के लिए कलाकार को दैहिक और मानसिक रूप से अनुभव से गुजरना पड़ता है। खुद को अंदर से खाली करके अपने व्यक्तित्व के बजाय राधा, द्रौपदी या अष्टनायिका को सोचना होता है। तभी भरतनाट्यम नृत्यांगना बाला सरस्वती की ‘बेगनिबारो‘, ओडिसी गुरू केलुचरण महापात्र का जटायु मोक्ष, कथक नृत्यांगना उमा शर्मा की ‘हमरी अटरिया पे आ जा संवरिया‘, कथक सम्राट बिरजू महाराज का ‘कृष्ण का बाललीला‘ देखने वाले के मन में गहराई में उतर कर भावनाओं की अमिट
छाप छोड़ती है।
शायद, इस तरह की गहराई ने ही महान संस्कृति विद् और कला संग्राहक मोहन खोकर को भीतर तक छुआ होगा और वह कला के अनादि-अनंत सफर पर निकल पड़े होंगे। मोहन खोकर नृत्य के दस्तावेज तैयार करने वाले भारत के प्रमुख विद्वान रहे हैं। उन्होंने कथक नृत्य सीखा। लाहौर में उदयशंकर नृत्य शैली को सीखा। उन्होंने मद्रास जाकर भरतनाट्यम की तालीम हासिल की। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली, इस नृत्य शैली
से जुड़े कलाकारों व समारोहों के संदर्भ में सबसे पहले पत्रिकाओं, जर्नल्स और समाचार पत्रों में लिखना शुरू किया। चुकि वह फोटोग्राफी भी करते थे, तो उस समय वह अपनी आलेखों से संबंधित फोटो भी खुद ही खींचते थे। उन्होंने स्वतंत्र, फ्री प्रेस जर्नल, पुष्पांजलि, दी इलस्टेड वीकली, मार्ग आदि में लंबे समय तक कला पर लेखन कार्य किया।
संस्कृति विद् और लेखक डाॅ आशीष मोहन खोकर के अनुसार उनके पिता मोहन खोकर का जन्म तीस दिसंबर 1924 ईस्वी को क्वेटा, अविभाजित भारत के सिंध पंजाब प्रांत में हुआ था। वहां बहुत भयानक भूकंप आया था। इसके बाद, 31 मई 1935 ईस्वी में उनका परिवार लाहौर में आकर बस गया। उनदिनों शास्त्रीय नृत्य कथक को ‘नाच’ के नाम से जाना जाता था, सो यहीं पर बालक मोहन खोकर ने कथक नृत्य सीखना शुरू किया। उनके पहले गुरु पंडित प्यारेलाल थे। उनदिनों उदयशंकर यदा-कदा लाहौर आते-जाते रहते थे। उनका झुकाव पंडित उदयशंकर नृत्य शैली सीखने के प्रति हुआ। इस क्रम में वह पंडित रामगोपाल और पंडित उदय उदयशंकर से नृत्य सीखने लगे। वास्तव में, कला विद् मोहन खोकर स्वयं पंडित उदयशंकर के व्यक्तित्व और कला से बहुत प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने उदयशंकर नृत्य शैली को सीखा भी और जब कभी अवसर मिला मंच प्रस्तुतियां भी दीं।
भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रति उनका प्रेम अद्वितीय था। इसलिए जब उन्हें भरतनाट्यम नृत्य सीखने का मन हुआ तो वह लाहौर से मद्रास पहुंच गए। यह सन् 1945 की बात है। उनके इस जुनून से कलाक्षेत्र की संस्थापिका रूक्मिणी देवी अरूंडेल बहुत खुश हुई थीं। वह इस बात से भी खुश थीं कि एक सिक्ख नौजवान भरतनाट्यम नृत्य सीखने के लिए मद्रास आया है। उन्होंने रूक्मिणी देवी अरूंडेल के सान्निध्य में भरतनाट्यम सीखा।
संस्कृति विद् मोहन खोकर ने जीवन भर कला जगत के लिए कला से संबंधित संग्रह का अद्भुत कार्य किया। उनके संग्रह में उनके द्वारा खींची गईं लगभग एक लाख तस्वीरें हैं। उनके द्वारा संग्रहित कलेक्शन में विभिन्न कार्यक्रमों, समारोहों और आयोजनों से जुड़ीं लगभग तीस हजार ब्रोशर हैं। इसके अलावा, इन गतिविधियों से जुड़ी पच्चीस हजार प्रेस कटिंग्स हैं। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य के बारे में पांच किताबें लिखा था। उनके कुछ पुस्तकों के नाम है-डांसिंग भरतनाट्यम-अडवु, ट्रेडिशंस आॅफ इंडिया डांस, बाॅयोग्राफी आॅफ उदयशंकर, स्पलेंडर्स आॅफ इंडियन डांस और फोक डंास। वैसे ये किताबें अब आउट आॅफ प्रिंट हैं। उन दिनों उनकी इन किताबों को कई विश्वविद्यालयों ने अपने पाठ्यक्रमों में शामिल किया गया था। दरअसल, अपने इन महती प्रयासों के माध्यम से वह भारतीय शास्त्रीय नृत्य के भविष्य को सुरक्षित रखना चाहते थे। इस बाबत उन्होंने कई नृत्यांगनाओं, शोधकर्ताओं और विद्वानों का मार्गदर्शन किया। निसंदेह उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य को संपूर्णता और समग्रता से समझा और उसे नया आयाम देने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
गौरतलब है कि देश की आजादी से पहले सन् 1930 ईस्वी से ही मोहन खोकर ने नृत्य से संबंधित सामग्रियों का संग्रह और संकलन शुरू कर दिया था। इस संग्रह में मूर्तियां, वस्त्र, पटाखे के पैकट, दीए, माचिस की डिबिया आदि शामिल हैं। इन सामग्रियों का स्थाई संग्रह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में ‘दी मोहन खोकर डांस कलेक्शन-एम के डी सी’ में व्यवस्थित रूप से उपलब्ध है। इस संग्रह में बाला सरस्वती, एम के सरोजा, इंद्राणी
रहमान, यामिनी कृष्णमूर्ति, डाॅ सोनल मानसिंह उनके नृत्य परफाॅर्मेंस की तस्वीरें, पोस्टर, निमंत्रण पत्र आदि बहुत सुघड़ता से सुरक्षित और प्रदर्शित किया गया है। कलेक्शन में प्रदर्शित सौ साल पुराने भरतनाट्यम नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई के पोस्टर सुरक्षित रखा गया है। इसके अलावा, कलाकारों के काॅस्ट्यूम, ज्वेलरी और उपहारों को भी सहेजा गया है। देश के जाने-माने कलाकारों के संबंध में प्रकाशित सामग्रियां-पत्रिकाएं, अखबारों को करीने से प्रदर्शित किया गया है। इसमें कला से संबंधित विश्व के प्रतिष्ठित पत्रिकाएं और जर्नल्स का एक विशेष दी्रर्धा है। माचिस की डिबिया, ताश के पत्ते, साबुन के रैपर पर भी अगर नृत्य से जुड़े चित्र या तस्वीर है, तो वह मोहन खोकर के नजर में आई और उसे उन्होंने संभाल कर रखा है। यह उनकी पारखी नजर ने उसकी कीमत को पहचाना है। यह संग्रह आने वाली पीढ़ी के लिए शास्त्रीय नृत्य परंपरा और उससे जुड़ी गतिविधियों और सामग्रियों के बारे में जानने समझने के लिए समुचित व्यवस्था माना जा सकता है। किसी भी जिज्ञासु को किसी भी कलाकार के बारे में कुछ जानने की इच्छा है, तो यह संग्रह उसके लिए किसी स्वर्ग की तरह है। जहां उसे सब कुछ एक साथ मिल सकता है।
एम के डी सी के संदर्भ में, वरिष्ठ कला समीक्षक और संगीत नाटक अकादमी की पूर्व उपाध्यक्ष शांता सरबजीत सिंह का कहना था कि मोहन खोकर ने अपने संग्रह की शुरूआत मद्रास से की थी। उन्होंने शास्त्रीय नृत्य की पुरानी किताबों और सामग्रियों को इकट्ठा किया था। उन्होंने वाजिद अली शाह की किताब की प्रति को खरीदा था। उनके संग्रह में उदय शंकर जी का चैदह घंटे की लंबी इंटरव्यू उन्हीं की आवाज में सुरक्षित रखा गया था।
उस समय ऐसा अनुकरणीय काम करना आसान नहीं था। यह भी महत्वपूर्ण है कि उनके संग्रह में भारतीय संस्कृति के पुर्नजागरण काल के प्रणेताओं, जैसे- मार्था ग्राहम, टेड शान, बाला सरस्वती, रूक्मिणी देवी अरूंडेल, इ के असर, रामगोपाल आदि के साक्षात्कार सुरक्षित हैं। प्रतिभावान कला साधक मोहन खोकर ने बड़ौदा के एम एस विश्वविद्याल में नृत्य विभाग के विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए, जब उनकी उम्र सिर्फ पच्चीस साल की थी। दिल्ली में उन्होंने संगीत नाटक अकादमी में अठारह
वर्ष तक अपनी सेवा प्रदान किया। इस प्रवास के दौरान उन्होंने कृष्णचंद नायक, दक्षा सेठ, शशधर नायर आदि को मदद किया। इसके अलावा, साठ के दशक में कथकलि गुरुओं को दिल्ली में पांव जमाने में मदद किया।
दी मोहन खोकर डांस कलेक्शन को राष्ट्रीय नृत्य संग्रहालय का रूप दिया जा सकता है। यह उनकी स्मृति को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। उनके सुपुत्र आशीष मोहन खोकर अपने व्यक्तिगत प्रयासों से इस संग्रह को संरक्षित किया है। बहरहाल, वर्तमान समय में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में एक कला दीर्घा-दी मोहन खोकर डांस कलेक्शन के रूप में प्रदर्शित है। इसे डिजिटल रूप देने का प्रयास जारी है।
इस कलेक्शन के संरक्षक व न्यासी आशीष मोहन कहते हैं कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मुख्य सचिव डाॅ सच्चिदानंद जोशी, नृत्य संबंधित न्यासी डाॅ सोनल मानसिंह, भरतनाट्यम नृत्यांगना डाॅ पद्मा सुब्रह्मण्यम, प्रो भरत गुप्त, सरयू दोषी और प्रसून जोशी सभी ने हर मोड़ पर इस खजाने की सबने तारीफ की है। डाॅ अचल पांडया ने कई कर्मचारियों को इस संग्रह की देखभाल के लिए नियुक्त किया है, ताकि इस धरोहर की देखरेख और संरक्षण बेहतर हो सके। जब भी इस धरोहर के बारे में सोचता हूं तो मन पिता जी की दूरदृष्टि के प्रति नतमस्तक हो जाता है। इस धरोहर को संजोने में दो पीढ़ियों की मेहनत साफ-साफ दिखती है।