अमित श्रीवास्तव
आज के भारत बंद पर चर्चा मुख्यतः तीन बिंदुओं पर होनी चाहिए।
पहला जब आदेश सुप्रीम कोर्ट का है तब पुनर्विचार याचिका की जगह सड़कों को अखाड़ा बनाने वालों की मंशा क्या है?
दूसरा, यह आदेश उन सभी राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों, संगठनों की अग्नि परीक्षा की घड़ी है जो शोषित व सर्वहारा के हक की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं। उन्हें स्पष्ट करना होगा कि वो किस पिछड़े के साथ हैं, वो जो आरक्षण का लाभ लेकर अपनी स्थिति सुधार चुके हैं अथवा उनके साथ जिन्हें अब तक आरक्षण का अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाया है और वो आज भी शोषित पीड़ित हैं?
और तीसरा, सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को जातीय जनगणना के साथ जोड़ कर देखिए। जातीय जनगणना के उपरांत ऐसी कई जातीय समूह सामने आएगी जिनकी स्थिति आज भी बदतर है। ऐसे में एक नया द्वंद शुरू होगा। पिछड़ी जातियों में भी कई जातियों के समूह व नेता सामने आएंगे जो अपने अपने वर्ग के उन जातियों के सामने खड़े होंगे जो आज समृद्धि की मानक रेखा से ऊपर आ चुके हैं। ऐसे में पिछड़ी व दलित जातियों के उन सभी स्थापित नेताओं के लिए बड़ी चुनौती उभर कर सामने आने वाली है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश में मायावती अखिलेश बिहार में चिराग पासवान जैसे नेता इस आदेश का विरोध कर रहे हैं।