‘डरा हुआ भारत’ और ‘सहमा हुआ भारत’ की पहचान से बाहर निकल कर हमारे देश की पूरी दुनिया के सामने आज एक नई छवि है। मोदी का भारत। जिसका अर्थ होता है, एक ऐसा भारत जो जवाब देना जानता है। विदेशी बयानों को सुनकर पहले की तरह हल्की प्रतिक्रिया भर से काम नहीं चलता। वह जवाब देता है। दूसरे देशों को बताता है कि हमारे आंतरिक मामलों में बयानबाजी करके कृपया हस्तक्षेप ना करें। हाल फिलहाल देखें तो भारत की विदेश नीति में काफी बदलाव आया है। पहले कभी विदेश से कोई टिप्पणी होती थी, तो उस पर सिर्फ प्रतिक्रिया आती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मोदी के भारत में देश की घरेलू नीति और विदेश नीति में आए परिवर्तन की वजह से अब उन देशों को फटकार लगाई जाती है, जो भारत को लेकर अनर्गल टिप्पणी करते हैं। उन्हें साफ शब्दों में आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करने की नसीहत दी जाती है।
एनडीटीवी को कांग्रेस का संरक्षण प्राप्त था। यह एक जग जाहिर बात है। इसलिए इस संस्थान में काम करने वाले पत्रकारों में चैनल प्रणय रॉय के हाथ से जाने के बावजूद कांग्रेस के प्रति वफादारी जारी है। राडिया टेप में इस चैनल से जुड़े पत्रकार की पहुंच सरकार के अंदर तक दिखाई दी। इसलिए जब एनडीटीवी पर मोदी सरकार ने कार्रवाई की तो पूरे मामले पर अंतरराष्ट्रीय लॉबी के दबाव का इस्तेमाल किया गया। जब आर्थिक अपराध से जुड़े एक मामले में सीबीआई ने एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय के ठिकानों पर छापे मारे थे, तब भी कांग्रेस समेत वाम इको सिस्टम की पार्टियों ने इसे भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया था। उसी दौरान लोकतंत्र को कमज़ोर करने वाली बात निकली थी। जिसे 2024 के चुनाव में कांग्रेस और इंडि गठबंधन के दूसरे दल इस्तेमाल कर रहे हैं।
किसान आंदोलन के समय जिस तरह वहां नक्सलियों और खाालिस्तानियों का गठबंधन होने के संकेत मिल रहे थे। उस आंदोलन का लंबा चलना देश के लिए खतरा हो सकता था। उस आंदोलन में अंतरराष्ट्रीय गुटों की लॉबिंग साफ दिखाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था कि किसान आंदोलन की आड़ में सरकार को कमजोर करने और झुकाने की कोशिश की जा रही है। बाद में इस बात का खुलासा स्वीडिश युवती ग्रेटा थनबर्ग द्वारा गलती से पोस्ट किये गये एक टूलकिट से हो गया। जिसमें आंदोलन को आगे बढ़ाने के संबंध में मार्गदर्शन किया गया था। पेगासस स्पाइवेयर के मामले को भी बेवजह अधिक तूल देने की कोशिश की गई। जिसमें कई वैश्विक संगठनों ने विपक्ष की पार्टियों को समर्थन किया और भारत की सरकार पर दबाव बनाने का काम किया। मोदी सरकार ने एक एक टूल किट को सही जवाब दिया। सरकार ने विदेशी हस्तक्षेप को कहीं भी अधिक महत्व नहीं दिया। इस बात में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि 2014 से लेकर 2024 तक के 10 सालों में विपक्ष कमजोर हुआ है।
यह सच है कि बीते दस वर्षों में भारत में विपक्ष लगातार कमज़ोर पड़ा है, लेकिन उसकी इस कमज़ोरी के पीछे पार्टी में लगे भ्रष्टाचार, सांप्रदायिक तुष्टीकरण, राजनीतिक अपराधीकरण, परिवारवाद, जातिवाद जैसे दीमक की मुख्य भूमिका है। आज उनके नेताओ, विपक्ष की नीतियों और उनकी नीयत के ऊपर मतदाता भरोसा करने को तैयार नहीं है।
हर भारतीय को उस दिन गर्व हुआ जब भारत ने अमेरिका को फटकार लगाई। 20 साल पहले यह बात कोई भारतीय सोच भी नहीं सकता था। जब नागरिकता संशोधन कानून, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी तथा कांग्रेस के बैंक खातों में फ्रीज लगाने के मामले में अमेरिका ने टिप्पणी की थी। ऐसे मामलों में कठोर प्रतिक्रिया की भारत में परंपरा नहीं रही। मोदी सरकार में यह परिवर्तन देश ने महसूस किया। इस मामले में भारत के दिल्ली में स्थित अमेरिकी मिशन के कार्यवाहक उप-प्रमुख को बुलाकर फटकार लगाई गई, और अमेरिका को साफ संदेश दिया गया कि भारत के आंतरिक मामलों में उनकी तरफ से हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। पहली बार के डांट फटकार का असर जब कम हुआ, चुनावी और न्यायिक प्रक्रिया में फिर टिप्पणी की गई तो भारत ने दूसरी बार अमेरिका को फटकार लगाई और कहा कि भारत के ऊपर किसी बाहरी देश का टीका-टिप्पणी करना पूरी तरह से गलत है।
पहले भी मणिपुर में हुई हिंसक झड़पों के बीच अमेरिकी राजदूत ने कहा था कि अमेरिका इस राज्य में हो रही हिंसा को लेकर चिंतित है। भारत ने अमेरिका के बयानों को गंभीरता से लिया और अपनी आपत्ति जताई। जिसका परिणाम था कि अमेरिका को मणिपुर की स्थिति भारत का आंतरिक मामला है और इसमें उन्हें दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए। इस बात को स्वीकार करना पड़ा।
फरवरी महीने में संयुक्त राष्ट्र् की मानवाधिकार परिषद की बैठक में पाकिस्तान ने कश्मीर को लेकर आरोप लगाए थे। इन आरोपों पर तुर्की ने पाकिस्तान का साथ दिया था। पुराना भारत होता तो इस बात का संभव है कि सज्ञान भी नहीं लिया जाता लेकिन वहां भारत की प्रतिनिधि अनुपमा सिंह ने तुर्की के टिप्पणी पर अपना प्रतिरोध जाहिर किया। इसी साल जनवरी की बात है, जब चीन के इशारों पर मालदीव ने प्रधानमंत्री मोदी और भारत के खिलाफ टिप्पणी की। भारत ने ना सिर्फ फटकार लगाई बल्कि कार्रवाई भी की। भारत के कड़े रुख का परिणाम था कि मालदीव की अर्थव्यवस्था में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। अब भारत से मालदीव के राष्ट्रपति मदद की गुहार लगा रहे हैं। पाकिस्तान अपना प्रोपगेंडा लेकर दुनिया भर में पहले की तरह अब भी घुम रहा है लेकिन अब उसे कहीं महत्व नहीं मिल रहा। पहले भारत में आतंक मचाकर दहशतगर्द पाकिस्तान में जाकर छुप जाते थे। अब एक एक कर उनकी पहचान हो रही है और कोई भारत समर्थक उन्हें घर में घुसकर मार रहा है। यह बात कुछ लोग दबी छुपी जुबान में कह रहे हैं कि यह सब भारत की खुफिया एजेन्सियों का पराक्रम है। देश में जब एक राष्ट्रवादी शासन है, ऐसे में देश से प्रेम करने वालों के हौसले बुलंद हैं। वह सेना में काम करने वाले हों, या फिर सुरक्षा एजेन्सियों में। अब उन्हें महसूस हो रहा है कि वे किसी सरकार के लिए नहीं देश के लिए काम कर रहे हैं।
मार्च महीने की बात है, जर्मनी की ओर से दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर बयान जारी किया गया। भारत ने बिना देरी किए इस पर अपना एतराज जताया। नई दिल्ली में जर्मन राजनयिक को बुलाया गया। समाचार पत्रों में दोनों देशों के बीच तनाव की खबर प्रकाशित हुई। जर्मनी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने तनाव को कम करने की नियत से भारत के साथ बेहतर रिश्ते रखने की इच्छा जाहिर की।
जर्मनी की ओर से कहा गया कि भारत के साथ वह एक भरोसे के माहौल में काम करना और रिश्तों को आगे ले जाना चाहता है। जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हम भारत के साथ विश्वास के माहौल में मिलकर काम करना चाहते हैं। इसे भारत की कूटनीतिक सफलता के तौर पर पेश किया जा सकता है लेकिन साथ ही साथ यह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत की बढ़ती ताकत का उदाहरण भी है।
दो दशक पहले तक सिद्धांतों में उलझे रहने वाला भारत आज वैश्चिक मंच पर एक महत्वपूर्ण किरदार बनकर उभरा है। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने वैक्सीन मैत्री पहल के जरिए पूरी दुनिया को अपनी उपस्थिति का एहसास दिलाया। भारत आंतरिक मोर्चे की चुनौतियों से निपटने के साथ साथ अब वैश्विक समस्याएं सुलझाने में भी दिलचस्पी ले रहा है। नेतृत्वहीनता के इस दौर में पूरी दुनिया मोदी में एक उम्मीद देख रही है। इसका ताजा उदाहरण भारत की G20 अध्यक्षता है।
मोदी के नेतृत्व में भारत पिछली सरकारों की भूलों को भी सुधार रहा है। चाहे वह शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इनीशटिव का विरोध हो। जिसका विरोध वर्ष 2013 में ही भारत की यूपीए सरकार को करना चाहिए था, जब चीन इस योजना पर काम प्रारंभ कर चुका था। लेकिन इसमें थोड़ी देरी हुई। वर्ष 2014 में मोदी की नई सरकार बनने के साथ ही भारत ने चीन के सामने अपना विरोध दर्ज कराया। मोदी के नेतृत्व में नए भारत ने चीन की सैन्य आक्रामकता को भी उसी की शैली में जवाब दिया और कई मोर्चो पर चीन को पीछे हटने को मजबूर किया। इसके अलावा किसी औपचारिक गठबंधन में गए बगैर ही अमेरिका से करीबी स्थापित करने का कौशल भी नई सरकार ने दिखाया और यूरोपीय देशों की मदद से भारत ने अपनी घरेलू क्षमता बढ़ाने का भी काम किया। वर्ष 2014 से 2024 तक के दस सालों को केन्द्र में रखकर किसी शोध छात्र को भारत की विदेश नीति का अध्ययन करना चाहिए। इस अध्ययन से अनगिनत रोचक प्रसंगों को प्रकाश में आने का अवसर मिलेगा जो हर एक भारतीय को सशक्त भारत बनाने में योगदान के लिए प्रेरित करेगा।