बिहार की राजनीति में सम्राट चौधरी का महत्व

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पटना। बिहार की राजनीति, जो जातीय समीकरणों और गठबंधनों की जटिल जाल में उलझी रहती है, वहां सम्राट चौधरी एक ऐसे चेहरे के रूप में उभरे हैं जो बदलाव और स्थिरता का प्रतीक बन चुके हैं। 16 नवंबर 1968 को जन्मे सम्राट चौधरी, उर्फ राकेश कुमार, पूर्व सांसद शकुनी चौधरी के पुत्र हैं। राजनीतिक विरासत उन्हें विरासत में मिली, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत से इसे मजबूत किया। 1990 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश करने वाले सम्राट ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से शुरुआत की। 1999 में राबड़ी देवी सरकार में मात्र 31 वर्ष की आयु में कृषि मंत्री बनकर उन्होंने सबसे कम उम्र के मंत्री का रिकॉर्ड कायम किया। परबत्ता विधानसभा क्षेत्र से 2000 और 2005 में आरजेडी के टिकट पर विधायक चुने गए।

हालांकि, 2018 में आरजेडी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होना उनके राजनीतिक सफर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। यह कदम न केवल व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा था, बल्कि बिहार की जातीय राजनीति में एक बड़ा संदेश भी। कुशवाहा (कोइरी) समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सम्राट (जिनकी जाति बिहार में 7-9 प्रतिशत वोट बैंक रखती है) ने बीजेपी को पिछड़ी जातियों के बीच मजबूत आधार प्रदान किया। आरजेडी-महागठबंधन के दौर में कुशवाहा वोटों का एक हिस्सा विपक्ष की ओर झुकाव रखता था, लेकिन सम्राट के नेतृत्व ने इसे एनडीए की ओर मोड़ दिया। 2023 में बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने पार्टी को संगठनात्मक मजबूती दी। विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने विपक्ष पर तीखे हमले बोले, खासकर नीतीश कुमार की ‘पलटासन’ राजनीति पर।

2024 में नीतीश कुमार के एनडीए में वापस लौटने पर सम्राट चौधरी बिहार के उपमुख्यमंत्री बने। यह नियुक्ति बीजेपी की रणनीति का हिस्सा थी—कुशवाहा समुदाय को प्रतिनिधित्व देकर जातीय संतुलन बनाना। विजय सिन्हा (भूमिहार) के साथ उनकी जोड़ी एनडीए सरकार को मजबूत आधार देती है। सम्राट की आक्रामक शैली—जैसे हाल ही में तेजस्वी यादव पर ‘गुंडागर्दी’ का आरोप लगाना या नीतीश पर ‘शराबी बनाने’ का तंज कसना—बिहार की राजनीति को गरमाती रहती है। 2025 विधानसभा चुनावों में तारापुर सीट से उम्मीदवार बनकर वे पुश्तैनी जंग लड़ रहे हैं।

सम्राट चौधरी का महत्व केवल पदों तक सीमित नहीं। वे बिहार की जाति-आधारित राजनीति में एक पुल का काम करते हैं—आरजेडी से बीजेपी तक का सफर दर्शाता है कि कैसे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और पार्टी हित सामंजस्य बिठा सकते हैं। कुशवाहा-कुर्मी गठजोड़ को मजबूत कर वे एनडीए को 2025 में बहुमत की ओर धकेल रहे हैं। भ्रष्टाचार-विरोधी छवि और विकास-केंद्रित एजेंडे से वे युवा मतदाताओं को आकर्षित कर रहे हैं। बिहार, जहां राजनीति अस्थिरता का पर्याय है, वहां सम्राट स्थिरता और आक्रामकता का संगम हैं। यदि एनडीए सत्ता में लौटता है, तो उनका सीएम बनना असंभव नहीं। कुल मिलाकर, सम्राट चौधरी बिहार की राजनीति को नई दिशा देने वाले रणनीतिकार हैं, जो जाति से ऊपर उठकर विकास का मंत्र दे रहे हैं।

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