बिहार में बीजेपी की सोशल मीडिया रणनीति: राजद और कांग्रेस से पिछड़ने के कारण

congress-rjd.jpg

बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं, और इस बार का चुनावी माहौल पहले से कहीं अधिक डिजिटल हो चुका है। सोशल मीडिया अब केवल प्रचार का माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसा युद्धक्षेत्र बन चुका है, जहां पार्टियां अपनी छवि, नीतियों और नेताओं को जनता तक पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। इस डिजिटल युद्ध में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस की आईटी सेल ने बिहार में प्रभावी उपस्थिति दर्ज की है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और उसके सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) सोशल मीडिया के इस खेल में पिछड़ते दिख रहे हैं। आइए, इसके कारणों और बिहार के डिजिटल चुनावी परिदृश्य का विश्लेषण करें।

राजद की सोशल मीडिया रणनीति: मजबूत और प्रभावी

राजद ने बिहार में सोशल मीडिया पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए सुनियोजित रणनीति अपनाई है। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं, विशेष रूप से यादव और मुस्लिम समुदायों के समर्थकों को, सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने और वीडियो कंटेंट बनाने का निर्देश दिया है। यह रणनीति खास तौर पर ग्रामीण और छोटे शहरों के मतदाताओं को प्रभावित करने में कारगर साबित हो रही है। राजद समर्थकों की एक खास रणनीति यह भी देखी गई है कि वे छद्म नामों से कई सोशल मीडिया अकाउंट्स संचालित करते हैं, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि उनके समर्थन में व्यापक जनमत है। कई बार दो विरोधी दिखने वाली बहसें भी वास्तव में राजद समर्थकों द्वारा ही संचालित होती हैं, जो उनकी डिजिटल उपस्थिति को और मजबूत करती हैं।

इसके अलावा, राजद का एक प्रमुख समाचार चैनल, आज तक के एक उपक्रम बिहार तक, के साथ गठजोड़ होने की चर्चा है, जो उनके पक्ष में कवरेज देता दिखता है। यह चैनल बिहार के ग्रामीण और शहरी दर्शकों तक पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। राजद का हाल ही में लॉन्च किया गया थीम सॉन्ग, जिसमें तेजस्वी यादव को केंद्र में रखा गया है, युवाओं और विकास के मुद्दों पर जोर देता है। यह सॉन्ग सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिससे राजद की डिजिटल रणनीति को और बल मिल रहा है।

कांग्रेस की आईटी सेल: पत्रकारों का प्रभाव और सोशल मीडिया की ताकत

कांग्रेस की सोशल मीडिया रणनीति भी बिहार में प्रभावी रही है। पार्टी ने अपने आईटी सेल में बड़े, मध्यम और छोटे स्तर के पत्रकारों को शामिल किया है, जो विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए, संदीप सिंह जैसे बड़बोले सोशल मीडिया एक्टिविस्ट और अजीत अंजुम जैसे वरिष्ठ पत्रकारों की मौजूदगी कांग्रेस की सोशल मीडिया उपस्थिति को विश्वसनीयता और आक्रामकता दोनों प्रदान करती है। एबीपी न्यूज के प्राइम टाइम एंकर संदीप चौधरी भी कांग्रेस आईटी सेल की भाषा ही अपने शो में बोलते हुए दिखाई देते हैं। यह संयोग है कि दोनों पत्रकारों का कॅरियर कांग्रेसी नेता राजीव शुक्ला चैनल के न्यूज 24 में बना और संवरा है।

कांग्रेस ने बिहार में उम्मीदवारों के चयन के लिए एक अनोखी शर्त रखी है: सोशल मीडिया पर न्यूनतम फॉलोअर्स की संख्या। यह रणनीति यह दर्शाती है कि पार्टी डिजिटल प्रभाव को कितना महत्व दे रही है। हालांकि, यह शर्त कई मौजूदा विधायकों के लिए चुनौती बन सकती है, लेकिन यह कांग्रेस की सोशल मीडिया रणनीति की गंभीरता को दर्शाता है। पार्टी ने व्हाट्सएप ग्रुप्स और फेसबुक पेजों के जरिए स्थानीय स्तर पर नेटवर्क तैयार किया है, जिससे वह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अपनी पहुंच बढ़ा रही है।

बीजेपी और जदयू की कमजोरियां: सोशल मीडिया में पिछड़ने के कारण

दूसरी ओर, बीजेपी और जदयू की सोशल मीडिया रणनीति अभी तक उतनी प्रभावी नहीं दिख रही। बीजेपी, जो राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत आईटी सेल के लिए जानी जाती है, बिहार में स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में असफल रही है। पार्टी का सोशल मीडिया बजट बड़े मीडिया हाउसेज और कुछ नेताओं की निजी कंपनियों तक सीमित रहता है, जिससे जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और छोटे यूट्यूबर्स को प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा।

बीजेपी के कुछ समर्थक यूट्यूबर्स, जैसे अदिति त्यागी और अभिषेक तिवारी, बिहार की जनता की नब्ज को पूरी तरह समझ नहीं पा रहे। अदिति, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं, बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों की भावनाओं और मुद्दों से पूरी तरह जुड़ नहीं पा रही हैं। वहीं, अभिषेक तिवारी के शो के विषय अक्सर सामान्य और हल्के-फुल्के होते हैं, जो बिहार के मतदाताओं के गंभीर मुद्दों को संबोधित करने में नाकाम रहते हैं।

जदयू की स्थिति और भी कमजोर है। पार्टी ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति को मजबूत करने में देरी की है। हालांकि, जदयू ने हाल ही में कुछ प्रयास शुरू किए हैं, जैसे भाषणों के प्रसारण के लिए वेबसाइट शुरू करना, लेकिन यह अभी तक राजद और कांग्रेस की तुलना में कम प्रभावी है।

प्रशांत किशोर और मनीष कश्यप की नई रणनीति

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने भी सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिए कदम उठाए हैं। मनीष कश्यप जैसे प्रभावशाली यूट्यूबर, जिन्होंने हाल ही में जन सुराज में शामिल होकर बिहार के 400 यूट्यूबर्स को पटना में एकत्र किया, ने डिजिटल क्षेत्र में नया उफान ला दिया है। यह उपलब्धि छोटे शहरों और गांवों के यूट्यूबर्स को एकजुट करने में महत्वपूर्ण है, जो बिहार के मतदाताओं को प्रभावित करने में सक्षम हैं।

बिहार का चुनावी गणित और सोशल मीडिया की भूमिका

बिहार की राजनीति हमेशा से जातिगत समीकरणों और गठबंधनों पर निर्भर रही है। राजद ने अपने MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को मजबूत करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है, जबकि बीजेपी और जदयू ने अभी तक इस क्षेत्र में समान उत्साह नहीं दिखाया। 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद ने 22.14% वोट शेयर हासिल किया, जो बीजेपी (20.52%) और जदयू (18.52%) से अधिक था। यह दर्शाता है कि राजद की डिजिटल रणनीति पहले से ही मतदाताओं को प्रभावित कर रही है।

सोशल मीडिया का प्रभाव केवल प्रचार तक सीमित नहीं है। यह मतदाताओं के बीच नैरेटिव सेट करने और विरोधी दलों के खिलाफ माहौल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राजद और कांग्रेस ने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत की है, जबकि बीजेपी और जदयू अभी तक अपनी रणनीति को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाए।

बीजेपी के लिए चुनौतियां और संभावनाएं

बिहार में बीजेपी और जदयू को सोशल मीडिया पर अपनी रणनीति को और आक्रामक और जमीनी स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है। जहां राजद और कांग्रेस ने स्थानीय कार्यकर्ताओं और छोटे यूट्यूबर्स को सक्रिय कर अपनी पहुंच बढ़ाई है, वहीं बीजेपी का फोकस बड़े मीडिया हाउसेज और कुछ चुनिंदा नेताओं तक सीमित है। छोटे यूट्यूबर्स और स्थानीय कार्यकर्ताओं की शक्ति को नजरअंदाज करना बीजेपी के लिए महंगा साबित हो सकता है।हालांकि, बीजेपी और जदयू के पास अभी भी समय है कि वे अपनी रणनीति में सुधार करें। ऑपरेशन सिंदूर और नीतीश कुमार के प्रति सहानुभूति जैसे मुद्दों पर जोर देकर बीजेपी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है।

यदि बीजेपी और जदयू छोटे यूट्यूबर्स और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में सफल हो जाते हैं, तो वे इस डिजिटल युद्ध में राजद और कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। बिहार का चुनावी गणित अब केवल जातिगत समीकरणों पर नहीं, बल्कि डिजिटल रणनीति की ताकत पर भी निर्भर करेगा

Share this post

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top