बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं, और इस बार सोशल मीडिया इस सियासी जंग का एक प्रमुख रणक्षेत्र बनता नजर आ रहा है। बिहार की राजनीति हमेशा से ही गठबंधनों, जातिगत समीकरणों और जमीनी रणनीतियों के लिए जानी जाती रही है, लेकिन इस बार डिजिटल युग ने इसे एक नया आयाम दिया है। राजनीतिक दल अब केवल रैलियों और जनसभाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए मतदाताओं तक पहुंचने की होड़ में हैं।
हाल ही में पटना के पनाश होटल में एक राजनीतिक दल द्वारा 400 सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को इकट्ठा करना, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की आईटी सेल की सक्रियता, और कांग्रेस द्वारा पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत के नेतृत्व में बड़े यूट्यूबर्स को अपने पक्ष में लामबंद करना इस बात का संकेत है कि 2025 का चुनाव सोशल मीडिया पर पहले लड़ा जाएगा।
सवाल यह है कि क्या यह डिजिटल रणक्षेत्र ही तय करेगा कि बिहार में कौन सी पार्टी सत्ता की कुर्सी तक पहुंचेगी और कौन हार का सामना करेगा?
सोशल मीडिया: बिहार की सियासत का नया हथियार
भारत में सोशल मीडिया का प्रभाव पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ा है। बिहार जैसे राज्य में, जहां युवा आबादी और स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं की संख्या में इजाफा हुआ है, सोशल मीडिया अब केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जनमत को प्रभावित करने का एक शक्तिशाली हथियार बन गया है। फेसबुक, ट्विटर (अब एक्स), इंस्टाग्राम, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स ने राजनीतिक दलों को मतदाताओं से सीधा संवाद करने का अवसर दिया है। बिहार में 2025 के चुनाव में यह प्रभाव और भी गहरा होने की उम्मीद है।
सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह न केवल शहरी मतदाताओं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच रहा है। बिहार में सस्ते डेटा और स्मार्टफोन्स की उपलब्धता ने ग्रामीण युवाओं को भी डिजिटल दुनिया से जोड़ा है। इसके परिणामस्वरूप, राजनीतिक दल अब अपनी रणनीतियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर केंद्रित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, राजद ने अपने नए थीम सॉन्ग “तेजस्वी ही आइहें” को सोशल मीडिया पर लॉन्च किया, जो युवाओं के बीच तेजी से वायरल हुआ। इस सॉन्ग में तेजस्वी यादव को केंद्र में रखकर विकास और युवा आकांक्षाओं पर जोर दिया गया है, जो सोशल मीडिया के जरिए मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा है।
पनाश होटल की बैठक: सोशल मीडिया की रणनीति का नमूना
पटना के पनाश होटल में एक राजनीतिक दल द्वारा 400 सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को इकट्ठा करना इस बात का प्रमाण है कि दल अब डिजिटल प्रभाव को गंभीरता से ले रहे हैं। यह आयोजन न केवल सोशल मीडिया की ताकत को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पार्टियां अब संगठित रूप से डिजिटल कैंपेन की दिशा में बढ़ रही हैं। इन्फ्लुएंसर्स, जिनमें यूट्यूबर्स, ब्लॉगर्स और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट शामिल हैं, अपने फॉलोअर्स के बीच विश्वसनीयता रखते हैं। ये इन्फ्लुएंसर्स न केवल पार्टी के संदेश को लाखों लोगों तक पहुंचा सकते हैं, बल्कि मतदाताओं की भावनाओं को भी प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह की बैठकें दर्शाती हैं कि दल अब सोशल मीडिया को एक सामरिक हथियार के रूप में देख रहे हैं, जिसके जरिए वे न केवल अपनी उपलब्धियों को प्रचारित कर सकते हैं, बल्कि विपक्षी दलों पर हमला भी बोल सकते हैं।
राजद और कांग्रेस की डिजिटल रणनीति
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने अपनी सोशल मीडिया और आईटी सेल को मजबूत करने के लिए कई महीनों से काम शुरू कर दिया है। तेजस्वी यादव को केंद्र में रखकर पार्टी ने युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए आक्रामक डिजिटल कैंपेन शुरू किया है। थीम सॉन्ग, वायरल वीडियोज, और सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए राजद अपने पारंपरिक वोटर बेस—पिछड़ा, अतिपिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों—को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है। साथ ही, पार्टी नई पीढ़ी के मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए विकास और रोजगार जैसे मुद्दों पर जोर दे रही है।
दूसरी ओर, कांग्रेस भी सोशल मीडिया के मोर्चे पर पीछे नहीं है। पवन खेड़ा और सुप्रिया श्रीनेत जैसे नेताओं के नेतृत्व में पार्टी ने बड़े यूट्यूबर्स और डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स को अपने पक्ष में लामबंद किया है। हाल ही में एक एक्स पोस्ट में कांग्रेस की सोशल मीडिया रणनीति की तारीफ की, जिसमें ‘गुंडा राज’ जैसे मुद्दों को प्रभावशाली ग्राफिक्स के जरिए उठाया गया। यह दर्शाता है कि कांग्रेस न केवल मुद्दों को उछाल रही है, बल्कि स्ट्रैटजिक तरीके से डिजिटल कंटेंट तैयार कर रही है।
क्या सोशल मीडिया तय करेगा बिहार का भविष्य?
यह कहना कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव पूरी तरह से सोशल मीडिया पर लड़ा जाएगा, शायद अतिशयोक्ति होगी। हालांकि, यह निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण कारक होगा। सोशल मीडिया की ताकत यह है कि यह जनता की राय को तेजी से प्रभावित कर सकता है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए पार्टियां न केवल अपने संदेश को लाखों लोगों तक पहुंचा सकती हैं, बल्कि विपक्षी दलों के खिलाफ भ्रामक सूचनाएं और दुष्प्रचार भी फैला सकती हैं।
हालांकि, सोशल मीडिया का प्रभाव सीमित भी है। बिहार में मतदाता अभी भी जातिगत समीकरणों, स्थानीय मुद्दों और नेताओं की विश्वसनीयता पर भरोसा करते हैं। नीतीश कुमार की “विकास पुरुष” छवि, तेजस्वी यादव की युवा अपील, और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी जैसे नए खिलाड़ी भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच और डिजिटल साक्षरता अभी भी चुनौती बनी हुई है।
चुनौतियां और नियंत्रण
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ-साथ फेक न्यूज और भ्रामक सूचनाओं का खतरा भी बढ़ गया है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की जाने वाली सामग्री को चुनाव आचार संहिता के दायरे में लाने का फैसला किया था। 2025 के बिहार चुनाव में भी आयोग को इस दिशा में सख्त कदम उठाने होंगे ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हो सके।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सोशल मीडिया निस्संदेह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। राजद, कांग्रेस और अन्य दल डिजिटल रणनीतियों के जरिए मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। पलाश होटल की बैठक, थीम सॉन्ग्स, और यूट्यूबर्स का उपयोग इस बात का प्रमाण है कि पार्टियां सोशल मीडिया को अपनी रणनीति का केंद्र बना रही हैं।