बीजेपी की नई रणनीति: पश्चिम बंगाल में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और सुशासन का मिश्रण

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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पश्चिम बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए अपनी रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव किया है, जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने अपने पॉडकास्ट में उल्लेख किया। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुर्गापुर रैली में ममता बनर्जी पर सीधा हमला करने के बजाय बंगाल की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं को प्राथमिकता दी। ‘जय श्री राम’ के नारे की जगह ‘जय मां काली’ और ‘जय मां दुर्गा’ के उद्घोष ने बीजेपी की नई रणनीति को रेखांकित किया, जो बंगाली अस्मिता के साथ जुड़ने का प्रयास है।

*बंगाल की सांस्कृतिक पहचान, कुशासन और नीतियों पर ध्यान*

यह बदलाव बीजेपी की उस समझ को दर्शाता है कि बंगाल में धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों का स्थानीय संदर्भ में उपयोग अधिक प्रभावी हो सकता है। ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अतीत में बीजेपी पर ‘बाहरी’ होने और उत्तर भारतीय राष्ट्रवाद थोपने का आरोप लगाया था। इस बार, ममता का नाम न लेकर और बंगाल की सांस्कृतिक पहचान को उभारकर, बीजेपी ने टीएमसी के कुशासन और नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया। यह रणनीति व्यक्तिगत हमलों से हटकर सुशासन और विकास के वादों पर आधारित है।

*बंगालियों के गौरव को किया संबोधित*

मोदी ने बंगाली भाषा में भाषण शुरू कर और स्थानीय मनीषियों का उल्लेख कर बंगालियों के गौरव को संबोधित किया। यह कदम बीजेपी को बंगाल की जनता के करीब लाने का प्रयास है, विशेषकर ग्रामीण और हिंदू मतदाताओं को, जो मां काली और दुर्गा की पूजा में गहरी आस्था रखते हैं। यह रणनीति टीएमसी के ‘बंगाली अस्मिता’ के दावे को चुनौती देती है और बीजेपी को स्थानीय स्तर पर स्वीकार्य बनाने की कोशिश करती है।

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