शृंखला आलेख – 14: देवता नहीं नृशंस हत्यारा है वह!

2-4-1.jpeg

रायपुर: जनवरी, 2025 में माओवादी संगठन का सेंट्रल कमेटी मेम्बर चलपति उर्फ जयराम अपने सोलह साथियों सहित छत्तीसगढ़ राज्य के गरियाबंद जिले में मारा गया था। माओवादियों की सेंट्रल कमीटी का सदस्य चलपति जोकि आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले का रहने वाला था वह पुलिस रिकॉर्ड में प्रताप रेड्डी, रामचंद्र रेड्डी, अप्पाराव, जयराम, रामू जैसे अनेक अन्य नामों से जाना जाता था। उम्र में स्वयं से सैंतीस वर्ष छोटी नक्सल कैडर जिसका नाम अरुणा था, उससे चलपति ने शादी की थी। संज्ञान में लें कि इस तरह की क्रांति भी माओवादी करते हैं।

चलपति का ससुर लक्ष्मण राव अपने दामाद का शव लेने रायपुर पहुंचा था तो उसने मीडिया में कुछ बयान दिए। लक्ष्मण राव को अपनी बेटी के माओवादी हो जाने से शिकायत नहीं थी, युवती कन्या के बुजुर्ग व्यक्ति से विवाह कर लेने से भी कोई दिक्कत नहीं थी, उनके लिए तो दामाद देवता था। मेरे लिए आतंकवादी का यह देवत्व ऐसा प्रश्नचिन्ह था जिसके परोक्ष में उत्तर छिपा है कि क्या बंदूख मिट जाएगी तो भी माओवाद् समाप्त हो सकता है? इस दयनीय प्रतीत होने वाले पिता की कथित होनहार और जनपक्षधर बेटी का एक कारनामा यह भी है कि वह वर्ष 2018 में अरकू जिले के विधायक किदारी सरवेश्वर राव और पूर्व विधायक सिवेरी सोमा की हत्या में शामिल थी। इनके अतिरिक्त भी कई निर्दोषों की हत्या का उसपर आरोप है।

हत्यारी बेटी के हत्यारे दामाद चलपति को उसका मासूम दिखने वाला ससुर देवता क्यों मानता है? इस प्रश्न के उत्तर में उसका कहना था कि बेरोजगारी, महंगाई पर आवाज उठाने वाले को नक्सली बता कर मार दिया जाता है। मीडिया ने इससे नहीं पूछा कि मुखबिर बता कर किसे मार दिया जाता है? न् तो महंगाई का माओवाद से कोई संबंध है न् ही बेरोजगारी का। माओवादियों द्वारा इतनी कच्ची उमर के लड़के प्राथमिकता से रिक्रूट किए जाते है जिन्हे न बेरोजगारी का अर्थ पता होता है न् महंगाई का; यह तो छोडें, उन समयों में वे क्रांति क्या है यह तक नहीं जानते। महंगाई समस्या है, बेरोजगारी भी समस्या है और इस देश में ऐसी असंख्य समस्याएं विद्यमान हैं लेकिन क्या इसके लिए निकाल लिया जाये बंदूख ले कर और शामिल हो जाया जाए हत्यारों की टोली में?

आतंकवाद को इस तरह जस्टीफआई करने के लिए अगर लोग तैयार हैं तो क्या सचमुच माओवाद के जिंदा रहने के जमीनी कारण विद्यमान हैं? इसका उत्तर है नहीं; यह इसलिए क्योंकि आंध्र-तेलांगाना तुलनात्मक रूप से विकसित राज्य है। यहाँ से आने वाले आतंकवादियों ने भी छत्तीसगढ़ के जंगलों का उपनिवेश की तरह उपयोग किया और अपने परिक्षेत्र के जंगलों को केवल ट्रांजिट की तरह। समयपर्यंत भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी (माओवादी) पर आंध्र-तेलांगाना के लोग ही विक्रम की पीठ पर बैताल की तरह लटके रहे। छतीसगढ़ के भीतर अबूझमाड परिक्षेत्र में उपलब्ध आधार इलाका इन्हें अपनी व्यवस्था के संचालन के लिए राजधानी जैसी सुविधा उपलब्ध कराता था साथ ही इस पूरे मकड़जाल का अपना अर्थतंत्र भी है जो बंदूख के लिए गोली ही नहीं खरीदता शहरी नक्सलियों की स्याही और बोली भी खरीदता है। जड़ कटेगी तो पौधा भी सूखेगा तना भी मरेगा और पत्तियां भी जमीन पर सड़ेंगी। हाँ अपनी बेटी अरुणा को बंदूख तक पहुँचाने वाला पिता कितना संवेदनशील हो सकता है इसपर मेरी कोई टिप्पणी नहीं।

Share this post

राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन एक पुरस्कार विजेता लेखक और पर्यावरणविद् हैं। जिन्हें यथार्थवादी मुद्दों पर लिखना पसंद है। कविता, कहानी, निबंध, आलोचना के अलावा उन्होंने मशहूर नाटकों का निर्देशन भी किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top