समीर कौशिक
डा. भीमराव अंबेडकर का संपूर्ण चिंतन समाज के हर वर्ग को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में था। वे शिक्षा, समानता और सामाजिक न्याय को भारत के विकास का मूल स्तंभ मानते थे। उनका मानना था कि जब तक समाज का हर वर्ग शिक्षित, जागरूक और आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक भारत की असली स्वतंत्रता अधूरी रहेगी।
डा. अंबेडकर एक महान समाज सुधारक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री एवं दूरदर्शी विचारक थे। उन्होंने भारतीय समाज की विषमताओं को दूर करने एवं आत्मनिर्भर भारत की नींव रखने हेतु अनेक विचार प्रस्तुत किए। डॉ. अंबेडकर का मानना था कि सशक्त राष्ट्र के लिए शिक्षा, समानता, सामाजिक न्याय और आर्थिक स्वतंत्रता आवश्यक हैं। आज जब भारत “आत्मनिर्भर भारत” की दिशा में अग्रसर है और “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” लागू हो रही है, तब डॉ. अंबेडकर के विचारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।
डा. अंबेडकर द्वारा आत्मनिर्भर भारत हेतु चिंतन शिक्षा के महत्व को समझाते हुए कहा था डा. “शिक्षा वह शस्त्र है जिससे व्यक्ति अपने जीवन को बदल सकता है।” वे शिक्षा को व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण का माध्यम मानते थे। उन्होंने समान अवसरों की शिक्षा की वकालत की, जहाँ जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर किसी के साथ भेदभाव न हो। कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा आत्मनिर्भरता के लिए स्किल-बेस्ड शिक्षा पर बल। युवाओं को नौकरी नहीं, रोजगार देने वाला बनाने की दिशा में कदम।
डा. अंबेडकर ने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन और आत्मनिर्भरता का सबसे बड़ा साधन माना। उनका प्रसिद्ध उद्धरण “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” यही दर्शाता है कि व्यक्ति को सबसे पहले आत्मनिर्भर बनने के लिए शिक्षित होना चाहिए।
उनका मानना था कि “प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण सर्वांगीण राष्ट्रीय प्रगति का आधार है। इसलिए अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के लिए एक कानून होना चाहिए।”
आर्थिक स्वतंत्रता के विषय मे उनका विचार था कि बिना आर्थिक स्वाधीनता के सामाजिक समानता संभव नहीं है। वे समावेशी विकास, भूमि सुधार और श्रम अधिकारों के पक्षधर थे।
सबको समान अवसर देने के पक्षधर डॉ. अंबेडकर प्रत्येक नागरिक को बराबरी का अवसर देने के पक्षधर थे, जिससे व्यक्ति अपनी योग्यता और प्रयासों के बल पर आत्मनिर्भर बन सके।
तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा पर बल देते हुए डा. अंबेडकर ने व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को आत्मनिर्भरता की कुंजी माना, जिससे युवाओं को रोजगार के अवसर मिल सकें।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) और अंबेडकरवादी दृष्टिकोण
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में कई ऐसे प्रावधान हैं जो डा. अंबेडकर के विचारों से मेल खाते हैं जैसे समावेशी शिक्षा प्रणाली की सुविधा द्वारा NEP का उद्देश्य सभी वर्गों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है। विशेष रूप से वंचित वर्गों, जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए स्कॉलरशिप, डिजिटल सामग्री और बहुभाषिक शिक्षा की सुविधा दी जा रही है।
भाषायी विविधता और मातृभाषा में शिक्षा डा. अंबेडकर ने भारतीय भाषाओं के महत्व को समझा था। उसी के अनुरूप NEP मातृभाषा में शिक्षा देने की वकालत करती है, जिससे शिक्षा अधिक प्रभावी और सबके लिए सुलभ हो सके। बहुभाषी शिक्षा और मातृभाषा पर जोर प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देने का प्रावधान डा. अंबेडकर के शिक्षा सुलभता के विचारों के साथ मेल खाता है।
शिक्षा का व्यावसायीकरण नहीं, व्यावसायिकता की बात करके डा. अंबेडकर ने शिक्षा को सामाजिक दायित्व माना था, न कि केवल रोजगार पाने का साधन। NEP में भी कौशल विकास, व्यावसायिक शिक्षा और स्टार्टअप कल्चर को बढ़ावा देकर युवाओं को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में प्रोत्साहित किया गया है।
व्यावसायिक शिक्षा का समावेश कक्षा 6 से ही व्यावसायिक शिक्षा का आरंभ युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
गुणवत्ता और नवाचार पर बल उच्च शिक्षा में अनुसंधान, नवाचार, और डिजिटल तकनीकों के समावेश से शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण और रोजगारपरक बनाया गया है।
लचीलापन और वैयक्तिक रुचियों का सम्मान करते हुए नई नीति में छात्रों को अपने रुचि के अनुसार विषय चुनने की स्वतंत्रता दी गई है, जिससे वे अपने कौशलों का विकास कर सकें। उन्होंने “राज्य समाजवाद” का समर्थन किया, जिसमें उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण हो। उन्होंने लघु उद्योगों, सहकारिता, और भूमि सुधारों की बात की।
लोकतांत्रिक शिक्षा व्यवस्था की पैरवी करते हुए डा. अंबेडकर ने लोकतंत्र को “समान अवसरों की व्यवस्था” कहा था। NEP में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में समान अवसर सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है, जिससे सभी को आगे बढ़ने का समान अधिकार मिले। जो आज विभिन्न योजनाओं एवँ छात्रवृत्ति के माध्यम से NEP 2020 के माध्यम से किया जा रहा है ।
डा. अंबेडकर का चिंतन आज भी भारत के सामाजिक और शैक्षणिक विकास का पथप्रदर्शक है। आत्मनिर्भर भारत का सपना तभी साकार हो सकता है जब प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता मिले। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उनके विचारों की स्पष्ट झलक दिखाई देती है, जिससे यह उम्मीद की जा सकती है कि आने वाला भारत एक समतामूलक, सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनेगा।
डा. अंबेडकर का चिंतन आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना उनके समय में था। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उनके विचारों की झलक मिलती है—शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत का निर्माण। यदि नीति के प्रावधानों को जमीनी स्तर पर ईमानदारी से लागू किया जाए, तो यह डा. अंबेडकर के सपनों के भारत की ओर एक ठोस कदम हो सकता है।