आचार्य श्रीहरि
डोनाल्ड ट्रम्प की कैसी होगी मुस्लिम दुनिया? इस प्रश्न को लेकर मुस्लिम मीडिया, ईसाई मीडिया और यूरोपीय मीडिया में मंथन चल रहा है। क्या थोडा नरम पडेंगे या फिर और मर्म होंगे? थोडा डर भी है। मुस्लिम दुनिया भी डरी हुई है। हमास, तालिबान और अलकायदा से लेकर आतंक के संरक्षक मुस्लिम देश भी डरे हुए हैं। शपथग्रहण के पूर्व से ही डर का असर तो दिख रहा है। विरोधी अपनी दुकानें समेटने में लगे हुए हैं, विरोधी अपनी पिछली करतूतो को ढकने में लगे हुए हैं, विरोधी जो चतुर्य थे वे पहले ही रंग बदल लिये हैं, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उनकी जय-जय कार करने में लगे हुए हैं। कुख्यात और कुचर्चित रिशर्च कंपनी हिंडनबर्ग अपनी दुर्गति कराने और अपने अपमान के भय से अपना बोरिया-विस्तर समेट लिया, ईरान ने हवा का रूख पहचाना और घोर तथा हिंसक, युद्धक इस्राइल विरोध की सोच को नरम कर लिया, बांग्लादेश सहित उन तमान मुस्लिम देशों में जहां पर अराजकता और मजहबी हिंसा अमानवीय हुई वहां पर भी बदलाव देखा जा रहा है, उनके आखों के सामने डोनाल्ड ट्रम्प की चौधरी वाली लाठी नांच रही है, तालिबान जैसी हिंसक और विध्वंशक शक्ति ने भी अपनी पाकिस्तान भक्ति छोडकर तटस्थता की सोच प्रदर्शित करना शुरू कर दिया है। समर्थक तो उत्साह से भरे ही हैं, वे उछल-कूद भी कर रहे है। समर्थको ने डोनाल्ड ट्रम्प को फिर से राष्ट्रपति बनाने के लिए जेल की यात्राएं करने से भी नहीं डरे थे, हवाइट हाउस पर कब्जा करने से नहीं डरे थे, चुनाव प्रचारों के दौरान डोनाल्ड ट्रम्प पर हुए हमले के बाद भी नहीं डरे समर्थक। समर्थकों का कहना है कि ईसाई राष्ट्रवाद को इस तरह से शक्तिशाली बनाओ और समृद्ध करों की अन्य राष्ट्रीयताएं खुद ही अपना अस्तित्व खो दे। डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण के साथ ही साथ दुनिया की कूटनीति में परिवर्तन दिखेगा और खासकर मुस्लिम दुनिया के खिलाफ डोनाल्ड ट्रम्प की आक्रमकता धमाल मचायेगी।
समर्थक कौन हैं? उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं? वे किस लक्ष्य के प्रति अति सक्रिय हैं? सबसे पहले यह जानना होगा कि डोनाल्ड ट्रम्प के समर्थक ईसाई राष्ट्रवादी हैं, उनकी प्राथमिकताएं ईसाई अस्मिता का संरक्षण करना है और उनकी अति सक्रियता मुस्लिम हिंसक आबादी को अमेरिका से बाहर करने या फिर मुस्लिम आबादी की हिंसक आतंकवाद और जिहाद की मानसिकता को नियत्रित करना और मुस्लिम आबादी को अमेरिका में प्रवेश को प्रतिबंधित कराना है। डोनाल्ड ट्रम्प की पिछली हार एक आघात की तरह था और समर्थ्रक वर्ग उस हार को पचा नहीं पाये थे, स्वीकार ही नहीं कर पाये थे, वे गुस्से में हवाइट हाउस तक कब्जा करने की हिंसक कोशिश की थी। चार सालों तक समर्थक डोनाल्ड ट्रम्प के पीछे बहादुरी के साथ खडे रहे हैं, जनसमर्थन देते रहे और डेमोक्रेट पार्टी के राष्ट्रवाद के परिपेक्ष्य में उदारवाद के खिलाफ लडाई लडते रहे। यही कारण है कि डोनाल्ड ट्रम्प का हौसला बना रहा और अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं को गति प्रदान करते रहे। फिर से राष्ट्रपति का चुनाव जीत कर डोनाल्ड ट्रम्प ने इतिहास रच दिया। डोनाल्ड ट्रम्प की जीत को ईसाई राष्ट्रवाद की जीत मानी गयी और मुस्लिम राष्ट्रवाद की हार मानी गयी थी। यह कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प अपने अंतिम काल में मुस्लिम अस्मिता का संहार जरूर करेंगे। इसके पीछे कारण भी हैं। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मस्जिदों से सरेआम अंजान दिया जाता था कि डोनाल्ड ट्रम्प से इस्लाम को खतरा है, इसलिए डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ मतदान करना चाहिए, इसके साथ ही साथ दुनिया भर के मुस्लिम संगठन अपने-अपने तरीके से डोनाल्ड ट्रम्प की जीत को रोकने के लिए अभियान रत थे। फिर भी डोनाल्ड ट्रम्प की धमाकेदार जीत हुई।
डोनाल्ड ट्रम्प को मुस्लिम आबादी और मुस्लिम देशों से खुन्नश क्या है? कोई भी देश अपनी मूल सभ्यता और संस्कृति को खतरे में नहीं डालना चाहता है। अपनी संस्कृति और सभयता की समृद्धि को संरक्षित देखना चाहता है। इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति सिर्फ अमेरिका में नहीं देखी जा रही है। इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति भारत में स्थायी तौर पर भूमिका निभा रही है। नरेन्द्र मोदी खुद अपनी मूल संस्कृति की अस्मिता और समृद्धि के बल पर शासक बने हुए हैं और दो बार पूर्ण बहुमत हासिल करने का पराक्रम दिखा चुके हैं। यूरोप के कई देशों में मूल संस्कृति की भूमिका प्रबंल रहती है। अरब देश अपनी मुल संस्कृति के सामने अन्य संस्कृतियों का हिंसक संहार करते हैं, शिकार करते हैं। निश्चित तौर पर अमेरिका में ईसाई संस्कृति की समृद्धि रही है, ईसाइयों ने अमेरिका संवारा और समृद्ध किया, दुनिया पर शासन करने की शक्ति बनायी। लेकिन समस्या उत्पन्न तब हुई जब मुस्लिम आबादी दया और करूणा को भूल गयी, अपने संरक्षण कर्ता को भूल गयी। अमेरिका ने मानवाधिकार के नाम पर मुसलमानों को शरण दिया, मुसलमानों को सभ्य बनाने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था झोकी और अपने देश की मूल आबादी के भविष्य को नजरअंदाज किया फिर भी मुस्लिम आबादी सभ्य नहीं बनीं, अपनी जिहाद की मानसिकता से मुक्त नहीं हो सकी, भस्मासुर बनने की भूमिका से अलग नहीं हो सकी। मुस्लिम आबादी की संहारक भूमिका का प्रमाण अमेेरिकी वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले थे। उसके बाद अमेरिका के अंदर ईसाई और मुस्लिम राष्ट्रीयता एक दूसरे के खिलाफ खडी हो गयी। कई आतंकी घटनाओं में मुस्लिम आबादी की सक्रियता, मस्जिदो की बढती संख्या और अजान के शोर से अमेरिका के अंदर विखंडन की आवाज सुनाई पडने लगी। डोनाल्ड ट्रम्प इन्ही मुस्लिम विखंडन की आवाज के खिलाफ सशक्त हस्ती बन कर सामने खडे हो गये। अपने पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया के हिंसक और आतंकी देशों के मुस्लिम आबादी पर अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था और आतंरिक स्तर पर भी मुस्लिम आबादी की आतंकी मानसिकता को नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाये थे। इस कारण उनकी छबि मुस्लिम आबादी विरोधी बन गयी थी।
मुस्लिम गोलबंदी को डोनाल्ड ट्रम्प चुनौती जरूर देंगे, सिर्फ चुनौती ही नही देंगे बल्कि मुस्लिम गोलबंदी का शिकार भी करेंगे, उन्हे अमेरिकी चौधराहट का पाठ भी पढायेंगे। राष्ट्रपति का चुनाव जीतते के साथ ही साथ उन्होंने मुस्लिम दुनिया को शख्त संदेश दे दिया था कि हिंसा और आतंक से अमेरिकी हितो का नुकसान नहीं होने दिया जायेगा। इस्राइल के साथ अमेरिकी हित जुडे है, अमेरिका का दोस्त इस्राइल है। इस्राइल के पीछे मुस्लिम गोलबंदी किस तरह पीछे पडी रहती है, यह भी जगजाहिर है। इस्राइल के खिलाफ हमास का हमला कितना भयानक और विभत्स था, यह भी बताने की जरूरत नहीं है। जो बाइडन थोडा नरम था, इस्राइल के हाथ बांधकर रखना चाहते थे। डोनाल्ड ट्रम्प ने इस्राइल को खुली छूट दी और हमास का संहार के लिए तैयार रहने के लिए कह दिया। इसका नतीजा भी सामने आ गया। हमास की हेकडी टूट गयी। उसे पता चल गया कि ईरान उसकी सहायता नहीं कर पायेगा। ईरान भी डोनाल्ड ट्रम्प की शख्त नीति का भुक्तभोगी है, इसलिए ईरान ने भी हमास प्रकरण पर टांग अडाने का कोई प्रयास नहीं किया। इसका सुखद परिणाम यह निकला कि हमास ने इस्राइली बंधकों को रिहा करने के लिए तैयार हो गया। इधर सीरिया में भी डोनाल्ड ट्रम्प की नीति का डंका बजने वाला है। सीरिया में भी वही होगा जो डोनाल्ड ट्रम्प की इच्छा होगी।
मुस्लिम दुनिया के दो स्वयं भू नेता है। एक ईरान है और दूसरा सउदी अरब है। सउदी अरब तो अमेरिका का मित्र है। पर ईरान अपने आप को अमेरिका विरोधी बताता है। परमाणु प्रसार के प्रश्न पर ईरान अकड कर चलता है। ईरान की समस्या यह है कि वह एक शिया देश है, सुन्नी देश ईरान के पक्षधर नहीं है। ईरान के परमाणु घरों पर हमले हुए हैं, कई परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएं हुई हैं। हत्या करने वाले कौन थे, उसे ईरान खोज ही नहीं पाता है। ईरान के परमाणु और बिजली घरों के साथ ही साथ सैनिक अड्डे भी इस्राइल के निशाने पर है। अगर ईरान थोडा सा भी इधर-उधर करने की कोशिश की जो फिर डोनाल्ड ट्रम्प ईरान की सैनिक शक्ति का तहस-नहस करा सकते है। तालिबान सहित जितने भी हिंसक और आतंकी सगठन हैं उन पर भी डोनाल्ड ट्रम्प की संहारक नीति चलेगी। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों पर लोकतंत्र और अल्पसंख्यक संहार पर डोनाल्ड ट्रम्प की नीति संहारक हो सकती है। दुनिया की शांति के लिए मुस्लिम दुनिया की अराजक, हिंसक और संहारक सक्रियता व गोलबंदी को रोकना जरूरी है और यह काम विश्व में सिर्फ और सिर्फ डोनाल्ड ट्रम्प ही कर सकते हैं।