एक वीरांगना जिसको आजाद भारत ने दी दर्दनाक मौत

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Caption: Aaj Tak

महेंद्र शुक्ल

दे दी हमे आजादी बिना खड्ग बिना ढाल सीरीज में दुर्गा भाभी के बाद आज नीरा आर्या के बारे में चंद शब्द लिख राहा हु आशा करता है जब कभी भी जागरण होगा हमारे सुप्त समाज का तो वो जरूर इन वीरांगनाओं को स्थान देगा और समझेगा आजादी बिना खड्ग बिना ढाल नही बलिदान से आई है!

आज आपसे एक ऐसी सच्ची। रास्त्रवादी महिला जिसने अपने अंग कटवा दिए इस देश के लिए और आजाद भारत के कर्णधारों ने उसकी झोपड़ी तक तोड़ दी सड़क किनारे एक लावारिश मौत मरने को मजबूर हुई!

उस महिला का नाम। नीरा आर्य जिनका जन्म 5 मार्च।1902 मेरठ में एकसंपन्न परिवार मेहुवाऔर मृत्यु 26 जुलाई 1998 को हैदराबाद में हुवी, इस विरांगना मां का स्तन तक अंग्रेज अधिकारियों द्वारा नेता जी की जानकारी न देने पर दंड स्वरूप काट दीए गए थे, दर्द और देश के लिए प्यार की चरम स्तिथि थी जो नीरा आर्य ने प्रस्तुत की

नीरा का विवाह ने श्री कांत जोइरोंजोन दास के साथ हुवा था , वेब्रिटिश पुलिस की गुप्तचर विभाग में कार्यरत थे! नीरा के अंदर राष्ट्र भाव कूट कूट के भरा था , पति के सरकारी नौकरी के बाद भी वे सुभाष चंद्र बोस के अहवाहन पर उनके नेतृत्व वाली भारतीय राष्ट्रीय सेना की महिला रेजिमेंट रानी झांसी रेजिमेंट में शामिल हुईं। और इंटेलिजेंस विभाग का कार्य देखा वे पहली महिला जासूस थी,

अपको आश्चर्य होगा नीरा आर्य ने अपने पति इंस्पेक्टर श्रीकांत जोइरोंजोन दास की हत्या कर दी।जो विभाग द्वारा नियुक्त किए गए थे सुभाष चंद्र बोस की जासूसी करनेको और जोइरोंजोन दास ने एक बार सुभाष चंद बॉस पर गोलियां चला दीं लेकिन सौभाग्य से सुभाष चंद बोस उस गोलीकांड मे बाल-बाल बच गए।

जोइरोजोन ने सुभाष बाबू को पकड़ने की पूरी तैयारी कर ली थी सुभाष जी भारत छोड़ने की फिराक में थे उनको नेता जी के गुप्त अड्डे की जानकारी हो गई थी, इस बात की चर्चा उन्होंने नीरा से की रात के खाने पर और सुबह गुड वर्क कर देगे का प्लान भी बता दिया, नीरा परेशान हो गई की यदि नेता जी मारे गए या पकड़े गए आजादी का सपना पूरा हों नही पाएगा उनको कोई रास्ता नहीं सूझ राहा था किसी तरह नेता जी को बचाना था

अन्त में उन्होंने सुभाष चंद बोस को बचाने के लिए एक ऐसा निर्णय लिया जो हर स्त्री के लिए लेना असंभव है नीरा ने अपनी मांग पोंछ कर देवी जी के आगे अपने सुहाग को देश पर निछावर करने की शक्ति मांगी और फिर नीरा आर्य ने अपने सोते समय पति की चाकू मार कर हत्या कर दी थी ।

इसके बाद वे आजाद हिंद फौज के लिए सारी गृहस्थी, जेवर, धन छोड़ कर घर खुला छोड़ कर से निकल गई
आज़ाद हिन्द फौज की एक सैनिक की तरह सीने में दर्द लिए नीरा ने अपना बसा बसाया परिवार देश के लिय उजाड़ दिया था वो गुलाम देश की नागरिक कहलाना नही चाहती थी !

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की घोषणा की , आजाद भारत की पहली सरकार का निर्माण किया ,जिसको विश्व के 10 देशों ने मान्यता भी प्रदान कर दी थी सुभाष बाबू आजाद भारत सरकार के पहले प्रधानमंत्री घोषित हुवे थे, सरकार की अपनी मुद्रा थी बैंक था, डाक टिकट था

आज़ाद हिंद फ़ौज ने अंडमान द्वीप समूह और मणिपुर के कुछ हिस्सों पर भी नियंत्रण किया था रंगून पार करते हुवे इम्फाल कोहिमा तक आ गई थी, जहा कई मोर्चों पर जीत दर्ज़ कर चुकी थी

एटम बॉम गिराए जाने के बाद जापान के १४ अगस्त १९४५ में आत्मसमर्पण करने के बावजूद आज़ाद हिन्द ने हार नहीं मानी और युद्ध जारी रखा। आज़ाद हिन्द मित्र देशों (एलॉयड पॉवर्स) से लड़ने वाली आखरी शक्ति थी।

सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के दावे के बाद ही इस की सेना, आज़ाद हिन्द फौज ने समर्पण कर दिया
इस के बाद दिल्ली के लाल किले में नॉव्म्बर 1945 से मई 46 तकएक मुकदमा चला आजाद हिंद फौज के पकड़े गए अफसरों और सैनिकों पर जिसके बाद सबको रिहा कर दिया गया नीरा आर्या को छोड़कर

सरकार को पूर्ण रुप से विश्वाश था के सुभाष बाबू कहा है इसकी जानकारी नीरा आर्या को है क्यो के इंटेलिजेंस विभाग का कार्य नीरा आर्या की देख रेख़ में संचालित होता था उनको सेलूर जेल , अंडमान ले जाया गया जहाँ उसे हर दिन एक लम्बी पूछ ताक्ष के दौरान प्रताड़ित किया जाता था।

नीरा आर्या के साथ अमानीव कृत्य किए गए उनकी त्वचा का थोड़ा सा हिस्सा भी काट दिया गया, दिन में पैरों पर हथौड़े से 2-3 बार चोट दी जाती,नीरा आर्य ने असहनीय यातनाओं और दर्द से गुजरना पड़ रहा था!

अन्त में प्रशासन ने निढाल हो चुकी नीरा को रिहा करने की पेशकश इस शर्त के साथ कि अगर वह सुभाष चंद बॉस के ठिकाने का खुलासा करती है तो ही उसको इस दर्द और जेल से रिहाई संभव हो सकेगी नीरा आर्य का एक ही जवाब रहता कि सुभाष बाबू की मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हो चुकी और वो कुछ नही जानती पर ब्रिटिश अधिकारियों को इस पर विश्वाश नही हो रहा था,

इस दौरान जेलर ने पूछ taach और प्रताड़ना के साथ उन से कहा, तुम झूठ बोल रही हो , और सुभाष चंद बॉस अभी भी जीवित हैं , बता दो छोड़ दी जाओगी कहा है बोस
तब नीरा आर्य ने कहा-
“हाँ, सुभाष बाबू ज़िंदा है , वो मेरे दिल में है”

इस जवाबसे जेलर ने गुस्से में आकर कहा-
“फिर हम सुभाष चंद बॉस को तुम्हारे दिल से ही निकाल देते हैं। जेलर ने उनके कपड़ों को फाड़ दिया और लोहार को उसकी छाती काटने का आदेश दे दिया!

लोहार ने तुरंत ब्रेस्ट रिपर लिया और उसके दाहिने शरीर को कुचलने लगा। बर्बरता यहीं नहीं रुकी, जेलर ने उसकी गर्दन पकड़ ली और कहा कि मैं आपके दोनों ‘हिस्सों” को
उनके स्थान से अलग कर दूँगा। इस बर्बरता से नीरा जीवन और मृत्यु से जुझ रही थी तीन दिन और अधिकारीयों ने नीरा से पूछ ताछ के बहाने प्रताड़ना देती रही अन्त में जेल से निकाल कर नीरा को रोड किनारे फेक दिया परंतु नीरा मौत के मुंह से निकल आई।

अपकोबड़ाआश्चर्यहोगा जिसने इतने kast सहन किए पूरी जवानी देश की आज़ादी। के लिए बलिदान कर दी। उस।नीरा आर्य को आजाद भारत में।अपने जीवन के अंतिम दिन फूल बेचने में बिताए और वह भी भाग्य नगरम में एक छोटी सी झोपड़ी जो सड़क किनारे बनाई थी।

पर ‘स्वतंत्र हुवे देश की स्वतंत्र सरकार जो बिना खड्ग ढाल से स्वतंत्र हुवि ने उनकी झोपड़ी को सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बनी अवैध निर्माण मानते हुए अतिक्रमण अभियान में गिरा दिया, नीरा आर्या बेघर हो गई अपनी एक छोटी सी बकासिया के साथ जिसे वो सदा बंद रखती थीजो उनकी मृत्यु के बाद खोली गई इस में उनकी निजी डायरी, कुछ ऐतिहासिक महत्व के पत्र, दुर्लभ फोटो एल्बम इत्यादि निकले, जिनकी कोई कीमत नहीं इस अनभिज्ञ पीढ़ी के लिय जो 75 साल में तैयार की गई!

नीरा आर्य की मृत्यु 26.6.98 मे एक बेसहारा , लावारिस , अनजानी के रूप में हुई , जिसके लिए पूरी पृथ्वी पर कोई
रोने वाला तक नहीं था। वृद्धावस्था में बीमारी की हालत में चारमीनार के पास उस्मानिया अस्पताल में इन्होंने रविवार 26 जुलाई, 1998 में एक गरीब, असहाय, निराश्रित, बीमार वृद्धा के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया।

भारत माता की विवादित पेंटिंग पर एमएफ हुसैन से उलझने वाले हिन्दी दैनिक स्वतंत्र वार्ता के एक पत्रकार तेजपाल सिंह धामा ने अपने सा​थियों संग मिलकर उनका अंतिम संस्कार किया नीरा का अस्थिकलश, निजी डायरी, कुछ ऐतिहासिक महत्व के पत्र, दुर्लभ फोटो एल्बम इत्यादि हैदराबाद के एक मंदिर में आज भी स्मारक की प्रतीक्षा में हैं।

नीरा आर्या न होती तो आजाद हिंद फौज बनाने का सपना नेता जी का साकार न होता वो भारत से निकलने से पहले ही गिरफ्तार हो जाते या मारे जाते ब्रिटिश हुकूमत द्वारा!

ये असली भारत रत्न है जिनको गुमनामी और तन्हा ज़िंदगी दी इस। आजाद भारत की सरकार ने जिनके बारे में। आज कोई जानता तक नही!

सभी राष्ट्र वादी विचारधारा को पोषित कर रहे लोगो से आशा है के वे इस तरह के रत्नों के उपर से धूल की परते हटाएं कुछ नही तो अपनी कथाओं में इनको जीवित रखे ताकी जब कभी भी जागरण हो तब इन रत्नों की चमक से देश दीप्त मान हो और युवा पीढ़ी को आज़ादी की कीमत समझ मे आए।

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