ईवीएम के जानकारों से विनम्र अनुरोध

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रंगनाथ

मुझे अपने विद्वान मित्रों से शिकायत है कि वे ईवीएम का इस्तेमाल ट्रम्प कार्ड की तरह करते हैं। वो चुनाव से पहले कुछ भी दावा करते रहते हैं, सही निकले तो जय लोकतंत्र जय संविधान और हार गये तो ईवीएम ईवीएम करने लगते हैं। ये चीटिंग है

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि फिलहाल ईवीएम का क्या स्टेटस है? तीन चरण हो चुके हैं। सभी ईवीएम-वादी मित्रों से अनुरोध है कि अभी से स्पष्ट कर दें कि ईवीएम हैक हुई या नहीं! मैं मानता हूँ कि ईवीएम से चुनाव बैलट से काफी बेहतर हैं। पिछले 10 साल में ईवीएम को पहले से बेहतर बनाया जाता रहा है। अदालत ने भी उसमें कुछ सेफ्टी फीचर एड करवाए हैं। याद रखें कि ईवीएम कैलकुलेटर की तरह है न कि लोकल एरिया नेटवर्क या इंटरनेट से जुड़े कम्प्यूटर की तरह जिसे हैक किया जा सके।

पिछले 20 साल में मैंने किसी भी दल की विजय के बाद ईवीएम को उसका श्रेय नहीं दिया लेकिन मुझे अपने विद्वान मित्रों से शिकायत है कि वे ईवीएम का इस्तेमाल ट्रम्प कार्ड की तरह करते हैं। वो चुनाव से पहले कुछ भी दावा करते रहते हैं, सही निकले तो जय लोकतंत्र जय संविधान और हार गये तो ईवीएम ईवीएम करने लगते हैं। ये चीटिंग है।

यह तो वही मध्ययुगीन बात हो गयी कि युद्ध जीत गये तो बोले यह गॉड कृपा की वजह से हुआ है, और हार गये तो बोले कि गॉड हमको सबक देना चाहते थे! जिस तरह युद्ध में गॉड की कोई भूमिका नहीं होती, बल्कि वह रणनीतिक कुशलता, अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र, सैन्य बल की संख्या इत्यादि के आधार पर जीता जाता है, उसी तरह चुनाव में भी ईवीएम निमित्त मात्र है।

बैलट पेपर छीनकर मुहर मारना आसान है, बैलट बॉक्स में पानी भर देना उससे भी आसान है और महान सामाजिक न्यायवादी नेता ने इस कुकृत्य को कला के स्तर पर ले जाकर दिखाया था और आज भी जिन इलाकों में भारत जैसी ‘तानाशाही’ नहीं आयी है, वहाँ बैलेट से हुए चुनाव (जैसे हमारा पड़ोसी देश) का हाल पूरी दुनिया ने वायरल वीडियो के माध्यम से देखा। यह भी याद रखें कि दुनिया के किसी अन्य देश में करीब 100 करोड़ मतदाता नहीं हैं।

नेता हमेशा अपने और अपने पार्टी के हित के हिसाब से बोलते हैं। वे चुनाव नहीं जीतेंगे तो अच्छा या बुरा कुछ भी करने के लिए नहीं बचेंगे। इसलिए उनकी अतिरेकी बयानबाजियों की अनदेखी की जा सकती है लेकिन पत्रकार, अध्यापक, वकील इत्यादि बुद्धिजीवी ईवीएम विरोधी प्रोपगैंडा क्यों फैलाते रहते हैं!

हमारे देश के एकमात्र कट्टर ईमानदार वकील अपनी सनक को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गये और उनकी शंकालु प्रवृत्ति को लेकर कुछ राहत दी गयी लेकिन उन्हें यह भी साफ कर दिया गया कि शक की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी, तो आप कृपया अदालत पर रहम करें।

दुनिया का हर तरह का धोखा भरोसे हासिल करने के बाद ही दिया जाता है। कुछ महान समाजसेवियों का यही हाल हो चुका है। वह किसी वाजिब मामल में अर्जित प्रतिष्ठा का इस्तेमाल अपनी अन्य तरह की सनक पूरी करने में लगाते हैं।

इस वर्ग ने ईवीएम को लेकर इतना दुष्प्रचार कर दिया है कि इस पोस्ट के नीचे भी कुछ लोग यह जरूर लिखेंगे कि तुम तो चाहते ही हो कि ईवीएम से चुनाव होता रहे! खैर, सामान्य मतदाताओं की ऐसी बातों का मैं बुरा नहीं मानता लेकिन जो लोग जिम्मेदार पेशों में हैं, उन्हें गैर-जिम्मेदार लोगों की तरह बात करने से बचना चाहिए।

ईवीएम से धांधली तभी हो सकती है, जब पोलिंग कराने वाली सरकारी टीम धांधली पर उतर आये। इंसान के चरित्र की गारंटी नहीं ली जा सकती, मशीन की ली जा सकती है। अच्छी बात यह है कि बाहरी धांधली रोकने के मामले में ईवीएम बैलट से बेहतर है। याद रखें कि मनुष्य जनित धांधली की कोई सीमा नहीं है। कल-परसों ही पश्चिमी यूपी के एक बूथ का वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक 15-16 की बच्ची किसी 50 साल की महिला के नाम पर वोट देने पहुंची थी। पोलिंग एजेंट के पूछने पर बच्ची ने कहा कि वह 12 में पढ़ती है!

ऐसा नहीं है कि कोई ईवीएम मशीन मैलफंक्शन नहीं करती या खराब नहीं होती। मुझे ऐसी कोई मशीन पता नहीं है, जो खराब नहीं होती। सबसे इलीट प्रोडक्ट बनाने वाले एप्पल जी के कुछ प्रोडक्ट का मेरा निजी अनुभव काफी खराब रहा है। भारत में इस समय अपवाद को सामान्य नियम बताने वालों की फौज खड़ी हो चुकी है। दो-चार मशीन खराब हैं तो सारी की सारी खराब हैं! एक व्यक्ति मर्द को किसी औरत ने पीट दिया तो भारत के सारे मर्द औरतों द्वारा पीटे जा रहे हैं!

औसतन 100 में 10 मशीन खराब निकले तो समझ में आता है कि यह चिन्ता की बात है कि 10 प्रतिशत मशीनें खराब निकल रही हैं, तो उनके प्रोडक्शन में सुधार की जरूरत है। मशीन का खराब निकलना प्रोडक्शन की समस्या है न कि टेक्नोलॉजी की। एप्पल का आईपैड या लैपटॉप इसलिए खराब नहीं निकलते कि उनकी टेक्निक में कोई समस्या है, बल्कि कुछ प्रोडक्ट का प्रोडक्शन मानकों के अनुरूप नहीं हो पाता।

यह भी याद रखें कि गॉड आलमाइटी के बनाए इंसान में इतनी खामियाँ हैं तो फिर उस इंसान की बनायी कोई चीज 100% परफेक्ट कैसे हो सकती है। ऐसे में सवाल ये है कि किसकी गुणवत्ता बेहतर है। मेरी राय में ईवीएम बेहतर है। सबकुछ सही रहा तो भारत ईवीएम निर्यातक देश बनेगा। कागज बचाकर पर्यावरण बचाना है या नहीं!

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