चीन से आगे निकलता भारत

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अर्थ के कई क्षेत्रों में आज भी पूरे विश्व में चीन का दबदबा कायम है जैसे चीन विनिर्माण के क्षेत्र में विश्व का केंद्र बना हुआ है। विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं (इमर्जिंग देशों) के शेयर बाजार के आकार के मामले में भी चीन का दबदबा लम्बे समय से कायम रहा है। परंतु, अब भारत उक्त दोनों ही क्षेत्रों, (विनिर्माण एवं शेयर बाजार), में चीन को कड़ी टक्कर देता दिखाई दे रहा है तथा हाल ही में तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार सम्बंधी इंडेक्स में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है।

दरअसल पूरे विश्व में संस्थागत निवेशक विभिन्न देशों, विशेष रूप से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं, के शेयर बाजार में पूंजी निवेश करने के पूर्व वैश्विक स्तर पर इस संदर्भ में जारी किए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण इंडेक्स पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं। अथवा, यह कहा जाय कि इन इंडेक्स के आधार पर अथवा इन इंडेक्स की बाजार में चाल पर ही वे इन देशों के शेयर बाजार में अपना निवेश करते हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इन संस्थागत निवेशकों में विभिन्न देशों के पेन्शन फंड, सोवरेन फंड, निवेश फंड आदि शामिल रहते हैं जिनके पास बहुत बड़ी मात्रा में पूंजी की उपलब्धता रहती है एवं वे अपनी आय बढ़ाने के उद्देश्य से तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार में अपना निवेश करते हैं। इस संदर्भ में MSCI Emerging Market IMI (Investible Market Index) Index का नाम पूरे विश्व में बहुत विश्वास के साथ लिया जाता है। विश्व प्रसिद्ध निवेश कम्पनी मोर्गन स्टेनली ने अपने प्रतिवेदन में बताया है कि इस इंडेक्स में 24 तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं (इमर्जिंग देशों) की 3,355 कम्पनियों के शेयरों को शामिल किया गया है।

पिछले 15 वर्षों से यह प्रचलन चल रहा है कि इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स (IMI) में चीन की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही है परंतु धीरे धीरे अब चीन की भागीदारी इस इंडेक्स में कम हो रही है एवं इस वर्ष अब भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। इस इंडेक्स में प्रतिशत में चीन की हिस्सेदारी लगातार कम हो रही है और भारत की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इस इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 6 प्रतिशत से बढ़ते हुए चीन से आगे निकल आई है और भारत की हिस्सेदारी अब 22.27 प्रतिशत से अधिक हो गई है एवं चीन की हिस्सेदारी कम होकर 21.58 रह गई है। यह इतिहास में पहली बार हुआ है और इसका आशय यह है कि जो निवेशकर्ता इस इंडेक्स के आधार पर अपना निवेश तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में करते हैं वे अब भारत की ओर अपना रूख करेंगे। दूसरे, पिछले कुछ वर्षों से विदेशी निवेशक भारत से निवेश बाहर निकालते रहे हैं क्योंकि उनको भारतीय शेयर मंहगे लगाने लगे थे। परंतु, अब यह विदेशी निवेशक भी भारत की ओर रूख करेंगे। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है। भारत का वेट बढ़ने से इस प्रकार के निवेशक भी भारत में आएंगे ही और भारत में 400 से 450 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नया निवेश करेंगे।

एक अन्य MSCI वैश्विक सूचकांक में भी भारत की हिस्सेदारी बढ़कर 2 प्रतिशत हो गई है। परंतु, MSCI इमर्जिंग मार्केट इननवेस्टिबल फड इंडेक्स में भारत की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत से अधिक हो गई है। वैश्विक स्तर पर निवेश करने वाले बड़े फंड्ज का निवेश सम्बंधी आबंटन भी इसी हिस्सेदारी के आधार पर होने की सम्भावना है। इन्हीं कारणों के चलते अब आने वाले समय में भारत के शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा अपना निवेश बढ़ाए जाने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

वैसे भी चीन की अर्थव्यवस्था में अब विकास दर कम हो रही है क्योंकि पिछले कुछ समय से चीन लगातार कुछ आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहा है। चीन की विदेश नीति में भी बहुत समस्याएं उभर रही हैं विशेष रूप से चीन के अपने लगभग समस्त पड़ौसी देशों के साथ राजनैतिक सम्बंध ठीक नहीं हैं। चीन के शेयर बाजार में देशी निवेशक ही अधिक मात्रा में भाग ले रहे थे और वे भी अब अपना पैसा शेयर बाजार से निकाल रहे हैं। इन समस्याओं के पूर्व MSCI इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स में चीन ओवर वेट था और भारत अंडर वेट था। परंतु, पिछले दो वर्षों के दौरान स्थिति में तेजी से परिवर्तन हुआ है। चीन की अर्थव्यवस्था में आई समस्याओं के चलते चीन का इस इंडेक्स में खराब प्रदर्शन रहा है, उससे चीन की हिस्सेदार इस इंडेक्स में कम हुई है। दूसरा, भारत अपने आप में विभिन्न आयामों वाला शेयर बाजार है क्योंकि यहां निवेशकों को सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा एवं गैस, अधोसंरचना, स्वास्थ्य, होटेल, बैंकिंग एवं वित्त आदि जैसे लगभग समस्त क्षेत्र मिलते हैं। इसके विपरीत ताईवान के शेयर बाजार में सेमीकंडक्टर क्षेत्र की कम्पनियों की 60 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी है, इसी प्रकार, सऊदी अरब में तेल कम्पनियों की 90 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी है। इस प्रकार ये देश पूर्णत: केवल एक अथवा दो क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं जबकि भारत में विदेशी निवेशकों को कई क्षेत्रों में निवेश का मौका मिलता है। भारत एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था शीघ्र ही पांचवे स्थान से आगे बढ़कर तीसरे स्थान पर आने की तैयारी में है। भारत में सशक्त वित्तीय प्रणाली के साथ ही सशक्त प्राइमरी मार्केट भी है। भारत में स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियों की संख्या भी बहुत तेजी से बढ़ रही है, इन स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियों को भी तो वित्त की आवश्यकता है, जिनमें विदेशी निवेशक अपनी पूंजी का निवेश कर सकते हैं। इस प्रकार यह स्टार्ट अप एवं नई कम्पनियां भी निवेशकों को निवेश के लिए अतिरिक्त बेहतर विकल्प प्रदान कर रही हैं।

साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी का कम्पन भी स्पष्टत: दिखाई दे रहा हैं और भारत में सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष की वृद्धि हो रही है। भारत में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने के अतिरिक्त प्रयास किए जा रहे हैं इससे भारत में विभिन्न उत्पादों की मांग में और अधिक वृद्धि होगी तथा इससे विभिन्न कम्पनियों की लाभप्रदता में भी अधिक वृद्धि होगी और अंततः इन कंपनियों के शेयरों में निवेश करने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों को भी भारत में निवेश करने में और अधिक लाभ दिखाई देगा। दूसरे, भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली 60 प्रतिशत जनसंख्या का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान केवल 18 प्रतिशत तक ही है, इसे बढ़ाए जाने के लगातार प्रयास केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे हैं। इन प्रयासों के चलते ग्रामीण इलाकों में निवास कर रहे नागरिकों की आय में भी वृद्धि दर्ज होगी। साथ ही, ग्रामीण इलाकों में निवासरत नागरिकों को उद्योग एवं सेवा के क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं ताकि ग्रामीण इलाकों एवं कृषि क्षेत्र पर जनसंख्या का दबाव कम हो। भारत की जनसंख्या की औसत आयु 27 वर्ष हैं, चीन की जनसंख्या की औसत आयु 40 वर्ष है और जापान की जनसंख्या की औसत आयु 53 वर्ष है। इस प्रकार भारत आज एक युवा देश है क्योंकि भारत में युवा जनसंख्या, चीन एवं जापान की तुलना में, अधिक है जो भारत के लिए, आर्थिक दृष्टि से, लाभ की स्थिति उत्पन्न करता है।।

भारतीय युवाओं को यदि रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होने लगते हैं तो इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद में और अधिक तेज गति से वृद्धि सम्भव होगी। चीन में आज बेरोजगारी की दर जुलाई 2024 में बढ़कर 5.20 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो जून 2024 में 5 प्रतिशत थी। वर्ष 2002 से वर्ष 2024 तक चीन में बेरोजगारी की औसत दर 4.75 प्रतिशत रही है। हालांकि फरवरी 2020 में यह 6.20 प्रतिशत के उच्चत्तम स्तर पर पहुंच गई थी। अब पुनः धीरे धीरे चीन में बेरोजगारी की दर आगे बढ़ रही है। जबकि भारत में वर्ष 2023 में बेरोज़गारी की दर (15 वर्ष से अधिक आयु के नगरिको की) कम होकर 3.1 हो गई है जो हाल ही के समय में सबसे कम बेरोज़गारी की दर है। वर्ष 2022 में भारत में बेरोजगारी की दर 3.6 प्रतिशत थी एवं वर्ष 2021 में 4.2 प्रतिशत थी। इस प्रकार धीरे धीरे भारत में बेरोजगारी की दर में कमी आने लगी है।

कुल मिलाकर अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में चीन की तुलना में भारत की स्थिति में लगातार सुधार दृष्टिगोचर है जिससे MSCI इंडेक्स में भारत की स्थिति में भी लगातार सुधार दिखाई दे रहा है जो आगे आने वाले समय में भी जारी रहने की सम्भावना है। इस प्रकार, अब भारत, चीन को अर्थ के विभिन्न क्षेत्रों में धीरे धीरे पीछे छोड़ता जा रहा है।

नगर निगम रोड पर पार्किंग करने वालों से किराया वसूली करे

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टूरिस्ट सिटी आगरा आधुनिक युग की एक विकट समस्या से जूझ रहा है। सड़कें वहीं के वहीं, लेकिन वाहनों की संख्या आसमान छू रही है। घर में गैराज नहीं है, लेकिन हर फैमिली मेंबर का एक वहां जरूर होगा। ऐसे में संकट खड़ा होता है रोड या खाली पड़ी सरकारी जगहों पर।

अवैध पार्किंग, वास्तव में एक बड़ा पेचीदा मसला बन चुका है। स्थानीय पुलिस, नगर निगम एजेंसियों और बाजार समितियों की ओर से सार्वजनिक पार्किंग पर स्पष्ट नीति के अभाव के कारण सड़कों पर अव्यवस्था फैल गई है। सड़कों का आकार तो नहीं बढ़ा है, लेकिन आगरा जिले में वाहनों की संख्या बढ़कर दो मिलियन हो गई है। समस्या को और जटिल बनाने के लिए, कार मालिकों के पास या तो अपने घरों में गैरेज नहीं हैं, या उन्होंने उन्हें किराए पर दे रखा है, या वे अपने परिसर के अंदर वाहन पार्क करने में बहुत आलसी हैं। इस प्रकार, सड़क के किनारे और फुटपाथ पर अतिक्रमण हो रहा है। यह एक भयावह परिदृश्य है।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, “अस्पताल रोड, राजा की मंडी, वाटर वर्क्स क्रॉसिंग और एमजी रोड पुरानी समस्याएँ हैं। संजय प्लेस मार्केट, पार्किंग से संबंधित विवादों का केंद्र बन चुका है, जहाँ दुकानदार, ग्राहक और निवासी सीमित स्थान के लिए होड़ करते हैं।”

हालाँकि, यह समस्या इस एक स्थान से कहीं आगे तक फैली हुई है, जो पूरे शहर को प्रभावित करती है। पैदल चलने वालों और साइकिल सवारों को सबसे ज़्यादा परेशानी होती है।

सार्वजनिक सड़कों पर पार्किंग करना एक सुविधाजनक विकल्प लग सकता है, लेकिन इसके गंभीर परिणाम होते हैं। अवरुद्ध सड़कें सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा करती हैं, यातायात प्रवाह को बाधित करती हैं और ड्राइवरों और पैदल चलने वालों को ख़तरे में डालती हैं। संजय प्लेस के एक दुकान मालिक चतुर्भुज तिवारी कहते हैं कि आपातकालीन वाहन अवरुद्ध सड़कों तक पहुँचने के लिए संघर्ष करते हैं, जिससे जान जोखिम में पड़ जाती है।

इसके अलावा, सार्वजनिक सड़कों पर पार्किंग भीड़, निराशा और प्रदूषण को बढ़ावा देती है। सेंट पीटर्स कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक डॉ. अनुभव खंडेलवाल के अनुसार, ड्राइवर जगह की तलाश में समय और ईंधन बर्बाद करते हैं, जबकि खड़ी कारें सार्वजनिक स्थानों की सुंदरता को कम करती हैं, संपत्ति के मूल्यों को कम करती हैं और आगंतुकों को रोकती हैं।

आगरा ट्रैफ़िक पुलिस समय-समय पर अभियान चलाती है, लेकिन परिणाम कभी भी स्थायी नहीं होते हैं।

राजनीतिक संरक्षण प्राप्त गुंडे और उपद्रवी सरकारी जगह पर पार्किंग स्थल बनाते हैं और अत्यधिक शुल्क वसूलते हैं। इससे अक्सर तनाव और विवाद पैदा होते हैं।

यह भी देखा गया है कि खड़ी कारों के कारण नगरपालिका सेवाओं को सड़कों के रखरखाव और सफाई में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे सफाई और सुरक्षा कम हो जाती है। अधिवक्ता दीपक राजपूत का मानना ​​है कि सार्वजनिक सड़कों पर पार्किंग से सामुदायिक कार्यक्रमों और सभाओं के लिए जगह सीमित हो जाती है, जिससे सामाजिक मेलजोल और सामुदायिक निर्माण में बाधा आती है।

इसका समाधान ऑफ-स्ट्रीट पार्किंग सुविधाओं जैसे ड्राइववे, गैरेज या निर्दिष्ट पार्किंग लॉट का उपयोग करना है। पार्किंग विकल्पों के बारे में जागरूक होकर, निवासी एक सुरक्षित, अधिक आनंददायक और सामंजस्यपूर्ण पड़ोस में योगदान दे सकते हैं।

आगरा के अधिकारियों को इस गंभीर समस्या को हल करने के लिए एक व्यापक पार्किंग नीति विकसित करनी चाहिए। निर्दिष्ट पार्किंग क्षेत्र, कुशल यातायात प्रबंधन और जन जागरूकता अभियान सार्वजनिक सड़कों पर दबाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।

जैसे-जैसे शहर पर्यटकों को आकर्षित करता है और बढ़ता है, पार्किंग की समस्या का समाधान करना आवश्यक है। एक साथ काम करके, आगरा सभी निवासियों और आगंतुकों के लिए एक सुरक्षित और सुखद वातावरण सुनिश्चित करते हुए अपना आकर्षण बनाए रख सकता है।

बाबा कारंथ का सिनेमा

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विजय मनोहर तिवारी

अजित राय सिनेमा और थिएटर के चलते-फिरते विश्वकोष हैं। उन्हें पढ़ना-सुनना विश्व सिनेमा का विहंगावलोकन है। वे कन्नड़ की किसी मूवी का सिरा पकड़ेंगे और सिनेमा के संसार की सैर करा देंगे। भारत भवन में उनका व्याख्यान बाबा कारंथ के सिनेमा पर था, जिस पर गूगल पर कुछ नहीं मिलेगा और किताबें भी न के बराबर है। पहली ही बार कारंथ स्मृति समारोह में ये विषय रखा गया। भारत भवन के निर्माण और उसमें 1981 में ही रंगमंडल की स्थापना के रूप में कारंथ का योगदान अविस्मरणीय है। उनके कर कमलों से बना यह मंच अब तक विभिन्न नाटकों के दो हजार से अधिक मंचन कर चुका है। इनमें कई विश्व प्रसिद्ध नाटककारों की लोकप्रिय कृतियाँ भी शामिल हैं।

बाबा कारंथ का अधिकांश परिचय थिएटर के दायरे में है। उनके सिनेमा के बारे में और सिनेमा में उनकी दृष्टि के बारे में बहुत कम सुना या बोला गया है, खासकर मध्यप्रदेश में या भारत भवन में ही। किंतु आदरांजलि में कारंथ के कृतित्व और व्यक्तित्व के ऐसे ही अनछुए पहलुओं पर अनुभव संपन्न अध्येताओं को सुनने का अपना आनंद है और उनके सिनेमा पक्ष पर अजित राय उनमें से एक हैं। वे कहते हैं कि बंगाल और महाराष्ट्र के बाद कारंथ ने ही सिनेमा के जरिए कर्नाटक में नवजागरण का शुभारंभ किया। उनके इस योगदान पर चर्चा न के बराबर हो पाई क्योंकि थिएटर की उनकी महानता ने सिनेमा के पक्ष को ढक दिया। वे उस कालखंड में कर्नाटक में सिनेमा रच रहे थे जब बंगाल में सत्यजीत रे और ऋत्विक घटक जैसे कल्पनाशील सृजनकार सक्रिय थे। वह भारत में समांतर सिनेमा की शुरुआत का समय है, जब गोविंद निहलानी जैसे बाद के नामी निर्देशक एक रंगऋषि बाबा कारंथ की शरण में आए।

अजितजी ने कारंथ की तीन फिल्मों पर यह चर्चा केंद्रित की, जिनसे कारंथ की विलक्षण दृष्टि की एक झलक मिलती है। वे कहते हैं कि यशस्वी फिल्मकारों ने साहित्य पर फिल्में रचीं। 1977 में कन्नड़ में घटश्राद्ध एक ऐसी ही फिल्म है, जिसमें कारंथ का संगीत है और इस फिल्म के लिए मिले तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में से एक कारंथ को उनके संगीत के लिए ही दिया गया था। यह यूआर अनंतमूर्ति की प्रसिद्ध कहानी पर बनी एक सामाजिक फिल्म है। यह कहानी एक ब्राह्मण परिवार की कथा है, जिसकी विधवा बेटी गुरुकुल के ही एक शिष्य से गर्भवती हो जाती है। गाँव में सबको यह पता चलता है। बाहर गया पिता जब लौटता है तो वह अपनी जीवित बेटी का श्राद्ध करता है। 1982 तक ऐसी फिल्मों की बाढ़ आ जाती है। इस दृष्टि से कारंथ पर अभी बहुत शोध और अध्ययन की आवश्यकता है।

कन्नड़ उपन्यासकार कोटा शिवराम कारंथ की कहानी चोमनाडुडी पर कारंथ के निर्देशन में 1975 में बनी फिल्म निचली जातियों में धर्मांतरण का महत्वपूर्ण विषय लेकर आती है। यह चोमा के परिवार की कहानी है, जिसके साथ जातीय भेदभाव की पराकाष्ठा है। ईसाई मिशनरी वाले उसके संपर्क में आते हैं किंतु वह अपने पुरखों का धर्म छोड़ने की ताकत नहीं जुटा पाता। उसका एक बेटा ईसाई हो जाता है। दूसरा नदी में डूबने से इसलिए मर जाता है क्योंकि अछूत होने से कोई उसे बचा नहीं पाता। उसकी बेटी बलात्कार का शिकार होती है और वह अपने भीतर समाए भय से मुक्ति के लिए घर में खुद को बंद करके बहुत जोर-जोर से ढोल बजाता है किंतु अपना धर्म नहीं छोड़ता। चोमनाडुडी कोई राजनीतिक टिप्पणी नहीं करती। वह ह्दय परिवर्तन के कोमल भावों और सामाजिक भेदभाव की भयावह वेदना को परदे पर खींचती है।

वंशवृक्ष 1971 में बनी एक ऐसी फिल्म है, जो प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक भैरप्पा की कहानी पर आधारित है। इस फिल्म का निर्माण जीवी अय्यर ने किया। निर्देशन कारंथ और गिरीश कर्नाड ने मिलकर किया है। यह एक श्रोत्रिय ब्राह्मण परिवार की कहानी है, जिसे सेंसर बोर्ड ने इस डर से रोक दिया था कि इससे कर्नाटक के ब्राह्मण नाराज हो जाएंगे। हालांकि इस फिल्म के सारे कर्णधार स्वयं ब्राह्मण थे। अय्यर की शर्त थी कि इसे कारंथ ही निर्देशित करेंगे और वे कर्नाड के साथ कारंथ के सामने यह प्रस्ताव लेकर गए थे। तब तक कारंथ का कुल अनुभव थिएटर का था। सीधे सरल और अपनी कला को संपूर्ण समर्पित कारंथ बहुत शीघ्रता में आ गए कि कल से फिल्म शुरू करते हैं। गिरीश कर्नाड ने उन्हें बताया कि पटकथा लेखन, स्टोरी बोर्ड, कलाकारों का चयन और लोकेशन के साथ शूटिंग के लिए अनुकूल मौसम की पायदानों से गुजरकर ही फिल्म का असल काम शुरू होता है!

कारंथ के निर्देशन में बनी गोधूलि भी भैरप्पा की कृति पर आधारित एक और फिल्म है, जिसके भावनात्मक पक्ष को रेखांकित करते हुए अजित राय ने 1953 की टोकियो स्टोरी का स्मरण किया। एक ऐसी मार्मिक फिल्म जिसे देखकर कलेजा फट जाए। जापान के एक गाँव के एक ऐसे परिवार की कहानी है, जिसका बेटा शहर में एक अति व्यस्त कमाऊ डॉक्टर है। वह उन्हें अपने पास बुला लेता है, किंतु उसके पास अपने मां-बाप के लिए बिल्कुल ही समय नहीं है। इलाज के अभाव में एक दिन उसके पिता की मौत केवल इसीलिए हो जाती है क्योंकि बेटा अपनी शहरी दुनिया में धन कमाने में व्यस्त था। यह स्वार्थ से भरे मानवीय रिश्तों की चीरफाड़ है, जिसे परदे पर बहुत संवेदना के साथ प्रस्तुत किया गया। यह आज के भारत के हर गांव-कस्बे में एकाकी जीवन जी रहे लाखों परिवारों की कहानी लगती है, जिनके बच्चे पढ़-लिखकर बड़े शहरों या विदेशों में जा बसे।

कन्नड़ में ऐसे विषयों पर सिनेमा रचने के बाद कारंथ को नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली का निदेशक बनाया गया और फिर वे एक दिन भारत भवन के निर्माण में हाथ बटाने 1981 में भोपाल बुलाए गए। अजित राय कहते हैं कि केवल दो ही मुख्यमंत्री ऐसे हुए हैं, जिन्होंने रंगकर्म से जुड़ी हस्तियों को अपने यहाँ स्वतंत्र रूप से कुछ करने का सीधा आमंत्रण स्वयं दिया। कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े, जिन्होंने बाबा कारंथ को बुलाया और सुशील कुमार शिंदे, जिन्होंने वामन केंद्रे को मुंबई विश्वविद्यालय में एक विभाग की नींव डालने का न्यौता दिया। कारंथ और केंद्रे दोनों ही एनएसडी के प्रमुख रहे। अजितजी के व्याख्यान में केंद्रे भी आए, जो इस समय भारत भवन न्यास के अध्यक्ष भी हैं। जाने माने रंगकर्मी और अभिनेता राजीव वर्मा ने सत्र की अध्यक्षता की।

(साभार)

दिल्ली में आयोजित हो रहा भोजपुरी मगही समागम, वीर कुंवर सिंह की लोक गाथा का होगा मंचन

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नई दिल्ली। दिल्ली स्थित कॉन्सटीट्यूशन क्लब में 30 सितंबर (सोमवार) को ऑरो मीरा मीडिया संस्थान और केबी न्यूज भोजपुरी मगही समागम का आयोजन कर रही है। फाउंडर और मैनेजिंग एडिटर गोविंदा मिश्रा ने बताया कि कार्यक्रम का लगातार दूसरे वर्ष आयोजन किया गया है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी में अपसंस्कृति के प्रचलन से दूर लोक गायन औऱ लोक कलाकार को इस मंच के माध्यम से मौका दिया जाएगा। मगध की सांस्कृतिक विरासत को इस कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को पहुंचाने की य़ोजना है। बिहार के शाहाबाद इलाके के वीर कुंवर सिंह के सम्मान में लोकगाथा कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें छपरा के रहने वाले उदय सिंह जी और उनकी टीम अपनी प्रस्तुति देगी।

इसके अलावा मगध की विलुप्त सांस्कृतिक विरासत चौक चंदी पर मंचीय प्रस्तुति होगी। भोजपुरी और मगही भाषा में कविता पाठ होगा। कार्यक्रम के दौरान अकादमिक जगत के दिग्गज और वरिष्ठ पत्रकार डिजिटल यूग में भाषायी पत्रकारिता की प्रासंगिकता विषय पर अपना व्याख्यान देंगे। कार्यक्रम को दौरान बिहार-उत्तर प्रदेश और दिल्ली के भोजपुरी मगही भाषी लोगों की बड़ी संख्या में मौजूदगी होगी। इस कार्यक्रम में आगम अतिथि के तौर पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष औऱ राज्यसभा सांसद मनन मिश्र, राज्यसभा सांसद दर्शना सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे, संजय पासवान, वरिष्ठ पत्रकार केजी सुरेश, बिहार विधान परिषद के सदस्य श्रीभगवान सिंह कुशवाहा, भारतीय विश्वविद्यालय संघ के संयुक्त सचिव डॉ अशोक कुमार मिश्रा, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद सुशील कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानवर्धन मिश्र शामिल हैं।

कार्यक्रम के दौरान शिक्षाविद् पंडित राजेंद्र प्रसाद मिश्र के नाम पर संजय कुमार और बिहार के दिग्गज पत्रकार रामजी मिश्र मनोहर की स्मृति में पत्रकार ब्रजेश पाठक को सम्मानित किया जाएगा। आपको बता दें कि कार्यक्रम का आयोजन करने वाले गोविंदा मिश्रा भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्ववर्ती छात्र रहे हैं। पूर्व में वे जी न्यूज और न्यूज 18 डिजिटल से जुड़े रहे हैं। उनका मानना है कि जनसरोकार, जनहित और लोकहित-संस्कृति की बातों पर मीडिया के ज्यादातर हिस्सों का ध्यान नहीं है। इस कमी को दूर करने के लिए इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। किसानों के बड़े मुद्दे इंद्रपूरी जलाशय परियोजना को भी मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से जगह दी जा रही है। केबी न्यूज पिछले चार वर्षों से बिहार के शाहाबाद और मगध इलाके में वीडियो और डिजिटल कंटेट के माध्यम से विश्वसनीय खबरों को आम लोगों तक पहुंचाने का काम कर रही है।

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