अहम मुद्दों पर हुई, राहुल गाँधी की असलियत उजागर

66e4205c5b99e-rahul-gandhi-132202699-16x9.jpg.webp

लोकसभा में विपक्ष के नेता बनने के बाद राहुल गांधी ने अमेरिका यात्रा की और वहां भारत विरोधी शक्तियों और समूहों के साथ बैठकर भारत तथा हिंदुत्व विरोधी बयान देकर उजागर कर दिया कि वे लोकसभा में नेता विरोधी दल नहीं वरन भारत विरोधी नेता हैं। मोहब्बत की दुकान का गाना गाने वाले राहुल गाँधी नफरत से इतने अधिक भरे हुए हैं कि अपने पूर्वजों के अच्छे विचारों को भी तिलांजलि दे चुके हैं। अमेरिका में राहुल गांधी द्वारा प्रस्तुत विमर्श भारत विरोधी, अलगाववादी, विध्वंसक तथा हिंदुत्व का अपमान करने वाला है। राहुल गाँधी की भाषा हिन्दू देवी देवताओं के प्रति अपमानजनक रही। ऐसा प्रतीत हुआ कि राहुल गांधी वास्तव में शहरी नक्सली हैं और टुकड़े- टुकड़े गैंग के निर्देशक ही उनके सलाहकार हैं।

राहुल गांधी ने अमेरिका में भारत के खिलाफ जो जहर उगला है वह उनकी चुनावी रैलियों से अनवरत चली आ बयानबाजी का विस्तार है। राहुल गांधी ने अमेरिका में एक के बाद एक कई विवादित बयान दिये हैं जिनके कारण भारत का राजनैतिक वातावरण उद्वेलित है। राहुल गांधी ने अमेरिका में चीन की प्रशंसा करते हुए कहा कि वैश्विक उत्पादन में चीन का प्रभुत्व है इसलिए वहां पर बेरोजगारी नहीं है जबकि भारत और अमेरिका जैसे देशों में भयंकर बेरोजगारी है। सिख समुदाय पर भी राहुल ने विवादित और घटिया बयान दिया और कहा, मेरी लड़ाई इस बात को लेकर है कि क्या एक सिख को भारत में पगड़ी पहनने की अनुमति दी जाएगी ?या एक सिख को कड़ा पहनने की अनुमति दी जाएगी? जो राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में यह ढिंढोरा पीटते रहे अगर भाजपा 400 पार चली गयी तो वह संविधान बदल देगी आरक्षण को समाप्त कर देगी उन्हीं राहुल गांधी ने अमेरिका में कहा कि जब भारत भेदभाव रहित स्थान होगा तब कांग्रेस आरक्षण समाप्त करने पर विचार करेगी। अभी ऐसा नहीं है क्योंकि उनकी नजर में 2014 से दलितों आदिवासियों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी ) को उचित भगीदारी नहीं मिल रही है। राहुल गांधी ने हिंदी पर भी आरोप मढ़ दिया और कह डाला कि अगर आपको लगता है कि आंध्रप्रदेश के लोग हिंदी जितने महत्वपूर्ण नहीं हैं तो यह राज्य के लोगों का अपमान है। राहुल गांधी यहीं नहीं रुके बोलते बोलते राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ तक पहुँच गए औए कहा वे मानते हैं कि महिलाएं घर पर ही रहें, रसोई संभालें। सबसे बड़ा झूठ यह बोलकर आये हैं कि भारतीय राजनीति में प्रेम सम्मान और विनम्रता गायब है।

राहुल गांधी ने सिख समुदाय को लेकर जो विवादित बयान दिया है उससे खालिस्तान समर्थक आतंकवादी गुनपतवंतसिंह पन्नू बहत खुश है तथा उनका समर्थन कर रहा है, राहुल के बयानों से खालिस्तान मूवमेंट के समर्थन की बू आ रही है। भारत में पंजाब और पंजाबियत का जो हाल कांग्रेस ने किया है वह किसी से छुपा नहीं है। कौन नहीं जानता कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 3000 सिखों का जो नरसंहार हुआ, जगह जगह दंगो के दौरान सिखों की पगड़ी उतार कर फेकी गई, उनके घर और दुकानों को आग के हवाले किया गया यह सब कुछ गाँधी परिवार के नियंत्रण में ही हुआ था और राहुल के पिता राजीव गाँधी ने, “बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है “ कहकर उसका बचाव किया था। कांग्रेस के ही शासनकाल में सिख राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के साथ हुआ दुर्व्यवहार पूरा देश जानता है। राहुल गांधी के बयान से भारत का राष्ट्रभक्त सिख समाज आंदोलित और आहत है।

राहुल गांधी ने अमेरिका में एक बड़ा बयान भारत के लोकतंत्र और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को लेकर भी दिया है। राहुल के अनुसार 2024 का लोकसभा चुनाव निष्पक्ष नहीं था, उन्होंने कहाकि चुनाव आयोग बीजेपी द्वारा नियंत्रित था। बीजेपी के पास अपार धन था, प्रशासन की ताकत थी, चुनाव आयोग का रवैया बीजेपी के पक्ष में था अगर निष्पक्ष चुनाव होते तो बीजेपी 240 सीटें जीत ही नहीं सकती थी। यहाँ राहुल गांधी संभवतः भूल गये कि चुनावों के दौरान कांग्रेस द्वारा सत्ता के दुरुप्रयोग की कहानियां भरी पड़ी हैं वो तो भला हो कि धीरे धीरे चुनाव आयोग ने सामर्थ्य दिखाना आरम्भ किया और चुनाव प्रणाली को सुदृढ़ किया।

राहुल गांधी अमेरिका में धुर भारत विरोधी नेताओं के साथ बैठक करते हैं और उनके साथ विचार विमर्श करते हैं। दुनिया भर में राष्ट्रवादी सरकारों के सबसे बड़े दुश्मन और नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले जार्ज सोरोस के साथ उनके और उनकी माता जी के सम्बंध अब छुपे नहीं रह गये हैं। राहुल गांधी की सबसे अधिक विवादित मुलाकात डेमोक्रेट सांसद इल्हान उमर और प्रमिला जयपाल सहित विदेशी सरकारों के तख्ता पलट के विशेषज्ञ माने जाने वाले डोनाल्ड ब्लू से होती है जो बताती है कि राहुल गांधी के इरादे खतरनाक ही नहीं बहुत ही खतरनाक हैं।

राहुल गांधी प्रधानमंत्री का विरोध करते – करते अब देश का ही विरोध करने पर उतारू हो गये हैं। विश्लेषकों का अनुमान है राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा और उनकी बयानबाजी उन्हें ही भारी पड़ने वाली है जिसमें एक अहम मुद्दा आरक्षण का है। राहुल गांधी के आरक्षण समाप्त करने वाले बयान को बसपा नेत्री मायावती ने लपक लिया है और अब वह उसी को हथियार बनाकर हरियाणा व जम्मू कश्मीर सहित आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पर हमला करने जा रही हैं।

आश्चर्यजनक रूप से राहुल गांधी भारत के शत्रु देशों चीन और पाकिस्तान की निंदा नहीं करते, वह सीमा पार से चलाये जा रहे आतंकवाद का विरोध नहीं करते। राहुल गांधी का स्पष्ट विचार है कि 1947 से पहले भारत का अस्तित्व ही नहीं था। राहुल गांधी अमेरिका में जिस संगठन की ओर से कार्यक्रम आयोजित करते हैं वह सभी जार्ज सोरोस द्वारा पोषित संस्थाएं हैं। साफ है कि राहुल गांधी देश में अराजकता चाहते हैं। जब राहुल गांधी अमेरिका गये तब भारत में सुनियोजित तरीके से एक ही पैटर्न पर गणेशोत्सव पर हमले किये गये। राहुल गांधी अमेरिका में भाजपा व संघ की तुलना तालिबान से करते हुए हिंदुत्व पर प्रहार करते हैं ।

राहुल गांधी अपनी विदेश यात्राओं के दौरान हमेशा ही भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के लिए खाद, पानी उपलब्ध कराते रहते हैं। राहुल गांधी जिस प्रकार चीन और पाकिस्तान की प्रशंसा के पुल बांधते हैं उससे एक बड़ा संदेह और भय पैदा होना स्वाभविक है। उनके मन में हिंदू और हिंदुत्व की विचारधारा के प्रति जिस प्रकार की नफरत भरी हुई है वो बहुसंख्यक समाज के लिए चिंता का विषय है।

तुष्टिकरण की कांगरेड

congrsds.jpg

पंकज

दो बड़ी घटनाओं में माध्यम से एक बड़ा संदेश और संकेत। आइये, पहले दोनों घटनायें संक्षेप में जानें।

छत्तीसगढ़ : प्रदेश के कॉस्मोपॉलिटन स्वभाव वाला महत्वपूर्ण शहर भिलाई। उसे ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाता है। वहां SAIL का प्रसिद्ध भिलाई स्टील प्लांट होने के कारण यह शहर भारत के ‘हर किसी की जिंदगी से जुड़ा हुआ’ है।

वहां कुछ दशक पहले कांगरेड की सरकार शांतिदूतों को मात्र 800 वर्ग फीट जमीन उपलब्ध कराती है। समूह का कारोबार ‘करबला समिति’ के नाम से प्रारंभ होता है। महज चंद फीट पर शांति स्थापना के बाद, जैसा कि अमूमन दुनिया भर में होता है, शांति का संक्रमण बढ़ते-बढ़ते करीब 6-8 एकड़ तक पहुंच जाता है।

विशुद्ध शांति के साथ कब्जा करते-करते उन जमीनों पर मैरिज हॉल, दुकानें आदि खुल जाती हैं। देश भर के निवासियों का प्रतिनिधि शहर, तनिक भी कभी आपत्ति नहीं जताता। अकलियत की रक्षा होती रहती है। हिंदू राष्ट्र चरम नींद के आगोश में सोया रहता है।

फिर दिसंबर 2023 में आती है विष्णुदेव साय जी की सरकार। वर्ष पूरा होते-होते पूरे करबला व्यवसाय को वैधानिक तरीके से गिरा दिया जाता है। जमीन शांतिमुक्त होती है।

यह तो रही सरोकार वाली सरकार आ जाने पर साँय-साँय निपटान हो जाने की बात। अब दूसरे वृत्तांत में शिमला पर ध्यान दीजिये।

हिमाचल प्रदेश : वहां सरकार उसी तुष्टीकरण वाले गिरोह की होती है जिसने 800 फीट से अब के छत्तीसगढ़ में शांति का कारोबार शुरू कराया था। वहां भी ‘पूजा स्थल’ के नाम पर धड़धड़ाते हुए शांति बहाली प्रारंभ होता है। कारोबार आगे बढ़ता है। किंतु उनकी समर्थक सरकार होने के बावजूद आश्चर्यजनक ढंग से हिंदू राष्ट्र जाग जाता है, भरी दुपहरी में।

शायद जागता भी इसलिए है क्योंकि शांति समर्थक पार्टी के ही एक प्रतिनिधि का जमीर जाग जाता है, वे सदन में बयान दे देते हैं अपनी पार्टी लाइन के विरुद्ध। उसके बाद हिंदू राष्ट्र सड़क पर आता है। जंगी प्रदर्शन करता है। ताजा समाचार यह है कि कब्जा समूह ने यह ‘निवेदन’ किया है कि वह स्वयं मसाजित का ‘अवैध हिस्सा’ गिराना चाहता है, उसे स्वयं ही गिरा लेने दिया जाय।

अगर सचमुच आपने यहां तक पढ़ लिया हो, तो बताइए कि इस विकराल पोस्ट में कवि क्या कहना चाहता है? कवि कहना वही चाहता है जो कहता रहा है – ‘बदला नहीं समाज तो सरकार बदल कर क्या होगा।’ समझे मियां, या और समझायें।

कहना यह चाहता है कवि कि सरकार आधारित कोई भी बदलाव स्थायी नहीं हो सकता, जब तक कि समाज उसके लिये तैयार न हो। समाज क्या करता है? बड़ी ही मुश्किल से एक वोट दे देता है अपने समर्थक दल को। इसके बाद ले आलोचना, दे विरोध, पे गाली….

उसके बाद देश के किसी हिस्से में किसी को कोई छींक आ गयी तो इस्ताफा डो, कहीं कुत्ते ने भौंकना शुरू कर दिया तो इस्ताफा दो, आपकी गली के बाहर किसी ने शांति से विष्ठा कर दिया तब भी ‘इस्ताफा दो, वरना मुस्ताफा लो’ का आरआर (राहुल रोना) शुरू हो जाता है। आप जवाब देते-देते थक जायेंगे, ‘हिंदू राष्ट्र’ जरा भी मुतमईन नहीं होगा।

उस पर भी अगर ‘आपके वोट से बने’ नेताजी आपको देख कर मुस्कुराहट न उछाल पाये हों, तब तो गयी भैंस पानी में। जा कर अपनी ‘भैंस चराये’ नेताजी।

और आपने समर्थन में अगर पूरे सवा सौ पोस्ट लिख दिये हों, लेकिन सम्मान किसी मात्र 120 पोस्ट लिख पाने वाले पड़ोसी को मिल गया हो, तब तो सीधे निजाम ए मुस्तफा से इस्तफा से कम पर आप मानेंगे नहीं।

लिखते-लिखते बहक जाने की अपनी आदत पुरानी है। सो निस्संदेह आप यहां तक नहीं पहुचे होंगे पढ़ते हुए, पर अगर सचमुच कोई यहां तक पहुंच गया हो, तो उन्हें प्रणाम करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि ऊपर के दोनों उदाहरण देते हुए सोये राष्ट्र को जगा कर बता दीजिये कृपया कि आपके वोटों द्वारा नियुक्त अधिकांश नौकर आपके दिये काम पर हैं। परंतु …

परंतु लोकतंत्र में प्रथम सेवक से लेकर अन्य तमाम सेवकों की क्षमता और उनके अधिकार सीमित हैं। आप वोट देते हैं न कि नींद की गोली निगलते हैं।

सो, चैन से सोना है तो जाग जाइए कृपया। घर-घर जा कर जगाने की शक्ति अकेले ‘चौकीदार’ में नहीं है। सिचुएशन अलार्मिंग है तो अलार्म लगा कर सोइये। मैथिली अगर बूझते हों आप तो यही कहूंगा कि ‘लाहक जूइज बरकाइए लेब’ वाली धमकी सदा काम आने वाली नहीं है।

चौकन्ना रहिए। लड़ने-भिड़ने के लिए तैयार रहिए। समूह में रहिए। निजी स्वार्थ या अहंकार को थोड़ा पीछे रखते हुए देश-धर्म-समाज हित को आगे रखिए। प्रारब्ध और सरकार पर भरोसा रखिये। जिस पक्ष को चुना है, उसके साथ चट्टान की तरह खड़े रहिए। मीन-मेख निकालते रहने का यह समय नहीं है।

वोट रूपी दो सूखी रोटी चौकीदार को देकर अगर उससे यह भी आशा करेंगे आप कि वही आपकी चड्ढी भी धो देगा, तो चौकीदार बदल लीजिए। दूसरा तैयार है आपकी चड्ढी तक उतार लेने के लिए। अमेरिका तक जा कर आपकी चड्ढी उतार भी रहा है रोज-रोज।

शेष हरि इच्छा। कम कहे को अधिक समझियेगा। चिट्ठी को तार बुझिएगा।

भारत के मार्च 2026 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के संकेत

India-will-become-third-largest-economy-in-world.jpg.webp

भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.93 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है। जबकि, जापान के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 4.21 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है एवं जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 4.59 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। भारत की आर्थिक विकास दर लगभग 8 प्रतिशत प्रतिवर्ष बनी हुई है और जापान एवं जर्मनी की आर्थिक विकास दर लगभग स्थिर है अथवा इसके ऋणात्मक रहने की भी प्रबल सम्भावना है। इस दृष्टि से मार्च 2025 तक भारत जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़कर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा एवं मार्च 2026 तक भारत जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। हाल ही के समय में जर्मनी एवं जापान की अर्थव्यवस्थाओं में विभिन्न प्रकार की समस्याएं दृष्टिगोचर हैं, जिनके कारण इन दोनों देशों की आर्थिक विकास दर आगे आने वाले वर्षों में विपरीत रूप से प्रभावित रह सकती है।

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात लगातार 4 दशकों तक जर्मनी पूरे यूरोपीयन यूनियन में तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहा। इस दौरान विनिर्माण इकाईयों के बल पर जर्मनी ने अपने आप को विश्व में विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर लिया था एवं विभिन्न उत्पादों, विशेष रूप से कार, मशीनरी एवं केमिकल उत्पादों का निर्यात पूरे विश्व को भारी मात्रा में किया जाने लगा था। पिछले 20 वर्षों के दौरान जर्मनी पूरे यूरोपीयन यूनियन के विकास का इंजिन बना हुआ था। चूंकि चीन की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से विकास कर रही थी अतः पिछले 20 वर्षों के दौरान चीन, जर्मनी से लगातार मशीनरी, कार एवं केमिकल पदार्थों का भारी मात्रा में आयात करता रहा है। परंतु, अब परिस्थितियां बदल रही हैं क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था भी हिचकोले खाने लगी है और चीन ने विभिन्न उत्पादों का जर्मनी से आयात कम कर दिया है। अतः अब जर्मनी अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। आज बदली हुई परिस्थितियों में चीन, जर्मनी में निर्मित विभिन्न उत्पादों का आयात करने के स्थान पर वह जर्मनी का प्रतिस्पर्धी बन गया है और इन्हीं उत्पादों का निर्यात करने लगा है। दूसरे, पिछले लगभग 2 वर्षों से रूस ने भी ऊर्जा की आपूर्ति यूरोप के देशों को रोक दी है, रूस द्वारा निर्यात की जाने वाली इस ऊर्जा का जर्मनी ही सबसे अधिक लाभ उठाता रहा है। तीसरे, जर्मनी में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और एक अनुमान के अनुसार जर्मनी में आगे आने वाले एक वर्ष से कार्यकारी जनसंख्या में प्रतिवर्ष एक प्रतिशत की कमी आने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इससे उपभोक्ता खर्च पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। चौथे, जर्मनी में नागरिकों की उत्पादकता भी कम हो रही है। जर्मनी में प्रत्येक नागरिक वर्ष भर में केवल 1300 घंटे का कार्य करता है जबकि OECD देशों में यह औसत 1700 घंटे का है। पांचवे, यूरोपीयन यूनियन में वर्ष 2035 में पेट्रोल एवं डीजल पर चलने वाले चार पहिया वाहनों के उत्पादन पर रोक लगाई जा सकती है जबकि इन कारों का निर्माण ही जर्मनी में अधिक मात्रा में होता है तथा जर्मनी की कार निर्माता कम्पनियों ने बिजली पर चलने वाले वाहनों के निर्माण पर अभी बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया है। साथ ही, जर्मनी ने नवाचार पर भी कम ध्यान दिया है एवं स्टार्ट अप विकसित करने में बहुत पीछे रहा है आज इन क्षेत्रों में अमेरिका एवं चीन बहुत आगे निकल गए हैं एवं जर्मनी आज अपने आप को असहाय सा महसूस कर रहा है। अतः जर्मनी अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव आगे आने वाले लम्बे समय तक चलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

वैश्वीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव भी जर्मनी अर्थव्यवस्था पर पड़ा है एवं अब पूरे विश्व में गैरवैश्वीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी है। आज प्रत्येक विकसित एवं विकासशील देश अपने पैरों पर खड़ा होकर स्वावलंबी बनना चाहता है। अतः जर्मनी जैसे देशों से मशीनरी एवं कारों का निर्यात कम हो रहा है साथ ही इन उत्पादों की तकनीकि भी लगातार बदल रही है जिसे जर्मनी की विनिर्माण इकाईयां उपलब्ध कराने में असफल सिद्ध हुई हैं। पिछले 5 वर्षों के दौरान जर्मनी अर्थव्यवस्था में विकास दर हासिल नहीं की जा सकी है।

जर्मनी में सितम्बर 2023 माह में वोक्सवेगन (Volkswagen) कम्पनी ने अपनी दो विनिर्माण इकाईयों को बंद करने का निर्णय लिया है। यह कम्पनी जर्मनी में 3 लाख से अधिक रोजगार के प्रत्यक्ष अवसर उपलब्ध कराती है तथा अन्य लाखों नागरिकों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती हैं। इस कम्पनी ने जर्मनी में अपनी विनिर्माण इकाईयों में उत्पादन कार्य को काफी हद्द तक कम कर दिया है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से इस कम्पनी के उत्पादों की बिक्री लगातार कम हो रही है। पिछले 5 वर्षों के दौरान इस कम्पनी की बाजार कीमत आधे से भी कम रह गई है। इस कम्पनी की उत्पादन इकाईयों में चार पहिया वाहनों का निर्माण किया जाता रहा है परंतु अब इन उत्पादन इकाईयों में बिजली पर चलने वाली कारों के निर्माण में बहुत परेशानी आ रही है। बिजली पर चलने वाली कारों का जर्मनी में उत्पादन बढ़ाने के स्थान पर चीन से इन कारों का बहुत भारी मात्रा में आयात किया जा रहा है। अपनी आर्थिक परेशानियों को ध्यान में रखते हुए जर्मनी ने यूक्रेन को टैंकों की आपूर्ति भी रोक दी है। दरअसल कोरोना महामारी के बाद से ही, वर्ष 2020 के बाद से, जर्मनी की अर्थव्यवस्था अभी तक सही तरीके से पूरे तौर पर उबर ही नहीं सकी है।

एक अनुमान के अनुसार जर्मनी अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2024 में भी कम होने जा रहा है, यह वर्ष 2023 में भी कम हुआ था और इसके वर्ष 2025 में भी सुधरने की सम्भावना कम ही दिखाई दे रही है। जर्मनी के सकल घरेलू उत्पाद में वर्ष 2024 के दौरान 0.1 प्रतिशत की कमी की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। बेरोजगारी की दर भी 6.1 प्रतिशत के स्तर तक ऊपर जा सकती है। जर्मनी अर्थव्यवस्था केवल चक्रीय ही नहीं बल्कि संरचनात्मक क्षेत्र में भी समस्याओं का सामना कर रही है। इसमें सुधार की कोई सम्भावना आने वाले समय में नहीं दिख रही है। हालांकि यूरोपीयन यूनियन में जर्मनी की अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है परंतु फिर भी भारत, उक्त कारणों के चलते, जर्मनी की अर्थव्यवस्था को मार्च 2026 तक पीछे छोड़ देगा, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है।

इसी प्रकार, पिछले लगभग 30 वर्षों के दौरान जापान की अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति, ब्याज दरें एवं येन की कीमत स्थिर रही है। परंतु, हाल ही के समय में येन का अंतरराष्ट्रीय बाजार में अवमूल्यन हो रहा है एवं यह 160 येन प्रति अमेरिकी डॉलर के स्तर पर आ गया है, जो वर्ष 2009 के बाद से कभी नहीं रहा है। जापान की अर्थव्यवस्था कई उत्पादों के आयात पर निर्भर करती है। जापान अपनी ऊर्जा की आवश्यकताओं का 90 प्रतिशत एवं खाद्य सामग्री का 60 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है। जापान द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने से जापान में भी आयातित मुद्रा स्फीति की दर बढ़ रही है जो पिछले एक दशक के दौरान लगातार स्थिर रही है।

वर्ष 1955 से वर्ष 1990 के बीच जापान की अर्थव्यवस्था औसत 6.8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से आगे बढ़ती रही। वर्ष 1990 तक जापान का स्टॉक मार्केट लगातार बढ़ता रहा एवं अचानक वर्ष 1990 में यह बुलबुला फट पढ़ा और जापान में आवासीय मकानों की कीमत 50 प्रतिशत तक गिर गई एवं व्यावसायिक मकानों की कीमत 85 प्रतिशत तक गिर गई। जापान के पूंजी बाजार में निक्के स्टॉक सूचकांक भी 75 प्रतिशत तक गिर गया।

जापान की अर्थव्यवस्था में तेजी के दौरान आस्तियों की बढ़ी हुई कीमत पर ऋण लिए गए थे परंतु जैसे ही इन आस्तियों की कीमत बाजार में कम हुई, नागरिकों को ऋणराशि की किश्तें चुकाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा और इससे भी जापान में आर्थिक समस्याएं बढ़ी थी। दिवालिया होने वाले नागरिकों की संख्या बढ़ी और देश में अपस्फीति की समस्या प्रारम्भ हो गई थी। जापान की सरकार ने आर्थिक तंत्र में नई मुद्रा की मात्रा बढ़ाई और ब्याज दरों को लगभग शून्य कर दिया। इन समस्त उपायों से भी जापान में आर्थिक समस्याओं का हल नहीं निकल सका। वर्ष 2022 में जापान में भी विश्व के अन्य देशों की तरह मुद्रा स्फीति बढ़ने लगी थी परंतु जापान ने ब्याज दरों को नहीं बढ़ाया। अब कुल मिलाकर जापान अपनी आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है एवं वहां पर आगे आने वाले समय में आर्थिक विकास के पटरी पर आने की सम्भावना कम ही नजर आती है अतः भारत जापान की अर्थव्यवस्था को मार्च 2025 तक पीछे छोड़कर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन सकता है।

हिंदी- सेवा में रह गई क्या कसर

navbharat-times-73186919.jpg.webp

समीर कौशिक

माँ मातृभाषा और मातृभूमि का कोई विकल्प नहीं हो सकता इसे से प्रेरीत होकर आलेख स्वरूप अध्धयन पत्र में अपने विचार उसी मातृभाषा हिंदी की सेवा में प्रस्तुत करने का प्रयास है । हम सबको विदित है कि 14 सितंबर को हम हिंदी दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। इस दिन को मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा की महत्ता और इसकी सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करना है। हिंदी भारत की राजभाषा है और इसे विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक भी है। हिंदी का भूत वर्तमान एवं भविष्य हेतु निस्वार्थ सेवा के कारण ही खड़ा हो पाया है ,असंख्य हिंदी प्रेमियों ने सारा सारा जीवन लगाकर आज की वर्तमान हिंदी का आधुनिक स्वरूप हम सबके सामने प्रस्तुत किया है।

हिंदी का उद्भव संस्कृत से हुआ है, और इसकी विभिन्न बोलियों ने भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध किया है। हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि एक संस्कृति, एक पहचान और एक भावनात्मक जुड़ाव भी है। यह भाषा न केवल भारत में, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी व्यापक रूप से बोली जाती है, विशेष रूप से भारतीय प्रवासियों के बीच।

हिंदी दिवस पर हमें यह याद रखना चाहिए कि भाषा केवल संवाद का एक साधन नहीं है, बल्कि यह समाज की पहचान, संस्कृति और इतिहास का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदी साहित्य, जिसमें कवि, लेखक और नाटककारों का योगदान अद्वितीय है जिसने हमें एक अकूत सांस्कृतिक सम्पत्ति विरासत में उपहार रूप में दी है।
हिंदी की इस सांस्कृतिक यात्रा को सहेजने और उसे बढ़ावा देने के लिए हमें इसे अपनी शिक्षा, साहित्य और रोजमर्रा की जीवन शैली में प्रोत्साहित करना आवशयक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है । यह केवल हमें एकजुट नहीं करता, बल्कि हमारे इतिहास और संस्कृति की गहराई को भी दर्शाता है। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाना हमें अपनी भाषायी और सांस्कृतिक धरोहर की पहचान और सम्मान को मजबूत बनाने का एक योग्य अवसर एवं उत्स्व प्रदान करता है।

देश दुनिया के कुछ महापुरुषों के विचार भी उसी मातृभाषा हिंदी के निम्मित आपके सन्मुख रख रहा हूँ ।

है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी। – मैथिलीशरण गुप्त

संस्कृत की विरासत हिन्दी को तो जन्म से ही मिली है। – राहुल सांकृत्यायन

कैसे निज सोऐ भाग को कोई सकता है जगा, जो निज भाषा-अनुराग का अंकुर नहिं उर में उगा। – हरिऔध

हिन्दी में हम लिखें पढ़ें, हिन्दी ही बोलें। – पं. जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी

यह जो है कुरबान खुदा का, हिन्दी करे बयान सदा का। – अज्ञात

जीवन के छोटे से छोटे क्षेत्र में हिन्दी अपना दायित्व निभाने में समर्थ है। – पुरुषोत्तमदास टंडन

सरलता, बोधगम्यता और शैली की दृष्टि से विश्व की भाषाओं में हिन्दी महानतम स्थान रखती है। – अमरनाथ झा

हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है। – माखनलाल चतुर्वेदी

हिन्दी साहित्य की नकल पर कोई साहित्य तैयार नहीं होता। – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

हिन्दी को तुरंत शिक्षा का माध्यम बनाइए। – बेरिस कल्यएव

दक्षिण की हिन्दी विरोधी नीति वास्तव में दक्षिण की नहीं, बल्कि कुछ अंग्रेजी भक्तों की नीति है। – के.सी. सारंगमठ

हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा हो सकती है। – वी. कृष्णस्वामी अय्यर

हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य को सर्वांगसुंदर बनाना हमारा कर्त्तव्य है। – डॉ. राजेंद्रप्रसाद

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। – भारतेंदु हरिश्चंद्र

हिन्दी भाषा का प्रश्न स्वराज्य का प्रश्न है। – महात्मा गाँधी

राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है। – महात्मा गाँधी

अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम भाग पहले से ही जानता-समझता है। – महात्मा गाँधी

विश्व हिंदी दिवस: 14 सितंबर का महत्व और हिंदी का वैश्विक प्रभाव

14 सितंबर, 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में मान्यता मिली, और इस दिन को हम हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं। लेकिन इसका महत्व केवल भारत तक सीमित नहीं है। 10 जनवरी 2006 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 14 सितंबर को ‘विश्व हिंदी दिवस’ के रूप में मान्यता दी। यह दिन हिंदी भाषा की वैश्विक उपस्थिति, उसकी सांस्कृतिक धरोहर और उसकी शिक्षा के प्रसार को सम्मानित करने का अवसर है। इस लेख में हम हिंदी दिवस के महत्व, हिंदी भाषा की वैश्विक स्थिति, और इसके भविष्य की दिशा पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

हिंदी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ

हिंदी भाषा का इतिहास लगभग दो हजार वर्षों पुराना है। भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न बोलियों और भाषाओं का एक समृद्ध इतिहास रहा है, और हिंदी उनमें एक महत्वपूर्ण भाषा है। हिंदी के साहित्य में काव्य, नाटक, उपन्यास और गद्य रचनाओं का विशाल संग्रह है, जिसमें प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त, निराला, और महादेवी वर्मा जैसे प्रमुख साहित्यकार शामिल हैं। हिंदी की विविध बोलियाँ और उनके साहित्य ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया है।

हिंदी की शिक्षा और प्रचार

अनेक अवसरों पर देखा गया है की देश में हिंदी के लिए आंदोलन भी हुए हैं और साथ साथ अन्य भी प्रयास समाज द्वारा किये गए है जिनमे
हिंदी की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। भारत और विदेशों में हिंदी पाठ्यक्रम, साहित्यिक समारोह, और सांस्कृतिक कार्यक्रम हिंदी भाषा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। विश्व भर में हिंदी को एक महत्वपूर्ण शैक्षिक विषय के रूप में मान्यता मिल रही है, और इसके प्रति छात्रों और शिक्षकों की रुचि बढ़ रही है। भारत में आज मेडिकल इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई की व्यवस्था भी हिंदी में कराई जा रही सरकार एवं स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से आज तकनीकी शिक्षा चिकित्सा शिक्षा की पुस्तकोँ का हिंदी में अनुवाद कर पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है परंतु इस दिशा में थोड़ा तीव्र गति से कार्य करना होगा।

1.भारत में हिंदी शिक्षा:

भारत के एक बड़े भू भाग में हिंदी भाषा को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में भी हिंदी साहित्य, भाषा, और संस्कृति के अध्ययन के लिए विशेष विभाग और पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।

2.विदेश में हिंदी शिक्षा :

विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्ययन के लिए विशेष विभाग और पाठ्यक्रम स्थापित किए गए हैं। हिंदी शिक्षा के लिए कई संस्थान और संगठनों द्वारा शिक्षण सामग्री और कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं।

हिंदी का वैश्विक प्रभाव

हिंदी की वैश्विक स्थिति दिन-प्रतिदिन प्रभावी एवं सुदृढ़ हो रही है। भारतीय जनमानस, जो विश्व के विभिन्न हिस्सों में फैल चुका है, हिंदी भाषा को अपने सांस्कृतिक और भावनात्मक जुड़ाव के रूप में संरक्षित कर रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में हिंदी भाषी समुदायों ने न केवल अपनी भाषा को संरक्षित किया है, बल्कि इसे वहाँ के समाज में भी महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।

संयुक्त राज्य अमेरिका :

अमेरिका में हिंदी भाषा की बढ़ती लोकप्रियता को शिक्षा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से देखा जा सकता है। कई स्कूलों और कॉलेजों में हिंदी को एक विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है, और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है।

ब्रिटेन : ब्रिटेन में हिंदी भाषा के प्रति बढ़ती रुचि को देखा जा सकता है, जहाँ हिंदी फिल्में, साहित्य और संगीत लोकप्रिय हो रहे हैं। ब्रिटेन की विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्ययन को एक गंभीर शैक्षिक विषय के रूप में माना जाता है।

ऑस्ट्रेलिया : ऑस्ट्रेलिया में भी हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है, जहां भारतीय समुदाय की बढ़ती संख्या के साथ-साथ हिंदी शिक्षा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मांग भी बढ़ी है।

हिंदी का भविष्य

हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है, लेकिन इसके विकास के लिए कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है। तकनीकी और वैश्विकरण के युग में, हिंदी को अपनी पहचान बनाए रखने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। इंटरनेट, मीडिया, और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर हिंदी भाषा की उपस्थिति को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है।

तकनीकी चुनौतियाँ : डिजिटल युग में हिंदी भाषा के उपयोग में वृद्धि की दिशा में कई तकनीकी प्रयास किए जा रहे हैं। हिंदी में सॉफ़्टवेयर, एप्लिकेशंस, और वेबसाइट्स की उपलब्धता को बढ़ावा देना आवश्यक है।

सांस्कृतिक संरक्षण : हिंदी के सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर को संरक्षित करना और बढ़ावा देना भी आवश्यक है। हिंदी साहित्य, संगीत, और कला को विश्व भर में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

14 सितंबर, विश्व हिंदी दिवस, हिंदी भाषा की वैश्विक उपस्थिति और सांस्कृतिक धरोहर को मान्यता देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह दिन हमें हिंदी के महत्व को समझने और उसकी शिक्षा, प्रचार, और विकास के लिए समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। हिंदी का वैश्विक प्रभाव, उसकी सांस्कृतिक धरोहर, और उसकी शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे प्रयास हमें यह दर्शाते हैं कि हिंदी भाषा केवल एक संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक सनातन धरोहर है। इस दिन को मनाते हुए, हमें हिंदी के प्रति अपने दायित्व बोध को समझना चाहिए और इसके विकास और प्रसार में योगदान हमरा नैतिक एवं सामाजिक सांस्कृतिक कर्तव्य है ।

विश्व हिंदी दिवस पर आज तक के सबसे बड़े सफल आयोजन और उनके परिणाम

1.2007: हिंदी की 60वीं वर्षगांठ का समारोह

2007 में, हिंदी की 60वीं वर्षगांठ को भव्य तरीके से मनाया गया। इस आयोजन में भारतीय सरकार, विभिन्न राज्य सरकारों, और हिंदी साहित्यकारों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम ने हिंदी की सांस्कृतिक और भाषायी धरोहर को समर्पित किया और हिंदी भाषा के विकास के लिए किए गए प्रयासों को मान्यता दी।

परिणाम : इस आयोजन ने हिंदी की वैश्विक उपस्थिति को सशक्त किया और विभिन्न देशों में हिंदी के प्रति लोगों की रुचि को बढ़ाया। इसे देखते हुए, कई देशों ने हिंदी शिक्षा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए अधिक समर्थन और निवेश किया।

2.2011: हिंदी भाषा के विश्व हिंदी सम्मेलन

2011 में, भारत सरकार ने एक विशाल विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में दुनिया भर के हिंदी विद्वान, लेखक, और शैक्षिक संस्थान शामिल हुए। सम्मेलन का उद्देश्य हिंदी भाषा की वैश्विक स्थिति की समीक्षा करना और उसे बढ़ावा देना था।

परिणाम :

इस सम्मेलन के परिणामस्वरूप, कई देशों में हिंदी अध्ययन केंद्र स्थापित किए गए। इस सम्मेलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा की स्थिति को मजबूती प्रदान की और वैश्विक हिंदी नेटवर्क को बढ़ावा दिया।

3.2018: विश्व हिंदी सम्मेलन, सूरजकुंड

2018 में, विश्व हिंदी सम्मेलन का आयोजन सूरजकुंड, हरियाणा में किया गया। इस सम्मेलन में 35 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें हिंदी भाषा, साहित्य, और संस्कृति पर विचार-विमर्श किया गया। सम्मेलन में प्रमुख भाषाविदों, लेखकों और सांस्कृतिक हस्तियों ने हिंदी के भविष्य पर चर्चा की।

परिणाम :

इस सम्मेलन ने हिंदी भाषा की सांस्कृतिक और शैक्षिक महत्ता को पुनः स्थापित किया और विश्व भर में हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाया। इसके साथ ही, कई देशों में हिंदी शिक्षा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए नई योजनाएं और पहल शुरू की गई।

4.2021: डिजिटल प्लेटफार्म पर हिंदी के 75 वर्षों का उत्सव

2021 में, डिजिटल माध्यम से हिंदी के 75 वर्षों का उत्सव मनाया गया। कोविड-19 महामारी के चलते यह आयोजन ऑनलाइन किया गया, जिसमें दुनिया भर के हिंदी प्रेमियों और विद्वानों ने भाग लिया। इस उत्सव में हिंदी की उपलब्धियों और भविष्य की योजनाओं पर चर्चा की हुई ।

परिणाम :

इस डिजिटल आयोजन ने हिंदी की वैश्विक पहुंच को नया आयाम दिया। ऑनलाइन मंच ने विभिन्न देशों में हिंदी भाषा के प्रति लोगों की रुचि और जुड़ाव को बढ़ाया। इसके अतिरिक्त, हिंदी के डिजिटल और सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसार में वृद्धि हुई।

विश्व हिंदी दिवस पर आयोजित इन प्रमुख कार्यक्रमों ने हिंदी भाषा की वैश्विक स्थिति और उसकी सांस्कृतिक धरोहर को मजबूत किया है। ये आयोजन हिंदी के प्रति जागरूकता बढ़ाने, उसकी शिक्षा और प्रचार को बढ़ावा देने, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की उपस्थिति को सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन आयोजनों ने प्रमाणित किया है कि हिंदी केवल भारत की नहीं, बल्कि विश्व की एक महत्वपूर्ण भाषा है, और इसके प्रति वैश्विक सम्मान और रुचि दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।

हिंदुस्तान और हिंदी: विश्व के लिए आवश्यक क्यों हैं..? इसके निम्मित कुछ बिंदु अग्रलिखित हैं।

1.वैश्विक सांस्कृतिक प्रभाव समृद्धि और विविधता

हिंदुस्तान (भारत) की सांस्कृतिक और भाषायी विविधता की एकरूपता विश्व को एक समृद्ध सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करा रही है। भारत की विभिन्न भाषाएँ, परंपराएँ, त्यौहार, और कला रूप, जैसे कि संगीत, नृत्य, और साहित्य, वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हिंदी, भारत की प्रमुख भाषाओं में से एक है, और इसकी साहित्यिक और सांस्कृतिक समृद्धि विश्व भर में साहित्यिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती है। हिंदी विश्व की एक प्रमुख भाषा है और वर्तमान समय में हिंदी को 600 मिलियन से अधिक लोग मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। हिंदी भारत में एक महत्वपूर्ण संवाद का माध्यम है । हिंदी का ज्ञान विभिन्न देशों में भारतीय समुदाय के साथ संवाद और सहयोग को सरल बना रहा है, विशेषकर व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में। हिंदी फिल्में, संगीत, और साहित्य ने विश्व स्तर पर भारतीय संस्कृति की पहचान बना गई हैं । बॉलीवुड फिल्मों ने वैश्विक दर्शकों के बीच हिंदी और भारतीय संस्कृति को लोकप्रिय बनाया है। यह सांस्कृतिक प्रभाव भारत की वैश्विक पहचान को मजबूत कर रहा है और विभिन्न देशों में भारत की सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा दे रहा है।

2.वैश्विक संवाद और संचार

हिंदी, 60 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है और भारतीय जनमानस के मध्य प्रमुख संवाद का माध्यम है। भारतीय डायस्पोरा के बीच, हिंदी संचार का एक महत्वपूर्ण साधन है, जो वैश्विक संवाद को आसान बनाता है। वैश्विक व्यापार और कूटनीति में हिंदी का ज्ञान भारत और अन्य देशों के बीच बेहतर समझ और सहयोग को प्रोत्साहित कर रहा है। हिंदी के बढ़ते प्रभाव का ही कारण है कि आज कई विदेशी कम्पनियां भी भारत में आकर हिंदी भाषा के माध्यम से ही व्यापार कर रही हैं चाहे प्रचार समाग्री हो या संवाद के द्वारा ये देखा जा सकता है । हिंदी भाषा वैश्विक संवाद में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भाषायी विविधता का हिस्सा बनती है, जिससे एक समावेशी और सहयोगी वैश्विक संवाद संभव हो पाता है हिंदी भाषा का संचार, व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शिक्षा, और विविधता के सम्मान में योगदान कर रही है। यह केवल भारत की भाषा नहीं, बल्कि एक वैश्विक संपत्ति है जो विश्व समुदाय को जोड़ती है और सांस्कृतिक समृद्धि में अविस्मरणीय एवं महत्वपूर्ण योगदान है।

3.आर्थिक अवसर और व्यापारिक संबंध

भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ते बाजारों के साथ, हिंदी का ज्ञान वैश्विक व्यापारिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कंपनियाँ और निवेशक हिंदी के माध्यम से भारतीय बाजार में सुगमता से प्रवेश कर सकते हैं और स्थानीय उपभोक्ताओं और व्यापारिक भागीदारों के साथ प्रभावी ढंग से संवाद कर सकते हैं। यह व्यापारिक अवसरों को बढ़ावा देता है और वैश्विक आर्थिक संबंधों को मजबूत करता है। हिंदी यहाँ की विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक है। वैश्विक व्यापारिक गतिविधियों और निवेश के संदर्भ में, हिंदी का ज्ञान व्यापारिक सौदों, साझेदारियों, और निवेश के अवसरों को आसान बना रहा है। इससे कंपनियों को भारतीय बाजार में प्रभावी ढंग से प्रवेश करने और व्यापार बढ़ाने में सहायता प्राप्त हो रही है।

4.शैक्षिक और अनुसंधान के अवसर

हिंदी भाषा शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों को भारतीय समाज और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से अध्ययन करने का अवसर प्रदान कर रही है। विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थानों में हिंदी की पढ़ाई और अनुसंधान से वैश्विक शैक्षिक समुदाय को लाभ हैं । क्योंकि ये सर्व विदित है कि विश्व में जितने भी देश आज विकसित देश हैं , अधिकतम नोबेल पुरुस्कार विजेता हों सबने अपने कार्य अपनी भाषा में ही किये है। और यदि हिंदी भाषी समाज के मध्य शिक्षा शोध अनुसंधान व्यापर को हिंदी में किया जाये अथवा क्रमबद्ध इसे प्रोत्साहित भी किया जाये तो इसके परिणाम असम्भावी रूप से चमत्कारी होंगे। हमे ज्ञात है की इजराइल जैसा देश जो कुछ दशकों पूर्व ही अस्तित्व में आया भारत से कम सुविधा सम्पन्न था परन्तु फिर भी उसने अपना अपनी भाषा हिब्रू में किया आज परिणाम सबके सामने है सबसे ज्यादा नोबल और जाने कीतिनि वैश्विक उपलब्धियां शिक्षा शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में हमारे सन्मुख हैं
भारत के प्रमुख विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में हिंदी भाषा और साहित्य पर महत्वपूर्ण अध्ययन और अनुसंधान आरम्भ किये जा रहे हैं । हिंदी साहित्य, संस्कृति, और समाज पर शोध और अध्ययन विश्वभर के शैक्षिक समुदाय को मूल्यवान जानकारी और दृष्टिकोण प्रदान कर रहा है। यह अनुसंधान वैश्विक शैक्षिक और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा दे रहा है।

5.अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और सहयोग

हिंदुस्तान और हिंदी, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में एक प्रमुख भागीदार है। हिंदी की उपस्थिति और भारत की सांस्कृतिक विविधता इन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर महत्वपूर्ण योगदान करती है और वैश्विक समस्याओं के समाधान में सहयोग प्रदान करती है। वर्तमान परीक्ष्य में देखा भी गया है, किस प्रकार से भारतियों के बिच अथवा विदेशी धरती से अखिल विश्व को किस प्रकार भारतीय राजनेताओं छात्रों एवं अपने अपने क्षेत्र के मूर्धन्य व्यक्तियों द्वारा अपने भाषण हों या संवाद हिंदी में किये हैं जिस से एक सशक्त संदेश विश्व मिडिया के माध्यम से भारतवासियों का हिंदी हेतुसमग्र संसार को गया। वर्तमान में हमारे विदेही दूतावास हों अथवा अन्य निति निर्मात्रीक केंद्र हिंदी के माध्यम से परस्पर समन्वय को बढ़ावा देर रहे हैं । भारतीय समुदायों के मध्य अपनी एक मजबूत पकड़ बनाने में भी सफल हो रहे हैं।

6.सामाजिक एकता और विविधता का सम्मान

हिंदुस्तान और हिंदी सामाजिक एकता और विविधता के प्रतीक हैं। भारत की विविधता को स्वीकार करना और हिंदी के माध्यम से सांस्कृतिक समन्वय को बढ़ावा देना वैश्विक सामाजिक समन्वय में योगदान कर रहा है। यह विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के बीच समझ और सहयोग को प्रोत्साहित कर रहा है। हिंदुस्तान और हिंदी, वैश्विक समाज के लिए कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं। सांस्कृतिक समृद्धि, वैश्विक संवाद और सामाजिक एकता में योगदान कर रहे हैं। हिंदुस्तान की विविधता और हिंदी की वैश्विक उपस्थिति, विश्व को एक समृद्ध और समावेशी सांस्कृतिक अनुभव प्रदान करती है, जो सभी देशों के बीच बेहतर समझ और सहयोग को बढ़ावा दे रही है।

7.साहित्य हिंदी धरोहर

हिंदी विश्व सांस्कृतिक विविधता को सम्मानित करने का एक मार्ग है, इसे सीखना और समझना विभिन्न सांस्कृतिक दृष्टिकोणों को अपनाने और वैश्विक सांस्कृतिक समन्वय में योगदान करने में सहायता कर रहा है। हिंदी भाषा से विभिन्न सांस्कृतिक समूहों के बीच बेहतर समझ और सहयोग को बढ़ावा मिल रहा है। हिंदी भारतीय साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हिंदी साहित्य में महादेवी वर्मा, प्रेमचंद, और रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे प्रसिद्ध लेखकों और कवियों की रचनाएँ हैं, जो विश्व साहित्य को समृद्ध करती हैं। हिंदी की फिल्मों, संगीत, और कला ने भी वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति को प्रस्तुत किया है।

विश्व हिंदी दिवस के कूटनीतिक, सामरिक, और वैश्विक लाभ

1.कूटनीतिक लाभ

संबंधों को सुदृढ़ करना:

विश्व हिंदी दिवस पर हिंदी को मान्यता देने और इसे प्रचारित करने के प्रयास विभिन्न देशों के बीच सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंधों को सुदृढ़ करते हैं। यह भारत की कूटनीतिक पहल को मजबूत करता है और भारतीय संस्कृति की वैश्विक मान्यता को बढ़ा दे रहा है।

संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व:

हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में शामिल नहीं है परन्तु विश्व हिंदी दिवस के माध्यम से हिंदी का प्रचार और उसकी महत्वता को दर्शाना भारत के अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयासों को सशक्त करता है। यह भारत की भाषायी विविधता और सांस्कृतिक योगदान को वैश्विक मंच पर उजागर करता है। और यदि हिंदी प्रेमियों एवं हिंदी भाषियों के हिंदी के उत्थान हेतु प्रयासर निरंतर जारी रहे तो निकट भविष्य मेर हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भाषा के रूप में भी स्थापित होगी।

सांस्कृतिक कूटनीति:
हिंदी की वैश्विक उपस्थिति और प्रचार भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का हिस्सा है। इससे भारत की सांस्कृतिक धरोहर और सामाजिक मूल्यों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है, जो अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा दे रहा है।

2.सामरिक लाभ

सामरिक एकता और पहचान:

हिंदी भारत की एकता और सांस्कृतिक पहचान को प्रदर्शित करती है। विश्व हिंदी दिवस पर हिंदी के प्रचार से भारत के सामरिक एकता को प्रोत्साहन मिल रहा है और एक साझा सांस्कृतिक पहचान को प्रबल बनाया जा सकता है है, जो सामरिक मोर्चे पर एकता और बल प्रदान करता है।

डायस्पोरा का समर्थन:

हिंदी की वैश्विक उपस्थिति और प्रचार, भारतीय डायस्पोरा को उनके सांस्कृतिक और भाषायी पहचान बनाए रखने में सहायता करता है। यह वैश्विक स्तर पर भारतीय समुदाय की सुरक्षा और सामरिक सहयोग को भी बढ़ाता है।

सूचना और संचार:

हिंदी के बढ़ते प्रचार से वैश्विक सूचना और संचार नेटवर्क में भारतीय दृष्टिकोण और सामरिक स्थिति को स्पष्टता मिल रही है। इससे भारतीय सामरिक नीति और रणनीति के बारे में बेहतर जानकारी और समझ प्राप्त हो रही है।

3.वैश्विक लाभ

वैश्विक सांस्कृतिक समन्वय:

विश्व हिंदी दिवस पर हिंदी का प्रचार वैश्विक सांस्कृतिक समन्वय को प्रोत्साहित कर रहा है। इससे विभिन्न संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान और समझ बढ़ रही है, जिससे वैश्विक सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल रहा है।

शैक्षिक और साहित्यिक योगदान:

हिंदी के वैश्विक प्रचार से हिंदी साहित्य और शैक्षिक सामग्री की विश्वभर में पहुंच बढ़ गई है। इससे वैश्विक स्तर पर साहित्यिक और शैक्षिक योगदान को मान्यता मिलती है और विभिन्न भाषाई और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों के बीच संवाद को प्रोत्साहन मिल रहा है ।

आर्थिक अवसर:

हिंदी की वैश्विक उपस्थिति और प्रचार से व्यापारिक और आर्थिक अवसरों की वृद्धि हो रही है। कंपनियाँ और निवेशक हिंदी भाषी बाजार में प्रवेश और निवेश के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक सहयोग और विकास को बढ़ावा मिल रहा है।

सांस्कृतिक विविधता का सम्मान:

हिंदी के वैश्विक प्रचार से सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान बढ़ता है। यह विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच समझ और सहयोग को बढ़ावा देता है, जो वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक समृद्धि और विविधता को प्रोत्साहित करता है।

विश्व हिंदी दिवस का कूटनीतिक, सामरिक, और वैश्विक लाभ महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारत के सांस्कृतिक और भाषायी योगदान को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है, बल्कि कूटनीतिक और सामरिक संबंधों को भी सुदृढ़ करता है। साथ ही, यह वैश्विक सांस्कृतिक समन्वय, शैक्षिक और साहित्यिक योगदान, और आर्थिक अवसरों को भी बढ़ावा देता है। इस प्रकार, विश्व हिंदी दिवस का प्रचार और मनाना वैश्विक समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और विभिन्न दृष्टिकोणों से लाभकारी है।

भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदी की स्थिति

1.भारत में हिंदी की स्थिति

राजभाषा की स्थिति:
भारत में हिंदी, 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक है और यह भारत की राजभाषा है। संविधान के अनुसार, हिंदी को केंद्र सरकार की मुख्य राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदी को सरकारी संचार, दस्तावेज़ों, और विधायिकाओं में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। आज भारत के कई न्यायलयों में निर्णय आने का कार्य हिंदी में आरम्भ हो चुका है जनपद स्तर से लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक आज एक प्रारम्भिक अवस्था में हिंदी में वाद विवाद एवं लेखन का कार्य हिंदी में आरंभ हो चुका है ।

शिक्षा और साहित्य:

भारत के स्कूलों और कॉलेजों में हिंदी एक अनिवार्य या वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। हिंदी साहित्य, कविता, उपन्यास, और नाटक भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हिंदी के लेखक कवि जैसे भारतेंदु हरिश्चंद्र इन्हें तो आधुनिक हिंदी के जनक के रूप में देखा जाता है , प्रेमचंद, अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” माखनलाल चतुर्वेदी, सुमित्रानंदन पंत, धर्मवीर भारती, भारतभूषण , कबीर , तुलसी , मीरा बाई, सूरदास, नागार्जुन ,चंदरबरदाई, रहीम ,रसखान , महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, मैथलीशरण गुप्त , सुर्यकांत त्रिपाठी “निराला”, हरिवंशराय बच्चन, सुभद्रा कुमारी चौहान, रामधारी सिंह दिनकर, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे हिंदी के सौर मंडल में असंख्य सितारों के गिनाएं जा सकते हैं जिन्होंने हिंदी के भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। वर्तमान में भारत मे बहुतायत विश्विद्यालयों में राजभाषा विभाग की स्थापना की की जा रही है सम्भवतः जिसका लाभ हिंदी को स्वभाविक रूप से मिलेगा ।

मीडिया और मनोरंजन:

हिंदी फिल्मों (बॉलीवुड), टेलीविजन धारावाहिकों, और समाचार पत्रिकाओं ने भारत में व्यापक लोकप्रियता प्राप्त की है। हिंदी फिल्म उद्योग का वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव है, और यह भारतीय सांस्कृतिक पहचान का एक प्रमुख हिस्सा है। आज भी फ़िल्म जगत में हिंदी के लेखन करने वाले प्रदीप जैसे कालजयि रचनाकरों के गीत अमर हैं भारतीय सिनेमा जगत कर हिंदी को वैश्विक पहचान एवं स्वरूप प्रदान करने में जो योगदान है उसे भी अनदेखा नही किया जा सकता है ।

भाषाई विविधता:

भारत में कई भाषाएँ और बोलियाँ हैं, लेकिन हिंदी, विशेषकर उत्तर और मध्य भारत में, एक प्रमुख संपर्क भाषा के रूप में कार्य करती है। हिंदी की कई बोलियाँ और उपभाषाएँ हैं, जो क्षेत्रीय विविधता को दर्शाती हैं।

2.भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदी की स्थिति

नेपाल:
नेपाल में हिंदी एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और भाषायी सेतु है, विशेषकर नेपाली और हिंदी बोलने वाले लोगों के बीच। नेपाल में हिंदी की व्यापकता सीमित है, लेकिन यह नेपाली मीडिया, शिक्षा, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में देखा जा सकता है। नेपाली नागरिक हिंदी को एक महत्वपूर्ण भाषा मानते हैं और कई नेपाली हिंदी सिनेमा और साहित्य को पसंद करते हैं।

पाकिस्तान:
पाकिस्तान में हिंदी की स्थिति सीमित है, क्योंकि वहां उर्दू और पंजाबी प्रमुख भाषाएँ हैं। हालांकि, पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में, विशेषकर कराची में, हिंदी और हिंदी साहित्य के प्रति रुचि है, और यह भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से प्रकट होती है।

बांग्लादेश:
बांग्लादेश में बांग्ला भाषा प्रबल है, लेकिन हिंदी भी वहां की सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में शामिल है। बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में हिंदी फिल्मों और साहित्य का प्रभाव देखा जाता है, हालांकि यह सीमित दायरे में है।

मालदीव:
मालदीव में मालदीवी भाषा (ढिवेही) प्रमुख है, लेकिन हिंदी को मालदीव में भारतीय फिल्मों, पर्यटन, और सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से जाना जाता है। हिंदी का स्थानीय प्रभाव सीमित है, लेकिन भारतीय पर्यटक और प्रवासी भारतीय वहां हिंदी का उपयोग करते हैं।

3.हिंदी के भविष्य की दिशा

विस्तार एवं प्रोत्साहन:
भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। हिंदी के शिक्षा, मीडिया, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से इसका विस्तार और प्रोत्साहन किया जा रहा है।

डिजिटल युग में हिंदी:

डिजिटल माध्यमों पर हिंदी की उपस्थिति बढ़ रही है, जिसमें हिंदी वेबसाइट्स, सोशल मीडिया, और डिजिटल सामग्री (कंटेंट) शामिल हैं। यह हिंदी को एक वैश्विक और आधुनिक भाषा के रूप में स्थापित कर रहा है।

भाषायी विविधता का सम्मान:

हिंदी के साथ-साथ अन्य भाषाओं और बोलियों का भी सम्मान और संरक्षण आवश्यक है। भारत और उपमहाद्वीप में भाषायी विविधता को बनाए रखने के साथ हिंदी का प्रचार और विकास किया जा रहा है। भारत और भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदी की स्थिति विविध और जटिल है। भारत में हिंदी एक प्रमुख और सक्रिय भाषा है, जबकि उपमहाद्वीप के अन्य देशों में इसकी स्थिति सीमित और सांस्कृतिक संदर्भित है। हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है, और इसके प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे यह भाषा वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाए रखे और भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बने रहे।

पश्चिमी देशों और यूरोप में हिंदी की स्थिति

1.पश्चिमी देशों में हिंदी की स्थिति

संयुक्त राज्य अमेरिका:

अमेरिका में हिंदी की उपस्थिति बढ़ रही है, विशेष रूप से भारतीय प्रवासी समुदाय की बढ़ती संख्या के कारण। कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा का पाठ्यक्रम उपलब्ध है, और हिंदी फिल्मों, संगीत, और साहित्य की लोकप्रियता भी बढ़ रही है। भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों और समुदायों द्वारा हिंदी कक्षाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, और त्योहारों का आयोजन किया जाता है, जो हिंदी के प्रचार में सहायक हैं।

कनाडा:
कनाडा में भी हिंदी एक महत्वपूर्ण भाषा है, विशेष रूप से भारतीय समुदाय की उपस्थिति के कारण। कनाडा के कुछ स्कूलों और विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है, और भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम और त्योहार कनाडा में नियमित रूप से मनाए जाते हैं। हिंदी फिल्मों और संगीत का भी कनाडा में अच्छा खासा प्रभाव है।

ऑस्ट्रेलिया:

ऑस्ट्रेलिया में हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है, जहाँ भारतीय प्रवासी समुदाय की संख्या में वृद्धि हो रही है। कुछ ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों में हिंदी को एक विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है। हिंदी मीडिया और सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी ऑस्ट्रेलिया में लोकप्रिय हो रही हैं।

यूके (ब्रिटेन):

ब्रिटेन में हिंदी का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और शैक्षिक स्थान है। यहाँ कई स्कूलों और विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है, और भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम और फिल्में व्यापक रूप से लोकप्रिय हैं। ब्रिटेन में हिंदी की उपस्थिति और प्रभाव भारतीय समुदाय के साथ सांस्कृतिक और भाषायी कनेक्शन को मजबूत करता है।

2.यूरोप में हिंदी की स्थिति

जर्मनी:

जर्मनी में हिंदी की उपस्थिति बढ़ रही है, और वहाँ कुछ विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्ययन के लिए पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। जर्मनी में भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम और हिंदी फिल्म समारोहों का आयोजन भी होता है। हालांकि, हिंदी की व्यापकता सीमित है, लेकिन भारतीय जनमानस की बढ़ती संख्या के कारण इसका प्रचार बढ़ रहा है।

फ्रांस:

फ्रांस में हिंदी की स्थिति सीमित है, परन्तु हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति रुचि बढ़ रही है। कुछ फ्रांसीसी विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्ययन के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं, और भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे कि फिल्म फेस्टिवल और सांस्कृतिक प्रदर्शनी, आयोजित किए जाते हैं।

स्पेन:

स्पेन में हिंदी का प्रभाव अभी सीमित है। हालांकि, कुछ विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्ययन के पाठ्यक्रम हैं, और भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम और फिल्में स्पेन में भारतीय संस्कृति को प्रस्तुत करती हैं।

नीदरलैंड्स:

नीदरलैंड्स में भी हिंदी का अध्ययन किया जाता है, लेकिन इसकी उपस्थिति कम है। नीदरलैंड्स के विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं, और भारतीय सांस्कृतिक गतिविधियाँ और फिल्में भी वहाँ आयोजित होती हैं।

3.हिंदी के प्रचार के प्रयास

शैक्षिक संस्थान और पाठ्यक्रम:

पश्चिमी देशों और यूरोप में हिंदी की पढ़ाई और अनुसंधान के लिए विभिन्न शैक्षिक संस्थान और विश्वविद्यालय काम कर रहे हैं। हिंदी पाठ्यक्रम और भाषा कार्यक्रमों की स्थापना से हिंदी के अध्ययन को बढ़ावा मिल रहा है। समय समय पर भारत से भी हिंदी के विद्वान व् हिंदी प्रेमी जन प्रवासों क माध्यम से हिंदी का प्रचार एवं इसके निम्मित कार्यक्रम वैचारिक मंत्रणा संगोष्ठियों आदि का आयोजन करते रहते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम:

भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों और संगठनों द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम, फिल्म फेस्टिवल, और त्यौहार हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को पश्चिमी देशों और यूरोप में प्रस्तुत करते हैं।

डिजिटल और मीडिया प्रभाव:

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और मीडिया के माध्यम से हिंदी की उपस्थिति बढ़ रही है। हिंदी फिल्में, संगीत, और साहित्य ऑनलाइन उपलब्ध हैं, जिससे हिंदी की पहुंच और प्रभाव बढ़ रहा है।

पश्चिमी देशों और यूरोप में हिंदी की स्थिति विविध है। कुछ देशों में हिंदी की उपस्थिति और प्रभाव बढ़ रहा है, जबकि अन्य में यह सीमित है। भारतीय प्रवासी समुदाय की उपस्थिति, शैक्षिक और सांस्कृतिक प्रयास, और डिजिटल मीडिया के माध्यम से हिंदी का प्रचार बढ़ रहा है। हिंदी की वैश्विक उपस्थिति और महत्व को समझते हुए, इन क्षेत्रों में इसके विकास और विस्तार के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

मिडिल ईस्ट और अरब देशों में हिंदी की स्थिति

1.संयुक्त अरब अमीरात (UAE)

प्रमुख भाषाई स्थिति:

UAE में हिंदी की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत है, क्योंकि यहाँ एक बड़ा भारतीय प्रवासी समुदाय रहता है। हिंदी, भारतीय डायस्पोरा के बीच एक प्रमुख संचार भाषा है।

शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ:

UAE में कई भारतीय स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है। साथ ही, भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम, फिल्म फेस्टिवल, और त्योहार भी आयोजित किए जाते हैं, जो हिंदी की सांस्कृतिक उपस्थिति को बढ़ावा देते हैं।

मीडिया और मनोरंजन:

UAE में हिंदी टीवी चैनल्स, रेडियो स्टेशन, और फिल्मों की व्यापक पहुँच है, जो भारतीय समुदाय के बीच लोकप्रिय हैं।

2.सऊदी अरब

प्रवासी समुदाय की भूमिका:

सऊदी अरब में भारतीय प्रवासी कामकाजी समुदाय की बड़ी संख्या है, जिनमें से कई हिंदी बोलते हैं। हिंदी, इन प्रवासियों के बीच संवाद का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

शैक्षिक स्थिति:

सऊदी अरब में हिंदी की शैक्षिक उपस्थिति सीमित है, लेकिन कुछ भारतीय स्कूलों में हिंदी को पढ़ाया जाता है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम:

हिंदी फिल्मों और भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सऊदी अरब में सीमित लेकिन महत्वपूर्ण उपस्थिति है, जो भारतीय संस्कृति को स्थानीय स्तर पर प्रस्तुत करती है।

3.कतर प्रवासी समुदाय:

कतर में भी भारतीय प्रवासी समुदाय बहुत बड़ा है, और हिंदी उनकी प्रमुख भाषाओं में से एक है।

शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ:

कतर में कुछ भारतीय स्कूलों और सांस्कृतिक केंद्रों में हिंदी पढ़ाई जाती है। भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों और फिल्मों की कतर में उपस्थिति बढ़ रही है।

मीडिया:

कतर में हिंदी चैनल्स और भारतीय मीडिया सामग्री उपलब्ध है, जो भारतीय समुदाय के बीच लोकप्रिय है।

4.ओमान

भाषायी स्थिति:

ओमान में भारतीय प्रवासी समुदाय की संख्या भी अच्छी खासी है, और हिंदी वहां भी एक प्रमुख संवाद की भाषा है।

शैक्षिक उपस्थिति:

कुछ भारतीय स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है। हालांकि, ओमान में हिंदी की शैक्षिक उपस्थिति सीमित है।

सांस्कृतिक गतिविधियाँ:

भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रम और फिल्में ओमान में आयोजित होती हैं, जो हिंदी की सांस्कृतिक उपस्थिति को बनाए रखती हैं।

5.बहरीन

प्रवासी समुदाय:

बहरीन में भी भारतीय समुदाय की महत्वपूर्ण उपस्थिति है, जिसमें हिंदी एक प्रमुख भाषा है।

शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ:

बहरीन में भारतीय स्कूलों और सांस्कृतिक केंद्रों में हिंदी को पढ़ाया जाता है और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से इसका प्रचार किया जाता है।

मीडिया:

हिंदी चैनल्स और फिल्में बहरीन में लोकप्रिय हैं, जो भारतीय समुदाय की सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं ।

6.जॉर्डन और लेबनान

सीमित उपस्थिति:

जॉर्डन और लेबनान में हिंदी की उपस्थिति अपेक्षाकृत सीमित है। यहाँ भारतीय प्रवासी समुदाय की संख्या कम है, और हिंदी की शैक्षिक और सांस्कृतिक उपस्थिति भी सीमित है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम:

इन देशों में भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, लेकिन हिंदी की उपस्थिति मुख्य रूप से प्रवासी समुदाय तक ही सीमित है।
मिडिल ईस्ट और अरब देशों में हिंदी की स्थिति विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न है। जहाँ कुछ देशों में हिंदी की उपस्थिति और प्रभाव मजबूत है, वहाँ अन्य देशों में इसकी स्थिति सीमित है। भारतीय प्रवासी समुदाय के कारण हिंदी का उपयोग इन क्षेत्रों में सामान्य है, विशेषकर शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों में। हालांकि, इन देशों में हिंदी की शैक्षिक और सांस्कृतिक उपस्थिति को बढ़ावा देने के लिए और अधिक प्रयास की आवश्यकता है।

हिंदी का विश्वभर में विभिन्न देशों में विभिन्न स्तरों पर उपयोग और शिक्षा की स्थिति निम्नलिखित है:

1.नेपाल:
: यहाँ हिंदी की शिक्षा प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक उपलब्ध है। हिंदी को एक महत्वपूर्ण भाषा माना जाता है, और कई विद्यालयों और महाविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है।

2.मॉरीशस:

हिंदी यहाँ के शैक्षिक संस्थानों में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई जाती है। महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भी हिंदी की शिक्षा उपलब्ध है।

3.फिजी:

हिंदी को एक प्रमुख भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहाँ हिंदी विद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती है और विश्वविद्यालयों में भी हिंदी के पाठ्यक्रम होते हैं।

4.सुरिनाम:
हिंदी की शिक्षा यहाँ के विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में होती है, विशेषकर भारतीय समुदाय के बीच।

5.गायाना:

यहाँ भी हिंदी को एक प्रमुख भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, और इसे विभिन्न शिक्षा स्तरों पर पढ़ाया जाता है।

6.त्रिनिदाद और टोबैगो:

यहाँ भी हिंदी की शिक्षा प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर उपलब्ध है, और कुछ उच्च शिक्षण संस्थानों में भी हिंदी के पाठ्यक्रम हैं।

7.अमेरिका:

कई भारतीय समुदाय वाले क्षेत्रों में हिंदी की शिक्षा उपलब्ध है। हिंदी भाषा के पाठ्यक्रम कुछ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में लागू हैं।

8.यूरोप:

ब्रिटेन, जर्मनी, और फ्रांस जैसे देशों में हिंदी के पाठ्यक्रम कुछ विश्वविद्यालयों और संस्थानों में उपलब्ध हैं, जहां भारतीय भाषाओं और साहित्य पर अध्ययन होता है।

9.ऑस्ट्रेलिया:

यहाँ भी कुछ विश्वविद्यालयों में हिंदी के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं, जो भारतीय संस्कृति और भाषा में रुचि रखने वालों के लिए हैं।

इन देशों में हिंदी की शिक्षा और स्थिति स्थानीय आवश्यकता , भारतीय प्रवासी समुदाय के आकार, और स्थानीय शैक्षिक नीतियों पर निर्भर करती है।

10.चीन

चीन में हिंदी की स्थिति अपेक्षाकृत सीमित है, लेकिन यह धीरे-धीरे बढ़ रही है। यहाँ हिंदी की स्थिति निम्नलिखित है:

1.शिक्षा:

कुछ प्रमुख 17 चीनी विश्वविद्यालयों, जैसे कि बीजिंग भाषा और संस्कृति विश्वविद्यालय (BLCU) और शंघाई जियाओ टोंग विश्वविद्यालय, में हिंदी भाषा और साहित्य के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। ये पाठ्यक्रम हिंदी की मूल बातें, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन पर केंद्रित होते हैं।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान:

चीन में हिंदी की पढ़ाई भारतीय और चीनी सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के प्रयास का हिस्सा है। इससे चीन में हिंदी जानने वाले पेशेवरों की मांग बढ़ रही है, विशेषकर व्यापार और दूतावास संबंधी कामकाज में।

2.भारतीय समुदाय:

चीन में भारतीय प्रवासी समुदाय भी हिंदी के प्रसार में एक भूमिका निभाता है। भारतीय कंपनियों और दूतावासों में हिंदी का उपयोग सामान्य है।

4.अन्य प्रयास:

चीन में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए भारतीय दूतावास और सांस्कृतिक संस्थान विभिन्न कार्यक्रम और पाठ्यक्रम आयोजित करते हैं।
समग्र रूप से, चीन में हिंदी की स्थिति सीमित है, लेकिन शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से इसे बढ़ावा देने के प्रयास जारी है ।

रूस में हिंदी

शिक्षा
रूस में हिंदी को कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है।

मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी (Lomonosov Moscow State University) –

यहाँ हिंदी के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं और यह सबसे प्रमुख संस्थान हैं जहाँ हिंदी की शिक्षा दी जाती है।

पिटर्सबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी (Saint Petersburg State University) –

इस विश्वविद्यालय में भी हिंदी भाषा और साहित्य पर अध्ययन किया जा सकता है।

मास्को स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस (MGIMO)
यहाँ भी हिंदी का अध्ययन किया जाता है, विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में।

व्यापार

रूस में व्यापारिक संदर्भ में हिंदी का उपयोग अपेक्षाकृत कम है। रूस और भारत के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत होते जा रहे हैं,लेकिन आमतौर पर अंग्रेजी और रूसी भाषाओं का ही प्रयोग होता है। फिर भी, भारतीय कंपनियों के रूस में व्यापारिक गतिविधियों के विस्तार के साथ हिंदी का कुछ उपयोग हो सकता है, विशेषकर भारतीय कंपनियों के प्रतिनिधियों और स्थानीय साझेदारों के बीच।

अंतरराष्ट्रीय नीति

रूस और भारत के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हिंदी का महत्व बढ़ रहा है। दोनों देशों के बीच राजनयिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों में हिंदी का उपयोग होता है। भारतीय उच्चाधिकारियों के रूस दौरे और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय बैठकों में हिंदी का प्रयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके अलावा, दोनों देशों के आपसी संबंधों में सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान में हिंदी की भूमिका है।

कुल मिलाकर, रूस में हिंदी का स्थिति मुख्यतः शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान व्यापार और अंतरराष्ट्रीय नीति में इसका उपयोग निरंतर बढ़ रहा है

जापान में हिंदी

शिक्षा

जापान में हिंदी की शिक्षा मुख्यत कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों और संस्थानों में प्रदान की जाती है

टोक्यो विश्वविद्यालय (University of Tokyo)

यहाँ हिंदी भाषा और साहित्य पर अध्ययन के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।

क्योटो विश्वविद्यालय (Kyoto University)

हिंदी के अध्ययन के लिए यहाँ पाठ्यक्रम और शोध की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

ओसाका विश्वविद्यालय (Osaka University)

हिंदी भाषा पर यहाँ भी अध्ययन की व्यवस्था है।
इन विश्वविद्यालयों में हिंदी को मुख्यतः भारतीय साहित्य, संस्कृति, और भाषाशास्त्र के अध्ययन के लिए शामिल किया गया है।

व्यापार

जापान में व्यापारिक संदर्भ में हिंदी का उपयोग बढ़ रहा है। जापान और भारत के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हो रहे हैं, लेकिन आमतौर पर अंग्रेजी का उपयोग प्राथमिक भाषा के रूप में होता रहा है। फिर भी, भारतीय कंपनियों और जापानी कंपनियों के बीच व्यापारिक संबंधों के विस्तार के साथ हिंदी का उपयोग कुछ व्यापारिक संवादों में हो रहा है।

अंतरराष्ट्रीय नीति

जापान और भारत के बीच अंतरराष्ट्रीय संबंधों में हिंदी का सीमित उपयोग होता रहा है। परंतु वर्तमान में भारतीय राजनयिक और सांस्कृतिक मिशन के दौरान हिंदी का प्रयोग बढ़ है, विशेषकर जब भारत से उच्चस्तरीय प्रतिनिधि जापान का दौरा करते हैं। हालांकि, जापान की आधिकारिक भाषा जापानी है और आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय संवाद और नीति में अब अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी को भी वरियता प्राप्त हो रही है।

कुल मिलाकर, जापान में हिंदी का मुख्य उपयोग शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में है, जबकि व्यापार और अंतरराष्ट्रीय नीति में इसका उपयोग बढ़ता जा रहा है ।

आज वर्तमान परिपेक्ष्य की यदि बात की जाये तो पिछले कुछ वर्षों में भारत में एवं विश्व में हिंदी का स्थान बढ़ा है व्यापक हुआ हिंदी इंटरनेट अथवा सोशल मीडिया पर लिखे जान वाली सबसे बड़ी भाषा भी बन चुकी है । भारत के हिंदी के उत्थान के लिए वर्तमान की सरकार एवं बहुत से स्वयं सेवी संघटन भी प्रयासरत हैं और मैं भी यही आशा करता हूँ कि भाषाई सौरमंडल का सबसे अधिक दैदिप्यमान सूर्य हिंदी ही बनेगी । हिंदी अभी अपने विकासक्रम में हैं अभी संगणक अर्थात कम्प्यूटर की भाषा के रूप में भी अंग्रेजी भाषा की भांति स्थापित करना होगा तभी वास्तविक हिंदी का उद्देश्य पुरा होगा एवं इसी के साथ भारत का भी गौरव बढ़ेगा क्यंकि यदि कम्प्यूटर की भाषा हिंदी बन जाये तो अंग्रेजी की भांति स्वयं ही पुराविश्व हिंदी सीखने लगेगा हमारे देश की कम्प्यूटर में काम करने वालों विद्वानों को इस पर अपनी शोध करनी चाहिए और यदि शोध चल रही है तो उसे तीव्रता प्रदान किया जाना आवश्यक है । इसी चिंतन भाव के साथ इस बार अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस पर हिंदी को ये अपनी अध्धयनाँनजली अर्पित कर रहा हूँ ।

scroll to top