भेड़ियों के हमले से कैसे मिले निजात

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उत्तर प्रदेश में मनुष्य-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए वन्यजीव संगठन और वन विभाग एकजुट हुए!

वाइल्डलाइफ एसओएस अन्य वन्यजीव संरक्षण संगठनों के साथ, बहराइच में घातक भेड़ियों के हमलों की हालिया घटनाओं को संबोधित करने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है। विशेषज्ञ बचाव दल को क्षेत्र में तैनात किया गया है, जो भेड़ियों को पकड़ने और स्थानीय मानव आबादी के बीच चल रहे संघर्ष को कम करने में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान कर रहे हैं।

यह एक ऐसा अभियान है जो वन्यजीवों के संरक्षण और सुरक्षा की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। भेड़िये, अपनी प्रतिष्ठा के बावजूद, स्वाभाविक रूप से शर्मीले जानवर हैं।

वे आम तौर पर मानवों से संपर्क में आने से बचते हैं और तब तक हमला नहीं करते जब तक कि उन्हें अपनी जान बचा कर भागने का मौका ना दिया जाए। हाल की घटनाओं में, भेड़ियों का व्यवहार निवास स्थान में गड़बड़ी और शिकार की कमी के कारण रक्षात्मक प्रतिक्रिया होने की संभावना है। ऐसी स्थितिया मानव -वन्यजीव संघर्ष के मामलों को जन्म दे सकती है।

कुछ गलत धारणाओं को ध्यान में रखते हुए, भेड़िये कभी भी बदला लेने के लिए हमला नहीं करते। उनका प्राथमिक उद्देश्य खुद जीवित रहना है और अपने संग साथियों को बचाना है। बहराइच में हो रही वर्तमान स्थिति जटिल है और इसे प्रभावी ढंग से हल करने के लिए इन जंगली जानवरों के व्यवहार की समझ को पढना आवश्यक है।

वाइल्डलाइफ एसओएस के सह-संस्थापक और सीईओ कार्तिक सत्यनारायण बताते हैं, “भय फैलाने और असत्यापित अफवाहें फैलाने से स्थिति और खराब होती है और अनावश्यक दहशत पैदा होती है। यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने कार्यों को तथ्यों पर आधारित करें और असत्यापित बुद्धि को कहानी चलाने देने के बजाये समाधान खोजने के लिए सहयोग करें।

बैजूराज एम.वी., डायरेक्टर कंज़रवेशन प्रोजेक्ट्स, वाइल्डलाइफ एसओएस ने कहा, “हमारी टीम हर संभव तरीके से वन विभाग की सहायता करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। हम भेड़ियों को पकड़ने और सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने के लिए और भविष्य में होने वाले ऐसे संघर्षों को रोकने में मदद करने वाले उपायों को लागू करने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं।

वरिष्ठ वैज्ञानिक और वन्यजीव संरक्षण में योग्यता हासिल, यादवेंद्रदेव विक्रमसिंह झाला ने बताया, “खरगोश और अन्य शिकार की कमी और असुरक्षित बच्चों की कमजोरी के कारण, भेड़िये या कुछ नरभक्षी आसान शिकार को निशाना बनाना शुरू कर चुके हैं। हमें इस समस्या को दूर करके इसका समाधान करना होगा। भेडियों की बुद्धिमत्ता को समझना विशेष कारण हैं। पहले सही जानवर की सही पहचान करना आवश्यक है जिससे आगे की कार्यवाही की जा सके।

भारतीय भेड़ियों की आबादी वर्तमान में लगभग 3,100 के करीब अनुमानित है। भेड़ियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूचीI के तहत लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया।

Agra Metro Progresses: UPMRC Initiates U-Girder Casting for Elevated Section

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The Uttar Pradesh Metro Rail Corporation Ltd. (UPMRC) has commenced the casting of U-girders for the elevated balance section of the Agra Metro Corridor, which will stretch from Guru Ka Taal to Sikandara. This development signifies a significant advancement in the project’s timeline.

UPMRC has kickstarted the casting of U-girders at the Casting Yard near Runakta, following a pooja ceremony officiated by PD Agra.

A total of 172 U-girders are set to be installed for the 3 km elevated balance segment.
These U-girders will be prefabricated and positioned atop the viaduct’s piers, providing support for the Metro track.

The underground portion from SN Medical College to RBS College is also nearing completion, with tunneling activities progressing swiftly.

UPMRC’s Managing Director, Sushil Kumar, has reiterated the team’s dedication to delivering the project on schedule, ensuring prompt operations along the entire initial corridor.

The Agra Metro project is steadily advancing, with the UPMRC working diligently to meet its deadline and bring a world-class transportation system to the city.

देवभूमि को आखिर कौन कर रहा है बरबाद ?

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हिमालय की गोद में बसे भारत के दो छोटे राज्य हिमांचल और उत्तराखंड सनातन ऋषि परम्परा के साक्षी तथा वाहक और सरलमना संतोषी निवासियों के कारण देवभूमि कहे जाते हैं। कठिन भौगोलिक परिस्थियों वाले वाले ये राज्य प्रायः ही प्राकृतिक आपदाओं से जूझते हैं किंतु अब यह दोनों ही राज्य इस्लामिक जिहाद का गढ़़़ भी बनते जा रहे हैं। दोनों ही राज्यों में बांगलादेशी व रोहिंग्या का दायरा बढ़ता जा रहा है। घुसपैठिये धीरे- धीरे जल, जंगल और जमीन के साथ लव जिहाद तथा अन्य माध्यमों निरंतर धर्मान्तरण का प्रयास भी कर रहे हैं। दोनों ही राज्य हिन्दू संस्कृति की दृष्टि से भीषण खतरे में हैं।

हिमांचल के जिस क्षेत्र में जहां 95 प्रतिशत हिंदू आबादी रहा करती थी वहां पर पांच मंजिल की अवैध मस्जिद बन चुकी है, मस्जिद में आने वाले मुसलमानों ने स्थानीय हिन्दू परिवारों का जीना दूभर कर दिया है, हिन्दू सड़क पर हैं लेकिन सरकार सो रही है। प्रश्न है किआखिर वे कौन से तत्व हैं जो देवभूमि को बरबाद करने पर तुले हुए हैं? उत्तराखंड और हिमाचल दोनो ही राज्य कानून और व्यवस्था के मामले में अच्छे राज्य गिने जाते थे, चोरी-चकारी, छीना-झपटी जैसी चीजें वहां होती ही नहीं थीं किंतु घुसपैठियों की बढती संख्या के साथ साथ अब आपराधिक घटनाओं की बाढ़ सी आ गई है।

दोनों ही राज्यों में अवैध मस्जिदों और मजारों को लेकर लगातार विवाद हो रहे हैं ।उत्तराखंड के जंगलों में अवैध मजारें बना दी गईं, जब सरकारी प्रशासन को पता चला तो वहां पर बुलडोजर चला कर मजारों को ध्वस्त किया गया। ये सभी मजारें अवैध और सुनियोजित साजिश के तहत जमीन जिहाद का एक हिस्सा थीं। इसी क्रम में ताजा प्रकरण हिमांचल प्रदेश के संजौली का है, जहां एक पांच मंजिला अवैध मस्जिद निर्माण को लेकर स्थानीय जनता आंदोलन कर रही है और सुरक्षा कारणों से कांग्रेस सरकार से मस्जिद को ध्वस्त करने की मांग कर रही है क्योंकि मामला कोर्ट में भी है इसलिए प्रशासन आराम से बैठा है।
संजौली की यह मस्जिद सरकारी जमीन पर बनी है यह राजधानी शिमला के माल रोड से लगभग पांच किलोमीटर दूर है। इस मस्जिद में आने वाले मुसलमाओं में बड़ी संख्या में रोहिंग्या होने के आरोप हैं। अगर ये आरोप सही है तो प्रश्न उठता है कि बांग्लादेश से आने वाले रोहिंग्या 95 प्रतिशत आबादी वाले हिंदू इलाके में पहुंच कैसे गये ?
महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने ही विधानसभा में इस मस्जिद को अवैध बताया और इसे गिराने की मांग करते हुए कहा कि संजोली बाजार में महिलाओं का चलना मुश्किल हो गया है, चोरियां हो रही हैं, लव जिहाद जैसी घटनाएं हो रही हैं जो प्रदेश के लिए खतरनाक हैं । दूसरी ओर वक्फ बोर्ड कह रहा है कि ये जमीन सरकार की नहीं अपितु उसकी है। तथ्य ये है कि वर्ष 1967 के सरकारी दस्तावेज इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये जमीन सरकार की थी। कुछ सालों पहले तक यह छोटी सी मस्जिद थी जो अब पांच मंजिल की बन चुकी है। मस्जिद का मामला कोर्ट में 14 वर्षों से विचाराधीन है और मुकदमे की 44 बार सुनवाई हो चुकी है।
पर्वतीय प्रदेशों हिमांचल और उत्तखंड में सुनियोजित तरीके से जनसांख्यिकीय सतुंलन बदलने का षड्यंत्र –
हिमांचल का संजोली मस्जिद विवाद गहरा जाने के बाद यह बात जोर पकड़ रही है कि क्या पर्वतीय प्रदेशों में जनसांख्यिकीय सतुंलन बदलने का सुनियोजित षड्यंत्र चल रहा है ? दोनों ही प्रान्तों में मुसलमानों, मजारों और मस्जिदों की संख्या तेजी से बढ़ रही है? इन प्रान्तों में हिन्दुओं की आबादी लगातर कम हुई है जबकि मुसलमानों की आबादी में लगातार वृद्धि हुई है। वर्ष 1951 में हिमांचल प्रदेश में हिन्दुओ की आबादी 98.14 प्रतिशत थी जो वर्ष 2011 में 95.2 प्रतिशत हो गई थी।

अलग- अलग समय की जनगणना से ये पता चलता है कि जहां एक तरफ हिमांचल प्रदेश में हिन्दुओं की आबादी लगातार कम हुई है और वहीं मुसलमानों की आबादी लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2011 से हमारे देश में जनगणना नहीं हुई है और पिछले 13 वर्षो में हिमांचल प्रदेश की डेमोग्राफी कितनी बदली हे अभी इसके सटीक आंकड़े हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं।
चार साल में बढ़ गई 12 मस्जिदें – स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले 10 से 12 वर्षों में मुसलमानों की आबादी तेजी से बढ़ी है और इसका अनुमान हिमांचल में बनी नई मस्जिदों से लगाया जा सकता है। हिमांचल प्रदेश हिंदू जागरण मंच का दावा है कि कोविड से पहले प्रदेश में 393 मस्जिदें थीं जिनकी संख्या कोविड के बाद 520 हो गईं। इन सभी 127 मस्जिदों का निर्माण कोविड के समय हुआ था। ज्ञातव्य है कि कोविड के दौरान लाकडाउन के समय नियमों को तोड़ने की सबसे अधिक घटनाएं मुस्लिम सम्प्रदाय द्वारा ही की गई थीं।

हिमांचल की राजधानी शिमला में पहली बार सांम्प्रादायिक तनाव की स्थिति पैदा हुई है और हिन्दू जनमानस को अपनी सुरक्षा के लिए सड़क उतरना पड़ा है। हिन्दुओं की एकमात्र मांग है कि पांच मंजिला अवैध मस्जिद को ध्वस्त किया जाये ओर बांग्लादेशी व रोहिंग्याओ घुसपैठियों को बाहर किया जाये। अब कांग्रेस सरकार के मंत्री ही अपनी सरकार से विनती कर रहे हैं कि इस बात की जांच कराई जाए कि अचानक प्रदेश में बाहरी मुसलमानों की संख्या कैसे बढ़ गई? रेहड़ी पटरी और बाजारों पर रोहिंग्या मुसलमानों का कब्जा कैसे हो गया? इस पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने ही मंत्री को नसीहत दे डाली कि मंत्रियों व विधयाकों को इस तरह के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए।
आंदोलनकारी जनता कह रही है, अगर सरकार इस मस्जिद को नहीं गिराती हे तो वह स्वयं आगे आगे आकर इसे गिरा देंगे। ज्ञातव्य है कि शिमला में ढाई मंजिलसे अधिक ऊँची इमारत बनाने पर प्रतिबन्ध है। देवभूमि क्षेत्रीय संगठन के नेतृत्व तले प्रदर्शनकारियों ने ये यह साफ कर दिया है कि उन्हें शिमला के स्थानीय मुसलमानों से कोई परेशानी नहीं है लेकिन रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमान समस्या बन गये हैं। प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना है कि शिमला की सड़कों पर लगने वाली दुकानों पर रोहिंग्या मुसलमानों ने कब्जा कर लिया है वे हिन्दुओं को दुकानें नहीं लगाने देते, बहन बेटियों को छेड़ते हैं, विरोध करने पर खून खराबे पर उतर आते हैं।

फैसला होगा उसका पालन सरकार करायेगी ?

अब इस प्रकरण पर सभी मुस्लिम हितैषी कूद पड़े हैं, एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने राहुल गांधी से सवाल पूछा कि, “मुहब्बत की दुकान में इतनी नफरत कहां से आ गई? मस्जिद का मुकदमा कोर्ट में है तो हिंदू उसे गिराने की मांग कर रहे हैं, कांग्रेस के मंत्री उनकी बातों का समर्थन कर रहे हैं। टीवी चैनलों व सोशल मीडिया पर भी बहस प्रारम्भ हो गई है। हर बार की तरह उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी व अन्य क्षेत्रीय दल बहसो में जोरदार ढंग से मुस्लिम तुष्टिकरण कर रहे हैं। संविधान के रक्षक इंडी गठबंधन के सभी दल अवैध मस्जिद को वैध बता रहे हैं और बयान दे रहे हैं कि भारत में कोई भी व्यक्ति कहीं भी किसी भी स्थान पर रह सकता है।

इन परिस्थितियों से स्पष्ट प्रतीत प्रतीत हो रहा है कि भारत में अवैध नागरिकों का प्रवेश कांग्रेस व इंडी गठबंधन के लोग ही करा रहे हैं और डेमोग्राफी बदलने की साजिश रच रहे हैं। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि कांग्रेस मंत्री अनिरूद्द सिंह लव जिहाद और रोहिंग्या घुसपैठियों जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके भाजपा की जुबान बोल रहे हैं।
उत्तराखंड में चार जिलों में डेमोग्राफिक बदलाव – उत्तराखंड के चार जिलों में भी तीव्रता के साथ डेमोग्राफिक बदलाव देखने को मिल रहा है। चार मैदानी जिलों हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर, नैनीताल और देहरादून में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2001 में हरिद्वार में हिन्दुओं की आबादी 65.3 प्रतिशत जो 2011 में घटकर 64.3 प्रतिशत रह गई जबकि मुसलमानों की आबादी में 1.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई और ये 33 से 34.3 प्रतिशत तक पहुंच गई। इसी प्रकार देहरादून में हिन्दुओं की आबादी 0.7 प्रतिशत घट गई । विगत 10 वर्षों में ऊधम सिंह नगर में हिन्दुओं की आबादी 0.4 प्रतिशत कम हो गई जबकि मुसलमानों की आबादी 2 प्रतिशत बढ़ गई।

उत्तराखंड में भी अपराध बढ़ गये हैं जिसमें बालिकाओं के साथ दुष्कर्म व छेड़छाड़, लव जिहाद, लोगों के पर्स व मोबाइल आदि छीनकर भाग जाना, बाजारों में चोरी चकारी जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ गई हैं। अभी हाल ही में कुछ भगवाधारी नकली साधुओं को पकड़ा गया जो वास्तव में बांग्लादेशी रोहिंग्या निकले । एक नकली बाबा बद्रीनाथ धाम को बदरुद्दीन की मजार बता रहा था । हिंदू आस्था के सबसे बड़े केंद्रों को नकली भगवा चोला ओढ़कर मजार व मस्जिद बताया जा रहा है इससे बड़ा षड्यंत्र और क्या होगा ? यही नकली बाबा धार्मिक स्थलों पर माहौल खराब करने की भी साजिश रच रहे हैं। अब यह समय हिन्दुओं के लिए सतर्कता व सजगता का है।

Reviving Hope: Transforming the Fate of Agra’s Ailing Healthcare System

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The Agra Medical College hospital founded in 1854 as Thompson Medical School, is struggling to revive its past glory. The local citizens who have had to experience inconveniences and unsympathetic response of medical professionals, hardly have a kind word to share about the aging institution, now accorded mini AIIMS status.

The government health services in Agra district, catering to a population of around 50 lakh paint a bleak picture of the healthcare sector’s systemic failures and neglect.

Once a beacon of medical education and service, the S.N. Medical College now grapples with a tarnished legacy, plagued by a host of issues that define its current state. Despite its mini-AIIMS status, the institution frequents headlines for all the wrong reasons- ranging from inadequate infrastructure and apathetic medical personnel to reports of corruption, unhelpful staff, departmental disarray, and the proliferation of substandard medicines suppliers.

The sorry state of government health services in Agra district is a poignant reflection of the systemic failures and neglect that plague the healthcare sector in many parts of the country.

The S.N. Medical College, once a beacon of medical education and service, has fallen from grace, its legacy tarnished by a litany of issues that have come to define its present state.

Founded as the Thompson School of Medicine in 1854, the college has a rich history that is sadly overshadowed by its current predicament.

Despite being designated as a mini-AIIMS, the institution is now more often in the news for the wrong reasons. Reports of inadequate infrastructure, a callous attitude among medical personnel, allegations of corruption, unhelpful staff, lack of coordination among departments, and the presence of spurious and substandard medicines have become all too common.

Once a mother institution that produced a steady stream of trained medical professionals who went on to serve as faculty in other esteemed medical colleges across North India, the Agra Medical College now struggles to retain talent. The exodus of skilled medical professionals seeking opportunities in the private sector is a symptom of the larger malaise afflicting public healthcare institutions. The private sector itself, unable to adequately address the newer challenges facing the healthcare landscape, has also fallen short of expectations.

The decline of the Agra Medical College represents a loss not just for the institution itself, but for the entire community it serves. The names of nationally acclaimed doctors like Razdan, Nawal Kishore, Hazra, Verma, Gopal, Awasthy, Malhotra, Nagrath, Chandra, Gautam, Sarkar, Lahri, Maurya, Gupta, Asopa and many others who once brought glory to the institution now seem like distant echoes of a bygone era. Their expertise and dedication have been overshadowed by the prevailing sense of apathy and disarray that characterizes the healthcare system in Agra.

Efforts to revitalize and rejuvenate the S.N. Medical College and similar institutions must address the root causes of their decay. This includes addressing issues of infrastructure, ensuring transparency and accountability in governance, promoting a culture of empathy and professionalism among medical personnel, and establishing robust mechanisms to prevent corruption and malpractice. A renewed focus on research, training, and collaboration with other institutions can help restore the college to its former glory. Moreover, there is a pressing need for greater investment in public health services and a comprehensive overhaul of the healthcare system to meet the evolving needs of the population.

The government must prioritize the provision of quality healthcare for all citizens, regardless of their socio-economic background, and work towards bridging the glaring gaps that have led to the current state of affairs in Agra and beyond. It is crucial for stakeholders at all levels – government authorities, healthcare professionals, civil society organizations, and the general public – to come together and chart a new course for healthcare delivery in Agra district and beyond. Only through collective action and a shared commitment to uphold the principles of equity, accessibility, and quality can we hope to overcome the challenges that have beset the healthcare sector and provide the care and support that every individual deserves.

To regain its lost glory, the S.N. Medical College must undertake a series of comprehensive measures aimed at revitalizing the institution and restoring its reputation as a center of excellence in medical education and healthcare services. By implementing remedial measures and fostering a culture of excellence, innovation, and integrity, the Agra Medical College can begin the journey towards regaining its lost glory and reclaiming its rightful place as an esteemed institution in the field of medical education and healthcare delivery.

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