IFFCO: वैश्विक सहकारिता सम्मेलन – 2024 का आयोजन भारत में

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माननीय केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह आयोजन के प्रेरणास्त्रोत हैं

अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन(आईसीए) विश्वभर की सहकारिताओं की प्रतिनिधि आवाज़ है। यह 1895 में स्थापित एक गैर-लाभकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जो सहकारी सामाजिक उद्यम मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए काम करता है।

दिल्ली। इफको द्वारा अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (आईसीए) और केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय के सहयोग से आईसीए महासभा और वैश्विक सहकारिता सम्मेलन 2024 की मेजबानी की जाएगी। यह आयोजन 25 से 30 नवंबर2024 के दौरान भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित होगा।

वैश्विक सहकारिता आंदोलन के शीर्ष संगठन अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन के 130 साल के लंबे इतिहास में पहली बार भारत में वैश्विक सहकारिता सम्मेलन और महासभा का आयोजन किया जा रहा है।

भारत में वैश्विक सहकारिता सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 (UN IYC 2025) का आधिकारिक शुभारंभ भी होगा।

नई दिल्ली, 9 सितंबर 2024: अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन के 130 साल के लंबे इतिहास में पहली बार इफको की पहल पर भारत द्वारा आईसीए महासभा और वैश्विक सहकारिता सम्मेलन की मेजबानी की जाएगी। आईसीए निदेशक मंडल की 28 जून 2023 को ब्रुसेल्स में आयोजित बैठक के दौरान इफको ने आईसीए महासभा और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी भारत में करने का प्रस्ताव रखा था जिसे निदेशक मंडल के सदस्यों ने सहर्ष मंजूर कर लिया। इसके पश्चात संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया कि भारत में वैश्विक सहकारिता सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का आधिकारिक शुभारंभ भी होगा।
माननीय सहकारिता मंत्री, भारत सरकार, श्री अमित शाह की गरिमामयी उपस्थिति में 25 नवंबर 2024 को शाम 3 बजे कार्यक्रम का शुभारंभ होगा। वे मुख्य अतिथि के रूप में वैश्विक सहकारिता सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करेंगे। इस कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया जाएगा। भारत के माननीय प्रधानमंत्री से इस कार्यक्रम के विधिवत उद्घाटन के लिए अनुरोध किया गया है।

श्री जेरोन डगलस, महानिदेशक-आईसीए ने प्रेस को सूचित किया है कि 25 से 30 नवंबर 2024 तक भारत मंडपम, आईटीपीओ, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम का विषय होगा -‘सहकारिता : सबकी समृद्धि का द्वार’ और इसके उप-विषय होंगे: नीति और उद्यमशील पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाना सभी के लिए समृद्धि बनाने के लिए उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व को पोषित करना सहकारी पहचान की पुनः पुष्टि भविष्य का निर्माण: 21वीं सदी में सबके लिए समृद्धि

श्री जेरोन डगलस ने जोर देकर कहा कि “इफको आईसीए का प्रमुख साझेदार है और इस आयोजन की मेजबानी कर रहा है। वर्ल्ड कोऑपरेटिव मॉनिटर रैंकिंग (टर्नओवर/जीडीपी प्रति व्यक्ति के आधार पर) में लगातार तीन वर्षों तक वह पहले स्थान पर रहा है।”

उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन में भूटान के माननीय प्रधानमंत्री, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक परिषद (UN ECOSOC) के अध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय सहकारी गठबंधन के अध्यक्ष, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि, आईसीए के सदस्य, भारतीय सहकारिता आंदोलन से जुड़े प्रमुख व्यक्तियों तथा 100 से अधिक देशों के प्रतिनिधि के रूप में लगभग 1500 विशिष्ट अतिथियों के भाग लेने की उम्मीद है।

डॉ. आशीष कुमार भुटानी, सचिव, सहकारिता मंत्रालय ने प्रेस को सूचित किया कि इस कार्यक्रम का विषय ‘सहकारिता : सबकी समृद्धि का द्वार’ भारत सरकार के ‘सहकार से समृद्धि’ के नारे के अनुरूप है, जिसका अर्थ है ‘सहकारिता के माध्यम से समृद्धि’। सहकारिता मंत्रालय के गठन के पश्चात श्री अमित शाह के नेतृत्व में सहकारी आंदोलन के सशक्तिकरण हेतु 54 नई पहल शुरू की गई है जो भारतीय सहकारी क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। चाहे पैक्स का कंप्यूटरीकरण हो या ऐसे नए क्षेत्रों में सहकारी समितियों का गठन जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर कोई सहकारी प्रतिनिधित्व नहीं था, इन कदमों से भारत वैश्विक सहकारिता आंदोलन में सर्वाधिक तेजी से बढ़ रहे देशों की कतार में शामिल हो गया है।

इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने कहा कि “इस सम्मेलन का विषय ‘सहकारिता : सबकी समृद्धि का द्वार’ है जो समृद्ध और सुरक्षित सहकारिता आंदोलन के हमारे दीर्घकालिक लक्ष्य के क़रीब है। हमें अपने घर में उन अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों की मेजबानी करने का सम्मान प्राप्त हो रहा है जो विचारों का जीवंत आदान-प्रदान करेंगे।”
इफको ने हमेशा भारतीय किसानों के हित को केंद्र में रखा है, इसी कारण से इस सम्मेलन का उपयोग भारतीय सहकारी उत्पादों और सेवाओं को ‘हाट’ सेटअप में प्रदर्शित करने के लिए किया जाएगा, जिसका थीम भारतीय गांव होगा।

भारतीय सहकारी आंदोलन हमेशा से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सांस्कृतिक रूप से प्रेरित रहा है। इफको की सहायक कंपनी आईएफएफडीसी पिछले वर्षों में कार्बन क्रेडिट अर्जित करने वालों में अग्रणी रही है। भारतीय सहकारी आंदोलन की इस विरासत को जारी रखते हुए यह आयोजन कार्बन न्यूट्रल होगा। संभावित कार्बन उत्सर्जन की भरपाई के लिए 10,000 पीपल (फिकस रेलीजियोसा) के पौधे लगाए जाएंगे।

इफको अपने बोर्ड में महिला निदेशक के लिए सीट आरक्षित करने वाला पहला संगठन है । महिला सहकारों की अधिकतम भागीदारी की प्रतिबद्धता के साथ इफको महिला सहकारिता क्षेत्र की प्रमुख आवाज़ बन गया है। भारतीय सहकारिताओं और वैश्विक सहकारिताओं के बीच परस्पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिए बड़े मेल-जोल सत्र आयोजित किए जाएंगे, जो ‘कॉप-टू-कॉप’ विदेशी व्यापार के विकास को सुनिश्चित करेंगे।

Global Cooperative Conference 2024 in India

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  • Shri Amit Shah, Hon’ble Union Minister for Home Affairs and Cooperation is the Guiding force of the Event
  • IFFCO Ltd. to host the ICA General Assembly and Global Cooperative Conference 2024 in collaboration with ICA and Union Ministry of Cooperation
  • The event is scheduled to be held during 25th to 30th November 2024 at Bharat Mandapam, New Delhi
  • It is for the first time in 130 years long history of International Cooperative Alliance (ICA), the premier body for Global Cooperative movement, that the Global Cooperative Conference and General Assembly is organised in India.
  • Global Cooperative Conference in India will also mark the official launch of UN International Year of Cooperatives – 2025. (UN IYC2025)

New Delhi, September 10th, 2024: First Time in the 130 years long history of International Cooperative Alliance (ICA), the premier body for the Global Cooperative movement, with the initiative of IFFCO, the ICA General Assembly and Global Cooperative Conference will be hosted by India. During ICA Board meeting in Brussels on June 28, 2023, IFFCO proposed hosting the ICA General Assembly and Global Conference in India which was agreed to by the Board members. Further, in meeting held at the headquarters of United Nations Organization (UNO) it was decided that the Global Cooperative Conference in India will also mark the official launch of UN International Year of Cooperatives – 2025. (UN IYC2025)

Shri Amit Shah, Hon’ble Minister of Cooperation, Government of India will grace the event by his august presence on 25th November 2024 at 3 PM. He will chair the inaugural session of the Global Cooperative Conference as the Chief Guest. A commemorative stamp on International Year of Cooperatives – 2025 will also be launched in the event. Hon’ble Prime Minister is also being requested to inaugurate the event.

Mr Jeroen Douglas, DG-ICA informed the press that the event is scheduled to be held from 25th November to 30th November 2024 at Bharat Mandapam, ITPO, Pragati Maidan, New Delhi. He said the theme of the event will be ‘Cooperatives Build Prosperity of All’ and the subthemes will be –
Enabling Policy and Entrepreneurial Ecosystems
Nurturing Purposeful Leadership to Create Prosperity for All
Reaffirming The Cooperative Identity
Shaping the Future: Towards Realizing Prosperity for all in 21st Century.

Mr Jeroen Douglas pressed on the fact that “IFFCO- the host for this event is the prominent partner of ICA and was ranked No. 1 in the World Cooperative Monitor (WCM) rankings for three consecutive years in world (based on Turnover/GDP Per capita).”

He informed that the Hon’ble Prime Minster of Bhutan, President of United Nations Economic Council (UN ECOSOC), President of International Cooperative Alliance, UN Representatives, ICA Members, Luminaries from the Indian Cooperative Movement will be among the 1500 distinguish guests representing over 100 countries are expected to participate in this event.

Dr. Ashish Kumar Bhutani, Secretary Ministry of Cooperation informed the press that Theme of the event ‘Cooperatives Build Prosperity for All’ is in line with the Government of India’s slogan of ‘Sahkar se Samriddhi’ which exactly translates to ‘Prosperity through Cooperation’. With the formation of separate Ministry of Cooperation and Shir Amit Shah at the helm of affairs as the first ever Union Cooperation Minister, Indian Cooperative Sector has achieved new milestones achieving greater contribution in the National GDP by launching 54 initiatives for the growth and development of cooperative movement. Whether it be computerization of PACS or formation of three new cooperatives in the sectors where cooperatives didn’t have a national level presence, all these steps have put India at the forefront of the Global Cooperative movement with India becoming one of the fasting growing cooperative sectors.

Dr. U S Awasthi, MD, IFFCO Ltd. said, “The theme of this conference is ‘Cooperatives Build Prosperity for All’ our long-term aim is to build a cooperative movement that is prosperous and secure. We are honoured to host international delegates in our home for an engaging exchange of ideas.”
IFFCO has always kept the interest of the Indian Farmers at its heart. Which is why this Conference will be used to showcase Indian Cooperatives’ products and services in the ‘Haat’ setup with the theme of Indian Village.

Indian Cooperative movement has always been culturally motivated to protect the environment and IFFCO’s subsidiary IFFDC has been among the leading earners of Carbon Credits in the past years. In continuation of this legacy of the Indian Cooperative Movement, this Event will be Carbon neutral. For compensating the possible carbon emissions, 10,000 Peepal (Ficus Religiosa) saplings will be planted.

Leading voice of Women in the Cooperative sector and first organization to reserve seat for woman Director on the Board, IFFCO has committed to encourage maximum participation of women cooperators. Large Networking sessions will be organized to bolster cooperation among Indian Cooperatives and Global Cooperatives which will ensure growth of Coop-to-Coop overseas business.

आगरा का मेडिकल कॉलेज पहचान के संकट के लिए संघर्षरत

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क्या 1854 से निरंतर सेवा दे रहा आगरा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल अपने अतीत के गौरव को पुन प्राप्त कर सकेगा, या अपनी पहचान के संकट से जूझता रहेगा? ये प्रश्न इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि आगरा के अधिकतर वासिंदे इसकी सेवाओं और व्यवस्थाओं से संतुष्ट नहीं हैं और जो पढ़कर डॉक्टर निकलते हैं वो विश्व पटल पर कोई विशिष्ट कामयाबी के झंडे नहीं गाड़ सके हैं।
१९८० के दशक से पूर्व आगरा मेडिकल कॉलेज के चिकिसकों का एक रूतवा और दबदबा था। आज डेढ़ सौ वर्षों बाद ये संस्थान चौराहे पर अनिश्चितता के साए में खड़ा दिखता है !!

पचास लाख की आबादी को सेवा प्रदान करने वाले आगरा जिले में सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ प्रणालीगत विफलताओं और उपेक्षा की एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती हैं। कभी चिकित्सा शिक्षा और सेवा का प्रतीक रहा एस.एन. मेडिकल कॉलेज अब एक कलंकित विरासत से जूझ रहा है, जो कई मुद्दों से ग्रस्त है जो इसकी वर्तमान स्थिति को परिभाषित करते हैं।

मिनी-एम्स की छवि के बावजूद, संस्थान अक्सर गलत कारणों से सुर्खियों में रहता है – अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे और उदासीन चिकित्सा कर्मियों से लेकर भ्रष्टाचार, बेकार कर्मचारियों, विभागीय अव्यवस्था और घटिया दवाओं के प्रसार की रिपोर्ट तक।

आगरा जिले में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति देश के कई हिस्सों में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में प्रणालीगत विफलताओं और उपेक्षा का एक मार्मिक प्रतिबिंब है। एस.एन. मेडिकल कॉलेज, जो कभी चिकित्सा शिक्षा और सेवा का प्रतीक था, अपनी गरिमा खो चुका है, इसकी विरासत कई मुद्दों के कारण धूमिल हो गई है, जो इसकी वर्तमान स्थिति को परिभाषित करते हैं। 1860 के दशक में थॉम्पसन स्कूल ऑफ मेडिसिन के रूप में स्थापित, कॉलेज का एक समृद्ध इतिहास है, जो दुखद रूप से इसकी वर्तमान दुर्दशा से प्रभावित है। मिनी-एम्स के रूप में नामित होने के बावजूद, संस्थान अब अक्सर गलत कारणों से खबरों में रहता है। अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, चिकित्सा कर्मियों के बीच उदासीन रवैया, भ्रष्टाचार के आरोप, बेकार कर्मचारी, विभागों के बीच समन्वय की कमी और नकली और घटिया दवाओं की मौजूदगी की रिपोर्टें बहुत आम हो गई हैं। कभी एक मातृ संस्थान जिसने प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों की एक सतत धारा तैयार की, जो उत्तर भारत के अन्य प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों में संकाय के रूप में सेवा करने गए, आगरा मेडिकल कॉलेज अब प्रतिभा को बनाए रखने के लिए संघर्ष करता है। निजी क्षेत्र में अवसरों की तलाश में कुशल चिकित्सा पेशेवरों का पलायन सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों को प्रभावित करने वाली बड़ी अस्वस्थता का एक लक्षण है। निजी क्षेत्र भी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के सामने आने वाली नई चुनौतियों का समुचित समाधान करने में असमर्थ है, और उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाया है।

आगरा मेडिकल कॉलेज का पतन न केवल संस्थान के लिए बल्कि पूरे समुदाय के लिए नुकसान का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित डॉक्टरों जैसे राजदान, नवल किशोर, अवस्थी, मल्होत्रा, नागरथ और कई अन्य जिन्होंने कभी संस्थान को गौरवान्वित किया था, अब एक बीते युग की दूर की प्रतिध्वनि की तरह लगते हैं। उनकी विशेषज्ञता और समर्पण आगरा में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की विशेषता वाली उदासीनता और अव्यवस्था की मौजूदा भावना से प्रभावित है।

एस.एन. मेडिकल कॉलेज और इसी तरह के संस्थानों को पुनर्जीवित और पुनर्जीवित करने के प्रयासों को उनके क्षय के मूल कारणों को संबोधित करना चाहिए। इसमें बुनियादी ढांचे के मुद्दों को संबोधित करना, शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना, चिकित्सा कर्मियों के बीच सहानुभूति और व्यावसायिकता की संस्कृति को बढ़ावा देना और भ्रष्टाचार और कदाचार को रोकने के लिए मजबूत तंत्र स्थापित करना शामिल है। अनुसंधान, प्रशिक्षण और अन्य संस्थानों के साथ सहयोग पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने से कॉलेज को उसके पूर्व गौरव को बहाल करने में मदद मिल सकती है।

इसके अलावा, जनसंख्या की उभरती जरूरतों को पूरा करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक निवेश और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में व्यापक बदलाव की सख्त जरूरत है। सरकार को सभी नागरिकों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान को प्राथमिकता देनी चाहिए, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, और आगरा और उसके बाहर की मौजूदा स्थिति को जन्म देने वाली स्पष्ट कमियों को दूर करने की दिशा में काम करना चाहिए।

सभी स्तरों पर हितधारकों – सरकारी अधिकारियों, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों, नागरिक समाज संगठनों और आम जनता – के लिए एक साथ आना और आगरा जिले और उसके बाहर स्वास्थ्य सेवा वितरण के लिए एक नया मार्ग तैयार करना महत्वपूर्ण है। केवल सामूहिक कार्रवाई और समानता, पहुंच और गुणवत्ता के सिद्धांतों को बनाए रखने की साझा प्रतिबद्धता के माध्यम से ही हम स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों को दूर करने और हर व्यक्ति को वह देखभाल और सहायता प्रदान करने की उम्मीद कर सकते हैं जिसका वह हकदार है।

अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए, एस.एन. मेडिकल कॉलेज को संस्थान को पुनर्जीवित करने और चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में उत्कृष्टता के केंद्र के रूप में अपनी प्रतिष्ठा को बहाल करने के उद्देश्य से कई व्यापक उपाय करने चाहिए।

सुधारात्मक उपायों को लागू करके और उत्कृष्टता, नवाचार और अखंडता की संस्कृति को बढ़ावा देकर, आगरा मेडिकल कॉलेज अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने और चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा वितरण के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में अपना सही स्थान पुनः प्राप्त करने की दिशा में यात्रा शुरू कर सकता है।

10 सितंबर 1915 : क्राँतिकारी जतिन्द्र नाथ मुखर्जी का बलिदान

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भारतीय स्वाधीनता संग्राम में कुछ ऐसी प्रतिभाओं ने अपने जीवन का बलिदान दिया जो यदि अंग्रेजों की आधीनता स्वीकार कर लेते तो उन्हें उचचतम प्रसिद्धि मिल जाती । ऐसे ही बलिदानी थे बाघा जतिन ।

उनका नाम जतिनन्द्र नाथ मुखर्जी था लेकिन वे बाघा जतिन के नाम से भी जाने जाते हैं । उनका जन्म 7 दिसम्बर 1879 को जैसोर क्षेत्र में हुआ था । यह क्षेत्र अब बंगलादेश में है । जब पाँच वर्ष के हुये, तभी पिता का देहावसान हो गया था। माँ ने बड़ी कठिनाई से लालन-पालन किया। वे शरीर से बहुत हृष्ट-पुष्ट थे । किशोर वय में वे जंगल घूमने गये तो बाघ सामने आ गया। वे बाघ से भिड़ गये । बाघ भाग गया । तब से उनका नाम बाघा जतिन पड़ गया । वे जितने शरीर से सुदृढ़ थे उतने ही पढ़ने में भी बहुत कुशाग्र थे । उन्होंने 18 वर्ष की आयु में मैट्रिक परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी । फिर स्टेनोग्राफी सीखी और कलकत्ता विश्वविद्यालय में स्टेनोग्राफर की नौकरी कर ली । अपनी सेवा काल में भी पढ़ाई जारी रखी । लेकिन वे अधिक नौकरी न कर सके ।

अपनी सेवा काल में जब भी अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार देखते तो खून खौल उठता उसका प्रतिकार भी करते । लेकिन परिवार की जरूरत को ध्यान में रखकर समझौता करके नौकरी करते रहे । तभी 1905 आया । अंग्रेज सरकार ने बंगाल विभाजन की घोषणा कर दी । इसका विरोध आरंभ हुआ । यतींद्र नाथ मुखर्जी ने बंगाल विभाजन का विरोध किया । उन्होंने नौकरी छोड़कर कर आन्दोलन की राह पकड़ी। उन्होने युवकों की टोली बनाई और अंग्रेज अधिकारियों की घेराबंदी शुरू की । इस आँदोलन में उनकी आगे की पढ़ाई छूट गई। आँदोलन इतना तीव्र हुआ कि अंग्रेज सरकार को बंगाल विभाजन का निर्णय वापस लेना पड़ा। लेकिन बाघा जतिन ने राह न बदली । उन्हे दोवारा नौकरी पर आने का प्रस्ताव भी आया पर सरकारी नौकरी में न गये और क्राँतिकारी आंदोलन से सीधे जुड़ गये । वे 1910 में ‘हावड़ा षडयंत्र केस’ में गिरफ्तार हुये । एक साल का कारावास मिला ।

जेल से मुक्त होने पर’अनुशीलन समिति’ और ‘युगान्तर’ से जुड़ गये । वे दोनों प्रकार से कार्य करते थे एक तो क्रांति की गतिविधियों में सीधे भागीदारी और दूसरे आलेख लिखकर जन जागरण करना । क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने के लिये दुलरिया नामक स्थान पर अपने ही सहयोगी अमृत सरकार घायल हो गए थे । समस्या यह थी कि धन लेकर भागा जाये या साथी के प्राणों की रक्षा । स्वयं अमृत सरकार ने जतींद्र नाथ से कहा कि धन लेकर चले जाओ । पर जतींद्र तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- ‘मेरा सिर काट कर ले जाओ ताकि अंग्रेज पहचान न सकें।’ पर जतिन ने अपने साथी को वहाँ न छोड़ा और साथ लेकर ही चले । क्रान्तिकारियो के ऐसे जज्वे से मिली है स्वतंत्रता।

कलकत्ता में उन दिनों एक राडा कम्पनी बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी। क्रान्तिकारियो ने इस कम्पनी की एक गाडी पर धावा बोला, जिसमें ५२ माउजर पिस्तौलें और ५० हजार गोलियाँ प्राप्त हुई । कुछ विश्वास घातियों ने सरकार को य। अवगत करा दिया था कि ‘बलिया घाट’ तथा ‘गार्डन रीच’ घटनाओ में यतींद्र नाथ का हाथ था। पुलिस पीछे लगी । कयी मुखबिर छोड़ दिये गये । अंततः सितंबर 1915 को पुलिस ने जतींद्र नाथ के अड्डा ‘काली पोक्ष’ स्थित गुप्त निवास पर पहुंच गयी । यतींद्र अपने साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही वाले थे कि पुलिस ने घेर लिया । यतींद्र नाथ ने गोली चला दी । मुखबिर राज महन्ती वहीं ढेर हो गया। यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था। जतींद्र उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था। दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली। चित्तप्रिय भी बलिदान हो गये। वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे। इसी बीच यतींद्र नाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो गया था । वे जमीन पर गिर पड़े। मनोरंजन ने उन्हें उठा कर भागने का प्रयत्न किया । किंतु अंग्रेज अफसर किल्वी ने घेर लिया । सामान्यतः ऐसी स्थिति में क्राँतिकारी में स्वयं को गोली मार लिया करते हैं पर मनोरंजन के कंधे पर जतिन थे इसलिये पकड़े गये । उनका बलिदान अगले दिन 10 सितंबर को हुआ । यद्धपि अंग्रेज रिकार्ड में घायल होने के कारण उनकी मौत हुई पर कुछ लोगों का मानना है कि पुलिस प्रताड़ना से उनका बलिदान हुआ । जो भी सत्य हो 10 सितंबर 1915 को इस महान क्राँतिकारी का बलिदान हो गया ।
शत शत नमन्’

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