Bollywood Retro Live Painting and Auction Event at Pacific Mall NSP-Pitampura Celebrates Art, Culture, and Charity

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New Delhi – Pacific Mall, NSP-Pitampura, in collaboration with ImageNation Street Art, hosted a spectacular live painting event on the theme of *Bollywood Retro*, bringing together 40 talented artists for an immersive cultural experience. From 2 to 5 pm, visitors were treated to the mesmerizing sight of artists creating vibrant masterpieces that paid homage to iconic moments in Bollywood history. The event concluded with a live auction of the works, with proceeds benefiting NGO Rahi.

The event, which was free and open to the public, attracted a large crowd, all captivated by the synergy of creativity, nostalgia, and live art. The artists skillfully brought retro Bollywood to life, recreating memorable cinematic moments through dynamic, bold, and visually striking interpretations. The live auction that followed saw art lovers and cinema enthusiasts bid enthusiastically, knowing their contributions would go toward a noble cause.

Ashwani Kumar Prithviwasi, Founder and Principal of the Delhi Collage of Art, was one of the esteemed guests at the event. Reflecting on the enduring appeal of Bollywood’s retro aesthetic, Prithviwasi remarked, “Bollywood retro style remains a vital source of inspiration for contemporary visual artists. Its vibrant aesthetic, iconic imagery, and timeless themes resonate with today’s audiences, offering a bridge between cultural heritage and modern expression.”

Film critic and historian Murtaza Ali Khan, who also graced the occasion, expressed his admiration for the event, stating, “Bollywood Retro is a celebration of the fusion between art and the timeless charm of retro Bollywood. Bringing together 40 talented artists, the live painting and auction not only showcased creative interpretations of iconic Bollywood moments but also offered a unique platform for art lovers and cinema enthusiasts alike. Aakshat Sinha’s passion for merging art with popular culture has truly elevated this event.”

The event was curated by Aakshat Sinha, the visionary behind ImageNation Street Art, whose dedication to blending art with popular culture was evident in every detail of the day. Under his guidance, the artists were able to capture the essence of Bollywood’s golden era, offering the audience a deeply nostalgic yet contemporary experience.

The live painting and auction were a testament to the power of art to connect people and support important causes. The event marked a perfect fusion of Bollywood’s timeless charm with the dynamic energy of live street art, leaving a lasting impression on all attendees.

पत्रकारिता का ये इंटरव्यू काल है

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ऋतेश मिश्र/ रायपुर

पत्रकारिता का नया दौर इंटरव्यू और पॉडकास्टर युग को माना जाय। यहां सोफे और मेकप आर्टिस्टों की उपयोगिता बढ़ गई है। इसमें सिर्फ गंभीर भाव में लच्छेदार लफ्फाजी है।

हर पत्रकार कोई इंटरव्यू लेना चाहता और हर आदमी चाहे वो पर्याप्त जाहिल क्यों न हो , इंटरव्यू देना है। हर जगह भरा पड़ा है इंटरव्यू वाला कंटेंट।

इस बीच टीवी एंकर्स बेचारे लाचार होते गए हैं। क्या करें। उनका जमाना ढलान पर है। अब उनका हाथ हिला हिला कर..चीखना चिल्लाना, थ्री पीस में नहर के पानी की तरह धारा प्रवाह बोलना दर्शकों को जमता नहीं है। लोग उबिया गए हैं।दर्शक मान चुके हैं कि टीवी उन्हें कुछ नया नहीं दे सकती। टीवी डब्बा बन चुका है। चावल, दाल, चीनी, नमक के डब्बे नुमा डब्बा, टीवी का डब्बा।

तो इसलिए अब पत्रकारिता के चौराहे पर इन्टरव्यू और पॉडकास्टिंग का नया नया उपक्रम शुरू हुआ है।
आप पूछेंगे कि इन्टरव्यू तो पहले भी हुआ करता था, हां होता था, पर पहले हुए साक्षात्कारों का कथ्य, विषय, और प्रारूप बेहद गंभीर विमर्श लिए होते थे। आज इंस्टाग्राम के रील्स से लोहा लेने के लिए इंटरव्यू किए जाते हैं। रील्स से लोहा मसलन गुड़ से खांड़ बन चुकी चाशनी की तरह वायरल होने की लसलसाहट से युक्त..।

लेकिन आपको नहीं मुझे तरस आता है उस पत्रकार पे और समूची पत्रकारिता पे। लेकिन मेरे तरस आने से कुछ होता नहीं है ।

तो साथियों अब के सेलिब्रिटी पत्रकार एंकरिंग के थ्री पीस सूट पर पड़ी धूल झाड़ सोफे पर आ बैठे हैं। उन्हें अपनी क्षमता का सार इंटरव्यू में ही अभिव्यक्त करना है। कोशिश करनी है कि स्क्रीनटाइम का औसत कायम रहे। सवालों जवाबों के क्लिप्स रील्स में परिवर्तित हो पाएं।

एक जमाना था जब पत्रकारिता जमीन पर जाकर कुछ नया खोजती थी, धरातल पर उसकी पकड़ सबसे अधिक थी। जमीन से ही भेद खुलते थे। नई परिघटनाओं का अन्वेषण होता था। वह जमाना ग्राउंड रिपोर्टरों का था। संस्थान में उनकी एक विशिष्ट जगह थी। महीनों खबरों के पीछे रहना, पड़ताल में जगह जगह भंछना, मोटर साइकिल, कार, बस, रेल, ट्रक जरूरत पर जो मिले बैठे, पहुंच गए। महीनों बाद उन्हें जो हासिल होता उससे राज्य की सरकारें हिल जाती थीं। नीतिगत निर्णय बदल जाते थे। ऐसे रिपोर्टर अब नहीं मिलते हैं। अंग्रेजी के कुछ अखबार थोड़ा बहुत प्रामाणिक देने की कोशिश भर करते हैं पर अब उनकी भी सीमा बांध दी गई है।तो अब हम सबने ये मान लिया है कि पत्रकारिता का ये काल महज इंटरव्यू करना, देखना रह गया है।

दरअसल सरकारें , चाहे जिस भी पार्टी की हों, यही चाहती है। सरकार पत्रकारों को सेलिब्रिटी बनते देखना चाहती है।लाखों फॉलोअर्स, असंख्य व्यूज। बस खबर नहीं आनी चाहिए। सरकार चाहती है खबरों के संस्थान रियल्टी शोज को हर शाम होस्ट करते रहें। लोग अपने घरों में पिनट्स खाते हुए बड़े चाव से देखें।

इस तरह खबरों, घटनाओं की पड़ताल करने वाली विधा क्यूरेटेड साक्षात्कार युग में धीरे धीरे शिफ्ट होती गई।

जैसे हिंदी साहित्य के बड़े आलोचकों में आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह जैसे नाम मिल जायेंगे। वैसे ही पत्रकारों को भी राज्य का आलोचक होना था। राज्य की एक एक नीति एक एक कदम की परख करने वाला पत्रकार आलोचक।इसीलिए मेरा मानना है कि पत्रकारों को हिंदी आलोचना से भी बहुत कुछ सीखना चाहिए। मैंने कई कवियों को भड़कते देखा है आलोचकों पर। रचनाओं के झूठ, कविताओं के पाखंड जब खुलते हैं तो आलोचकों को कविजन गाली देते हैं।

एक कायदे का पत्रकार अगर कायदे से भेद खोलने लगे तो सरकारी मुलाजिम से लेकर मंत्री मनसबदारों तक रोज भड़कते रहेंगे। और उनका भड़कना ही पत्रकारों का असली पुरस्कार होगा।

ख़ैर,
क्या किया जा सकता है।
जमाना नया है
सोफे पर बैठिए
चलिए इन्टरव्यू देखते हैं।

अश्लील है, सब पर हमारा किया धरा है ।

We believe in an independent state of London

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मनोज श्रीवास्तव

ये आक्सफोर्ड यूनियन सोसायटी जिस तरह से We believe in an Independent State of Kashmir पर डिबेट कराता है, उस तरह से भारत के छात्र संगठन कभी We believe in an Independent State of London पर बहस कभी क्यों नहीं कराते? अब तो वहाँ लंदन में मेयर भी मुस्लिम है। या नहीं तो We believe in an Independent State of Bradford कर दें जहाँ मुस्लिम ही मुस्लिम हैं।

कौन-सी दुनिया में रहते हैं ये हमारे ABVP, ये हमारे NSUI? इन्हें एक दूसरे को हराना ही अपने अस्तित्व की चरम चरितार्थता लगती है।

वे 49 विश्वविद्यालय मिलकर Dismantling Hindutva पर सेमिनार कर लेते हैं। और हमारे विश्वविद्यालयों से एक बार भी उसी तर्ज पर Dismantling Christianism जैसा कोई आयोजन नहीं होता। जैसे वे कहते हैं कि हम Hinduism की बात नहीं कर रहे, Hindutva की बात कर रहे थे, वैसे ही आप भी कहें न कि आप Christianity की बात नहीं करना चाह रहे, Christianism पर बात करना चाह रहे हैं।

वे Hindutva पर विमर्श के नाम पर भारत के आंतरिक मामलों में अपनी नाक घुसा सकते हैं, तो इसका इसी तरह का प्रत्युत्तर आपकी नाक का सवाल क्यों नहीं बनता।

उनकी यूनियन डिबेट कर लेती है कि We do not believe in Modi Government तो कभी आपसे क्यों नहीं बनता कि We do not believe in Biden Government पर वाद विवाद प्रतियोगिता आयोजित कराते?

आप ही उनकी गेज़ के शिकार रहोगे हमेशा? भगवान ने आपको आँखें नहीं दीं? बटन दिये?

आपको नहीं समझ आता कि जब तक इन्हें इन्हीं के सिक्कों में दाम नहीं चुकाये जायेंगे ये बाज नहीं आएँगे?

और आप तरुणाई के प्रतिनिधित्व का दावा करते हो?

(सोशल मीडिया से)

कब होगी मणिपुर में हिंदुओं की बात

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अमिय भूषण

जहाँ भी साधु संत गुरुजन और शुभेच्छु संगठन एवं उसके संगठक तथा सहयोगी मंत्री एवं अन्यन्य शुभचिंतक सब लोग स्वार्थ अथवा भय से सत्य से परहेज करे और उचित सुझाव नही दे तो सर्वविध नाश ही होता है।केवल प्रशासन अव्यवस्था को भेंट नही चढ़ता अपितु यह शासनकर्ता एवं राज्य के लिए भी आपदा लाता है।यही नही अंततः यह सभी सहायक संगठन एवं व्यवस्थाओं को भी निगल लेता है।वही प्रजा राष्ट्र और धर्म का भी शीघ्रता शीघ्र पूर्णतया नाश होता है।इसलिए रामचरितमानस मे कहा गया है-
“सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस।राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास”॥

अगर हिन्दू जनमानस के साथ यही सब कुछ होता रहा तो न ही मोदी न मोदी राज न ही भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विचार परिवार और ना ही कोई द्वारा अखाड़ा,महंत श्रीमहंत,मंडलेश्वर महामंडलेश्वर,जगतगुरु या कोई सदगुरू बचेंगे।यहाँ तक की कोई भी आध्यात्मिक संस्था,चेतना और दर्शन एवं विचार नही रह पाएगा।यहाँ तक की ज्ञान के अपौरुषेय स्रोत वेद भी इसकी भेंट चढ़ जाएंगे।अतः आइये हम सभी अपने कर्तव्यों का पालन करें।विपक्ष एवं वैचारिक विरोधियों से सवाल और सत्ता एवं व्यवस्थाओं पर दवाब बनाये।अन्यथा यही होगा की-

“जगत बिदित तुम्हारि प्रभुताई।सुत परिजन बल बरनि न जाई॥
राम बिमुख अस हाल तुम्हारा।रहा न कोउ कुल रोवन हारा”॥

बाकी मणिपुर के वर्तमान हालात की ये कहानी है।जहां एक हिंदू पुजारी की हत्या कर दी गई है। मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है और लगातार हिंदूओं पर ड्रोन बम से हमला किया जा रहा है। ये जानकारी मणिपुर के एक अभागे हिंदू ने भेजी है, जहाँ विगत एक वर्ष से हिंसा जारी है।हिंदू धर्मांतरण के नाते साढ़े बारह लाख से अब दस लाख हो चला है।वही अब पलायन और सामूहिक नरसंहार अथवा धर्म परिवर्तन की बारी है।

बात अगर विदेशी आक्रांत बर्बर एवं धर्मान्तरित ईसाई कुकी समुदाय की करे तो इनकी आबादी वृद्वि दर दो सौ प्रतिशत है।वही यहाँ से होकर चलने वाला ड्रग्स कारोबार लगभग पूरा का पूरा इनके हाथों में है।यह कारोबार मणिपुर राज्य के कुल बजट से भी कही बड़ा है।

इसके साथ इन्हें अबतक केवल भारतीय नागरिकता ही नही मिलती आई है बल्कि अल्पसंख्यक एवं अनुसूचित जनजाति होने का दोनों शासकीय लाभ भी लगातार मिलता रहा है।इसके अलावे शासकीय दृष्टिकोण से पूर्वोत्तर भारत के जनजातीय पहचान वाले राज्य के निवासी और जनजातीय समुदाय से होने के नाते ये सभी प्रकार के कर(tax) से भी वंचित है भले ही इनकी आमदनी करोड़ों में हो।इन सब तथ्यों के प्रमाण हेतु आप मणिपुर पर विभिन्न अखबार एवं पत्रिकाओं के लिए लिखे मेरे आलेखों को भी देख सकते है।वही सूचना के अधिकार या फिर सरकारी वेबसाईट पर उपलब्ध आंकड़ों पर भी नजर मार सकते है।

बाकी अगर इन चित्रों की व्यथा कथा कहूँ तो इसे मणिपुर के किसी अभागे हिंदू ने भेजा है।यह दुखद घटना विष्णुपुर जिले के मोइरांग मे कल यानी 6 सितंबर के दोपहर 2 बजे हुई है।मणिपुर का यह क्षेत्र कभी शिव पार्वती की क्रीड़ा स्थली रही है जिसका प्रमाण विश्व प्रसिद्ध लोकटक झील है।वही इस जगह का इतिहास नेताजी सुभाषचंद्र बोस और आजाद हिन्द फौज से जुड़ाव का रहा है उनकी स्मृतियाँ यहाँ अब भी मौजूद है।जबकि यहाँ के राजा ने बर्मा विजय के उपलक्ष्य में भगवान विष्णु का एक मंदिर बनाते हुए इस सम्पूर्ण भूमि को भगवान विष्णु के नाम कर दिया था।यह घटना सन् 1467 की है तब से इसका नाम विष्णुपुर है।

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