सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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डा. प्रवेश कुमार चौधरी

सामाजिक समरसता बाबा साहब अम्बेडकर के विचारो का असल अर्थो मे अनुपालन करना है, अम्बेडकर ने तीन मानव मूल्यो की बात की स्वतन्त्रता , समानता , बंधुत्व ये तीनों तत्व समाज विकास के लिए अनिवार्य हैं

पिछले दिनों एक विद्यार्थी के दलित विषय पर किए गए शोध रिपोर्ट को जाँच रहा था। इसी में दलित साहित्यकारों द्वारा बार-बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को टारगेट करते देख, मुझे लगा कि इस पक्ष की खोज पड़ताल की जाये। इस शोध से पूर्व मैंने राजस्थान के एक दलित लेखक जो पूर्व में संघ से जुड़े होने का दवा करते है, उनकी आत्मकथा को पढ़ा था। जिसमें उन्होंने अपनी आप बीती को व्यक्त करते हुए संघ को लेकर कई अपति दर्ज की है। वही कुछ वर्ष पूर्व एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में देश के पूर्व मुख्य न्यायधीश जो की समाज के दलित वर्ग से आते हैं उनके द्वार कार्यक्रम में सामाजिक न्याय की बात उठाना । वही समय – समय के अपने उदबोधनो में पूज्य सर संघचालक मोहन राव भागवत जी द्वारा सामाजिक समरसता तत्व की बार- बार चर्चा करना । ये सब समाज में कही कोतूहल ज़रूर पैदा करता हैं ,लोगों के मन में संघ को जानने की तीव्र इच्छा भी पैदा करता हैं। उनके मन में उपयुक्त प्रश्न ज़रूर आते हैं की संघ की समाज दृष्टि क्या हैं ? उसकी अनुसूचित जाति – जनजाति को लेकर सोच क्या हैं ?, आरक्षण जैसे विषय पर संघ की क्या समझ है? ये लेख कुछ इनहि प्रश्नो को उत्तर देने का प्रयास हैं ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना महराष्ट्र में स्वतंत्रता सेनानी डॉ० केशवराव बलिराम हेडगेवार के द्वारा 1925 को की जाती , संघ का हेतु एक हैं “समाज में देश भक्त नागरिकों का निर्माण करना , में मेरी चिंता के साथ अपने पड़ोसी की, समाज की ,राष्ट्र और विश्व की चिंता करूँ ये ही संघ की दृष्टि हैं, ये ही हिंदू दृष्टि भी हैं । ये ही विचार इस भारत का भी मूल विचार हैं , परंतु विगत वर्षों कि विदेशी राष्ट्रों के अधीनता ने भारत के मानस से इस भाव को प्रायः समाप्त ही कर दिया इसी को पुनः जागृत करना ही तो अपना ध्येय हैं । इसी लिए संघ के लाखों , करोड़ों स्वयंसेवक कार्यकर्ता दुनिया भर में समाज और राष्ट्र के बेहतरी के लिए अनवरत कार्यों में लगे हैं। परस्पर सहयोग और प्रेम का भाव ही तो हिंदुत्व का दर्शन हैं इसी के भीतर समरसता का तत्व अंतर निहित हैं । ये समरसता ही ये बताती हैं की मैं और तुम भिन्न नहीं हम एक हैं। इसी एकात्म तत्व का जागरण कर समाज को संगठित करना इसी कार्य को लगभग 90 वर्षों से संघ करता आ रहा हैं। ये “एकात्म” भाव इस भारत का भाव है इसी के छिन्न होने के कारण भारत वर्षों तक विदेशी अक्रांताओ के अधीन रहा,संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवर जानते थे की भारत एक ना एक दिन ज़रूर आज़ाद हो जाएगा परंतु यादि भारत की इस मानव शक्ति को वैचारिक एकत्व , देशिक विचार से ना जोड़ा गया तो क्या तय भारत पुनः ग़ुलामी की और चला जाये । इसी लिए संघ की शाखा में जाने वाला प्रत्येक स्वयंसेवक केवल एक पहचान को लेकर साथ-साथ काम करता वो हैं हिंदू पहचान।

जब 1934 में महात्मा गांधी वर्धा में संघ के शिविर में गए तो उन्होंने ये जानने की कोशिश की यहाँ साथ रहने वाले स्वयंसेवक कार्यकर्ताओं की क्या जाति हैं । गांधी ने एक स्वयंसेवक से पूछ आप क्या हैं? उसने उत्तर दिया हिंदू , इस प्रकार कई कार्यकर्ताओं से पूछने पर भी समान उत्तर मिला तो गांधी जी ने पूछ आपकी जाति क्या हैं?तब ज्ञात हुआ की तमाम स्वयंसेवक साथ-साथ भोजन करते है साथ-साथ रहते हैं परंतु उनमें काफ़ी स्वयंसेवक तो समाज के अश्प्र्श्य वर्ग से सम्बंधित हैं। इसी लिए 1938 में डॉ अम्बेडकर भी संघ के शिविर में जाते हैं और अपने जीवन काल में संघ को लेकर अम्बेडकर ने कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि संघ के प्रचारक दत्तोपंत ठेंगडी जी से उनको बहुत स्नेह रहा , वे अम्बेडकर के चुनाव के एजेंट भी बने। संघ ने हमेशा से जाति और वर्ण आधारित समाज व्यवस्था को नकार दिया उसको कभी भारतीय दर्शन का मूल विचार नहीं माना अगर संघ इस बात को कहता हैं तो इसके समर्थन मे कुछ तर्क भी दिये जा सकते हैं ये तर्क हमे उन्ही वेदिक, उपनिषदों मे ही मिलते हैं। कंठकौपनिषद कहता हैं “एक स्वथा सर्वभुतान्तारात्मा” (समस्त प्राणियों की अंतरत्मा में एक ही परमब्रह्म हैं ,जो सभी प्राणियों मे विराजमान हैं) जब ईश्वर एक हैं तो सभी मे एक ही आत्मा हैं वो दलित , शूद्र , अवर्ण -स्वर्ण सभी मे एक हैं , ये ही भारत का चिंतन हैं, संघ और भारत का दर्शन भिन्न नहीं एक ही हैं । संघ ने तमाम बार जाति और उसके द्वारा किए गए उत्पीड़न का विरोध किया हैं। डॉ हेड्गेवार ने तो पहले ही जाति नाम की संस्था की अंत की बात की और गुरु गोलवलकर ने भी ऐसी व्यवस्था को नष्ट होने की बात की , इसी लिए संघ की शाखा पर किसी भी प्रकार के भेद को अस्वीकार कर दिया जाता हैं सभी स्वयंसेवक एक रस होकर देश और समाज के हित मे चिंतन करते हैं। अपने व्यक्तिगत जीवन में सामाजिक रूप से अस्पर्यशता को डॉ हेड्गेवार ने नकारा हैं, वे पुना के न्यू इंग्लिश हाईस्कूल मे अश्प्र्श्यो के साथ सहभोज के आयोजको मे से एक थे। 23 अक्तूबर 1932 को इसी स्कूल के छात्रो को संबोधित करते हुए उन्होने कहा की साहसपूर्ण ढंग से अस्प्र्श्यता का मुक़ाबला करे ।

संघ के तृतीय सर-संघचालक बाला साहब देवरस ने संघ के विभिन्न शिविरों में अपने वक्तव्यों में इस बात को कहा कि ‘‘संघ वर्ण व्यवस्था को नहीं मानता किसी भी ऊँच-नीच और असमानता को नहीं मानता, मनुस्मृति में असमानता है तो हम इसको नहीं मानते आरक्षण का हम समर्थन करते हैं। आरक्षण के समर्थन में संघ की सोचा है की सदियों से शोषित पीड़ित ,दलित और फलस्वरूप पिछड़ी अवस्था में रहने वाले समाज को शेष समाज की बराबरी की सुविधाएं एवं संरक्षण देना उचित ही है और वैसे करते समय कोई वर्ग शिकायत करते हैं तो वह सामाजिक एकात्मकता के अभाव का ही लक्षण माना जाएगा। संघ ने खुले शब्दो मे आरक्षण का समर्थन किया 2014 मे संघ के सरसंघचालक पूजनीय मोहन भगवत जी ने दिल्ली मे डॉ विजय सोनकर शास्त्री द्वरा लिखित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम मे कहा “ आरक्षण 100 सालो तक अभी बना रहना चाहिए ,और आगे भी जरूरत हुई तो जारी रहे समाज एकात्म सूत्र मे बन्ध रहा हैं “ ये पंक्तीय आज की प्रस्थतियों मे और महत्व रखती हैं | जबकि संघ को लेकर अनर्गल बातें समाज में चलती रहती है । संघ ने सदेव समरस समाज की बात की और समरसता के विचार को माना संघ मानता है समरसता “ स्वतन्त्रता , समानता , बंधुत्व तीनों को व्यक्ति अपने आचरण मे ले यही समरसता हैं “ सामाजिक समरसता बाबा साहब अम्बेडकर के विचारो का असल अर्थो मे अनुपालन करना हैं , अम्बेडकर ने तीन मानव मूल्यो की बात की स्वतन्त्रता , समानता , बंधुत्व ये तीनों तत्व समाज विकास के लिए अनिवार्य हैं परंतु अम्बेडकर बंधुता को समाज मे लागू होने को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं , जब व्यक्ति का व्यक्ति के साथ प्रेम हो उसके दुख मे वो दुखी हो और सुख मे खुद भी परम आनंद को महसूस करे ये बंधुत्व का भाव हैं जिसे कभी क़ानून से नहीं लागू किया जा सकता ये तो पूर्णत: व्यक्ति पर निर्भर है , संघ वर्षों इसी तत्व को व्यक्ति के मन में जागृत करने का कार्य कर रहा हैं। सामाजिक समरसता ये आत्मीयता का भाव पैदा करने का ही काम करता हैं।

(श्री चौधरी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति विषय पर विगत एक दशक से लिख रहे हैं)

न्यायालय चिंतन अवश्य करे

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संजय स्वामी

शिक्षा, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, तकनीकी कौशल में भारतीय दुनिया के किसी देश से पीछे नहीं है। आधुनिक समय की सभी विधायें, कौशल भारतीयों ने अपनी मेहनत से हासिल किए हैं

श्रावण माह में भारतवर्ष के विभिन्न धार्मिक आस्था और श्रद्धा के मंदिर शिवालयों में काँवड़ यात्री पवित्र जल लेकर जलाभिषेक हेतु दुर्गम कठिन पैदल यात्रा कर रहे हैं। श्रद्धा का कोई विकल्प नहीं श्रद्धा अध्यात्म से जुड़ी हुई है। अध्यात्म संस्कारों से जुड़ा हुआ है। सनातन परंपरा में श्रद्धा और विश्वास पूर्वक संस्कारो का पीढ़ी दर पीढ़ी रोपण किया जा रहा हैं।

भारतीयों ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में विश्व के विकसित देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए भरपूर मेहनत की है। शिक्षा, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, तकनीकी कौशल में भारतीय दुनिया के किसी देश से पीछे नहीं है। आधुनिक समय की सभी विधायें, कौशल भारतीयों ने अपनी मेहनत से हासिल किए हैं। आधुनिकता के साथ ही धार्मिक क्रियाकलापों में भी भारतीय विशेष श्रद्धा भाव से भाग लेते हैं। सनातन संस्कृति की अधिकांश धार्मिक मान्यताओं, अनुष्ठान, पूजा पाठ में शुद्धता और पवित्रता पर विशेष जोर दिया जाता है। चाहे 21वीं सदी की युवा पीढ़ी हो या फिर 20 वीं सदी की प्रौढ़ और वृद्ध पीढ़ी। दोनों पीढ़ियों के बीच में आयु का, अनुभव का, विचारों का अंतर तो हो सकता है परंतु धार्मिक क्रियाकलापों, नियमों के पालन में कोई भेद नहीं। ईश्वर भक्ति आराधना देव पूजा आदि में युवा अत्यधिक उत्साह से पूरे श्रद्धा भाव से बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।वरिष्ठ जन की बताई विधि अनुसार धार्मिक अनुष्ठान को पूरे विधि विधान से करते, अपनाते हैं।

वर्तमान कावड़ यात्रा के संदर्भ में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा मध्य प्रदेश सरकार ने कुछ नियम जारी किए। आखिर सरकार को नए नियम क्यों जारी करने पड़े? न्यायालय ने इस गंभीर विषय का सम्यक चिंतन नहीं किया, न तथ्यों को संज्ञान में लिया। बस नास्तिकवादी मानसिकता और राजनीतिक वैमनस्य से कुछ लोगों ने न्यायालय में रिट लगाई और न्यायालय ने रोक लगा दी। वास्तव में भारतीय न्याय व्यवस्था के अनेक नियम, प्रावधान आयातित हैं। विडंबना यह भी है कि भारतीय न्याय व्यवस्था ने न्याय दर्शन और मनुस्मृति को कभी अपने पाठ्यक्रम या नियमों में सम्मिलित नहीं किया। जिसका परिणाम है कि केवल न्यायालय के कक्ष में जो तथ्य, आंकड़े प्रस्तुत कर दिए जाते हैं उसके आधार पर माननीय न्यायाधीश निर्णय सुना देते हैं। जबकि भारतीय प्राचीन न्याय व्यवस्था में न्याय देने वाले अधिकारी, अनेक राजा-महाराजा आदि वेश बदलकर कई बार तथ्यों की स्वयं जांच पड़ताल करते थे।

कांवड़ यात्रा श्रद्धा-भक्ति पूर्वक किया जाने वाला धार्मिक कर्म(तप) है। जिस हेतु सर्वप्रथम घर से ही श्रद्धालु कावड़िए पवित्र भावना से संकल्प करके कावड़ लेने जाते हैं। स्नान, पूजा पाठ करके पवित्र जल को पात्र में धारण कर यात्रा प्रारंभ करते हैं। मन में मंत्र पाठ करते हुए, भजन बोलते हुए, आनंद में नाचते, दौड़ते पवित्र भाव से कावड़ ला भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। इतने कठोर तप में कहीं व्यवधान न हो इसलिए इन तीनों राज्यों की सरकारों ने कुछ नियम बनाए। इसमें कौन सी अनुचित बात है?

जब रमजान का महीना होता है मुस्लिम बंधु रोजे रखते हैं। अनेकों हिंदू अपनी ओर से इफ्तार की व्यवस्था करते हैं। वहां भी भारतीय संस्कृति की झलक और हमारी परंपरा देखने को मिलती है। जो हिंदू अपने पड़ोसी मुस्लिम भाइयों के लिए इफ्तायरी की दावत करते हैं, वे बहुत पवित्र तन मन, श्रद्धा भाव से पूर्ण शुद्धता के साथ भोजन तैयार करवाते हैं। बड़े प्रेम आदर सम्मान के साथ सभी को भोजन करवाते हैं। इस्लाम के अनेक मतावलंबियों में नहाने धोने का बहुत रिवाज शायद नहीं है क्योंकि मैंने कई रोजाधारियों को देखा है कि वह सुबह से शाम तक अपने दैनिक कार्य करते हैं और शाम को सीधे इफ्तार की दावत में आ जाते हैं। खैर अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं हो सकती हैं। इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए।

अब दूसरा पक्ष देखिए कोरोना काल और उसके बाद सोशल मीडिया पर समाचार पत्रों में गत कुछ वर्षों में ऐसी सैकड़ो वीडियो तथा समाचार आए हैं कि होटल, ढाबे में कोई थूक कर रोटी बना रहा है, कोई फल सब्जी बेचने वाला व्यक्ति अपना मूत्र सब्जियों पर छिड़क रहा है, कोई नाली, नाले का पानी सब्जियों पर डाल रहा है,कोई थूक लगाकर माला, पुष्पहार बना रहा है, कहीं हलाल सर्टिफाइड वस्तुऐं बेची जा रही है। हद तो तब हो गई जब एक वीडियो में भोजन बनाते हुए उस होटल का कर्मचारी गंदगी विस्टा अर्थात मल(लैट्रिन) मिलाते हुए पकड़ा गया। यूरोप के देश की वीडियो तथा समाचार आया कि बहुत दिनों से लोग बीमार हो रहे थे जब जांच की तो भोजन में गंदगी अर्थात मानवीय मल (लैट्रिन) मिले होने की पुष्टि हुई।तथ्य यह है कि इन सभी गतिविधियों में संलिप्त मुस्लिम समुदाय के लोग ही थे। अब यह कौन सी शिक्षा है? कौन सा मजहब है इस पर किसी नेता का, किसी मौलवी का कोई स्पष्टीकरण नहीं आया। विचार कीजिए कैसी जाहिलियत सिखाई जा रही है?

संभवत: ऐसे समाचारों, घटनाओं को संज्ञान में लेकर ही स्थानीय प्रशासन ने कावड़ यात्रा के कालखंड हेतु नियम जारी किए होंगे। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। धार्मिक आस्था व्यक्तिगत मामला है। माननीय न्यायालय को तथा राजनेताओं को विचार करना चाहिए। साथ ही राजनीतिक एजेंडा धारी नेताओं को एक पक्षीय ज्ञान नहीं देना चाहिए।

एक और हिंदू समाज है जो कावड़ यात्रा के समय हजारों भंडारे लगाता है। पूरे श्रद्धा- भक्ति भावना से शुद्ध अंतःकरण तथा शुद्ध तन मन से कावड़ यात्रियों की सेवा करता है। भोजन सामग्री जुटाने से लेकर निर्माण तथा वितरण में पूरी शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। ऐसे में छल क्यों होना चाहिए ? क्यों माननीय न्यायालय राजनीतिक दलों द्वारा तथा आलिम मुफ्ती, मौलवियों द्वारा छल प्रपंच को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ? क्यों अपनी पहचान छुपाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ? व्यापार करना अनुचित नहीं। परंतु व्यापार में छल, छिपाव को बढ़ावा कौन दे रहा है ?

कानून, नियमों के पालन कराने हेतु सरकार विभाग बनाती है। नापतोल में गड़बड़ी न हो, चीजों में मिलावट न हो इसका ध्यान रख, दोषियों को सजा देने का प्रावधान किया गया है। ऐसा न हो तो फिर शुद्धता का ध्यान कौन रखेगा ? मिलावट और शुद्धता में अंतर है। इस पर भी माननीय न्यायालय को विचार करना चाहिए। जहां न्यायालय व्यापारी, दुकानदार को कम तोलने, मिलावट करने, कम गुणवत्ता की सामग्री बेचने, बेईमानी करने पर सजा देता है, उसी परिप्रेक्ष्य में ग्राहक को भी अधिकार होना चाहिए कि वह खाद्य पदार्थ, भगवान को अर्पण की जाने वाली पूजन सामग्री तैयार करने वाले व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक पवित्रता और शुद्धता को जाने।
आशा करते हैं कि माननीय न्यायालय इस संबंध में शीघ्र विचार कर कोई स्थाई नीति बनाने हेतु सरकार को दिशा निर्देश देंगे।

(लेखक शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास से जुड़े हैं और न्यास के पर्यावरण संबंधी गतिविधि के राष्ट्रीय संयोजक हैं)

Celebrate India’s Cinematic Legacy at The World’s Greatest Mela: Free Entry and Curatorial Tours for Students until August 25

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New Delhi: India Habitat Centre is currently hosting a stunning exhibition, “The World’s Greatest Mela – Respecting India’s Cinematic Heritage,” curated by the renowned Neville Tuli. This event is an extraordinary tribute to the rich history of Indian cinema, offering a captivating journey through the evolution of film in the country. Visitors are invited to explore the profound cultural impact and artistic milestones that have shaped Indian cinema over the decades.

As soon as attendees step into the exhibition, they are greeted with a breathtaking array of visual displays that tell the story of Indian cinema’s growth and influence. Featuring over 400,000 carefully selected items from Tuli’s vast collection, the exhibition showcases rare film posters, vintage booklets, original promotional materials, and unique pieces of cinematic art. Each exhibit offers a glimpse into the rich traditions of Indian and Asian cinema, providing an in-depth look at the artistic and cultural forces that have driven the Indian film industry.

A highlight of the exhibition is its impressive collection of vintage film posters, many of which are hand-painted. These posters not only represent the visual identity of Indian cinema but also reflect the evolving artistic styles of different eras, from Bollywood’s golden age to the diverse traditions of regional cinema. The bold colors and striking designs capture the changing aesthetic sensibilities that have defined Indian film over the years.

In addition to these posters, the exhibition features a wealth of vintage booklets that accompanied film releases during Indian cinema’s golden age. More than mere promotional tools, these booklets are cultural artifacts that offer insight into the social and cultural contexts of the films they represent. Their detailed designs and narratives provide a deeper understanding of how cinema has both mirrored and shaped Indian society.

The exhibition also includes original publicity materials and memorabilia from some of the most iconic films in Indian history. Visitors can view posters, lobby cards, and promotional stills from classics like “Mughal-E-Azam,” “Pakeezah,” and “Sholay.” These items reveal the creativity and craftsmanship involved in film promotion before the digital era, offering a rare glimpse into the world of traditional Indian film marketing.

Another key feature of the exhibition is its focus on cinematic partnerships that have left a lasting impact on Indian cinema. From the legendary on-screen chemistry of Raj Kapoor and Nargis to the dynamic collaborations between Amitabh Bachchan and Manmohan Desai, the exhibition highlights the creative synergies that have shaped Indian film history. These partnerships are celebrated not just as historical moments but as cultural milestones that continue to resonate today.

Dance, a crucial element of Indian cinema, also receives special attention. The exhibition explores the role of dance in storytelling, showcasing its evolution from the classical elegance of “Jhanak Jhanak Payal Baje” to the emotional intensity of “Devdas.” Through these exhibits, visitors can see how dance has been used to express complex emotions and enhance the cinematic experience.

Looking ahead, the World’s Greatest Mela also reflects Neville Tuli’s vision of cinema as an essential educational tool. The exhibition serves as a precursor to TRIS’s initiative to incorporate cinema into academic curricula, positioning it as a valuable resource for studying India’s history, culture, and social evolution.

In keeping with its inclusive spirit, the World’s Greatest Mela offers free entry for all visitors, with special curatorial tours available for student groups at no cost. The exhibition has drawn a wide range of visitors, particularly students who are eager to engage with its rich cultural and educational content. This enthusiasm highlights the relevance of cinema in modern education and its potential to inspire future generations.

The World’s Greatest Mela is not just an exhibition; it is a powerful experience that connects visitors with India’s cinematic heritage. It honors the art, culture, and individuals who have shaped the industry, showcasing the timeless power of film. As visitors explore the exhibition, they become part of this legacy, gaining a deeper appreciation for the history and future of Indian cinema. The exhibition runs until August 25, so don’t miss the chance to be part of this unforgettable event.

विनिर्माण क्षेत्र में बदलती भारत की तस्वीर

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ग्वालियर: भारत में आज भी देश की लगभग 60 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास कर रही है और वह अपने रोजगार के लिए सामान्यतः कृषि क्षेत्र पर निर्भर है तथा देश की कुल अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 16-18 प्रतिशत के आसपास बना रहता है। अब यदि देश की 60 प्रतिशत आबादी देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 16-18 प्रतिशत तक का योगदान दे पा रही है तो स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र में गरीबी तो बनी ही रहेगी। परंतु, यह स्थिति अब धीरे धीरे बदल रही है क्योंकि हाल ही के वर्षों में भारत के विनिर्माण क्षेत्र का योगदान देश के सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते ग्रामीण इलाकों के नागरिक शहरी क्षेत्रों में स्थापित की जा रही विनिर्माण इकाईयों में रोजगार के नए अवसर प्राप्त करने के उद्देश्य से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। विनिर्माण क्षेत्र में कई ऐसे नए क्षेत्र भी उभरकर सामने आए हैं जिन क्षेत्रों में भारत में उत्पादन बहुत कम मात्रा में होता रहा है। उदाहरण के लिए रक्षा क्षेत्र, दवा क्षेत्र, सेमी-कंडक्टर निर्माण क्षेत्र एवं आरटीफिशियल इंटेलिजेन्स का क्षेत्र आदि का वर्णन यहां प्रमुख रूप से किया जा सकता है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में स्वदेशी रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन की मात्रा 1.27 लाख करोड़ रुपए की रही है जो पिछले वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय 16.7 प्रतिशत अधिक है। यह भारत सरकार द्वारा देश में उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों और सरकार के प्रयासों की प्रभावशीलता को रेखांकित करता है। वर्तमान में रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन करने वाली इकाईयों में सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों एवं निजी क्षेत्र की कम्पनियों द्वारा संयुक्त रूप से प्रयास किए जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान उक्त वर्णित उत्पादन में सरकारी क्षेत्र की कम्पनियों का योगदान 79.2 प्रतिशत का रहा है जबकि निजी क्षेत्र की कम्पनियों का योगदान 20.8 प्रतिशत का रहा है। हर्ष का विषय तो यह भी है कि रक्षा के क्षेत्र में भारत में निर्मित किए जा रहे उत्पादों की अन्य देशों में भारी मांग निर्मित होती जा रही है और इन उत्पादों का निर्यात भी लगातार बढ़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में 21,083 करोड़ रुपए के मूल्य का निर्यात भारत से विभिन्न देशों में किया गया है जो पिछले वर्ष की तुलना में 32.5 प्रतिशत अधिक है और यह भारत में रक्षा के क्षेत्र में हुए कुल उत्पादन का लगभग 20 प्रतिशत है। निर्यात में यह वृद्धि न केवल वैश्विक रक्षा बाजार में भारत के बढ़ते पदचिन्हों को दर्शाती है, बल्कि आत्मनिर्भरता और नवाचार के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है। भारत में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हाल ही के समय में कई रणनीतिक पहल भी केंद्र सरकार द्वारा की गई है, जैसे, मजबूत नीतिगत ढांचे को विकसित करना, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना, अनुसंधान एवं विकास कार्यों में पर्याप्त निवेश को बढ़ावा देना, आदि शामिल हैं। स्वदेशीकरण की नीति के अनुपालन का असर भी रक्षा के क्षेत्र में उत्पादन एवं निर्यात में हो रही भारी भरकम वृद्धि के रूप में दिखाई देने लगा है। रक्षा के क्षेत्र में उपयोग होने वाले सैकड़ों उत्पादों के आयात पर रोक लगाकर इन उत्पादों का उत्पादन भारत में ही करने के निर्णय का असर भी अब धरातल पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। रक्षा के क्षेत्र में विभिन्न उत्पादों का उत्पादन भारत में ही करने की नीति को लागू करने से देश में न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा बल्कि देश में आर्थिक प्रगति, तकनीकी उन्नति एवं रोजगार सृजन को भी बढ़ावा मिलेगा।

रक्षा क्षेत्र की तरह ही, हाल ही के समय में भारत ने उत्पादन के कई नए क्षेत्रों में प्रवेश किया है। कुछ वर्ष पूर्व तक दवा निर्माण के क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाले API (ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडीयंट) नामक कच्चे माल का लगभग पूरे तौर पर चीन से आयात किया जाता था। परंतु, कोरोना महामारी के दौरान भारत को यह अहसास हुआ कि यदि चीन इस कच्चे माल का निर्यात भारत को करना कम कर दे अथवा बंद कर दे तो भारत में तो दवा उद्योग की इकाईयों में निर्माण कार्य ही ठप्प पड़ जाएगा। इसके बाद केंद्र सरकार ने API के उत्पादन को भारत में ही करने का फैसला लिया, आज स्थितियां पूर्णत: बदल गई है एवं API का निर्माण भारत में ही किया जाने लगा है। सम्भव है कि आगे आने वाले कुछ समय में API के निर्माण के क्षेत्र में भी भारत आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा। भारत आज API के उत्पादन के क्षेत्र में विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है एवं भारत की वैश्विक API उद्योग में 8 प्रतिशत की हिस्सेदारी बन गई है। आज भारत में 500 से अधिक प्रकार के विभिन्न API का उत्पादन किया जा रहा है। भारत में API का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय दवा उद्योग में तेज गति से वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है और आज यह देश के सकल घरेलू उत्पाद में 1.72 प्रतिशत का योगदान देने लगा है एवं दवा उद्योग आज देश में रोजगार के करोड़ों अवसर निर्मित कर रहा है। भारतीय दवा उद्योग के वर्ष 2024 के अंत तक 6,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 13,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। वर्ष 2013-14 के बाद से वर्ष 2021-22 तक भारतीय दवा निर्यात में 103 प्रतिशत की वृद्धि अंकित की गई है। जेनेरिक दवाओं के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत हो गई है, जिससे भारत को अब “विश्व का फार्मेसी हब” भी कहा जाने लगा है। केंद्र सरकार API के उत्पादन को भारत में बढ़ाने के उद्देश्य से एक समग्र एवं अनुकूल पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण करने पर जोर दे रही है। वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने API के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के लिए 6,940 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित की थी। 35 सक्रिय दवा सामग्री का विनिर्माण, जो API का लगभग 67 प्रतिशत है, जिसके लिए भारत की 90 प्रतिशत आयात पर निर्भरता है, भारत में PLI योजना के तहत प्रारम्भ किया जा चुका है। वर्ष 2022 के बाद से भारत के फार्मास्यूटिकल व्यवसाय में जबरदस्त बदलाव आया है एवं भारत अब वॉल्यूम उत्पादक से एक मूल्यवान आपूर्तिकर्ता देश बन गया है। दवाई के क्षेत्र में भारत अब वैश्विक स्तर पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार हो गया है।

लगभग 4 वर्ष पूर्व वैश्विक स्तर पर ऑटोमोबाइल विनिर्माण के क्षेत्र में सेमीकंडक्टर की उपलब्धतता में आई भारी कमी के चलते वाहनों के उत्पादन को भारी मात्रा में घटाना पड़ा था। परंतु, इसके बाद केंद्र सरकार ने यह बीड़ा उठाया था कि सेमीकंडक्टर के निर्माण के क्षेत्र में भारत को वैश्विक हब बनाया जाएगा। भारत में सेमीकंडक्टर का बाजार 2,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है जो वर्ष 2025 तक बढ़कर 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाने की सम्भावना है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं एवं सेमीकंडक्टर की विनिर्माण इकाईयां भारत में अधिक से अधिक संख्या में स्थापित हों इसके लिए भी केंद्र सरकार द्वारा गम्भीर प्रयास किए जा रहे हैं। भारत द्वारा सेमीकंडक्टर उत्पादन में वैश्विक नेतृत्व हासिल किया जा सकता है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी तो वैश्विक स्तर पर कई प्रौद्योगिकी फर्म से भारत में सेमीकंडक्टर उद्योग लगाने के लिए सीधे ही चर्चा भी कर चुके हैं। काउंटरपोईंट रीसर्च और इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसीएशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का सेमीकंडक्टर बाजार वर्ष 2026 तक लगभग 6,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा जो वर्ष 2019 के बाजार से तीन गुना अधिक होगा।

इसी प्रकार, भारत में आज आरटीफिशियल इंटेलिजेन्स के क्षेत्र में भी बहुत अधिक शोध चल रहा है ताकि आगे आने वाले समय में पूरे विश्व में भारत ही इस क्षेत्र में अपनी सर्वश्रेष्ठता सिद्ध कर सके। इस क्षेत्र में कार्य करने वाली अमेरिका की कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियां तो बैंगलोर में आकर इस क्षेत्र के इंजीनियरों की भर्ती हेतु प्रयास भी करती दिखाई दे रही हैं। कुल मिलाकर अब यह कहा जा सकता है कि भारत आज विनिर्माण क्षेत्र के कई ऐसे क्षेत्रों में कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है जिनमे कभी भारत का प्रभुत्व ही नहीं रहा है। इससे भारत में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित हो रहे हैं एवं ग्रामीण क्षेत्रों पर नागरिकों का दबाव भी कम हो रहा है।

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