कवि सम्मेलन के रंग में रंगा संस्कार भारती का कला संकुल

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राधेश्याम तिवारी

दिल्ली: 15 अगस्त, 2024 को दिल्ली के संस्कार भारतीय सभागार में संजना बुक्स, दिल्ली- के तत्वावधान में एक कवि- सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन की बड़ी सफलता ही मानी जाएगी कि पूरा हाॅल श्रोताओं से भरा हुआ था। इसमें वरिष्ठों के अलावा कुछ कवि बिलकुल नये थे। मगर उनकी भी कविताएं और प्रस्तुति बेहद प्रभावी लगीं। आमंत्रित कवियों में राधेश्याम तिवारी, अभिषेक उपाध्याय, जसवीर त्यगी, इरशाद खान सिकंदर, रमा यादव, जसवीर त्यागी, तरकश प्रदीप, काजल सूरी, मंजू दहाल, राम मेहर एवं प्रतिष्ठा तिवारी थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता उदय सहाय जी ने की और सफल संचालन युवा कवि रोशन झा ने। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उदय जी ने पुस्तकों के प्रति संजना तिवारी के समर्पण-भाव की सराहना की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी सागर जी थे।

अंत में आभार व्यक्त करते हुए संजना बुक्स की संजना तिवारी ने कहा कि मैं हृदय से आप सबों के प्रति आभारी हूं कि आप लोगों ने अपना मूल्यवान समय निकालकर इस कार्यक्रम को सफल बनाया। उन्होंने कहा कि यहां उपस्थित रंगकर्मियों एवं साहित्य-प्रेमियों के प्रति मैं विशेष रूप से आभारी हूं।

पुस्तकों के प्रचार-प्रसार के संबंध में अपने संघर्ष का जिक्र करते हुए संजना तिवारी ने कहा कि मेरी इस यात्रा में आप सब की बड़ी भूमिका है। सच कहूं तो यह संघर्ष- यात्रा मेरी अकेले की नहीं है, आप सबकी है। उन्होंने कहा कि मेरी बराबर यह कोशिश रही है कि नयी पीढ़ी भी अधिक से अधिक पुस्तकों से जुड़े। मुझे खुशी होती है कि अपनी इस कोशिश में मैं बहुत हद तक सफल भी हुई हूँ। इन्होंने कहा कि जब मुझसे कोई कहता है कि नई पीढ़ी को पुस्तकों से लगाव नहीं है तो मैं  उन्हें बताती हूँ कि आप अपनी धारणा बदलिए। नई पीढ़ी खूब पढ रही है। मैं इसका साक्षी हूँ। मैं वर्षों से इसी अभियान में लगी हूँ। इसे आप मेरा दुस्साहस भी कह सकते हैं। यह काम छोटी- सी नौका लेकर समुद्र पार करने जैसा है। संजना तिवारी ने कहा कि  यह संभव इसलिए भी हो सका कि आप सबने मुझे भरपुर संबल दिया है। मैं जब भी साहित्य और कला-प्रेमियों के बारे में सोचती हूं तो मुझे अंग्रेज कवि किड्स की ये पंक्तियां याद आती हैं –

“आप में इतनी सारी चीजें हैं
और आप हैं मेरे पास
फिर मैं कैसे कहूं कि
मेरे पास कुछ भी नहीं है।”

प्रधानमंत्री के संबोधन से विपक्ष के उड़े होश

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वाधीनता दिवस पर लगातार ग्यारहवीं बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए अपनी भविष्य की राजनीति की पटकथा लिख दी और साथ ही सभी अराजक तत्वों व राजनीतिक शत्रुओं को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत की विकास यात्रा रुकने वाली नहीं है। प्रधानमंत्री के तेवरों से स्पष्ट है कि सीटें कम हो जाने के बाद भी उनके  संकल्प थमने वाले नहीं हैं अपितु वह अपने सभी संकल्पों को नये कलेवर के साथ पूर्ण करने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। प्रधानमंत्री के संबोधन से उन सभी दलों व नेताओं के सपने चकनाचूर हो गये हैं गये हैं जो यह सोच रहे थे कि सहयोगी दलों की सहायता से टिकी सरकार अब गिरी तो तब गिर ही जाएगी। प्रधानमंत्री ने लाल किले से उन सभी ताकतों व उनके इको सिस्टम को हिलाकर रख दिया है जो येन केन प्रकारेण मोदी सरकार को गिराना चाहते हैं।

भारत के विरेधी दल कभी किसान आंदोलन के सहारे, कभी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के सहारे अराजकता फैला कर मोदी सरकार को गिराना चाहते हैं किंतु अभी तक यह सभी प्रयास एक के बाद एक धराशायी होते रहे हैं। अब घोर निराशा व हताशा में डूबा विपक्ष हर छोटी बड़ी बात में प्रधानमंत्री मोदी को ही जिम्मेदार बताने लगा है और भारत में बंगला देश जैसे हालत  बनाने की धमकी दे रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन सभी षड्यंत्रों से पूरी तरह परिचित हैं तभी उन्होंने विरोधियों के सभी पैंतरों का अपने 98 मिनट लम्बे स्वाधीनता दिवस संबोधन में दो टूक उत्तर दिया। प्रधानमंत्री ने विदेशी शक्तियों को स्पष्ट सन्देश दिया – भारत  की शक्ति से किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम बुद्ध का देश हैं, यह वस्तुतः चीन व अमेरिका के लिए था  । प्रधनमंत्री ने अपने संबोधान में पाकिस्तान का नाम तक नही लिया और बांग्लादेश के हिन्दुओं के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बांग्लादेश शीघ्र ही  भारत के साथ विकास यात्रा में  शामिल होगा। प्रधानमंत्री संबोधन देते हुए किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं दिख रहे थे और उनका स्पष्ट लक्ष्य था, विकसित भारत 2047 जिसके लिए वह 24 घंटे अनवरत बिना रुके, बिना थके देश के विकास के लिए राष्ट्र प्रथम की भावना से  कार्य करने के लिए संकल्पवान हैं।

प्रधानमंत्री ने राष्ट्र की विकास यात्रा में सहभागी बन रहे सभी  समाज के सभी क्षेत्रों और वर्गों को छुआ। गांव, गरीब, किसान, युवा, महिला व सेना के जवान सहित सभी की चिंता करते हुए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं करते हुए सरकारी योजनाओं का संक्षिप्त खाका भी प्रस्तुत किया।
समान नागरिक संहिता – प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन से यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार अब समान नागरिक संहिता पर आगे बढ़ने जा रही है । प्रधानमंत्री ने संविधान निर्माताओं, संविधान की भावना और  सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व समय -समय पर की गई टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए कहा कि देश में भेदभाव वाले कानून अब नहीं रह सकते। उन्होंने वर्तमान सिविल कोड को सांप्रदायिक बताते हुए कहा कि देश ऐसे किसी कानून को बर्दाश्त नहीं कर सकता जो धार्मिक आधार पर विभाजन का कारण बने। उन्होंने कहाकि देश को ऐसे भेदभावकारी कानूनों से मुक्ति लेनी ही होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई आदेशों में देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का निर्देश दिया है।प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार से समान नागरिक संहिता पर बल दिया है उससे यह भी साफ हो गया है कि अब समान नागरिक संहिता जल्द ही कानून बनने जा रही है क्योंकि उत्तराखंड विधानसभा इसे पहले ही लागू कर चुकी है जबकि गुजरात में प्रस्तावित है तथा कई  और राज्य अब समान नागरिक संहिता लागू करने की ओर बढ़ रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने स्पष्ट संकेत कर दिया है कि अब धार्मिक आधार पर अलग -अलग कानूनों के दिन लदने वाले हैं। जो कानून देश को धर्म के आधार पर देश को बांटते हैं, जो ऊँच नीच का कारण बन जाते हैं ऐसे कानूनों का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता अतः अब देश मे सेक्युलर सिविल कोड होना चाहिए।  समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री मोदी के विचारों व संकल्पों से इंडी गठबंधन हिल गया है और  विभिन्न मीडिया प्लेटफार्मों पर इंडी सदस्यों द्वारा इसकी कड़ी निंदा प्रारम्भ हो गई।

प्रधानमंत्री ने यूनिवर्सल सिविल कोड को सेकुलर सिविल कोड के रूप में प्रस्तुत कर मुस्लिम परस्त राजनीति करने वाले खेमे में खलबली मचा दी है।अब सेकुलर शब्द पर एक नई बहस छिड़ गई है।  भाजपा के चुनावी संकल्पों में समान नागरिक संहिता एक प्रमुख विषय रहा है वहीं विपक्ष इसे अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। वहीं इस बार प्रधानमंत्री ने सेकुलर शब्द के माध्यम से एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है   जिसने न सिर्फ समान नागरिक संहिता को बल दिया है वरन विपक्ष को भी नि:शब्द करने का प्रयास किया है।  इन बातों से यह भी संकेत मिल रहा है कि आगामी दिनों में अल्पसंख्यक, समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष जैसे शब्द भी गायब हो जायेंगे और उसकी जगह पंथनिरपेक्ष जैसे शब्दों का समावेश हो जायेगा। समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष शब्द के विरुद्ध  सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी लम्बित है।

संविधान के नीति निर्देशक तत्व में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1985,1995, 2003 और 2015 में महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि देश में समान नागरिक संहिता लागू होनी चाहिए।

प्रधानमंत्री के संबोधन से यह तय हो गया है कि आगामी समय में एक देश एक चुनाव के साथ ही समान नागरिक संहिता लागू होकर रहेगी और वक्फ कानून में संशोधन भी होकर ही रहेगा। प्रधानमंत्री न्यायिक सुधार के प्रति और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई  के प्रति भी गंभीर हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि अब भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग रुकने वाली नहीं है अपितु अब यह और अधिक तीव्र होने जा रही है।

प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से बांग्ला देश हिन्दुओं की सुरक्षा पर गहरी चिंता व्यक्त की और बांग्लादेश को कड़ा संदेश भी दिया। प्रधानमंत्री ने यह भी बता दिया है  कि अब रिफार्म नहीं रुकने वाले हैं और भारत बहुत ही जल्द दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक  शक्ति बनकर उभरेगा। उन्होंने 2036 में भारत में आयोजित हो सकने वाले ओलिंपिक खेलों का भी उल्लेख किया।

विपक्ष युवाओं और रोजगार को लेकर काफी राजनीति करता है, प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में युवाओं के लिए कई सौगाते दी हैं जिसमे मेडिकल के क्षेत्र में 75हजार सीटें बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।प्रधानमंत्री का संकल्प है कि देश का विकास इतना तीव्र हो कि कोई भी  बेरोजगार न रहे।

दशकों के सामाजिक जीवन के बाद भी कितने अकेले

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अवधेश कुमार

दिल्ली। समाज का बहुत बुरा समय है। मेरा अपना स्वयं का और अनेक जानने वालों का साढ़े तीन – चार वर्षों का अनुभव है कि आप छटपटा कर मर जाइए लेकिन कोई एक आदमी इतना तक सोचने को तैयार नहीं है कि कुछ समय लगा कर देखा जाए कि उनकी समस्या क्या है। इनमें वो सब लोग शामिल हैं,  जिनके साथ आपने लंबा समय बिताया, जिनके साथ काम किया , जिनके लिए भी काम किया । जब कोई देखेगा ही नहीं तो किसी का सहयोग नहीं मिल सकता है। ऐसे लोग जो ठीक से खड़े हो गए तो स्वयं सहयोग करने वाले अनेक लोगों की मदद कर सकते हैं उनके लिए भी कोई समय निकालना या उनकी स्थिति समझने को तैयार नहीं है। कोई आदमी बीमार है या अन्य परेशानियों में है और किसी को फोन कर रहा है तो उधर से जवाब मिल रहा है आप आराम करिए।

एक बीमार व्यक्ति जो बेड पर है उसे यह शब्द कितना कचोटता होगा इसकी कल्पना करने वाले नहीं है। आप अनेक लोगों के जीवन में यही अनुभव आया होगा कि ज्यादातर लोग आप आपको कहेंगे कि आराम करिए, जबकि आपको उनके सहयोग की आवश्यकता हैं आपके इस शब्द से कोई व्यक्ति आत्महत्या तक कर सकता है । यह एक तकिया कलाम है और बिना सोचे – समझे बोल दिया जाता है । उसके आराम करने की स्थिति है या नहीं यह भी तो देखो। कुछ लोग आपको कहेंगे कि मेरे पास आ जाइए सब ठीक हो जाएगा। वह नहीं कहेंगे कि मैं आपके पास आ रहा हूं, बातचीत करता हूं, देखते हैं क्या रास्ता निकलता है। मुझे तो इस धरती पर एक आदमी नहीं मिला जो कभी घंटा भर भी मेरे निजी जीवन को जानने की कोशिश करे। मेरे अलावा एक आदमी नहीं जो मेरी शारीरिक समस्याओं , व्यक्तिगत समस्याओं या अन्य चीजों को जानने वाला है। जितना संभव था इन सालों में मैंने कोशिश की कि एक दो परिपक्व लोग कम से कम मेरे व्यक्तिगत जीवन से जुड़े रहें, जिन्हें पता रहे कि मेरे स्वास्थ्य की समस्या क्या है या व्यक्तिगत जीवन में क्या स्थिति है। इतने के लिए भी मैं कोई एक आदमी तलाश नहीं कर सका। ऐसा नहीं है कि मैंने लोगों से बात करने की कोशिश नहीं की होगी। अत्यंत बुरा अनुभव रहा। कई ऐसे हैं जो अपने जीवन में कठिनाइयों में है और उनमें भी मैं काफी हद तक मदद करने, साथ देने की स्थिति में रहा और इसका प्रस्ताव भी दिया। निश्चित रूप से व्यक्ति स्वयं अपने लिए जिम्मेवार है लेकिन जीवन में कोई अकेले सब कुछ नहीं कर सकता और यह हर व्यक्ति पर लागू होता है। ज्यादातर लोग परेशान हैं लेकिन दूसरे की परेशानी के लिए थोड़ा समय निकालने तक की सोच नहीं दिखाई दे रही है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव इतना भयावह है जिसका  मैं वर्णन भी नहीं कर सकता।

दूर से मेरे जानने वाले को लगता होगा कि काफी लोग मुझसे जुड़े होंगे और मेरा काम सब हो जाता होगा। सच इसके विपरीत है। आज एक व्यक्ति मुझे दिखाई नहीं पड़ता जिसे मैं किसी इमरजेंसी में फोन करूं। यही सच है। अकेले होने के कारण जो कुछ भी मैं करना चाहता था वह तो छोड़िए जो न्यूनतम कर सकता था वह भी नहीं कर पाया और न अपने को ठीक से खड़ा कर पाया। मैंने यही माना है कि जब मुझे जानने वाले लाखों की संख्या में लोग हैं और एक व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन से जुड़ने वाला नहीं  , जबकि मैं स्वयं भी लोगों को अनेक स्तर से पर साथ देने की स्थिति में हूं तो फिर यही शायद नियति है और इसके अनुसार जो भी अपनी दशा-  दुर्दशा है उसमें जितना संभव हो काम करो। लोगों को सुबह से रात तक मेरी सक्रियता दिखाई देती है वह केवल इस कारण है कि मैंने संकल्प लिया की काम तो देश और धर्म के लिए ही करना है व्यवस्था हो नहीं हो, स्वास्थ्य साथ दे, न दे, जितना संभव है उतना ही उतना अवश्य करें‌‌ । हां, इसमें मैंने इतना ध्यान रखा कि जो व्यवहार मेरे साथ हो रहा है वह मैं किसी दूसरे के साथ न करूं। जिस स्थिति में रहूं , किसी के संकट में ,समस्या में जितना संभव है अपनी ओर से अवश्य करूं।

 फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर लिखने का बहुत ज्यादा किसी को लाभ नहीं होता। बिना सोचे-  समझे कुछ भी लोग उत्तर दे देंगे। लेकिन फिर भी लगा कि साथियों को सचेत करने की दृष्टि से यह लिखा जाए। मैं कोई निराशा और हताश होकर नहीं लिख रहा हूं। निराश और हताश होता तो अनेक स्वस्थ और सभी प्रकार की व्यवस्थाओं वाले लोगों से ज्यादा काम इन वर्षों में किया है और आज भी कर रहा हूं। यह भी परमात्मा की कृपा है। किंतु सच यह है कि एक आदमी मेरे व्यक्तिगत जीवन में साथ नहीं है। मेरा सभी से आग्रह है कि थोड़ा ठहरकर सोचिए और आसपास देखिए। अनेक लोग निरर्थक समय गंवा देते हैं और अपना भी अकल्याण करते हैं। जब स्वयं परेशानी में आते हैं तो छटपटाना लगते हैं और कहते हैं कि मैंने उनके लिए यह किया उनके लिए यह किया जबकि इसमें बहुत कम सच होता है। आप जब तक अकेले हो तो सारी परेशानियां है और जैसे कुछ लोगों के साथ हो गए तो आपकी परेशानी भी दूर होने लगती है। थोड़ा-थोड़ा समय निकाल कर सब एक दूसरे का साथ देने लगें तो अनेक लोग आत्महत्या से, जीवन में निराश होकर बिखर जाने से या अनेक प्रतिभा नष्ट हो जाने से बचाए जा सकते हैं। हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ क्षमता व योग्यता है। वह किसी अवसर पर आपके काम आ सकता है।

मेरी कोशिश आज भी जारी है अपने लिए और दूसरे के लिए भी।

अंततः अखंड भारत का सपना होगा साकार

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ग्वालियर : प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी 15 अगस्त 2024 को पूरे भारतवर्ष में 77वां स्वतंत्रता दिवस बहुत ही धूम धाम से मनाया गया। दरअसल, भारतीय नागरिक 15 अगस्त 1947 के पूर्व अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत पराधीन थे  एवं 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के शासन से मुक्त होकर भारतीय नागरिक स्वाधीन हुए। इसलिए इस पर्व को स्वाधीनता दिवस कहना अधिक तर्कसंगत होगा। स्वतंत्र शब्द दो शब्दों से मिलाकर बना है (1) स्व; एवं (2) तंत्र। अर्थात स्वयं का तंत्र, इसलिए स्वतंत्रता दिवस कहना तो तभी न्यायोचित होगा जब स्वयं का तंत्र स्थापित हो। भारत के नागरिकों में आज “स्व” के भाव के प्रति जागृति तो दिखाई देने लगी है और वे “भारत के हित सर्वोपरि हैं” की चर्चा करने लगे हैं। परंतु, भारत में तंत्र अभी भी मां भारती के प्रति समर्पित भाव से कार्य करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, जिससे कभी कभी असामाजिक तत्व अपने भारत विरोधी एजेंडा पर कार्य करते हुए दिखाई दे जाते हैं और भारत के विभिन्न समाजों में अशांति फैलाने में सफल हो जाते हैं। स्व के तंत्र के स्थापित होने से आश्य यह है कि देश में हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन सुनिश्चित हो।
प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु था। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों सहित लगभग समस्त क्षेत्रों में भारतीय सनातन संस्कृति का दबदबा था। भारत को उस खंडकाल में सोने की चिड़िया कहा जाता था। भारत के विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से पूरे विश्व से विद्यार्थी भारत में आते थे। भारत पर शक, हूण, कुषाण एवं यवन के आक्रमण हुए, परंतु भारत पर उनके कुछ समय के शासन के पश्चात वे भारतीय सनातन संस्कृति में ही रच बस गए एवं भारत का हिस्सा बन गए। परंतु, अरब के देशों से मुसलमान एवं ब्रिटेन से अंग्रेजों के भारत पर चले शासन के दौरान उन्होंने भारतीय नागरिकों का बलात धर्म परिवर्तन करवाया, स्थानीय नागरिकों पर अकल्पनीय अत्याचार किए। भारत के बड़े बड़े प्रतिष्ठानों, मंदिरों एवं ज्ञान के स्थानों को नष्ट किया। अंग्रेजों ने तो भारतीय नागरिकों के साथ छल कपट करते हुए यह भ्रम फैलाया कि अंग्रेजों ने ही भारतीय नागरिकों को जीना सिखाया है अन्यथा भारतीय समाज तो असभ्य, अनपढ़ गंवार था। उन्होंने भारतीय सनातन संस्कृति पर गहरी चोट की। वे भारतीयों में हीन भावना भरने में सफल रहे। भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति को नष्ट किया। गुरुकुल नष्ट किए। अंग्रेजों को नौकर चाहिए थे अतः तात्कालिक शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन किए। इसी प्रकार की शिक्षा प्रणाली देश में आज भी चल रही है, जिसके अंतर्गत शिक्षित भारतीय केवल नौकरी करने के लिए ही उतावाले नजर आते हैं। वे अपना स्वयं का व्यवसाय स्थापित करने के प्रति रुचि ही प्रकट नहीं करते हैं। भारत में उद्योगपति अपने परिवार की विरासत से ही निकले हैं।
भारत को आक्रांताओं एवं अंग्रेजों के शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से समय समय पर भारत के तत्कालीन राज्यों के शासकों ने युद्ध भी लड़े एवं अपने स्तर पर उस खंडकाल में सफलता भी अर्जित की। जैसे, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, राणा सांगा आदि के नाम मुख्य रूप से लिए जा सकते हैं। इसी प्रकार, अंगेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने वाले वीर क्रांतिकारियों में रानी लक्ष्मीबाई, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद के नाम सहज रूप से लिए जा सकते हैं। स्वाधीनता प्राप्ति के उद्देश्य को लेकर मशाल आगे लेकर चलने वाले कई योद्धाओं में महात्मा गांधी, सरदार पटेल एवं सुभाषचंद्र बोस भी शामिल रहे हैं। इसी समय में विवेकानंद एवं डॉक्टर हेडगेवार ने भी सांस्कृतिक चिंतक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन सफलतापूर्वक किया था। इस प्रकार, अंततः भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के शासन से मुक्ति मिली एवं भारतीय नागरिकों को स्वाधीनता प्राप्त हुई। भारत के लिए यह एक नई सुबह तो थी परंतु यह साथ में विभाजन की त्रासदी भी लेकर आई थी। पूर्व एवं पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में एक नए देश ने भी जन्म लिया और इस दौरान करोड़ों नागरिकों ने अपनी जान गवाईं थी।
आखिर भारत का विभाजन हुआ क्यों? यदि इस विषय पर विचार किया जाय तो ध्यान में आता है कि दरअसल अंग्रेजों ने यह भ्रम फैलाया कि भारत में आर्य बाहर से आए हैं और इस प्रकार वे भारतीय नागरिकों में मतभेद पैदा करने में सफल हुए। साथ ही, उन्हें भारतीय नागरिकों में यह भाव पैदा करने में भी सफलता मिली कि भारत एक भौगोलिक इकाई है एवं यह कई राज्यों को मिलाकर एक देश बना है जबकि राष्ट्र एक सांस्कृतिक इकाई होती है न कि भौगोलिक इकाई। उस खंडकाल विशेष में अंग्रेजों द्वारा भारत में किया गया मुस्लिम तुष्टिकरण भी भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार है। राष्ट्रवादी मुसलमानों की उपेक्षा की गई थी एवं उस समय की जनभावना को बिलकुल ही नकार दिया गया था, इसके उदाहरण के रूप में ‘वन्दे मातरम’ कहने पर अंकुश लगाना एवं राष्ट्रीय ध्वज के रूप में भगवा ध्वज को स्वीकार नहीं करना, का वर्णन किया जा सकता है। और फिर, उस समय विशेष पर भारत का नेतृत्व भी मजबूत हाथों में नहीं था। उक्त कई कारणों के चलते भारत को विभाजन की विभीषिका को झेलना पड़ा था और करोड़ों नागरिक इससे बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुए थे।
वैसे तो भारत को पूर्व में भी खंडित किया जाता रहा है परंतु वर्ष 1947 में हुआ विभाजन सबसे अधिक वीभत्स रहा है। वर्ष 1937 में म्यांमार भारत से अलग हुआ था, वर्ष 1914 में तिब्बत को भारत से अलग कर दिया गया था, वर्ष 1906 में भूटान एवं वर्ष 1904 में नेपाल को भारत से अलग कर दो नए देश बना दिये गए थे एवं वर्ष 1876 में अफगानिस्तान ने नए देश के रूप में जन्म लिया था। यह सभी विभाजन भारत को पावन भूमि को विखंडित करते हुए सम्पन्न हुए थे। यह सिलसिला वर्ष 1947 में स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भी रुका नहीं एवं वर्ष 1948 में भारत के भूभाग को विखंडित कर श्रीलंका के रूप में नए देश का जन्म हुआ। वर्ष 1948 में ही पाकिस्तान के कुछ कबीलों ने भारत के कश्मीर क्षेत्र पर आक्रमण कर कश्मीर के एक हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था, जिसे आज ‘पाक आकुपाईड कश्मीर’ कहा जाता है। वर्ष 1962 में आक्साई चिन भी भारत से विखंडित हो गया था।
उक्त विखंडित हुए भूभाग से भारत का नाता आज भी बना हुआ है। जैसे, अफगानिस्तान में बामियान बुद्ध की मूर्तियां स्थापित रही हैं, जिन्हें बाद के खंडकाल में तालिबान ने खंडित कर दिया है। महाभारत काल में गांधारी आज के अफगानिस्तान राज्य की निवासी रही है। अफगानिस्तान शिव उपासना का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इसी प्रकार पाकिस्तान में तो तक्षशिला विश्वविद्यालय रहा है, जिसमें विश्व के अन्य देशों से विद्यार्थी अधय्यन के लिए आते थे। हिंगलाज माता का मंदिर है, भगवान झूलेलाल का अवतरण इस धरा पर हुआ था, साधु बेला, संत कंवरराम, ऋषि पिंगल, ऋषि पाणिनि भी इसी धरा पर रहे हैं। भगत सिंह, लाला लाजपत राय एवं आचार्य कृपलानी जैसे देशभक्तों ने भी इसी धरा पर जन्म लिया था। बंगला देश में भी आज ढाकेश्वरी मंदिर स्थित है जिसके नाम पर ही बांग्लादेश की राजधानी को ढाका कहा जाता है। जगदीश चंद्र बोस एवं विपिन चंद्र पाल जैसे महान देशभक्तों ने भी इसी धरा पर जन्म लिया है। नेपाल तो अभी हाल ही के समय तक हिंदू राष्ट्र ही रहा है एवं यहां पर कैलाश मानसरोवर, पशुपति नाथ मंदिर, जनकपुर जहां माता सीता का जन्म हुआ था एवं विश्व प्रसिद्ध लुम्बिनी, आदि नेपाल में ही स्थित हैं। इस दृष्टि से यह ध्यान में आता है कि भारत को एक बार पुनः अखंड क्यों नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि भारत से अलग हुए इन सभी देशों की सांस्कृतिक विरासत तो एक ही दिखाई देती हैं।
महर्षि अरविंद तो कहते ही थे कि भारत अखंड होगा क्योंकि यह ईश्वर की इच्छा है। स्वामी विवेकानंद जी को भरोसा था कि भारत एक सनातन राष्ट्र के रूप में अखंड होगा ही। आज हम सभी भारतवासियों को यह विश्वास अपने मन में जगाना होगा कि भारत एक अखंड राष्ट्र होगा ही इसके लिए मेहनत की पराकाष्ठा जरूर करनी होगी। हिंदू एक संस्कृति है न कि पूजा पद्धति, इस प्रकार का व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। अखंड भारत में समस्त मत पंथों को मानने वाले नागरिकों को अपनी पूजा पद्धति के लिए छूट होगी ही। इस संदर्भ में विघटनकारी सोच की राजनैतिक पराजय अति आवश्यक है। भविष्य में केवल भारत ही अखंड होगा, ऐसा भी नहीं है। इसके पूर्व एवं पश्चिमी जर्मनी एक हो चुके हैं, वियतमान में भी इसी संदर्भ में बाहरी षड्यंत्र विफल हो चुके हैं। इजराईल देश भी तो अनवरत साधना से ही बन पाया है, फिर भारत क्यों नहीं अखंड हो सकता।
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