पंच परिवर्तन बनेगा समाज परिवर्तन का सशक्त माध्यम

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले कहते हैं कि बौद्धिक आख्यान को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से बदलना और सामाजिक परिवर्तन के लिए सज्जन शक्ति को संगठित करना संघ के मुख्य कार्यों में शामिल है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए पिछले लगभग 99 वर्षों से निरंतर कार्य कर रहा है। भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन को गति देने एवं समाज में अनुशासन व देशभक्ति के भाव को बढ़ाने के उद्देश्य से माननीय सर संघचालक श्री मोहन भागवत ने समाज में पंच परिवर्तन का आह्वान किया है ताकि अनुशासन एवं देशभक्ति से ओतप्रोत युवा वर्ग अनुशासित होकर अपने देश को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करे। इस पंच परिवर्तन में पांच आयाम शामिल किए गए हैं – (1) स्व का बोध अर्थात स्वदेशी, (2) नागरिक कर्तव्य, (3) पर्यावरण, (4) सामाजिक समरसता एवं (5) कुटुम्ब प्रबोधन। इस पंच परिवर्तन कार्यक्रम को सुचारू रूप से लागू कर समाज में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। स्व के बोध से नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होंगे। नागरिक कर्तव्य बोध अर्थात कानून की पालना से राष्ट्र समृद्ध व उन्नत होगा। सामाजिक समरसता व सद्भाव से ऊंच-नीच जाति भेद समाप्त होंगे। पर्यावरण से सृष्टि का संरक्षण होगा तथा कुटुम्ब प्रबोधन से परिवार बचेंगे और बच्चों में संस्कार बढ़ेंगे। समाज में बढ़ते एकल परिवार के चलन को रोक कर भारत की प्राचीन परिवार परंपरा को बढ़ावा देने की आज महती आवश्यकता है।

भारत में हाल ही के समय में देश की संस्कृति की रक्षा करना, एक सबसे महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभरा है। सम्भावना से युक्त व्यक्ति हार में भी जीत देखता है तथा सदा संघर्षरत रहता है। अतः पंच परिवर्तन उभरते भारत की चुनौतियों का समाधान करने में समर्थ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले कहते हैं कि बौद्धिक आख्यान को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से बदलना और सामाजिक परिवर्तन के लिए सज्जन शक्ति को संगठित करना संघ के मुख्य कार्यों में शामिल है। इस प्रकार पंच परिवर्तन आज समग्र समाज की आवश्यकता है। पंच परिवर्तन में समाज में समरसता (बंधुत्व के साथ समानता), पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली, पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए पारिवारिक जागृति, जीवन के सभी पहलुओं में भारतीय मूल्यों पर आधारित ‘स्व’ (स्वत्व) की भावना पैदा करने का आग्रह जैसे आयाम शामिल हैं। नागरिक कर्तव्यों के पालन हेतु सामाजिक जागृति; ये सभी मुद्दे बड़े पैमाने पर समाज से संबंधित हैं। दूसरे, इन विषयों को व्यक्तियों, परिवारों और संघ की शाखाओं के आसपास के क्षेत्रों को संबोधित करने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है। इसे व्यापक समाज तक ले जाने की आवश्यकता है। यह केवल चिंतन और अकादमिक बहस का विषय नहीं है, बल्कि कार्रवाई और व्यवहार का विषय है।

व्यवहार में पंच परिवर्तन को समाज में किस प्रकार लागू करना है इस हेतु हम समस्त भारतीय नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे, क्योंकि पंच परिवर्तन केवल चिंतन, मनन अथवा बहस का विषय नहीं है बल्कि इस हमें अपने व्यवहार में उतरने की आवश्यकता है। उक्त पांचों आचरणात्मक बातों का समाज में होना सभी चाहते हैं, अतः छोटी-छोटी बातों से प्रारंभ कर उनके अभ्यास के द्वारा इस आचरण को अपने स्वभाव में लाने का सतत प्रयास अवश्य करना होगा। जैसे, समाज के आचरण में, उच्चारण में संपूर्ण समाज और देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो, प्रत्येक घर में सप्ताह में कम से कम एक बार पूजा या धार्मिक आयोजन हो एवं अपने परिवार के बच्चों के साथ बैठकर महापुरुषों के सम्बंध में सप्ताह में कम से कम एक घंटे चर्चा हो, परिवार के सभी सदस्यों में नित्य मंगल संवाद, संस्कारित व्यवहार व संवेदनशीलता बनी रहे, बढ़ती रहे व उनके द्वारा समाज की सेवा होती रहे, आदि बातों का ध्यान रखकर कुटुंब प्रबोधन जैसे विषय को आगे बढ़ाया जा सकता है।

मंदिर, पानी, श्मशान के सम्बंध में कहीं भेदभाव बाकी है, तो वह शीघ्र ही समाप्त होना चाहिए। हम लोग अपने परिवार सहित त्यौहारों के समय अनुसूचित जाति के बंधुओं के घर जाएं और उनके साथ चाय पान करें। साथ ही, हम अनुसूचित जाति के बंधुओं को सपरिवार अपने परिवार में बुलाकर सम्मान प्रदान करें। कुल मिलाकर समस्त समाज एक दूसरे के त्यौहारों में शामिल हों ताकि आपस में भाई चारा बढ़े एवं देश में सामाजिक समरसता स्थापित हो सके।

सृष्टि के साथ संबंधों का आचरण अपने घर से पानी बचाकर, प्लास्टिक हटाकर व घर आंगन में तथा आसपास हरियाली बढ़ाकर हो सकता है। अपने घरों में जल का कोई अपव्यय नहीं हो रहा है एवं अपने परिवार में हरियाली की चिंता की जा रही है। अपने घर में, रिश्तेदारी में, मित्रों के यहां सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का आग्रह किया जा रहा है आदि बातों पर ध्यान देकर देश में पर्यावरण को सुधारा जा सकता है।

स्वदेशी के आचरण से स्व-निर्भरता व स्वावलंबन बढ़ता है। फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए, देश का रोजगार बढ़े व देश का पैसा देश में ही काम आए, इस बात का ध्यान देश के समस्त नागरिकों को रखना चाहिए। इसीलिए कहा जा रहा है कि स्वदेशी का आचरण भी घर से ही प्रारंभ होना चाहिए। समस्त नागरिकों के घर में स्वदेशी उत्पाद ही उपयोग होने चाहिए।

देश में कानून व्यवस्था व नागरिकता के नियमों का भरपूर पालन होना चाहिए तथा समाज में परस्पर सद्भाव और सहयोग की प्रवृत्ति सर्वत्र व्याप्त होनी चाहिए। इन्हें हमारे नागरिक कर्तव्यों के रूप में देखा जाना चाहिए। समाज में व्याप्त कुरीतियों के उन्मूलन हेतु हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे। विशेष रूप से युवाओं में नशाबंदी समाप्त करने के लिए, मृत्यु भोज रोकने के लिए तथा विभिन्न समाजों में व्याप्त दहेज की कुप्रथा समाप्त करने के गम्भीर प्रयास हम समस्त नागरिकों को मिलकर ही करने होंगे।

संघ के स्वयंसेवक आनेवाले दिनों में समाज के अभावग्रस्त बंधुओं की सेवा करने के साथ-साथ, इन पांच प्रकार की सामाजिक पहलों का आचरण स्वयं करते हुए समाज को भी उसमें सहभागी व सहयोगी बनाने का प्रयास करेंगे । समाजहित में शासन, प्रशासन तथा समाज की सज्जनशक्ति जो कुछ कर रही है, अथवा करना चाहेगी, उसमें संघ के स्वयंसेवकों का योगदान नित्यानुसार चलता रहेगा। वर्ष 2025 से 2026 का वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने के बाद का वर्ष है। उक्त वर्णित समस्त आयामों में संघ के स्वयंसेवक अपने कदम बढ़ायेंगे, इसकी सिद्धता संघ द्वारा किए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

समाज की एकता, सजगता व सभी दिशा में निस्वार्थ उद्यम, जनहितकारी शासन व जनोन्मुख प्रशासन स्व के अधिष्ठान पर खड़े होकर परस्पर सहयोगपूर्वक प्रयासरत रहते है, तभी राष्ट्रबल वैभव सम्पन्न बनता है। बल और वैभव से सम्पन्न राष्ट्र के पास जब हमारी सनातन संस्कृति जैसी सबको अपना कुटुंब माननेवाली, तमस से प्रकाश की ओर ले जानेवाली, असत् से सत् की ओर बढ़ानेवाली तथा मृत्यु जीवन से सार्थकता के अमृत जीवन की ओर ले जानेवाली संस्कृति होती है, तब वह राष्ट्र, विश्व का खोया हुआ संतुलन वापस लाते हुए विश्व को सुखशांतिमय नवजीवन का वरदान प्रदान करता है । सद्य काल में हमारे अमर राष्ट्र के नवोत्थान का यही प्रयोजन है ।

आम चुनाव 2024 और बस्तर [ आलेख – 4 ]

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राजीव रंजन प्रसाद

एक शब्द है, सेल्फ गोल; क्या कॉंग्रेस के लिए यही सिद्ध होने जा रहा था? वर्ष 1957 के लोकसभा चुनावों में और विधान सभा के चुनावों में यह स्पष्टता हो गई थी कि बस्तर अब राजतंत्र के प्रभाव से निकल रहा है और मुख्यधारा की राजनीति के साथ कदमताल करने के लिए प्रस्तुत है

वर्ष 1957 में प्रवीर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजित हो कर विधानसभा पहुँचे। अनेक मतभेदों और कॉंग्रेस के स्थानी नेतृत्व से खीचातानी के फलस्वरूप वर्ष 1959 को उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। 11 फरवरी 1961 को राज्य विरोधी गतिविधियों के आरोप में महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव धनपूँजी गाँव में गिरफ्तार कर लिये गये। इसके तुरंत बाद फरवरी-1961 में प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट के तहत उन्हें नरसिंहपुर जेल ले जाया गया। राष्ट्रपति के आज्ञापत्र के माध्यम से 12.02.1961 को प्रवीर के बस्तर के भूतपूर्व शासक होने की मान्यता समाप्त कर दी गयी। प्रवीर के छोटे भाई विजयचन्द्र भंजदेव को भूतपूर्व शासक होने के अधिकार दिये गये। प्रवीर की गिरफ्तारी से बस्तर में शोक और आक्रोश का माहौल हो गया। बस्तर की जनता को विजय चंद्र भंजदेव के लिये “महाराजा” की पदवी मान्य नहीं थी। आदिवासियों से उन्हें “सरकारी राजा” का व्यंग्य विशेषण अवश्य प्राप्त हुआ। इसके विरोध में लौहण्डीगुड़ा तथा सिरिसगुड़ा में आदिवासियों द्वारा व्यापक प्रदर्शन किया गया था। 31 मार्च 1961 को प्रवीर की गिरफ्तारी के विरोध में लौहण्डीगुड़ा के बेनियापाल मैदान में बीस हजार से अधिक ग्रामीणों की भीड़ एकत्रित हुई। ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया। थाना-भवन से सौ मीटर की दूरी पर पुलिस जीप खड़ी थी जिसपर लाउडस्पीकर लगाया गया था। रह रह कर घोषणा की जा रही थी – भारत सरकार द्वारा विजय चंद्र भंजदेव को बस्तर का महाराजा घोषित किया गया है, अब वे ही आप सब के महाराजा है।

भीड़ का अपना व्यवहार शास्त्र होता है। यह भीड़ आंदोलित नहीं उद्वेलित थी। इस भीड़ का कहीं आग लगाने या तोड़ फोड़ करने का इरादा नहीं था। यह भीड़ केवल अपने महाराजा प्रवीर चंद भंजदेव के लिये इकट्ठी हुई थी, विशेष कर उनका कुशलक्षेम जानने। कई युवक तीर-कमान लादे थे तो कई फरसे और कुल्हाडी के साथ थे, पर ये सारे अस्त्र-शस्त्र केवल आभूषण भर ही रहे। यह भीड़ यदि असंयमित हो जाती तो मुट्ठी भर सिपाही उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे। लेकिन ‘हमारे महाराज को उपस्थित करो’ की एक सूत्रीय माँग के साथ खड़ी यह भीड़ किसी भी समय अराजक नहीं थी तथापि आश्चर्य कि सिपाहियों को गोली चलाने के आदेश मिल गये। बीस हजार की भीड़ को छटने में भी समय लगता। गोलियाँ चलायी जाती रहीं, लाशें बिछती रहीं। सोनधर, टांगरू, हडमा, अंतू, ठुरलू, रयतु, सुकदेव; हर मौत के साथ लौहण्डीगुड़ा का बेनियापाल मैदान खाली होता गया।

एक शब्द है, सेल्फ गोल; क्या कॉंग्रेस के लिए यही सिद्ध होने जा रहा था? वर्ष 1957 के लोकसभा चुनावों में और विधान सभा के चुनावों में यह स्पष्टता हो गई थी कि बस्तर अब राजतंत्र के प्रभाव से निकल रहा है और मुख्यधारा की राजनीति के साथ कदमताल करने के लिए प्रस्तुत है। वर्ष 1957 के चुनावों में कॉंग्रेस को बड़ी जीत इस परिक्षेत्र से प्राप्त हुई थी। महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के साथ जैसे जैसे दुर्व्यवहार होने लगे, सहानुभूति की लहर उनके पक्ष में होने लगी थी। भले ही व्यवस्था बदल गई हो लेकिन महाराजा प्रवीर की लोकप्रियता असाधारण थी इसे समझने में वे स्थानीय छुटभैये नेता भू कर रहे थे जिन्हे सत्ता-शासन का नया नया नशा हुआ था। तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और महाराजा प्रवीर के बीच की संबंध तल्खियों से भरे हुए थे जिसका उल्लेख प्रवीर अपनी पुस्तकों ‘लौहण्डीगुड़ा तरंगिणी’ और ‘आई प्रवीर द आदिवासी गॉड’ में स्पष्टत: करते हैं। लौहण्डीगुड़ा गोलीकाण्ड ने पूर्ण रूप से जाना समर्थन महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के पक्ष में कर दिया था।

वही कॉंग्रेस जिसके सुरती क्रिस्टैया ने वर्ष 1957 के चुनाव में 77.28% मत हासिल कर जीत प्राप्त की थी, वर्ष 1962 का चुनाव बुरी तरह हारे, उन्हें केवल 12.82% मत ही मिल सके और वे चुनावी समर में तीसरे स्थान पर रहे। इन चुनावों में कॉंग्रेस का मुकाबला तीन अन्य निर्दलीय प्रत्याशी कर रहे थे। निर्दलीय लखमू भवानी को 87557 (46.66%) मत प्राप्त हुए, निर्दलीय बोध दादा को 61348 (32.69%) मत प्राप्त हुए, कॉंग्रेस के सुरती क्रिस्टैया को 24057 (12.82%) मत प्राप्त हुए तथा निर्दलीय सुधू लखन को 14694 (7.83%) मत प्राप्त हुए। इस तरह एक बड़ी जीत निर्दलीय प्रत्याशी लखमू भवानी ने हासिल की। यहाँ स्मरण करना होगा कि बोध दादा ने वर्ष 1957 का चुनाव भी लड़ा था और वे सुरती क्रिस्टैया से भारी मतों से पराजित हुए थे, इस बार न केवल उन्हे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था बल्कि उन्हें कॉंग्रेस प्रत्याशी की तुलना में 19.87% अधिक मत भी प्राप्त हुए थे। यदि कॉंग्रेस के प्रतिपक्ष में केवल एक ही निर्दलीय प्रत्याशी होता तो सुरती क्रिस्टैया को रिकॉर्ड हार का सामना करना पड सकता था। इस पराजय के पीछे निस्संदेह महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की लोकप्रियता थी। ये चुनाव एक तरह से उनका शक्तिपरीक्षण थे। यहाँ जोड़ना होगा कि कॉंग्रेस की विधानसभा चुनावों में भी भारी दुर्गति हुई थी। वर्ष 1962 के विधानसभा चुनावों मे बीजापुर को छोड सर्वत्र महाराजा पार्टी के निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहे तथा यह तत्कालीन सरकार को प्रवीर का लोकतांत्रिक उत्तर था। इस विधानसभा चुनाव का एक और रोचक पक्ष है। कहते हैं कि राजनैतिक साजिश के तहत तत्कालीन जगदलपुर सीट को भी आरक्षित घोषित कर दिया गया जिससे कि प्रवीर बस्तर में स्वयं कहीं से भी चुनाव न लड़ सकें। उन्होंने कांकेर से पर्चा भरा और हार गये। कांकेर से वहाँ की रियासतकाल के भूतपूर्व महाराजा भानुप्रताप देव विजयी रहे थे।

प्रख्यात कथाकार मालती जोशी का निधन

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भोपाल। पद्मश्री से अलंकृत लोकप्रिय कथाकार श्रीमति मालती जोशी का दिल्ली में निधन हो गया। वे 90 वर्ष की थी । उनके अंतिम समय में उनके दोनों पुत्र ऋषिकेश और सच्चिदानंद जोशी(सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र) तथा पुत्र वधूए अर्चना और मालविका उनके पास थे। वे पिछले कुछ समय से आइसोफ़ेगस के कैंसर से पीड़ित थी।

भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि पचास से अधिक हिन्दी और मराठी कथा संग्रहों की लेखिका मालती जोशी, शिवानी के बाद हिन्दी की सबसे लोकप्रिय कथाकार मानी जाती हैं। वे अपने कथा कथन की विशिष्ट शैली के लिए जानी जाती थी। उनके साहित्य पर देश के कई विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हुए हैं। प्रो.द्विवेदी ने कहा कि उनके कथा संसार से भारतीय परिवारों,रिश्तों और मूल्यबोध की गहरी समझ पैदा होती है।

ईवीएम के जानकारों से विनम्र अनुरोध

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रंगनाथ

मुझे अपने विद्वान मित्रों से शिकायत है कि वे ईवीएम का इस्तेमाल ट्रम्प कार्ड की तरह करते हैं। वो चुनाव से पहले कुछ भी दावा करते रहते हैं, सही निकले तो जय लोकतंत्र जय संविधान और हार गये तो ईवीएम ईवीएम करने लगते हैं। ये चीटिंग है

मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि फिलहाल ईवीएम का क्या स्टेटस है? तीन चरण हो चुके हैं। सभी ईवीएम-वादी मित्रों से अनुरोध है कि अभी से स्पष्ट कर दें कि ईवीएम हैक हुई या नहीं! मैं मानता हूँ कि ईवीएम से चुनाव बैलट से काफी बेहतर हैं। पिछले 10 साल में ईवीएम को पहले से बेहतर बनाया जाता रहा है। अदालत ने भी उसमें कुछ सेफ्टी फीचर एड करवाए हैं। याद रखें कि ईवीएम कैलकुलेटर की तरह है न कि लोकल एरिया नेटवर्क या इंटरनेट से जुड़े कम्प्यूटर की तरह जिसे हैक किया जा सके।

पिछले 20 साल में मैंने किसी भी दल की विजय के बाद ईवीएम को उसका श्रेय नहीं दिया लेकिन मुझे अपने विद्वान मित्रों से शिकायत है कि वे ईवीएम का इस्तेमाल ट्रम्प कार्ड की तरह करते हैं। वो चुनाव से पहले कुछ भी दावा करते रहते हैं, सही निकले तो जय लोकतंत्र जय संविधान और हार गये तो ईवीएम ईवीएम करने लगते हैं। ये चीटिंग है।

यह तो वही मध्ययुगीन बात हो गयी कि युद्ध जीत गये तो बोले यह गॉड कृपा की वजह से हुआ है, और हार गये तो बोले कि गॉड हमको सबक देना चाहते थे! जिस तरह युद्ध में गॉड की कोई भूमिका नहीं होती, बल्कि वह रणनीतिक कुशलता, अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र, सैन्य बल की संख्या इत्यादि के आधार पर जीता जाता है, उसी तरह चुनाव में भी ईवीएम निमित्त मात्र है।

बैलट पेपर छीनकर मुहर मारना आसान है, बैलट बॉक्स में पानी भर देना उससे भी आसान है और महान सामाजिक न्यायवादी नेता ने इस कुकृत्य को कला के स्तर पर ले जाकर दिखाया था और आज भी जिन इलाकों में भारत जैसी ‘तानाशाही’ नहीं आयी है, वहाँ बैलेट से हुए चुनाव (जैसे हमारा पड़ोसी देश) का हाल पूरी दुनिया ने वायरल वीडियो के माध्यम से देखा। यह भी याद रखें कि दुनिया के किसी अन्य देश में करीब 100 करोड़ मतदाता नहीं हैं।

नेता हमेशा अपने और अपने पार्टी के हित के हिसाब से बोलते हैं। वे चुनाव नहीं जीतेंगे तो अच्छा या बुरा कुछ भी करने के लिए नहीं बचेंगे। इसलिए उनकी अतिरेकी बयानबाजियों की अनदेखी की जा सकती है लेकिन पत्रकार, अध्यापक, वकील इत्यादि बुद्धिजीवी ईवीएम विरोधी प्रोपगैंडा क्यों फैलाते रहते हैं!

हमारे देश के एकमात्र कट्टर ईमानदार वकील अपनी सनक को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक गये और उनकी शंकालु प्रवृत्ति को लेकर कुछ राहत दी गयी लेकिन उन्हें यह भी साफ कर दिया गया कि शक की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी, तो आप कृपया अदालत पर रहम करें।

दुनिया का हर तरह का धोखा भरोसे हासिल करने के बाद ही दिया जाता है। कुछ महान समाजसेवियों का यही हाल हो चुका है। वह किसी वाजिब मामल में अर्जित प्रतिष्ठा का इस्तेमाल अपनी अन्य तरह की सनक पूरी करने में लगाते हैं।

इस वर्ग ने ईवीएम को लेकर इतना दुष्प्रचार कर दिया है कि इस पोस्ट के नीचे भी कुछ लोग यह जरूर लिखेंगे कि तुम तो चाहते ही हो कि ईवीएम से चुनाव होता रहे! खैर, सामान्य मतदाताओं की ऐसी बातों का मैं बुरा नहीं मानता लेकिन जो लोग जिम्मेदार पेशों में हैं, उन्हें गैर-जिम्मेदार लोगों की तरह बात करने से बचना चाहिए।

ईवीएम से धांधली तभी हो सकती है, जब पोलिंग कराने वाली सरकारी टीम धांधली पर उतर आये। इंसान के चरित्र की गारंटी नहीं ली जा सकती, मशीन की ली जा सकती है। अच्छी बात यह है कि बाहरी धांधली रोकने के मामले में ईवीएम बैलट से बेहतर है। याद रखें कि मनुष्य जनित धांधली की कोई सीमा नहीं है। कल-परसों ही पश्चिमी यूपी के एक बूथ का वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक 15-16 की बच्ची किसी 50 साल की महिला के नाम पर वोट देने पहुंची थी। पोलिंग एजेंट के पूछने पर बच्ची ने कहा कि वह 12 में पढ़ती है!

ऐसा नहीं है कि कोई ईवीएम मशीन मैलफंक्शन नहीं करती या खराब नहीं होती। मुझे ऐसी कोई मशीन पता नहीं है, जो खराब नहीं होती। सबसे इलीट प्रोडक्ट बनाने वाले एप्पल जी के कुछ प्रोडक्ट का मेरा निजी अनुभव काफी खराब रहा है। भारत में इस समय अपवाद को सामान्य नियम बताने वालों की फौज खड़ी हो चुकी है। दो-चार मशीन खराब हैं तो सारी की सारी खराब हैं! एक व्यक्ति मर्द को किसी औरत ने पीट दिया तो भारत के सारे मर्द औरतों द्वारा पीटे जा रहे हैं!

औसतन 100 में 10 मशीन खराब निकले तो समझ में आता है कि यह चिन्ता की बात है कि 10 प्रतिशत मशीनें खराब निकल रही हैं, तो उनके प्रोडक्शन में सुधार की जरूरत है। मशीन का खराब निकलना प्रोडक्शन की समस्या है न कि टेक्नोलॉजी की। एप्पल का आईपैड या लैपटॉप इसलिए खराब नहीं निकलते कि उनकी टेक्निक में कोई समस्या है, बल्कि कुछ प्रोडक्ट का प्रोडक्शन मानकों के अनुरूप नहीं हो पाता।

यह भी याद रखें कि गॉड आलमाइटी के बनाए इंसान में इतनी खामियाँ हैं तो फिर उस इंसान की बनायी कोई चीज 100% परफेक्ट कैसे हो सकती है। ऐसे में सवाल ये है कि किसकी गुणवत्ता बेहतर है। मेरी राय में ईवीएम बेहतर है। सबकुछ सही रहा तो भारत ईवीएम निर्यातक देश बनेगा। कागज बचाकर पर्यावरण बचाना है या नहीं!

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