IIT Roorkee’s Innovative Framework for Landslide Early Warning in the Himalayas

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Media Scan Desk

  • Towards Safer Horizons – IIT Roorkee’s Novel Model for Enhancing Himalayan Landslide Forecasting

  • Harnessing Innovation and Collaboration to Safeguard Communities Since 1847

 Roorkee, India – Researchers from the Centre of Excellence in Disaster Mitigation and Management (CoEDMM) at the Indian Institute of Technology Roorkee unveiled a novel framework aimed at strengthening early warning systems for landslides triggered by rainfall in the Himalayas.

Landslides and debris flows, particularly in the Himalayan region, have long posed significant challenges, especially during extreme weather events. In response to these challenges, the collaborative efforts of experts in meteorology, hydrology, geomorphology, remote sensing, and geotechnical engineering have resulted in the development of an innovative approach that integrates meteorological modeling with numerical simulations of debris flows.

“At the core of our framework is integrating meteorological data generated by the WRF Model with numerical simulations of debris flows. This approach allows us to understand better the complex interactions between rainfall patterns and landslide dynamics.” explained Prof. S. Srikrishnan, lead researcher on the project.

The innovative framework developed by researchers at the Indian Institute of Technology Roorkee significantly enhances landslide prediction in the Himalayas. Key features include the use of the high-resolution WRF Model to analyze precipitation patterns crucial for landslide prediction, integrating an updated debris flow numerical model, and establishing specific rainfall intensity–duration thresholds through simulations. This comprehensive approach improves accuracy by considering factors such as soil moisture and past events like floods for fine-tuning. Ultimately, the framework aims to better prepare communities and mitigate the impact of landslides in the Himalayan region.

It leverages the Weather Research and Forecasting (WRF) Model to generate hourly rainfall data at a high resolution of 1.8 km × 1.8 km, providing localized insights crucial for landslide prediction. The framework incorporates an updated version of the debris flow numerical model, which meticulously considers factors like volumetric water content, moisture-content-dependent hydraulic conductivity, and seepage routines, ensuring more accurate simulations of landslide dynamics. Additionally, the model undergoes calibration using historical data from significant events such as the 2013 North India floods, aiding in the validation and refinement of its parameters. Lastly, the framework identifies rainfall intensity–duration thresholds for debris flows through parametric simulations based on various precipitation intensities, further enhancing its predictive capabilities. Given the societal impact of landslides, these advancements represent a significant leap forward in disaster preparedness endeavors, specifically targeting the reduction of geohazard impacts in the Himalayan region.

This pioneering effort, led by researchers from IIT Roorkee Mr. Sudhanshu Dixit, Prof. S. Srikrishnan, Prof. Piyush Srivastava, and Prof. Sumit Sen in collaboration with experts from IISER Mohali Prof. Yunus Ali Pulpadan, and Dr. Tapas Ranjan Martha from the National Remote Sensing Centre (NRSC), Indian Space Research Organisation (ISRO), seeks to enhance territorial landslide early warning systems (Te-LEWSs) in the Himalayas. The framework aims to contribute to better regional disaster preparedness by providing more refined thresholds that can predict landslide events. This research is funded by the Indian Space Research Organisation (ISRO) Disaster Management Support Program (DMSP) through the Indian Institute of Remote Sensing (IIRS).

Director of IIT Roorkee, Prof. K. K. Pant, expressed enthusiasm about the research outcomes, stating, “The collaborative efforts of our researchers exemplify the spirit of innovation and interdisciplinary cooperation that defines IIT Roorkee. This groundbreaking framework holds immense promise in bolstering disaster preparedness efforts not only in the Himalayan region but potentially across India.”

The research team’s findings are detailed in a paper titled “Numerical-model-derived intensity–duration thresholds for early warning of rainfall-induced debris flows in a Himalayan catchment,” published in Natural Hazards and Earth System Sciences.

The innovative framework developed by researchers at the Indian Institute of Technology Roorkee (IIT Roorkee) marks a significant milestone in enhancing landslide early warning systems in the Himalayas. Rooted in a tradition of excellence dating back to 1847, IIT Roorkee has continually spearheaded transformative research endeavors, exemplifying its commitment to societal welfare. With a rich history of pioneering social initiatives and contributions across diverse domains, IIT Roorkee stands at the forefront of addressing pressing challenges, such as disaster mitigation and management. This latest endeavor underscores the institution’s enduring legacy of innovation and interdisciplinary cooperation, further solidifying its role as a leader in advancing knowledge and fostering positive societal impact.

तरक्की की तरफ बढ़ते कदम, स्वरोजगार से बदलेगा जीवन

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ऐसे में कुशल युवकों के लिए रोजगार के द्वार खुल जाएंगे। इस योजना का प्रचार-प्रसार भी होना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक युवा इसका लाभ उठा सकें

बेरोजगारी अनेक समस्याओं की जड़ है। बेरोजगार युवा मानसिक तनाव की चपेट में आ जाते हैं। बहुत से युवा हताशा में नशे की लत के आदी बन जाते हैं। अकसर युवा भटक भी जाते हैं। कईबार वे आपराधिक दलदल में फंस जाते हैं। इसके कारण उनका जीवन तो नष्ट होता ही है, साथ ही परिवार की प्रतिष्ठा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। बेरोजगार युवकों द्वारा आत्महत्या करने केसमाचार भी सुनने को मिलते रहते हैं।

 बरोजगारी के कारण देश में बेरोजगारी के अनेक कारण हैं। इनमें निरंतर बढ़ती जनसंख्या प्रमुख है। इसके अतिरिक्त घटती कृषि भूमि, कुटीर उद्योंगों का निरंतर समाप्त होना, युवाओं का अपनेपैतृक कार्यों से मोहभंग होना तथा राजकीय नौकरी पाने की इच्छा आदि भी बेरोजगारी में वृद्धि होने के कारण हैं। यदि हम स्वतंत्रता से पूर्व के परिदृश्य पर दृष्टि डालें, तो उस समय लोग स्वरोगारमें ही लगे थे। किन्तु  स्वतंत्रता के पश्चात् जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई, उससे तीव्र गति से रोजगार में गिरावट आई। शिक्षा प्राप्त करने का उद्देश्य केवल राजकीय नौकरी प्राप्त करना होगया। जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई उस गति से रोजगार के अवसर सृजित नहीं हुए। परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या दिन- प्रतिदिन बढ़ने लगी।

    युवाओं को प्रशिक्षण नि:संदेह जीवनयापन के लिए रोजगार अत्यंत आवश्यक है। रोजगार प्राप्त करने के लिए कुशल होना अति आवश्यक है। बेरोजगारी के साथ-साथ अकुशलता भी एकचुनौती बनी हुई है। जो युवा कुशल हैं, उन्हें कहीं न कहीं रोजगार मिल जाता है। किन्तु जो युवा अकुशल हैं, उन्हें रोजगार प्राप्त करने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं की इस समस्या को समझा। इसलिए उन्होंने युवाओं को कुशल करने के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना प्रारंभ की। उन्होंने 25 सितंबर2014 को इसका शुभारंभ किया था।

इस योजना का उद्देश्य गरीब ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम पारिश्रमिक के समान या उससे अधिक मासिक पारिश्रमिक प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण विकासमंत्रालय द्वारा ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिए की क्रियान्वित की जा रही है। यह आजीविका प्रदान करने तथा निर्धनता कम करने का एक अभियान है, जो राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविकामिशन का एक भाग है। इससे ऐसे गरीब ग्रामीण युवा लाभान्वित हो रहे हैं, जो कुशल होना चाहते हैं। इसकी संरचना प्रधानमंत्री के अभियान ‘मेक इन इंडिया’ के लिए एक प्रमुख योगदानकर्ता केरूप में की गई है।

रोजगार के अवसर भारतीय जनता पार्टी द्वारा जारी लोकसभा चुनाव 2024 के घोषणा पत्र ‘भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024’ में कहा गया है कि पिछले दस वर्षों में 25 करोड़ लोगगरीबी से बाहर निकले हैं तथा 14 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत कौशल प्रशिक्षण से कुशल बनाया गया है। भारत को दुनिया के तीसरे सबसे बड़ेस्टार्टअप इको सिस्टम के रूप में स्थापित किया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया है कि वे स्टार्टअप का और अधिक विस्तार टियर-2 और टियर-3 शहरों में करेंगे। इसके अतिरिक्तदेश को पर्यटन और सर्विसेज का वैश्विक केंद्र बनाएंगे, जिससे पूरे देश में रोजगार के अवसर सृजित होंगे।

    स्वरोजगार की महत्ता स्वरोजगार का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसे अनेक मामले देखने में आए हैं, जब उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों ने अपनी नौकरी से त्याग पत्र देकर अपना व्यवसायप्रारंभ किया। नौकरी में सीमित आय होती है, जबकि व्यवसाय के माध्यम से व्यक्ति अपार संपत्ति अर्जित कर सकता है। देश के अनेक लोग व्यवसाय के माध्यम से ही निर्धनता से निकलकरधनवान बने हैं।

वास्तव में स्वरोजगार से जहां एक ओर बेरोजगार युवा को रोजगार मिलता है, वहीं दूसरी ओर उसके परिवार के अन्य सदस्यों को भी रोजगार प्राप्त होता है। इससे उन्हें नियमित रूप से काम मिलताहै। उनका रोजगार स्थायी होता है, तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है। इससे निर्धनता कम करने में भी सहायता मिलती है।

वास्तव में निर्धनों को आर्थिक अवसरों की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए उनके कार्य क्षमताओं को विकसित करने के संबंध में भी अपार अवसर हैं। देश के जनसांख्यिकीय अधिशेष को एकलाभांश में विकसित करने के लिए सामाजिक एकजुटता के साथ ही मजबूत संस्थानों के एक नेटवर्क का होना अति आवश्यक है। भारतीय और वैश्विक नियोक्ता के लिए ग्रामीण निर्धनों कोवांछनीय बनाने के लिए कौशल्य के वितरण के लिए गुणवत्ता और मानक सर्वोपरि हैं। इस योजना के अंतर्गत कई कार्य किए जाते हैं, जिनमें  कौशल्य एवं नियोजन, अवसर पर समुदाय के भीतरजागरूकता पैदा करना, निर्धन ग्रामीण युवाओं की पहचान करना, परिक्षण व कार्य में रुचि रखने वाले ग्रामीण युवाओं को एकत्रित करना, युवाओं और उनके माता-पिता की काउंसिलिंग तथायोग्यता के आधार पर उनका चयन करना, रोजगार के अवसर को बढ़ाने के लिए ज्ञान, उद्योगों से जुड़े कौशल और मनोदृष्टि प्रदान करना, ऐसी नौकरियां प्रदान करना, जिनका सत्यापन स्वतंत्रजांच करने की विधियों से किया जा सके और जो न्यूनतम पारिश्रमिक से अधिक भुगतान करती हों आदि सम्मिलित है। यह नियुक्ति के बाद कार्यरत व्यक्ति को स्थिरता के लिए सहायक भी है।

 दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना युवाओं को प्रशिक्षण देगी, जिससे उनके करियर में प्रगति होगी। युवाओं का विकास होगा। बेरोजगारी के कारण होने वाले पलायन में कमीआएगी। यह राज्यों को कौशल्य परियोजनाओं का पूर्ण स्वामित्व लेने के लिए सक्षम बनाती है। इस योजना के कई विशेष घटक हैं। इसके अंतर्गत सामाजिक रूप से वंचित समूह के अनिवार्यकवरेज द्वारा उम्मीदवारों का पूर्ण सामाजिक समावेश सुनिश्चित किया जाता है। धन का 50 प्रतिशत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, 15 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के लिए और तीनप्रतिशत विकलांग व्यक्तियों के लिए निर्धारित करने का प्रावधान है। उम्मीदवारों में एक तिहाई संख्या महिलाओं की होनी चाहिए। इस योजना के अंतर्गत एक त्रिस्तरीय कार्यान्वयन प्रतिरूप है।नीति निर्माण, तकनीकी सहायता और सरलीकरण एजेंसी के रूप में दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना राष्ट्रीय यूनिट ग्रामीण विकास मंत्रालय में कार्य करती है। यह योजना के राज्यमिशन कार्यान्वयन को समर्थन प्रदान करती है और परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसियां कौशल्य और नियोजन परियोजनाओं के माध्यम से कार्यक्रम को लागू करती है।

यह योजना बाजार की मांग के समाधान के लिए नियोजन से जुड़ी कौशल्य परियोजनाओं के लिए 25,696 रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति व्यक्ति तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है,जो परियोजना की अवधि और परियोजना के आवासीय या गैर आवासीय होने पर निर्भर करता है। योजना तीन महीने से लेकर 12 महीने तक के प्रशिक्षण अवधि की परियोजनाओं को वित्तीयसहायता प्रदान करती है। इस योजना के अंतर्गत अनुदान के घटक दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना 250 से अधिक व्यापार क्षेत्रों जैसे खुदरा, आतिथ्य, स्वास्थ्य, निर्माण, मोटरवाहन, चमड़ा, विद्युत, पाइप लाइन, रत्न और आभूषण आदि को अनुदान प्रदान करता है। इसका एकमात्र अधिदेश है कि कौशल प्रशिक्षण मांग आधारित होना चाहिए और कम से कम 75 प्रतिशत प्रशिक्षुओं की नियुक्ति होनी चाहिए।

ऐसे में कुशल युवकों के लिए रोजगार के द्वार खुल जाएंगे। इस योजना का प्रचार-प्रसार भी होना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक युवा इसका लाभ उठा सकें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना हैकि विकसित भारत के निर्माण के जिस संकल्प को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं, युवा उसके महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। हमारा दृष्टिकोण ऐसा विकसित भारत बनाना है जहां प्रत्येक युवा अपने श्रम एवंकौशल क्षमता का पूरा उपयोग कर सके। हम युवाओं को सीखते हुए कमाने के अवसर देने के लिए एनईपी के अंतर्गत एकीकृत शिक्षा प्रणाली विकसित करेंगे। हम युवाओं को एनईपी औरअन्य योजनाओं के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विश्व स्तरीय खेल सुविधाएं, रोजगार और उद्यमिता के अवसरों की गारंटी देते हैं।

अक्षय तृतीया : सरकारों ने बाल विवाह रोकने की ठानी

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जितेंद्र परमार

आठ राज्य सरकारों ने प्रशासनिक अमले को दिए इस अक्षय तृतीया हर हाल में बाल विवाह रोकने
के निर्देश

कई राज्य सरकारों ने लिया पंचायतों कोबाल विवाह मुक्तबनाने का संकल्प

कई राज्यों के विभागों ने अफसरों को धार्मिक गुरुओं, विवाह का कार्ड छापने वालों और रसोइयों को बाल विवाह के अपराध और इसके दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करने को कहा

देशभर के 161 गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन बाल विवाह मुक्त भारत ने दिया इन पहलों को पूर्ण समर्थन

जयपुर। देश की आठ राज्य सरकारों ने अधिसूचनाएं जारी कर सरकारी अमले को अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाह की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए गांवों और प्रखंडों में कड़ी निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं। जनगणना के 2011 के आंकड़ों केअनुसार देश में रोजाना 4000 बच्चों को बाल विवाह के नर्क में झोंक दिया जाता हैं। लेकिन विवाह के लिए शुभ माने जाने वाले अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाहों की संख्या में खास तौर से भारी बढ़ोतरी देखने को मिलती है। लेकिन इस वर्ष राज्यसरकारों के सख्त रुख को देखते हुए इसमें कमी की उम्मीद की जा सकती है। दस मई को पड़ने वाली अक्षय तृतीया से पूर्व राज्य सरकारों की इस अभूतपूर्व सामूहिक पहलों का स्वागत करते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान (सीएमएफआई) नेबाल विवाह की रोकथाम सुनिश्चित करने के लिए इन प्रयासों में हरसंभव सहयोग का हाथ बढ़ाया है। सीएमएफआई गहरे तक जड़े जमाए बैठे इस सामाजिक अपराध के खात्म के लिए बाल विवाह के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा दर वाले देश के 257 जिलों में जमीनी स्तर पर काम कर रहे 161 गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है।

सरकार के इन प्रयासों में पूर्ण सहयोग की बात दोहराते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के संयोजक रवि कांत ने कहा, “बाल विवाह एक गहरे तक जड़ें जमाए बैठा अपराध है जिसकी दुर्भाग्य से सामाजिक स्वीकार्यता है। इसके पूरी तरह खात्मे केलिए सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ एक बहुआयामी रणनीति और समन्वित कार्रवाइयों की आवश्यकता है। यह तथ्य कि बाल विवाह के खात्मे के लिए इतनी राज्य सरकारों ने अद्वितीय संकल्प का प्रदर्शन करते हुए कई पहलें की हैं, उम्मीदजगाने वाला है। इस अक्षय तृतीया अगर हम बच्चों को बाल विवाह के नर्क में झोंके जाने से बचा सके तो यह न सिर्फ हमारी साझा लड़ाई में एक बड़ी जीत होगी बल्कि एक नए मानदंड स्थापित करेगी। इस हौसले, परस्पर सहयोग और कार्रवाइयों सेभारत का 2030 तक बाल विवाह मुक्त होना निश्चित है।”

बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की राज्य सरकारों ने अपने राज्य के सभी जिलों के जिलाधिकारियों और ग्राम पंचायतों को निर्देश जारी कर बाल विवाहों की रोकथाम के लिए जरूरी एहतियातीकदम उठाने के निर्देश दिए हैं। महिला एवं बाल कल्याण विभाग, पंचायती राज, सामाजिक सुरक्षा निदेशालय और विभिन्न राज्यों के बाल अधिकार संरक्षण आयोगों ने बाल विवाह की रोकथाम के लिए अपने गांवों और पंचायतों में अनिवार्य रूप सेएक विवाह रजिस्टर रखने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, कई राज्यों ने अपने प्रशासनिक अमले को विवाह संपन्न कराने में अहम भूमिका निभाने वाले पंडितों, मौलवियों सहित सभी धर्मों के पुरोहितों, शादी में खाना बनाने वालों, शादी के कार्ड छापने वालोंके बीच जागरूकता अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं ताकि वे बाल विवाह के दुष्परिणामों और इसमें किसी भी तरह से भागीदार बनने के कानूनी परिणामों से अवगत हो सकें।

इन निर्देशों के अलावा हरियाणा के महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने बाल विवाहों की रोकथाम के उपायों के तौर पर सभी जिलों के जिलाधिकारियों को पढ़ाई बीच में छोड़ देने वाले बच्चों और लंबे समय से स्कूल से नदारद बच्चों की विद्यालयवारसूची बनाने के निर्देश दिए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने बाल विवाहों की रोकथाम में नाकामी पर गांव के मुखिया, पंचों और ग्रामस्तरीय बाल संरक्षण समितियों की जवाबदेही तय करने का फैसला किया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने पंड़ितों और मौलवियों कोविवाह संपन्न कराने से पहले जोड़े की उम्र को सत्यापित करने का भी निर्देश दिया है जबकि राजस्थान के पंचायती राज विभाग ने अक्षय तृतीया पर बाल विवाहों की रोकथाम के लिए सभी जिलाधिकारियों को एहतियाती कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।बताते चलें कि हाल ही में जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस की एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में राजस्थान सरकार को कहा कि वह सुनिश्चित करे कि इस अक्षय तृतीया कोई बाल विवाह नहींहोने पाए। साथ ही, हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह को रोक पाने में विफल रहने पर पंचों व सरपंचों की जवाबदेही तय की जाएगी।

बाल विवाह मुक्त भारत अभियान देश के 161 गैरसरकारी संगठनों का गठबंधन है जो 2030 तक इस बुराई के खात्मे के खात्मे के लिए बाल विवाह की ऊंची दर वाले 257 जिलों में राज्य सरकारों के करीबी समन्वय के साथ जमीनी स्तर पर काम कररहा है। यह गठबंधन बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ में बाल विवाह के खात्मे के लिए सुझाई गई रणनीतियों व रूपरेखा पर अमल करते हुए यह अभियान चला रहा है।भुवन ऋभु इस गठबंधन में शामिल गैरसरकारी संगठनों के सलाहकार हैं।

भारत में गरीबी उन्मूलन पर, गम्भीरता से ध्यान ही नहीं दिया गया

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पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय बैंकों के माध्यम से इस दृष्टि से बहुत ठोस कार्य किया गया है। केवल 50 करोड़ से अधिक बचत खाते विभिन्न भारतीय बैंकों में खोले गए हैं बल्कि आज इनबचत खातों में 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी जमा हो गई है

भोपाल। भारत में हाल ही के वर्षों में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में आई भारी कमी के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक एवं विकसित देशों के कई वित्तीय एवं आर्थिक संस्थानों ने भारत की आर्थिक नीतियोंकी मुक्त कंठ से सराहना की है। यह सब दरअसल भारत में तेज गति से हुए वित्तीय समावेशन के चलते सम्भव हुआ है। याद करें वर्ष 1947, जब देश ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी, उस समय देश की अधिकतम आबादी गरीबी रेखा के नीचेजीवन यापन करने को मजबूर थी। जबकि, भारत का इतिहास वैभवशाली रहा है एवं भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। परंतु, पहिले अरब से आक्रांताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने भारत को जमकर लूटा तथा देश के नागरिकों को गरीबी की ओरधकेल दिया। भारत में राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत से ‘गरीबी हटाओ’ के नारे तो बहुत लगे परंतु, गरीबी नहीं हटी। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ राजनैतिक दलों ने कई बार सता हासिल की किंतु देश से गरीबी हटाने के गम्भीर प्रयासशायद कभी नहीं हुए और गरीब वर्ग को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा।

भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को वर्ष 2014 में लागू किया गया जिसके माध्यम से आम नागरिकों के बैंकों में बचत खाते खोले गए, आवश्यकता आधारित ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित की गई, धन के प्रेषण की सुविधा, बीमा तथा पेंशन सुविधाभी उपलब्ध कराई गई। इस योजना के अंतर्गत जमाराशि पर ब्याज मिलता है, हालांकि बचत खाते में कोई न्यूनतम राशि रखना आवश्यक नहीं है। एक लाख रुपए तक का दुर्घटना बीमा भी मिलता है। साथ ही, इस योजना के माध्यम से दो लाखरुपए का जीवन बीमा उस लाभार्थी को उसकी मृत्यु पर सामान्य शर्तों पर मिलता है।

भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना को सफलता पूर्वक लागू करने के बाद प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना (Direct Benefit Transfer Scheme) को भी लागू किया गया जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा गरीब वर्ग के हितार्थचलाई जा रही विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि को सीधे ही हितग्राहियों के बचत खातों में जमा कर दिया जाता है। इससे विभिन्न योजनाओं के लाभार्थियों को 100 प्रतिशत लाभ की राशि सीधे ही उनकेहाथों में पहुंच जाती है। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत, वर्ष 2013 के बाद से 31 मार्च 2022 तक, 24.8 लाख करोड़ रुपए की राशि सीधे ही लाभार्थियों के बचत खातों में जमा की जा चुकी है, इसमें अकेले वित्तीय वर्ष 2021-22 में ही 6.3 लाख करोड़ रुपए की राशि लाभार्थियों के बचत खातों में हस्तांतरित की गई थी। वर्ष 2014 के पूर्व तक जब इन लाभार्थियों के बचत खाते विभिन्न बैंकों में नहीं खुले थे तब तक कांग्रेस एवं अन्य सरकारों के शासनकाल के दौरान विभिन्न योजनाओं केअंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि सामान्यतः नकद राशि के रूप में इन लाभार्थियों को उपलब्ध कराई जाती थी।

आपको शायद ध्यान होगा कि एक बार देश के प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी ने कहा था कि केंद्र सरकार से विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सहायता की राशि के एक रुपए में से केवल 16 पैसे ही लाभार्थियों तक पहुंचपाते हैं। शेष 84 पैसे इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र की जेब में पहुंच जाते है। अब आप स्वयं आंकलन करें कि यदि बैंक में 50 करोड़ लाभार्थियों के बचत खाते नहीं खुले होते और यदि उक्त वर्णित केवल 8 वर्षों के दौरान उपलब्ध कराई गई 25 लाख करोड़ रुपए से अधिक की सहायता राशि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न लाभार्थियों को नकद राशि के रूप में उपलब्ध कराई जाती तो इन लाभार्थियों के पास केवल 4 लाख करोड़ रुपए की राशि ही पहुंच पाती एवं शेष 21 लाख करोड़ रुपए कीराशि इन योजनाओं को चलाने वाले तंत्र के पास ही रह जाती। अब आप आगे एक और कल्पना कर लीजिये कि पिछले 70 वर्षों के दौरान कितनी भारी भरकम राशि इन गरीब हितग्राहियों तक नहीं पहुंच पाई होगी। इस राशि का आकार शायदआपकी कल्पना से भी परे है। सहायता की यह राशि यदि गरीबों तक पहुंच गई होती तो शायद हो सकता है कि देश से अभी तक गरीबी भी दूर हो चुकी होती। अब जब प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के अंतर्गत सहायता की राशि हितग्राहियों के खातों मेंसीधे ही पहुंच रही है तो देश से गरीबी भी तेजी से कम होती दिखाई दे रही है, जिसकी तारीफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुक्त कंठ से हो रही है।

पिछले 10 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय बैंकों के माध्यम से इस दृष्टि से बहुत ठोस कार्य किया गया है। न केवल 50 करोड़ से अधिक बचत खाते विभिन्न भारतीय बैंकों में खोले गए हैं बल्कि आज इन बचत खातों में2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी जमा हो गई है और बचत की यह भारी भरकम राशि बैंकों द्वारा देश के आर्थिक विकास में उपयोग की जा रही है। इस प्रकार, भारत का गरीब वर्ग भी इन बैंक खातों के माध्यम से देश के आर्थिक विकास मेंप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देता हुआ दिखाई दे रहा है। उक्त 50 करोड़ से अधिक बचत खातों में 50 प्रतिशत खाते महिलाओं द्वारा खोले गए हैं, अर्थात अब भारतीय महिलाएं, ग्रामीण महिलाओं सहित, भी आत्मनिर्भर बनती जा रही हैं।

भारी मात्रा में खोले गए इन बचत खातों के माध्यम से गरीब वर्ग के नागरिकों का बैकिंग सम्बंधी इतिहास भी धीरे धीरे विकसित हो रहा है, जिससे इस वर्ग के नागरिकों को बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने में आसानी होने लगी है। केंद्र सरकार द्वारा बैकों केमाध्यम से लागू की जा रही विभिन्न प्रकार की ऋण योजनाओं का लाभ भी अब गरीब वर्ग को मिलने लगा है। कोरोना महामारी के तुरंत बाद जब देश में स्थितियां सामान्य बनने की ओर अग्रसर हो रहीं थीं तब केंद्र सरकार ने खोमचा वाले, रेहड़ी वालेएवं ठेलों पर अपना सामान बेचकर छोटे छोटे व्यवसाईयों द्वारा अपना व्यापार पुनः प्रारम्भ करने के उद्देश्य से एक विशेष ऋण योजना प्रारम्भ की थी। इस योजना के अंतर्गत उक्त वर्णित छोटे छोटे व्यवसाईयों को बैंक द्वारा आसानी से ऋण प्रदान कियागया था क्योंकि इस वर्ग के नागरिकों के पूर्व में ही बैकों में बचत खाते खुले हुए थे। बैकों द्वारा यह ऋण बगैर किसी व्यक्तिगत गारंटी के प्रदान किया गया था। और, हजारों की संख्या में छोटे छोटे व्यवसाईयों ने निर्धारित समय सीमा में इस ऋण कोअदा कर, पुनः बढ़ी हुई राशि के ऋण बैकों से लिए थे और अपने व्यवसाय को तेजी से आगे बढ़ाया था। बैकों में खोले गए बचत खातों से गरीब वर्ग को इस प्रकार के लाभ भी हुए हैं।

भारत में प्रधानमंत्री जनधन योजना ने देश के हर गरीब नागरिक को वित्तीय मुख्य धारा से जोड़ा है। समाज के अंतिम छोर पर बैठे गरीबतम व्यक्तियों को भी इस योजना का लाभ मिला है। आजादी के लगभग 70 वर्षों के बाद भी भारत के 50 प्रतिशतनागरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ अर्थात बैकों से नहीं जुड़े थे। प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत खाताधारकों को प्रदान की जाने वाली अन्य सुविधाओं का लाभ भी भारी मात्रा में नागरिकों ने उठाया है। प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना से 15.99 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं, इनमें 49 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का जीवन बीमा केवल 436 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना से 33.78 करोड़ नागरिक जुड़गए हैं, इनमें 48 प्रतिशत महिला लाभार्थी हैं, इस योजना के अंतर्गत 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा केवल 20 रुपए के वार्षिक प्रीमीयम पर उपलब्ध कराया जाता है। अटल पेंशन योजना से 5.20 करोड़ नागरिक जुड़ गए हैं। मुद्रा योजना के अंतर्गत40.83 करोड़ नागरिकों को ऋण प्रदान किया गया है।

प्रधानमंत्री जनधन योजना अपने प्रारम्भिक समय से ही वित्तीय समावेशन के लिए एक क्रांतिकारी कदम मानी जा रही है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचत खातों में से लगभग 67 प्रतिशत बचत खाते ग्रामीण एवं अर्धशहरी केंद्रों पर खोले गए हैं, जिसे मजबूत होती ग्रामीण अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है। भारत में बैंकिंग व्यवस्था को आसान बनाने के उद्देश्य से डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाने का कार्य भी सफलतापूर्वक किया गया है। इस योजना के अंतर्गत खोले गए बचतखाताधारकों को रूपे डेबिट कार्ड प्रदान किया गया है। यह रूपे कार्ड उपयोगकर्ता द्वारा समस्त एटीएम, पोस टर्मिनल एवं ई-कामर्स वेबसाइट पर लेनदेन करने की दृष्टि से उपयोग किया जा सकता है। वर्ष 2016 में 15.78 करोड़ बचत खाताधारकों कोरूपे कार्ड प्रदान किया गया था एवं अप्रेल 2023 तक यह संख्या बचकर 33.5 करोड़ तक पहुंच गई है।

 

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