वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत का व्यापार घाटा 36 प्रतिशत कम हुआ

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भोपाल। विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत के लिए एक बहुत अच्छी खबर आई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के व्यापार घाटे में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। यह विशेष रूप से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में की गई कमी के चलते सम्भव हो सका है। केंद्र सरकार लगातार पिछले 10 वर्षों से यह प्रयास करती रही है कि भारत न केवल विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने बल्कि विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन भी भारत में ही प्रारम्भ हो। अब यह सब होता दिखाई दे रहा है क्योंकि भारत के आयात तेजी से कम हो रहे हैं एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराईल-हम्मास युद्ध, लाल सागर व्यवधान, पनामा रूट पर दिक्कत के साथ ही वैश्विक स्तर पर मंदी के बावजूद एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के हिचकोले खाने के बावजूद भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में मामूली बढ़ौतरी दर्ज हुई है। जिसका स्पष्ट प्रभाव भारत के व्यापार घाटे में आई 36 प्रतिशत की कमी के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है। भारत का कुल व्यापार घाटा वित्तीय वर्ष 2022-23 के 12,162 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में कम होकर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 7,812 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गया है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत में वस्तुओं का कुल आयात 67,724 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के 71,597 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में 5.41 प्रतिशत कम है। जबकि वस्तुओं के कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में मामूली 3.11 प्रतिशत गिरकर 43,706 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे हैं। देश के कुल निर्यात एवं आयात के बीच के अंतर को व्यापार घाटा कहा जाता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान देश में वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के अंतर का व्यापार घाटा 24,017 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है। परंतु, यदि वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़ों में सेवाओं के निर्यात एवं आयात के आंकड़े भी जोड़ दिए जाएं तो स्थिति बहुत अधिक सुधर जाती है। भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में पिछले वर्ष के उच्चत्तम रिकार्ड स्तर से भी आगे बढ़कर 77,668 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है, यह वित्तीय वर्ष 2022-23 में 77,640 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा था। इसमें वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान किया गया सेवाओं का निर्यात, जो 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 33,962 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, भी शामिल है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं में विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों, औषधियों एवं इंजीनीयरिंग वस्तुओं का अच्छा प्रदर्शन रहा है। इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का निर्यात वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,355 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 2,912 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 23.64 प्रतिशत अधिक है। इसी प्रकार, दवाओं एवं औषधियों का निर्यात भी 9.67 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए वित्तीय वर्ष 2022-23 के 2,539 करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023-24 में 2,785 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, इंजीनीयरिंग वस्तुओं का निर्यात भी 2.13 प्रतिशत की वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10,932 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। कुल मिलाकर, भारत से वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान निर्यात में वृद्धि इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, दवाएं एवं चिकित्सा, इंजीनियरिंग उत्पादों, लौह अयस्क (वृद्धि दर 117.74 प्रतिशत), सूती धागा (यार्न एवं फैब्रिक में वृद्धि दर 6.71 प्रतिशत), फल एवं सब्जी (वृद्धि दर 13.86 प्रतिशत), तम्बाकू (19.46 प्रतिशत), मांस, डेयरी और पौलट्री उत्पाद (12.34 प्रतिशत), अनाज एवं विविध प्रसंस्कृत वस्तुएं (8.96 प्रतिशत), मसाला (12.30 प्रतिशत), तिलहन (7.43 प्रतिशत), आयल मील्स (7.01 प्रतिशत), हथकरघा उत्पाद एवं सेरेमिक उत्पाद तथा कांच के बर्तनों (14.44 प्रतिशत) के निर्यात के चलते सम्भव हो सकी है। साथ ही, यह वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के प्रमुख निर्यात बाजार में अमेरिका, यूनाइटेड अरब अमीरात, यूरोपीयन यूनियन देशों, ब्रिटेन, सिंगापुर, मलेशिया, बांग्लादेश, नीदरलैंड, चीन व जर्मनी जैसे देशों के शामिल होने से भी सम्भव हो सका है।

वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव के चलते भी विशेष रूप से मार्च 2024 माह में तो भारत से वस्तुओं का निर्यात वित्तीय वर्ष 2023-24 में अपने उच्चत्तम स्तर 4,168 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रहा है, जबकि वस्तुओं के आयात मार्च 2024 माह में 5.98 प्रतिशत की कमी दर्ज करते हुए हुए 5,728 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर नीचे आ गए हैं। इस प्रकार मार्च 2024 माह में वस्तुओं का व्यापार घाटा लगातार कम होकर केवल 1,560 करोड़ अमेरिकी डॉलर का रह गया है। इसकी पूर्ति सेवाओं के क्षेत्र से निर्यात में हो रही लगातार बढ़ौतरी से सम्भव हो रही है। अब तो सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत कुल विदेश व्यापार में आधिक्य की स्थिति भी हासिल कर ले। वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में वृद्धि के साथ एवं वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात में लगातार हो रही कमी के चलते यह सम्भव हो सकता है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के कुल व्यापार घाटे (वस्तुओं एवं सेवाओं को मिलाकर) में आई भारी कमी के चलते अब यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि आगे आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपए की मांग भी बढ़ सकती है और पिछले कई दशकों के दौरान भारतीय रुपए में आ रही लगातार गिरावट को रोककर अब भारतीय रुपया न केवल स्थिर हो जाएगा (वैसे पिछले लगभग एक वर्ष के दौरान भारतीय रुपया 83 रुपए प्रति डॉलर के आसपास लगभग स्थिर तो हो ही चुका है) बल्कि भारतीय रुपए की कीमत भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ सकती है। भारतीय रुपए की अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर के साथ विनिमय दर वर्ष 1982 में 9.46 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर से 31 मार्च 2023 में 82.17 रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई थी। परंतु, पिछले एक वर्ष के दौरान यह विनिमय दर लगभग स्थिर ही रही है। दूसरे, अब कई देश भारत के साथ विदेशी व्यापार को रुपए एवं उन देशों की स्वयं की मुद्रा में करने को सहमत हो रहे हैं। जिसके कारण भारत एवं इन देशों के बीच होने वाले विदेशी व्यापार का भुगतान करने हेतु अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता कम होगी, बल्कि भारतीय रुपए में ही भुगतान सम्भव हो सकेगा। इस प्रकार के व्यवहार यदि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच बढ़ते हैं तो विश्व में विडालरीकरण की प्रक्रिया को भी गति मिल सकती है। भारतीय रुपए में व्यापार करने हेतु रूस, सिंगापुर, ब्रिटेन, मलेशिया, इंडोनेशिया, हांगकांग, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, ओमान, कतर सहित लगभग 32 देशों ने भारत के साथ समझौता किया है एवं भारतीय रिजर्व बैंक के साथ अपना वोस्ट्रो खाता भी खोल लिया है ताकि इन देशों को भारत के साथ किए जाने वाले विदेशी व्यवहारों के निपटान को भारतीय रुपए में करने में आसानी हो सके।

18 अप्रैल 1899 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दामोदर चाफेकर का बलिदान

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अंग्रेज अधिकारी चार्ल्स रैंड को गोली मारी थी : पूरा राष्ट्र संस्कृति और स्वत्व रक्षा केलिये समर्पित

–रमेश शर्मा

पुणे : दामोदर हरि चाफेकर एक ऐसे क्राँतिकारी थे जिनका पूरा परिवार राष्ट्र और संस्कृति रक्षा केलिये बलिदान हुआ तीन भाइयों को तो फाँसी हुई । उनका संघर्ष सत्ता केलिये नहीं था । समाज और संस्कृति की रक्षा के लिये था । इसी वातावरण में उनका जन्म हुआ और इसी में बलिदान
बलिदानी दामोदर हरि चाफेकर का जन्म 25 जून 1869 को पुणे के ग्राम चिंचवड़ में हुआ । पीढियों से उनका परिवार भारतीय सांस्कृतिक गौरव की प्रतिष्ठपना में समर्पित था । पिता हरिपंत चाफेकर एक सुप्रसिद्ध कीर्तनकार थे । दामोदर उनके ज्येष्ठ पुत्र थे । उनके दो छोटे भाई बालकृष्ण चाफेकर एवं वसुदेव चाफेकर थे। बचपन से ही तीनों भाइयों ने पिता के साथ संकीर्तन में जाना आरंभ किया और प्रसिद्धी भी मिली । इस परिवार के पूर्वजों ने शिवाजी महाराज के हिन्दु पद्पादशाही की स्थपना से लेकर बाजीराव पेशवा तक अनेक युद्धों में सहभागिता की थी, बलिदान भी हुये । पूर्वजों की वीरता की कहानियाँ तीनों भाई घर में बहुत चाव से सुनते थे । जिन्हे सुनकर तीनों के मन में परतंत्र शासन की ज्यादतियों के प्रति गुस्सा और स्वाभिमान संपन्न स्वशासन की ललक जाग्रत हो गई। ऐसी ही कहानियाँ सुनकर दामोदर के मन में भी सैनिक बनने की इच्छा जाग्रत हो गई। समय के साथ बड़े हुये और महर्षि पटवर्धन तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के संपर्क में आये । उनके संपर्क से संकल्प शक्ति और कार्य योजना जाग्रत हुई ।

तिलकजी की प्रेरणा से दामोदर जी ने युवकों को संस्कारित और एक संगठित करने का बीड़ा उठाया और व्यायाम मंडल के नाम से एक संस्था तैयार की । दामोदर के मन में ब्रिटिश सत्ता के प्रति कितना गुस्सा था इसका अनुमान इस एक घटना से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने मुम्बई में रानी विक्टोरिया के पुतले पर तारकोल पोतकर गले में जूतों की माला पहना दी थी । समाज में स्वत्व और स्वाभिमान का भाव जाग्रत करने के लिये तीनों भाइयों ने बालवय में 1894 पूना में प्रति वर्ष शिवाजी एवं गणपति समारोह का आयोजन प्रारंभ कर दिया था। इन समारोहों में वे संस्कृत के श्लोकों में शिवाजी महाराज की गाथा सुनाया करते थे । इनमें शिवाजी महाराज की कीर्ति का तो गान होता ही साथ ही इन श्लोकों के माध्यम से समाज में ओज जाग्रत करने का काम करते थे । यह संदेश देते थे कि स्वाधीनता नाचने गाने से प्राप्त नहीं की जा सकती । स्वाधीनता प्राप्त करने के लिये आवश्यक है कि शिवाजी और पेशवा बाजीराव की भाँति काम किए जाएं| आज हर भले आदमी को तलवार और ढाल पकड़ने की आवश्यकता है भले इसमें प्राणों का उत्सर्ग हो जाये । एक श्लोक में तो यहाँ तक आव्हान था कि धरती पर उन दुश्मनों का ख़ून बहा देंगे, जो हमारे धर्म का विनाश कर रहे हैं। हम तो मारकर मर जाएंगे । ऐसे अनेक आव्हान थे । गणपतिजी के श्लोक में धर्म और गाय की रक्षा करने का आव्हान था । अधिकांश दामोदर और उनके पिता द्वारा रचित थे । एक श्लोक का अर्थ था कि “ये अंग्रेज़ कसाइयों की भाँति हमारी गायों और उनके बछड़ों को मार रहे हैं । गौमाता संकट से मुक्ति की पुकार लगा रही है” वीर बनों, वीरता दिखाओ धरती पर बोझ न बनो आदि । तभी 1897 में प्लेग की बीमारी फैली । पुणे भी उन नगरों में से था जहाँ इस बीमारी ने कोहराम मचा दिया । फिर भी अंग्रेजों की वसूली न रुकी ।

पीड़ित और बेबस लोगों पर अंग्रेजों के अत्याचार कम न हुये । उन दिनों पुणे में वाल्टर चार्ल्स रैण्ड और आयर्स्ट नामक ये दो अधिकारी तैनात थे । इन दोनों लोगों को जबरन पुणे से निकाल कर बाहर करने लगे ताकि वहाँ रहने वाले अंग्रेज परिवारों में संक्रमण का खतरा न रहे । इनके आदेश पर पुलिस जूते पहनकर ही हिन्दुओं के घरों में घुसती न पूजा घर की मर्यादा बची न रसोई घर की । प्लेग पीड़ितों की सहायता की बजाय उन्हे और प्रताड़ित किया जाने लगा । ये तीनों चाफेकर बंधु परिस्थिति से आहत हुये और मन ही मन इसका उपचार खोजने लगे । समाधान समझने के लिये एक दिन तीनों भाई तिलक जी के पास पहुँचे। तिलक जी ने इन तीनों चाफेकर बन्धुओं से कहा- “शिवाजी महाराज ने अत्याचार सहा नहीं था पूरी शक्ति और युक्ति से विरोध किया था । किन्तु इस समय अंग्रेजों के अत्याचार के विरोध में कोई कुछ न कर रहा । वस इसी दिन से तीनों क्रांति के मार्ग पर चल पड़े। तीनों अपने शब्दों और स्वर से क्राँति की अलख तो जगा ही रहे थे । अब इसके बाद तीनों भाइयों ने स्वयं ही सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग अपना लिया। संकल्प लिया कि समाज को अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति दिलाकर रहेंगे ।

वह 22 जून 1897 का दिन था । पुणे के “गवर्नमेन्ट हाउस’ में महारानी विक्टोरिया की षष्ठि पूर्ति के अवसर पर राज्यारोहण की हीरक जयन्ती मनायी जा रही थी। इसमें वाल्टर चार्ल्स रैण्ड और आयर्स्ट भी शामिल हुए। दामोदर हरि चाफेकर और उनके भाई बालकृष्ण हरि चाफेकर भी एक दोस्त विनायक रानडे के साथ वहां पहुंच गए और इन दोनों अंग्रेज अधिकारियों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगे। रात लगभग सवा बारह बजे रैण्ड और आयर्स्ट निकले । दोनों अपनी-अपनी बग्घी पर सवार होकर रवाना हुये । योजना के अनुसार तुरन्त दामोदर हरि चाफेकर रैण्ड की बग्घी के पीछे चढ़ गये और उसे गोली मार दी । उधर उनके छोटे भाई बालकृष्ण हरि चाफेकर ने भी आर्यस्ट पर गोली चला दी। आयर्स्ट तो तुरन्त मर गया, किन्तु रैण्ड घायल हुआ जिसने तीन दिन बाद अस्पताल में दम तोड़ा। इससे जहाँ पुणे की उत्पीड़ित जनता चाफेकर-बन्धुओं की जय-जयकार कर उठी। वहीं पूरी अंग्रेज सरकार बौखला गई। दोनों चाफेकर बंधुओं को पकड़ने के लिये एक एक घर की तलाशी हुई । इनसे संबंधित परिवारों पर अत्याचार हुये पर दोनों बंदी न बनाये जा सके । इन्हें पकड़ने के लिये गुप्तचर अधीक्षक ब्रुइन ने इनकी सूचना देने वाले को २० हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा कर दी । चाफेकर बन्धुओं के युवा संगठन में गणेश शंकर द्रविड़ और रामचंन्द्र द्रविड़ नामक दो भाई भी जुड़े थे । इन दोनों ने पुरस्कार के लोभ में आकर अधीक्षक ब्रुइन को चाफेकर बन्धुओं का पता दे दिया। इस सूचना के बाद दामोदर हरि चाफेकर तो पकड़ लिए गए, पर बालकृष्ण हरि चाफेकर निकलने में सफल हो गये और पुलिस के हाथ न लगे। सत्र न्यायाधीश ने दामोदर हरि चाफेकर को फांसी की सजा दी । उन्होंने मन्द मुस्कान के साथ यह सजा सुनी। कारागृह में उनसे मिलने जाने वालों में तिलक जी भी थे । तिलक जी ने उन्हें “गीता’ प्रदान की। उन्हें 18 अप्रैल 1898 को प्रात: फाँसी दी गई। वे “गीता’ पढ़ते हुए फांसी घर पहुंचे और गीता हाथ में लेकर ही फांसी के तख्ते पर झूल गए। दामोदर चाफेकर को बलिदान हुये आज सवा सौ साल हो गये तो पर वे पुणे के लोक जीवन में आज जीवन्त हैं।

कोटिशः नमन बलिदानी वीर को

संकट के दौर में है सांस्कृतिक पत्रकारिता- डॉ. सच्चिदानंद जोशी

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– आईजीएनसीए में वरिष्ठ पत्रकार अजित राय की पुस्तक ‘दृश्यांतर’ का लोकार्पण हुआ
– लोकार्पण के साथ पुस्तक पर सार्थक चर्चा भी हुई

नई दिल्ली। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के उमंग सभागार में वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक अजित राय की पुस्तक ‘दृश्यांतर’ का लोकार्पण आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) प्रो. रमेश चंद्र गौर और वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकर ने किया। इस अवसर पर पुस्तक के लेखक अजित राय, नाट्य समीक्षक व पत्रकार संगम पांडेय, वाणी प्रकाशन के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी और कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल भी उपस्थित थे। पुस्तक के लोकार्पण के साथ-साथ उस पर गंभीर चर्चा भी हुई। दरअसल, पुस्तक पर चर्चा के बहाने भारत में सांस्कृतिक पत्रकारिता के महत्त्व, दशा और दिशा पर सार्थक बातचीत हुई।

इस मौके पर अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. सच्चिदानन्द जोशी ने कहा कि सभी को, खासकर विद्यार्थियों को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक पत्रकारिता के क्षेत्र में दस्तावेजीकरण का काम होना चाहिए। आज सांस्कृतिक पत्रकारिता बहुत खतरे के दौर में है। उन्होंने कहा कि हमारी जैसी सांस्कृतिक धरोहर है, विश्व में ऐसी सांस्कृतिक धरोहर कहीं नहीं है। उन्होंने चिंता जताई कि आज सांस्कृतिक पत्रकारिता हाशिये पर चली गई है और आज यह कमोबेश पेज-3 जर्नलिज्म तक सिमटकर रह गई है।

चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार गिरजाशंकर ने कहा कि अजित राय की पुस्तक का आना इस दौर में इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिस तरह से साहित्य और संस्कृति सत्ता के आखिरी पायदान पर रहते हैं, उसी तरह से मौजूदा समय की पत्रकारिता में भी साहित्य और संस्कृति की वही गति हो चुकी है। उन्होंने बताया कि पहले के अखबारों में साहित्य और संस्कृति के विशेष साप्ताहिक अंक निकलते थे। लेकिन आज के दौर में पत्रकारिता में साहित्य और संस्कृति लगभग खत्म हो चुकी है। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा, आज जब डाक्यूमेंटेशन की परम्परा हमारे समाज में धीरे धीरे खत्म हो रही है, तो इस तरह कि किताबों का आना अन्य लेखकों को भी ऐेसी पुस्तकें लिखने के लिए प्रोत्साहित करेगा।

वाणी प्रकाशन की अदिति माहेश्वरी ने अजित राय की लेखन यात्रा को रेखांकित करते हुए कहा कि ‘दृश्यांतर’ में विश्व सिनेमा का इतिहास भी और भारतीय सिनेमा का भविष्य भी। वहीं पुस्तक के लेखक अजित राय ने कहा कि सिनेमा के प्रति उनकी दीवानगी ने उन्हें दुनिया के सबसे बड़े फिल्म फेस्टिवल कान फिल्म फेस्टिवल के रेड कारपेट पर लाकर खड़ा कर दिया। यह कान फिल्म फेस्टिवल के 67 वर्षों के इतिहास में पहली बार था, जब कोई हिन्दी पत्रकार वहां तक पहुंचा। उन्होंने यह जोर देकर कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण विदेशों में हिन्दी को इतनी प्रतिष्ठा मिली है। उन्होंने दौरान उन्होंने कई रोचक किस्से भी सुनाए। वरिष्ठ पत्रकार व नाट्य समीक्षक संगम पांडेय ने अजित राय की पुस्तक ‘दृश्यांतर’ की रचना की पृष्ठभूमि के बारे में बताया। कार्यक्रम में आईजीएनसीए के जनपद सम्पदा प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. के. अनिल कुमार, कला दर्शन प्रभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. ऋचा कम्बोज सहित कई गणमान्य लोग और साहित्यप्रेमी भी मौजूद रहे।

अमेरिका में मीडियाकर्मी बस्नेत को यूनेस्को युवा शांति राजदूत पुरस्कार

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शंकरराज

अमेरिका- मीडियाकर्मी मनोज बस्नेत को यूनेस्को युवा शांति दूत पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। अमेरिका के लॉस एंजिल्स में आयोजित 18वें युवा शांति राजदूत प्रशिक्षण कार्यशाला के विशेष समारोह में, बैस्नेट को एक गैर-लाभकारी संगठन, यूथ यूनेस्को क्लब, यूएसए, अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ सॉवरेन नेशंस, यूएसए, यूबियोस एथिक्स इंस्टीट्यूट (न्यूजीलैंड और) के रूप में मान्यता दी गई। जापान), फिलीपीन एसोसिएशन ऑफ एक्सटेंशन प्रोग्राम इम्प्लीमेंटर्स, इंक. (पीएईपीआई) फिलीपींस, सेंट। पॉल यूनिवर्सिटी क्यूज़ोन सिटी (एसपीयूक्यूसी) फिलीपींस, यूथ लुकिंग बियॉन्ड डिजास्टर (एलबीडी), यूथ पीस एंबेसडर इंटरनेशनल (वाईपीए), द वर्ल्ड इज जस्ट ए बुक अवे (विजाबा, यूएसए और इंडोनेशिया), मैरीटाइम एकेडमी ऑफ एशिया एंड द पैसिफिक (एमएएपी) संयुक्त रूप से 2024-25 के लिए यूनेस्को युवा शांति राजदूत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ”राही बस्नेत ने मीडिया में युवाओं और शांति के लिए निभाई गई भूमिका की सराहना करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह पुरस्कार दिया है।” अमेरिकन यूनिवर्सिटी सॉवरेन नेशन यूएसए के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. डॉलर ने कहा, ‘वह इसके लिए और अधिक योगदान देंगी आने वाले दिनों में युवा और शांति।’

2011 से यह पुरस्कार हर साल विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं और शांति के लिए योगदान देने वाले लोगों को दिया जाता है। अब तक 65 देशों के लोगों को यह उपाधि मिल चुकी है। यूथ यूनेस्को क्लब यूएसए के अध्यक्ष रिमेश खनाल ने कहा, “इस पुरस्कार के साथ, उन्हें अब अंतरराष्ट्रीय मंच मिलेंगे,” हमने उन्हें उन सैकड़ों लोगों से राजदूत पद दिया है जिन्होंने दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं और शांति में योगदान दिया है। उसने कहा। रिपोर्टर से मीडिया मैनेजर बने बासनेट पिछले 17 साल से मीडिया से जुड़े हैं। वर्तमान में, वह कांतिपुर मीडिया समूह के बिक्री वितरण, प्रेस और क्षेत्रीय विभाग के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं।

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