आंदोलन का भी एक मौसम होना चाहिए

तृप्ति शुक्ला

(तृप्ति युवा पत्रकार हैं। नवभारत टाइम्स से जुड़ी हैं। सोशल मीडिया पर तृप्ति एक जाना पहचाना नाम हैं)

रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलजुग आएगा
आंदोलन में बैठ-बैठ, आंदोलनजीवी खाएगा

दरअसल, रामचंद्र कहीं कुछ ऐसा नहीं कह गए थे क्योंकि उनको भी ये अंदाज़ा नहीं था कि कलियुगी मानुष असल में कितना विकट हो सकता है। इतना विकट कि आंदोलनों तक पर जीवन बसर कर सकता है।

इन्हीं विकट मानवों के प्रताप का फल है कि आज की तारीख़ में आंदोलनों को हमारे देश में वो उच्च स्थान प्राप्त हो चुका है कि अब आंदोलनों को भी एक मौसम मानकर हमारी ऋतुओं में शामिल कर लेना चाहिए। न केवल शामिल कर लेना चाहिए बल्कि उसे ऋतुओं का राजा घोषित कर देना चाहिए। सर्दी, गर्मी, बरसात, वसंत और आंदोलन। पिछले कुछ सीज़न से देश में सर्दी आए न आए, आंदोलन पहले आ जाता है। रही बात दिल्ली की तो वहाँ तो सर्दी अब वैसे भी नहीं होती है, तो वहाँ सर्दी के मौसम को आंदोलन के मौसम से रिप्लेस किया जा सकता है।

क्या कहा? दिल्ली में सर्दी होती है? दो हफ़्ते की सर्दी को सर्दी नहीं कहते भइया और न ही कहते हैं मौसम। मौसम देखना है तो कभी शाहीनबाग में जुटे तो कभी दिल्ली बॉर्डर पर डटे आंदोलनजीवियों को देखो, दो-चार महीना तो यूँ चुटकियों में निकाल देते हैं। यही वजह है कि अब इस देश को आंदोलनों की आदत सी पड़ती जा रही है। मेरा एक दोस्त है, वो पहले शाहीनबाग के आंदोलन में जाकर बैठा था और फिर किसानों के आंदोलन में जाकर बैठ गया।

कभी-कभी मुझे उसकी फिकर होती है कि खुदा न खास्ता किसी साल देश में आंदोलन न हुआ तो उसको तो बहुत सूना-सूना लगेगा। कहीं सूनेपन में आकर कुछ कर-करा बैठा तो अलग झंझट। इसलिए अगली सर्दियां आते-आते हमें आगे बढ़कर अगला आंदोलन छेड़ देना चाहिए कि आंदोलन का भी एक मौसम डिक्लेयर किया जाए और अगली की अगली सर्दियों में आंदोलनजीवियों को आरक्षण दिलवाने के मुद्दे पर आंदोलन। फिर, उनको एक अलग राज्य बनाकर देने के मुद्दे पर आंदोलन, और फिर उस राज्य को अलग देश बनाने का आंदोलन, और फिर… क्या कहा? अलग देश बन जाएगा तो वहाँ के लोग करेंगे क्या! करेंगे क्या का क्या मतलब है? अरे भई, वही करेंगे जो पूरी दुनिया करती है, रोटी, कपड़ा और मकान का जुगाड़। मगर उस देश के लोगों को तो ये आता ही नहीं है। अरे हांँ! ये समस्या तो इन विकट कलियुगी मानवों से भी विकट है। तो ऐसा करना, अलग देश का आंदोलन मत करना। विशेष राज्य के दर्जे के ही आंदोलन से काम चला लेना।

ठीक बा?

वरिष्ठ अफसर जयदीप भटनागर संभाली PIB की कमान

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भारतीय सूचना सेवा के वरिष्ठ अफसर जयदीप भटनागर को प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो के प्रधान महानिदेशक पद पर नियुक्त किया गया है। उन्होंने 28 फरवरी 2021 को निवर्तमान प्रधान महानिदेशक कुलदीप सिंह धतवालिया से पदभार ग्रहण किया।

भटनागर भारतीय सूचना सेवा के 1986 बैच के अधिकारी हैं। इससे पहले वह दूरदर्शन न्यूज में कमर्शियल्स, सेल्स व मार्केटिंग डिविजन के प्रमुख रहे हैं।

प्रसार भारती के विशेष संवाददाता के तौर पर भटनागर पश्चिम एशिया में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इस दौरान उन्होंने 20 देशों को कवर किया। इसके बाद वे आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग के प्रमुख रहे।

भटनागर प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो के प्रधान महानिदेशक के दायित्व से पहले पीआईबी में विभिन्न पदों पर छह वर्षों तक रहे हैं। भटनागर ने कुलदीप सिंह धतवालिया के 28 फरवरी 2021 को सेवानिवृत्त होने के बाद कार्यभार संभाला है।

सरकार जल्द अनिवार्य करेगी डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स के लिए नियम

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जल्द ही ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय’ डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स के लिए अपने संस्थान के बारे में संपूर्ण विवरण देना अनिवार्य करने जा रहा है। दरअसल, मंत्रालय के पास अभी तक देश में चल रहे ऑनलाइन न्यूज मीडिया के बारे में पूरा ब्योरा नहीं है, इसलिए इस तरह की योजना पर काम चल रहा है।

मीडिया खबर के अनुसार, मंत्रालय एक ऐसा फॉर्म लाने की योजना बना रहा है, जिसे सभी डिजिटल न्यूज संस्थानों को एक महीने के भीतर भरकर जमा कराना होगा। इस फॉर्म में डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स को उनके एडिटोरियल हेड, स्वामित्व, पता और शिकायत निवारण अधिकारी समेत तमाम ब्योरा भरना होगा।

सूचना प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे का कहना है, ‘वर्तमान में सरकार के पास इस बात की पूरी जानकारी नहीं है कि इस सेक्टर में कितने और कौन-कौन से प्लेयर्स हैं। इन वेबसाइट्स पर जाने पर आपको ये भी नहीं पता चलेगा कि इनका ऑफिस कहां पर है और इनका एडिटर-इन-चीफ कौन है?’

सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का भी कहना है कि उनके मंत्रालय को भी नहीं पता कि देश में कितने न्यूज ऑर्गनाइजेशंस चल रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक मंत्रालय को पता ही नहीं होगा कि देश में कितने डिजिटल न्यूज पोर्टल्स हैं, तब तक उनसे किसी भी महत्वपूर्ण विषय पर सलाह-मशविरा कैसे किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप प्‍लेटफॉर्म्‍स के लिए गुरुवार को गाइडलाइंस जारी कर दी हैं। सरकार का कहना है कि इससे एक लेवल-प्‍लेइंग फील्‍ड मिलेगा।

श्री राम जन्मभूमि मंदिर निधि समर्पण अभियान पूर्ण

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विहिप ने ज्ञापित की कृतज्ञता

विनोद बंसल (राष्ट्रीय प्रवक्ता, विश्व हिन्दू परिषद)

अयोध्या में भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर बनने वाले भव्य मंदिर के निर्माण हेतु गत मकर संक्रांति को प्रारंभ हुए देश-व्यापी निधि समर्पण अभियान की पूर्णाहुति तो शनिवार को हो गई किन्तु अपने पीछे चिर-स्मरणीय यादें छोड़ गया। विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष व इस अभियान के राष्ट्रीय संयोजक एडवोकेट आलोक कुमार ने आज कहा है कि लगभग 10 लाख टोलियों में जुटे 40 लाख समर्पित कार्यकर्ताओं के माध्यम से शनिवार को संपन्न विश्व के इस सबसे बड़े अभियान में हमने प्रांत जिला, तहसील व गाँवों के घर-घर जाकर समर्पण निधि तो प्राप्त की ही साथ ही, रामजी के प्रति श्रद्धा, विश्वास व समर्पण के भाव ने गद-गद भी कर दिया। विश्व हिन्दू परिषद हिन्दू समाज के इस उदारता, समरसता व एकात्मता पूर्ण समर्पण के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती है।

विनोद बंसल

आलोक कुमार ने कहा कि लाखों गांवों व शहरों के करोड़ों हिन्दू परिवारों ने भक्ति पूर्ण भाव से इसमें सह-भागिता की। इस अभियान में कार्यकर्ताओं को अनेकों भावुक क्षणों से गुजरना पड़ा व अनेक व्यक्तियों को अपनी क्षमता से बहुत अधिक समर्पण करते हुए देखा। रामजी के लिए अनेक भक्तों ने अपनी छल-छलाती आँखों से विनम्रता पूर्वक अर्पण किया। अनेक जगहों पर निधि समर्पण टोली की राम दूत मान कर अगवानी व सेवा हुई। इसमें भारत के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति से लेकर फुटपाथ पर सोने वाले व्यक्तियों ने अपनी पवित्र आय में से समर्पण कर स्वयं को भगवान श्रीराम से जोड़ लिया। अब यह निश्चित हो गया है कि अयोध्या में जन्मस्थान पर बनने वाला यह भव्य राम मंदिर एक राष्ट्र मंदिर का भी प्रतीक होगा। विश्व के इस सबसे बड़े महा-अभियान के आँकडों, अनुभवों व प्रेरक प्रसंगों का संकलन हो रहा है जिन्हें हम शीघ्र ही देश के समक्ष रखने का प्रयास करेंगे।

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