आशीष कुमार ‘अंशु’
आम आदमी पार्टी को अब राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने वाला है। ऐसे में कांग्रेस को ही यह तय करना होगा कि उसे जमीन पर पहली लड़ाई किससे लड़नी है? भाजपा से या फिर आम आदमी पार्टी से
कांग्रेस के अंदर हिमाचल प्रदेश चुनाव परिणाम की सुखद खबर के बाद जहां देश भर के कार्यकर्ताओं में उत्साह दिखाई देना चाहिए। हर तरफ से कांग्रेस पार्टी के लिए आ रही बुरी खबर के बीच इस अच्छी खबर का स्वागत नहीं हो रहा।
यह हिमाचल के मतदाताओं के उस विश्वास का सम्मान नहीं है, जो उन्होंने कांग्रेस पर जताया है लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों से इस समय कांग्रेस की कुछ अलग ही तस्वीर सामने आ रही है। हिमाचल प्रदेश की बात की जाए तो वहां आधा दर्जन नेता मीडिया के माध्यम से अपनी-अपनी मुख्यमंत्री की दावेदारी पेश कर रहे हैं। जैसे देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के अंदर अब कोई अनुशासन बचा ही ना हो। बात सिर्फ हिमाचल प्रदेश की नहीं है। हिमाचल के साथ साथ कांग्रेस में गुजरात, राजस्थान, दिल्ली चारो तरफ घमासान मचा हुआ है।गुजरात में कांग्रेस पार्टी की हार के बाद पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं नवनिर्वाचित वडगाम विधायक जिग्नेश मेवाणी के अनुसार कांग्रेस ने उनकी क्षमताओं का सही उपयोग नहीं किया। जब उनके जैसा चेहरा कांग्रेस के पास था, जिसमें सात करोड़ गुजरातियों की कल्पना को पकड़ने की क्षमता है, जो गुजरात के अंदर कांग्रेस का एक विश्वसनीयता चेहरा है, जो भाजपा विरोधी है और उसके अनुयायी अच्छी संख्या में हैं, तो कांग्रेस पार्टी ने उनसे राज्य भर में जनसभाओं को संबोधित क्यों नहीं कराया? मेवाणी की शिकायत है कि वे पूरे गुजरात में कांग्रेस के लिए जनसभा करना चाहते थे लेकिन पार्टी ने उनसे प्रचार का काम सही तरह से नहीं लिया।राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जिग्नेश ने बयान देकर एक साथ दो तीर चलाए हैं। पहला गुजरात की हार से अपना पल्ला झाड़ लिया। इस बयान के बाद गुजरात हार के लिए जिग्नेश मेवाणी को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। दूसरा, इस बयान के माध्यम से उन्होंने अपनी आवाज 10 जनपथ तक पहुंचा दी है।कहने के लिए चाहे मलिकार्जून खडगे को कांग्रेस में अध्यक्ष का पद दे दिया गया हो लेकिन यह बात कांग्रेस के लोग जानते हैं कि पार्टी से शिकायत हो या पार्टी में किसी नेता की तरक्की, यह सब 10 जनपथ से ही तय होता है। 10 जनपथ कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी का आवास है।हिमाचल में कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया है। वहां सरकार बनाने की कवायद की जगह मुख्यमंत्री बनने की खींचतान शुरू हो गई है। दो नामों की लड़ाई में आधा दर्जन कांग्रेस के विजयी हुए नेता अपने लिए संभावना तलाशने में जुट गए हैं। हिमाचल में एक तरफ़ दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह हैं और दूसरी तरफ़ दूसरे ठाकुर नेता सुखविंदर सिंह सुक्खू हैं। इन दोनों के बीच प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए घमासान मचा है लेकिन इस बार असंतुष्ट नेताओं को लेकर कांग्रेस अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है। उसके पास महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश का अनुभव है। जब 18 विधायकों के साथ सुक्खू ने अपना मोबाइल बंद कर लिया था। उनका संपर्क अचानक हिमाचल में कैम्प कर रहे कांग्रेस के बड़े नेता राजीव शुक्ला, भूपेश बघेल और भूपेन्द्र हुड्डा से कट गया। उसके बाद थोड़े समय के लिए कयासों का बाजार गर्म हो गया था। इतनी मुश्किल से एक हिमाचल प्रदेश में सरकार बन रही है। वहां भी कहीं विपक्ष ने सेंध लगा ली तो देश भर में बहुत कीरकीरी होगी। वैसे शाम तक सुक्खू लौट आए लेकिन सीएम के नाम पर कांग्रेस के तीन वरिष्ठ नेता वहां आम सहमति नहीं बना पाए। अब तय हुआ है कि मुख्यमंत्री का नाम दिल्ली से तय होगा। मतलब सीएम के नाम वाला लिफाफा अब 10 जनपथ में खुलेगा।कांग्रेस की घमासान यहां थमती नहीं बल्कि राजस्थान से जहां शांति के संकेत पहले आ चुके थे। वहां गुजरात चुनाव परिणाम के बाद फिर से एक बाद बयानबाजी का सिलसिला प्रारंभ हो गया। बयानबाजी होनी भी थी क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस को प्रदेश में 77 सीटें मिली थीं। उसका श्रेय राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हिस्से गया था। वे गुजरात में पार्टी की तरफ से सक्रिय थे। इस बार सीटें 77 से सीधे 17 पर आ गई हैं तो राजस्थान में कांग्रेस के अंदर अशोक गहलोत के प्रतिद्वन्दी समझे जाने वाले नेता सचिन पायलट की तरफ से इस हार पर एक बयान बनता था। गुजरात के नतीजों पर उनका बयान भी आया। परिणाम कांग्रेस पार्टी की उम्मीदों से बेहद कम हैं। उन्होंने कहा कि हमारा आँकड़ा बहुत नीचे चला गया है। वे इतना कहकर अपनी बात समाप्त कर देते तो इस बयान के राजनीतिक मायने इस तरह नहीं निकाले जाते लेकिन सचिन पायलट ने अपनी बात में यह भी जोड़ा कि ”हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजे बताते हैं कि अगर कांग्रेस सही रणनीति, कैम्पेन और तरीक़े से अपनी बात रखें तो हम भाजपा को हर हाल में हरा सकते हैं।” गौरतलब है कि इस चुनाव में अशोक गहलोत के पास गुजरात के चुनाव का अभियान था और सचिन पायलट हिमाचल प्रदेश के चुनाव का प्रबंधन देख रहे थे। उसके बाद चुनाव परिणाम से संबंधित इस बयान के राजनीतिक मायने तो निकाले ही जाएंगे। वैसे गुजरात हार का सारा ठीकरा गुजरात के स्थानीय नेताओं के सिर पर फोड़ दिया गया है। वहां हुई हार के लिए दिल्ली के नेता नहीं बल्कि गुजरात के ही नेता जिम्मेवार हैं। ऐसा संदेश गुजरात कांग्रेस को जा चुका है। हार की इस जिम्मेवारी को लेने से गुजरात कांग्रेस के युवा नेता जिग्नेश मेवाणी ने इंकार भी कर दिया है।कांग्रेस की स्थिति दिल्ली में भी बिगड़ी है। दिल्ली प्रदेश के उपाध्यक्ष मेहदी, दो नवनिर्चाचित पार्षदों सबिला बेगम और नाजिया खातून के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं।आने वाले समय में कांग्रेस को सबसे पहले यह तय करना है कि कांग्रेस को आने वाले समय में मैदान में किससे पहली लड़ाई लड़नी है, भारतीय जनता पार्टी से या उसकी जमीन पैरों के नीचे से खींचने वाली आम आदमी पार्टी से। कांग्रेस इस देश में अपने अस्तित्व की लड़ाई को लड़ रही है। जहां जहां कांग्रेस का पतन हुआ है, उसकी मिट्टी से ही आम आदमी पार्टी को खाद पानी मिला है। दिल्ली, पंजाब के बाद अब गुजरात का उदाहरण सामने है। आम आदमी पार्टी को अब राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने वाला है। ऐसे में कांग्रेस को ही यह तय करना होगा कि उसे जमीन पर पहली लड़ाई किससे लड़नी है? भाजपा से या फिर आम आदमी पार्टी से।