हिंदूओं की जाति आधारित पुजारी व्यवस्था पर एक नास्तिक का वक्तव्य

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दिलीप मंडल

जिस दिन हिंदुओं का वंशानुगत, जाति-आधारित पुजारी सिस्टम नहीं रहा, वह दिन हिंदू धर्म के विनाश की शुरुआत का दिन होगा. तमाम हमलों, आलोचनाओं के बावजूद हिंदुओं को इस सिस्टम को बचाए रखना चाहिए.

मेरा वक्तव्य इस चिंता से आ रहा है कि हिंदू धर्म के कुछ अग्रणी लोग व संगठन इन दिनों अधिक ही सुधारवादी बनने के चक्कर में है. नाम नहीं ले रहा हूं. वे समझ जाएंगे.

हमारे जैसे लोग हिंदू धर्म में कंसेशन या बेहतर स्थान के लिए पुजारियों की आलोचना करेंगे. बहुत कड़वा बोलेंगे. इसे आंतरिक आलोचना मानिए. एडजस्ट करते रहिए. वैसे भी मंदिर की व्यवस्थाओं में हम लोग पावरफुल हैं. धर्म और शास्त्र की व्यवस्था आप ही संभालिए.

हर धर्म की एक मूल आत्मा, एक मूल स्वभाव होता है. वो गया तो फिर कुछ नहीं बचता. वंशानुगत यानी मोटे तौर पर जाति-आधारित पुजारी व्यवस्था हिंदू धर्म की मूल आत्मा के तत्वों में शामिल है.

धर्म के मूल आधार, नींव की ईंट, पुजारियों को, उनके शास्त्रीय स्वरूप में संभाले रखिए. हम इसे जातिवादी सिस्टम कहेंगे. हमारी बातें सुनिए, पर मानिए मत. भूल कर भी नहीं.

पुजारियों की रक्षा करें, वे आपकी और आपके धर्म की रक्षा करेंगे. धर्म ही नहीं, हर विचार को एक पौधे की तरह देखना चाहिए, जिसे नियमित पानी की जरूरत होती है. वरना पौधा सूख जाता है.

जिस धर्म के पास पुजारी (उपासक, इमाम, पादरी) न हों, ऐसे धर्म मिट जाते हैं. हर धर्म के पुजारी सिस्टम की अपनी व्यवस्था है.

इस्लाम के लिए ये मिलिट्री सिस्टम की तरह है, हिंदुओं के लिए वंशानुगत, बौद्धों के लिए ज्ञान आधारित, ईसाई के लिए पावर सिस्टम. एक सिस्टम दूसरे के काम नहीं आएगा.

हिंदुओं को वंशानुगत सिस्टम की आदत है. ये उनका स्वभाव है.

मैं ये बात एक नास्तिक होने के बावजूद लिख रहा हूं और इसके पीछे मेरा वर्षों का अध्ययन और अनुभव है.

बाबा साहब को इस निष्कर्ष तक पहुंचने में बीस साल लगे.

बाबा साहब प्रारंभ में हिंदू धर्म के जाति आधारित पुजारी सिस्टम के कटु आलोचक थे. एनाहिलेशन ऑफ कास्ट में वे वंशानुगत पुजारी सिस्टम को समाप्त करे, इसे सभी जातियों के लिए खोलने, पुजारी के लिए परीक्षा कराने और चार्टर्ड एकाउंट की तरह पुजारियों के लिए राजकीय सनद की बात डिटेल में लिखते हैं,

पर प्रौढ़ होने और तमाम अनुभवों से गुजरने के बाद, जीवनकाल की अंतिम रचनाओं में से एक रिवोल्यूशन एंड काउंटर रिवोल्यूशन में वे व्यवस्था देते हैं कि वंशानुगत पुजारी व्यवस्था ने हिंदू धर्म को मुसलमानों के हमले से बचाया. ये न होने के कारण भारत में बौद्ध धर्म का पतन हो गया. बौद्ध धर्म इस्लाम के आक्रमण को झेल नहीं पाया.

यहां वे वंशानुगत पुजारी सिस्टम को हिंदुओं की समस्या नहीं, इंश्योरेंस स्कीम के तौर पर देखते हैं.

बाबा साहब की बाद की रचनाएं कम पढ़ी गई हैं.

हिंदू धर्म के हर विरोधी के निशाने पर सबसे ऊपर ये पुजारी होते हैं. ये अकारण नहीं है.

वह पुजारी जो अक्सर नाम मात्र की आमदनी पर, टूटी साइकिल में एक वीरान मंदिर में जाता है, देवता की पूजा करता है, दीपक जलाता है और जोर जोर से घंटा बजाता है, बेशक उसे सुनने वाला वहां एक आदमी न हो. वही आपके धर्म का रक्षक है.

हिंदू धर्म के हर विरोधी के लिए वह पुरानी धोती वाला गरीब पुजारी सबसे बड़ा दुश्मन है. इसलिए वह हिंदुओं को खत्म करने के लिए इनको ही निशाना बनाता है.

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