उमेंद्र दत्त
चंडीगढ़ । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को जो लोग वर्षों से नज़दीक से जानते और उनके साथ काम करते आए हैं, वे भली-भांति जानते हैं कि वे विश्वास, सत्यनिष्ठा और कार्यकुशलता के मामले में कोई समझौता नहीं करते।
35 वर्षों का संगठनात्मक जीवन और 25 वर्षों का प्रशासनिक अनुभव किसी साधारण व्यक्ति का नहीं होता। ऐसे नेता को यह पूरी समझ होती है कि उसके आसपास कौन है, किस उद्देश्य से है और किस योग्यता के आधार पर है।
हिरेन जोशी जैसे लोग यदि 18 वर्षों से लगातार उनके विश्वासपात्र बने हुए हैं, तो यह किसी व्यक्तिगत निकटता का नहीं बल्कि योग्यता, निष्कलंक चरित्र और कर्मठता का प्रमाण है।
2014 के बाद सरकार और जनता के बीच जो सीधा, निरंतर और प्रभावी संवाद स्थापित हुआ है, वह एक मजबूत, पारदर्शी और पेशेवर संचार तंत्र की देन है—और यही बात कुछ लोगों को सबसे अधिक अखरती है।
आज जब प्रधानमंत्री मोदी जी की राष्ट्रहित आधारित नीतियाँ, निर्णायक नेतृत्व और भ्रष्टाचार-विरोधी रुख देश को सुदृढ़ कर रहा है, तब कुछ राजनीतिक दल और वैचारिक समूह असहज हो जाते हैं। चुनावी या वैचारिक पराजय की हताशा में नीति पर बहस करने के बजाय व्यक्ति पर आक्रमण और दुष्प्रचार का सहारा लिया जाता है।
इसी क्रम में कभी पीएम के आसपास के लोगों को निशाना बनाकर अप्रत्यक्ष हमला किया जाता है।
तथ्यों के अभाव में आरोप लगाना, अटकलों के सहारे नैरेटिव गढ़ना और बार-बार “हिट एंड रन” की रणनीति अपनाना—यह सब अब जनता भली-भाँति पहचान चुकी है।
देश आज यह फर्क समझता है कि
आरोप क्या है और प्रमाण क्या है,
प्रचार क्या है और प्रदर्शन क्या है।
समय ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि
नरेंद्र मोदी न केवल व्यक्तिगत रूप से ईमानदार हैं, बल्कि अपने निकटतम सहयोगियों की सत्यनिष्ठा से भी कभी समझौता नहीं करते।
यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है—और यही कारण है कि तमाम दुष्प्रचार अभियानों के बावजूद उनका जनविश्वास लगातार और अधिक मजबूत होता गया है।



