“इंडियन स्टेट से लड़ाई” वाले बयान पर श्री राहुल गांधी के नाम “खुला प्रेम पत्र!”

Rahul-Gandhi-1.jpg

– अभिरंजन कुमार

प्रिय श्री राहुल गांधी जी,

आप एक लोकतंत्र में हैं। वस्तुतः दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हैं। हो सकता है कि आप इस सत्य को स्वीकार न कर सकें, लेकिन वास्तविकता यह है कि आप दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में हैं, जो सबके लिए सहिष्णुता, समानता, सम्मान और स्वतंत्रता के मानवतावादी विचारों की नींव पर सहस्त्राब्दियों से खड़ा है। इसलिए आपके प्रति पूर्ण सम्मान रखते हुए आपके नाम यह खुला प्रेम पत्र लिख रहा हूं।

तो प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
चूंकि आप दुनिया के सबसे विशाल और प्राचीन लोकतंत्र में हैं, जिसका प्रादुर्भाव 1947 या 2014 में ही नहीं हुआ है, इसलिए इस देश में अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता आपको सहस्त्राब्दियों से मिली हुई है। इसलिए आपको किसी भी व्यक्ति , विचार, संगठन या सरकार से असहमति एवं नाराज़गी रखने की स्वतंत्रता भी सहज ही प्राप्त है। इसलिए आप किसी का भी राजनीतिक विरोध करें, जनता को अपनी बातें समझाकर, उन्हें साथ लेकर चुनाव के माध्यम से किसी को भी सत्ता से उखाड़ फेंकें, इसकी भी आपको स्वतंत्रता है। इस लिहाज से आप भारतीय जनता पार्टी का विरोध करें, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध करें, मोदी शाह भागवत का विरोध करें, आपसे कोई गिला नहीं। लेकिन आप “इंडियन स्टेट” से विरोध और लड़ाई की बात कैसे कह सकते हैं, इसके बावजूद कि आप कह रहे हैं कि भाजपा और आरएसएस ने देश की सभी संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है?

प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
जब आप कहते हैं कि भाजपा और आरएसएस ने देश की संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है, तो इसमें प्रच्छन्न रूप से यह भी निहित है कि पहले किसी और का कब्जा था, जिसे छीनकर भाजपा और आरएसएस ने यह कब्जा किया है। तो वह कब्जा किसका था? स्पष्ट रूप से आप ही लोगों का था। 1947 से 2014 तक 67 वर्षों में 55 वर्षों तक केंद्र में आपकी पार्टी की सरकार रही, जिस दौरान देश ने बहुत गंभीरता से यह महसूस किया कि देश की सभी संस्थाओं पर आपकी पार्टी का प्रत्यक्ष कब्जा था। बीच के अन्य 12 वर्षों में चली कमज़ोर गठबंधन सरकारें भी संस्थाओं से आप लोगों का कब्ज़ा हटाने में सक्षम नहीं थीं, सो उस अवधि में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आप ही लोगों का कब्ज़ा रहा।

प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
उक्त अवधि में देश की तमाम संस्थाओं पर आप लोगों का कब्ज़ा इतना मजबूत था कि आपकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाराज़ होकर देश में उसी संविधान को निलंबित करके इमर्जेंसी लगा दी, जिसकी प्रति अपने हाथों में लेकर आजकल आप यत्र तत्र सर्वत्र घूमते हुए पाए जाते हैं। आप लोगों का कब्ज़ा इतना मजबूत था कि आप लोगों ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी सहित देश के समस्त संविधान निर्माताओं की भावनाओं की अवहेलना करते हुए देश के संविधान की प्रस्तावना तक बदल डाली और उसमें अवांछित तरीके से धर्मनिरपेक्ष शब्द डाल दिया। कृपया याद रखें कि आप संविधान की जिस प्रति के साथ इन दिनों यत्र तत्र सर्वत्र घूमते हुए पाए जाते हैं, वह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी सहित अन्य संविधान निर्माताओं द्वारा रचित मूल संविधान नहीं है। देश की संस्थाओं पर आप लोगों का कब्ज़ा इतना कठोर था कि शाहबानो नाम की पीड़ित किंतु बहादुर मुस्लिम महिला को सुप्रीम कोर्ट से मिले न्याय तक को आप लोगों ने कुचल दिया। वास्तव में वह न केवल एक बहादुर मुस्लिम महिला को कुचलना या, बल्कि समस्त मुस्लिम महिलाओं को, न्याय को और स्वयं देश के सर्वोच्च न्यायाधिकरण सुप्रीम कोर्ट को कुचलना था। देश की संस्थाओं पर आप लोगों का कब्ज़ा इतना मजबूत था कि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को आप की सरकार का तोता बताया था। आपके पूज्य पिताजी स्वर्गीय श्री राजीव गांधी जी के काल तक चुनाव आयोग की भी क्या हालत थी? चुनावों में बूथ लूट, हिंसा, हत्याएं और कमज़ोर नागरिकों को मतदान से रोके जाने की घटनाएं आम थीं। बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने जो चुनाव सुधार किए, वह वास्तव में चुनाव आयोग से आप लोगों का कब्ज़ा हटाने के लिए ही तो किए थे।

खैर, किस संस्था का नाम लेंगे, जिसपर आप लोगों का कठोर कब्जा नहीं था? देश की शिक्षा, संस्कृति और इतिहास के निर्धारण से जुड़ी तमाम संस्थाओं तक पर आप लोगों का कब्ज़ा रहा। आप लोगों ने झूठ सच जो चाहा, बच्चों को पढ़ाया, नागरिकों को बताया। कहीं से कोई चुनौती नहीं थी, इतना कठोर कब्जा था। आपके पुरखे एवं राजनीतिक परिवार के लोग स्वयं ही भारत रत्न ले लेते थे, अपने जन्मदिन को राष्ट्रीय दिवस घोषित करा लेते थे, लेकिन संस्थाओं पर कब्जा इतना कठोर था कि आलोचना के किसी स्वर की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं थी। यहां तक कि आप लोगों ने लगभग 90 बार विभिन्न राज्यों में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त कर दिया, जिनमें आपकी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी ने अकेले 50 से अधिक राज्य सरकारों को बर्खास्त किया था।

लेकिन 67 वर्षों तक देश की तमाम प्रमुख संस्थाओं पर आप लोगों के ऐसे कठोर कब्जे के बावजूद आपके राजनीतिक विरोधियों और हम नागरिकों ने कभी यह नहीं कहा कि देश की समस्त संस्थाओं पर आप लोगों का कब्ज़ा इतना भयानक है कि “ऐसा लगता है कि अब हमारी लड़ाई इंडियन स्टेट से हो गई है।” लेकिन आप तो सिर्फ साढ़े दस साल सत्ता से बाहर रहने के बाद ऐसी मानसिक और वैचारिक स्थिति में पहुंच गए हैं कि अपनी लड़ाई को “इंडियन स्टेट” के ही खिलाफ बता रहे हैं। यद्यपि मैं ऐसे शब्दों का आपके लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहता, लेकिन यदि आपके विचार ऐसे हो गए हैं, तो दिल पर हाथ रखकर बताइए कि आपमें और नक्सलियों, माओवादियों अथवा आतंकवादियों में क्या अंतर रह गया है?

प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
आप इस लोकतंत्र में सबसे बड़े विपक्षी दल के सबसे बड़े नेता हैं और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। यदि आप ही सत्ता में नहीं होने अथवा देश के नागरिकों को अपने नेतृत्व एवं विचारों से प्रभावित नहीं कर सकने के कारण ऐसी मानसिक और वैचारिक स्थिति का शिकार हो जाएंगे, तो इस देश को दुश्मन ताकतों का शिकार बनने से कौन बचा सकता है? क्या कथित “इंडिया” गठबंधन आपने “इंडियन स्टेट” से लड़ने के लिए ही बनाया है? क्या आपकी पार्टी के अन्य नेता और आपके गठबंधन के अन्य सहयोगी भी यह मानने लगे हैं कि भाजपा और आरएसएस से लड़ते लड़ते अब उनकी लड़ाई सीधे इंडियन स्टेट से हो गई है? यदि ऐसा है, तब तो देश की राजनीति में यह अत्यंत ही खतरनाक दौर आ गया है, जब आपके नेतृत्व में देश के समस्त विपक्षी दल एकजुट होकर सीधे देश के खिलाफ ही जंग का ऐलान कर चुके हैं। यह अत्यंत चिंताजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है।

प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
हम जैसे नागरिक आपकी बातों को ध्यान से सुनते हैं, उसपर चर्चा करते हैं, प्रतिक्रिया देते हैं, कायदे से तो यह भी अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि देश की राजनीति, लोकतंत्र, व्यवस्थाओं और भाग्य पर आपके परिवार का लंबे समय से कब्जा बना हुआ है। आप एक ऐसे परिवार में पैदा हुए हैं, जो हम पर शासन करता रहा है, तो मजबूरन आपकी बात सुननी पड़ती है और जवाब देना पड़ता है। यदि आप हमारी तरह एक सामान्य परिवार में पैदा हुए होते तो आपकी किस मेधा और वैचारिक शक्ति के कारण आपकी बात इतनी सुनी जा सकती थी? देश के किसी भी मुद्दे पर बड़े बड़े विद्वानों तो छोड़ दीजिए, हम जैसे सामान्य नागरिकों से भी 15 मिनट डिबेट में आप टिक सकते हैं क्या? यहां स्पष्ट कर दूं कि इस पत्र में की जा रही यह टिप्पणी आपकी अवहेलना नहीं, बल्कि आपके अपने ही व्यवहार द्वारा प्रमाणित किए गए तथ्यों और घटनाओं पर आधारित है। जब आप किसी डिबेट में नहीं टिकते अथवा आपके पास किसी सवाल का जवाब नहीं होता, तो आप सवाल पूछने वाले को ही संघी-भाजपाई करार देते हैं। ऐसा आपने कई ऐसे पत्रकारों तक के साथ किया हुआ है, जिनकी देश के मुख्य विपक्षी दल के सर्वोच्च नेता होने के कारण आपसे सहानुभूति ही रही है।

इसलिए प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
आपको मेरी विनम्र सलाह यह होगी कि आप अपना वैचारिक परिष्कार कीजिए। इस बात की समीक्षा कीजिए कि आपकी पार्टी की नीयत और नीतियों से देश की एक विशाल आबादी का भरोसा क्यों उठ गया? यहां तक कि आपके नेतृत्व से भी अब तक आपके प्रति समर्पित रहे प्रमुख पार्टी व गठबंधन नेताओं का भरोसा क्यों उठता जा रहा है? आपकी पार्टी यदि महात्मा गांधी की राजनीतिक और वैचारिक विरासत का वारिस होने का दावा करती है, तो कृपया आप महात्मा की इस बात को अवश्य याद करें कि जब आप दूसरों की तरफ एक उंगली उठाते हैं, तो तीन उंगलियां स्वयं आप ही की तरफ होती हैं। आज मैं आपको स्पष्ट रूप से बता सकता हूं कि वे कौन सी तीन उंगलियां स्वयं आप ही की तरफ मुड़ी हुईं हैं? ये तीन उंगलियां हैं- आपका नेतृत्व, आपकी नीतियां, आपकी नीयत। इन तीनों पर ही देश के बहुतायत नागरिकों और यहां तक कि आपके सहयोगी नेताओं एवं दलों को भी भरोसा नहीं है। यदि किसी दिन आप इन तीन मुद्दों का सही समाधान कर लेंगे, तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपको सत्ता-विछोह से आसानी से मुक्ति मिल सकती है।

इसलिए प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
आपको मेरी विनम्र सलाह यह भी होगी कि “इंडियन स्टेट” से लड़ने के बजाय आप इंडिया यानी भारत की आत्मा, विचारों एवं संस्कारों को समझिए और अपनाइए। केवल अपने गठबंधन का नाम “इंडिया” रखने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि “आंख का अंधा, नाम नयनसुख” जैसी कहावतों का अर्थ इस देश के लोग खूब समझते हैं।

प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
अंत में फिर से यह कहना चाहता हूं कि यदि आप मोदी सरकार की किसी नीति का विरोध करना चाहते हैं, तो शौक से कीजिए। यदि आप भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के किसी विचार का विरोध करना चाहते हैं, तो भी धूम धाम से कीजिए। जहां लगता है, वहां मैं भी करता हूं, जैसे अभी आपके “इंडियन स्टेट” से लड़ाई वाले अगंभीर, अपरिपक्व, अचिंतित और अस्वीकार्य वक्तव्य का विरोध कर रहा हूं। प्रमुख कृषि-फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को मैंने देश के किसानों का जन्मसिद्ध अधिकार बताया है, जिससे भाजपा और आरएसएस के मेरे अनेक प्यारे भाई-बहन भी सहमत नहीं हैं। ऐसे और भी कई मुद्दे हैं जिनपर मौजूदा सरकार से मेरी असहमति है, जैसे आपसे भी असहमति है। लेकिन मैं न तो “इंडियन स्टेट” से लड़ाई लड़ रहा हूं, न ही भाजपा, आरएसएस, कांग्रेस और वामपंथी दलों सहित किसी भी राजनीतिक दल से लड़ाई में हूँ। आप सभी इस लोकतंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं और आप सभी के परस्पर विरोधी विचार भी इस लोकतंत्र में संतुलन पैदा करने का काम करते हैं। इसलिए आप सभी लोगों और लोकतंत्र के सभी महत्वपूर्ण अंगों के लिए मेरे मन में काफी सम्मान है।

प्रिय श्री राहुल गांधी जी,
चूंकि मैने सुना है कि आप अपनी पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं और यहां तक कि अपने मुख्यमंत्रियों तक से आसानी से नहीं मिलते हैं और उनका जब चाहे तिरस्कार कर देते हैं, इसलिए अब तक यह साहस नहीं जुटा पाया हूं कि आपसे मिलने का समय मांगूं और आपको यथोचित स्नेह व सम्मान के साथ समझाऊं कि लोकतंत्र का असली मतलब क्या है, भारत के मौलिक विचार और संस्कार क्या हैं, आप लोग क्या-क्या गलतियां कर रहे हैं और इंडिया, इंडियन स्टेट एवं इसके नागरिकों के प्रति वास्तव में आपके दायित्व क्या-क्या हैं।

आशा है, आप इन बातों को अन्यथा नहीं लेंगे और आवश्यक आत्मचिंतन एवं सुधार करेंगे।

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top