इस्लामिक कट्टरता एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है, जो धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक कारकों का परिणाम है। इस लेख में हम तीन मुख्य प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करेंगे: (1) इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों का कट्टरता में कितना योगदान है, (2) क्या कट्टरता ही मुस्लिम समुदाय को एकजुट रखती है, और (3) वैश्विक स्तर पर इस्लामिक कट्टरता क्यों एक समस्या बनी हुई है। इस विश्लेषण में संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाएगा, जिसमें तथ्यों और संदर्भों का उपयोग किया जाएगा।
1. इस्लामिक धार्मिक ग्रंथों का कट्टरता में योगदान
इस्लाम के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ—कुरान और हदीस—मुस्लिम समुदाय के लिए आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन के स्रोत हैं। इन ग्रंथों में शांति, दया, और सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने वाले कई आयतें और शिक्षाएं हैं। उदाहरण के लिए, कुरान की सूरह अल-काफिरून (109:6) में कहा गया है, “तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म, मेरे लिए मेरा धर्म,” जो धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।
हालांकि, कुछ आयतें और हदीस, विशेष रूप से जिहाद, शरिया कानून, और गैर-मुस्लिमों के साथ संबंधों से संबंधित, कट्टरपंथी समूहों द्वारा संदर्भ से बाहर निकालकर या शाब्दिक रूप से व्याख्या की जाती हैं। उदाहरण के लिए:
जिहाद से संबंधित आयतें: कुरान की सूरह अल-बकरा (2:191) में युद्ध के संदर्भ में “उन्हें मारो जहां कहीं पाओ” जैसी आयतों को कट्टरपंथी समूह हिंसा को उचित ठहराने के लिए उपयोग करते हैं, जबकि मूल संदर्भ रक्षात्मक युद्ध से संबंधित था।
शरिया की सख्त व्याख्या: कुछ हदीस और कुरान के अंशों को आधार बनाकर, जैसे दंड संहिता (हुदूद) या महिलाओं के अधिकारों से संबंधित नियम, कट्टरपंथी समूह सख्त सामाजिक नियम लागू करते हैं।
गैर-मुस्लिमों के प्रति दृष्टिकोण: कुछ आयतों, जैसे सूरह अल-तौबा (9:29), को गैर-मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाने वाला माना जाता है, हालांकि विद्वानों का कहना है कि ये विशिष्ट ऐतिहासिक संदर्भों में लागू थीं।
महत्वपूर्ण बिंदु:
व्याख्या का प्रश्न: कट्टरता का मूल स्रोत ग्रंथों की शाब्दिक और संदर्भ-रहित व्याख्या है, जो आधुनिक संदर्भों में लागू नहीं होती। उदारवादी मुस्लिम विद्वान, जैसे तारिक रमादान, इन ग्रंथों की प्रासंगिक और संदर्भ-आधारित व्याख्या की वकालत करते हैं।
चुनिंदा उपयोग: कट्टरपंथी समूह अपनी राजनीतिक और सामाजिक मंशा को सही ठहराने के लिए चुनिंदा आयतों का उपयोग करते हैं, जबकि शांति और सह-अस्तित्व की शिक्षाओं को अनदेखा करते हैं।
शिक्षा की कमी: कई क्षेत्रों में धार्मिक शिक्षा की कमी के कारण लोग इन ग्रंथों की गलत व्याख्याओं को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं।
इस प्रकार, धार्मिक ग्रंथ स्वयं कट्टरता का कारण नहीं हैं, बल्कि उनकी गलत व्याख्या और दुरुपयोग इसका कारण बनता है।
2. क्या कट्टरता मुस्लिम समुदाय को एकजुट रखती है?
मुस्लिम समुदाय की एकता एक जटिल मुद्दा है। विश्व भर में 1.9 अरब मुस्लिम आबादी विभिन्न संप्रदायों (सुन्नी, शिया, अहमदिया, आदि), संस्कृतियों, और राष्ट्रीयताओं में बंटी हुई है। कट्टरता कुछ समूहों को एकजुट करने में भूमिका निभाती है, लेकिन यह समग्र मुस्लिम समुदाय की एकता का आधार नहीं है।
कट्टरता और एकता:
साझा शत्रु का निर्माण: कट्टरपंथी समूह, जैसे अल-कायदा या ISIS, पश्चिमी देशों, गैर-मुस्लिम समुदायों, या उदारवादी मुस्लिमों को “शत्रु” के रूप में प्रस्तुत करके अपने अनुयायियों को एकजुट करते हैं। यह “हम बनाम वे” की मानसिकता समूह एकता को बढ़ावा देती है।
धार्मिक पहचान का उपयोग: कट्टरपंथी समूह इस्लाम को एक वैश्विक पहचान के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो राष्ट्रीय या सांस्कृतिक सीमाओं से परे है। यह कुछ हद तक युवाओं को आकर्षित करता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां सामाजिक-आर्थिक असमानता या पहचान का संकट है।
संगठित संरचना: कट्टरपंथी संगठन, जैसे तालिबान या बोको हराम, धार्मिक कट्टरता के आधार पर संगठित संरचनाएं बनाते हैं, जो उनके अनुयायियों को एकजुट रखती हैं।
सीमाएं:
संप्रदायिक विभाजन: सुन्नी-शिया संघर्ष, जैसे सऊदी अरब और ईरान के बीच तनाव, कट्टरता के बावजूद मुस्लिम समुदाय को एकजुट होने से रोकता है।
उदारवादी मुस्लिमों का विरोध: विश्व भर में अधिकांश मुस्लिम कट्टरपंथी विचारों का विरोध करते हैं। उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों में उदारवादी इस्लाम मुख्यधारा है।
राष्ट्रीय और सांस्कृतिक अंतर: भारतीय मुस्लिम, तुर्की के मुस्लिम, या सऊदी मुस्लिमों की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान धार्मिक एकता से अधिक प्रभावशाली होती है।
इसलिए, कट्टरता केवल कुछ छोटे समूहों को एकजुट करती है, लेकिन समग्र मुस्लिम समुदाय की एकता का आधार साझा धार्मिक मूल्य, सांस्कृतिक परंपराएं, और सामाजिक संबंध हैं, न कि कट्टरता।
3. वैश्विक स्तर पर इस्लामिक कट्टरता क्यों एक समस्या है?
इस्लामिक कट्टरता वैश्विक स्तर पर एक समस्या बन गई है, क्योंकि यह हिंसा, अस्थिरता, और सामाजिक तनाव को बढ़ावा देती है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक कारक:
औपनिवेशिक विरासत: मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में औपनिवेशिक शासन ने सामाजिक-आर्थिक असमानता और राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया, जिसने कट्टरपंथी विचारों को पनपने का मौका दिया।
पश्चिमी हस्तक्षेप: अफगानिस्तान, इराक, और सीरिया में पश्चिमी सैन्य हस्तक्षेप ने स्थानीय आबादी में असंतोष पैदा किया, जिसे कट्टरपंथी समूहों ने भुनाया।
तेल और हथियार: सऊदी अरब जैसे देशों ने तेल की संपत्ति का उपयोग वहाबी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए किया, जिसने कट्टरपंथ को वित्तीय और वैचारिक समर्थन दिया।
सामाजिक-आर्थिक कारक:
गरीबी और बेरोजगारी: कई मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में गरीबी, बेरोजगारी, और शिक्षा की कमी कट्टरपंथी संगठनों के लिए भर्ती का आधार प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, पाकिस्तान और नाइजीरिया में बोको हराम जैसे समूह युवाओं को आकर्षित करते हैं।
पहचान का संकट: पश्चिमी देशों में मुस्लिम प्रवासियों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी अक्सर सांस्कृतिक अलगाव और भेदभाव का सामना करती है, जिससे कुछ लोग कट्टरपंथी विचारों की ओर आकर्षित होते हैं।
तकनीकी और वैश्वीकरण:
सोशल मीडिया और प्रचार: ISIS जैसे समूहों ने सोशल मीडिया का उपयोग प्रचार और भर्ती के लिए किया, जिससे कट्टरपंथी विचार तेजी से फैले।
वैश्विक नेटवर्क: कट्टरपंथी संगठनों ने वैश्विक स्तर पर नेटवर्क बनाए, जैसे अल-कायदा का वैश्विक जिहाद नेटवर्क, जिसने स्थानीय मुद्दों को वैश्विक स्तर पर जोड़ा।
वैश्विक प्रभाव:
आतंकवाद: 9/11, पेरिस हमले (2015), और मुंबई हमले (2008) जैसे आतंकी हमलों ने इस्लामिक कट्टरता को वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बना दिया।
सामाजिक तनाव: यूरोप और भारत जैसे क्षेत्रों में कट्टरपंथी विचारों ने बहुसंस्कृतिवाद और सामाजिक एकता को चुनौती दी है।
मानवाधिकार उल्लंघन: तालिबान और ISIS जैसे समूहों द्वारा महिलाओं, अल्पसंख्यकों, और असहमत लोगों के खिलाफ अत्याचार ने वैश्विक चिंता बढ़ाई है।
धार्मिक सुधार: उदारवादी मुस्लिम विद्वानों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे कुरान और हदीस की संदर्भ-आधारित व्याख्या को बढ़ावा दें।
शिक्षा और जागरूकता: मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में शिक्षा और आर्थिक अवसरों को बढ़ाकर कट्टरपंथी विचारों को कम किया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग: आतंकवाद और कट्टरपंथ के खिलाफ वैश्विक सहयोग, जैसे वित्तीय नेटवर्क को तोड़ना और सोशल मीडिया पर प्रचार को रोकना।
सामुदायिक एकीकरण: पश्चिमी देशों में मुस्लिम समुदायों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए समावेशी नीतियां बनानी चाहिए।
संवाद और सह-अस्तित्व: विभिन्न धर्मों और समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देकर सामाजिक तनाव को कम किया जा सकता है।
इस्लामिक कट्टरता में धार्मिक ग्रंथों की गलत व्याख्या एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन यह सामाजिक, आर्थिक, और भू-राजनीतिक कारकों के बिना पूरी तस्वीर नहीं पेश करता। कट्टरता कुछ समूहों को एकजुट करती है, लेकिन समग्र मुस्लिम समुदाय की एकता का आधार साझा सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्य हैं। वैश्विक स्तर पर इस्लामिक कट्टरता एक समस्या बनी हुई है, क्योंकि यह हिंसा, अस्थिरता, और सामाजिक तनाव को बढ़ावा देती है। इसे संबोधित करने के लिए धार्मिक सुधार, शिक्षा, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे कदम आवश्यक हैं। केवल एक समावेशी और संतुलित दृष्टिकोण ही इस जटिल चुनौती का समाधान कर सकता है।