जीनोम संपादित चावल: भारत सरकार की प्राकृतिक खेती योजना के लिए चुनौती

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निलेश देसाई

भारत में चावल की जीनोम संपादित (Genome Edited) किस्मों को मंजूरी देने की दिशा में बढ़ते कदम ने कृषि क्षेत्र में एक नई बहस को जन्म दिया है। यह तकनीक फसल सुधार और उत्पादन वृद्धि की संभावनाएं प्रस्तुत करती है, लेकिन भारत सरकार द्वारा संचालित परंपरागत कृषि विकास योजना (प्राकृतिक खेती) के सिद्धांतों के लिए गंभीर चुनौतियां भी खड़ी करती है। यह लेख भारत सरकार की प्राकृतिक खेती योजना के दृष्टिकोण से बीज संप्रभुता, देशी बीजों की शुद्धता, और जैव विविधता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर इन चुनौतियों का विश्लेषण करता है।

भारत सरकार की प्राकृतिक खेती योजना

भारत सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) और अन्य पहलों के माध्यम से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। प्राकृतिक खेती रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों पर जोर देती है। यह योजना देशी बीजों के उपयोग, मिट्टी के स्वास्थ्य, और जैव विविधता के संरक्षण को प्राथमिकता देती है ताकि किसानों की आत्मनिर्भरता बढ़े और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो। देशी बीज, जो स्थानीय जलवायु और मिट्टी के लिए अनुकूलित हैं, इस योजना की रीढ़ हैं, क्योंकि वे रोग प्रतिरोधक क्षमता और पोषण मूल्य प्रदान करते हैं।

जीनोम संपादन: प्राकृतिक खेती के लिए चुनौतियां

जीनोम संपादन तकनीक, जो डीएनए में सटीक परिवर्तन कर फसलों की विशेषताओं को बदलती है, प्राकृतिक खेती योजना के लक्ष्यों के लिए कई स्तरों पर चुनौती पेश करती है:

1. बीज संप्रभुता पर खतरा

प्राकृतिक खेती योजना का एक प्रमुख उद्देश्य किसानों को बीज संप्रभुता प्रदान करना है, जिसके तहत वे अपने बीजों का उत्पादन, संरक्षण, और आदान-प्रदान स्वतंत्र रूप से कर सकें। हालांकि, जीनोम संपादित बीजों का विकास और व्यावसायीकरण अक्सर बड़ी कृषि जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा नियंत्रित होता है, जो इन बीजों पर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) जैसे पेटेंट लागू करती हैं। इससे किसानों को हर फसल चक्र के लिए नए बीज खरीदने पड़ सकते हैं, जो उनकी स्वायत्तता को कमजोर करता है।
प्राकृतिक खेती योजना के तहत सरकार द्वारा समर्थित बीज संरक्षण और सामुदायिक बीज बैंकों के प्रयास इस व्यावसायिक मॉडल के सामने कमजोर पड़ सकते हैं। जीनोम संपादित बीजों पर निर्भरता न केवल किसानों की लागत बढ़ाती है, बल्कि उन्हें बाजार की ताकतों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है, जो प्राकृतिक खेती के आत्मनिर्भरता के सिद्धांत के विपरीत है।

2. देशी बीजों की शुद्धता पर संकट

जीनोम संपादित चावल की खेती से देशी चावल की किस्मों में आनुवंशिक प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है। परागण के माध्यम से, संपादित बीजों के जीन अनजाने में पड़ोसी खेतों की देशी किस्मों में स्थानांतरित हो सकते हैं। यह देशी बीजों की आनुवंशिक शुद्धता को खतरे में डालता है, जो प्राकृतिक खेती योजना के लिए महत्वपूर्ण है।

प्राकृतिक खेती में बीजों की शुद्धता मिट्टी के सूक्ष्मजीवों और अन्य जैविक घटकों के साथ उनके जटिल अंतःक्रिया को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यदि देशी बीजों की आनुवंशिक संरचना बदलती है, तो यह प्राकृतिक खेती के पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकता है। इसके अलावा, प्राकृतिक खेती योजना के तहत जैविक प्रमाणीकरण के लिए गैर-जीएमओ स्थिति अनिवार्य है, और जीन प्रवाह इस प्रमाणीकरण को खतरे में डाल सकता है, जिससे जैविक उत्पादों का बाजार प्रभावित हो सकता है।

3. जैव विविधता का नुकसान

भारत चावल की समृद्ध जैव विविधता का केंद्र है, जिसमें हजारों देशी किस्में शामिल हैं जो विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिए अनुकूलित हैं। प्राकृतिक खेती योजना इन किस्मों के संरक्षण और उपयोग को प्रोत्साहित करती है ताकि कृषि पारिस्थितिकी तंत्र लचीला और टिकाऊ बना रहे। हालांकि, यदि जीनोम संपादित उच्च उपज वाली किस्में व्यापक रूप से अपनाई जाती हैं, तो किसान इन व्यावसायिक बीजों की ओर आकर्षित हो सकते हैं, जिससे देशी किस्मों की खेती कम हो सकती है।

जैव विविधता का नुकसान फसलों को बीमारियों, कीटों, और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है, जो प्राकृतिक खेती योजना के दीर्घकालिक लक्ष्यों को कमजोर करता है। योजना के तहत जैव विविधता को बढ़ावा देना मिट्टी के स्वास्थ्य, कीट नियंत्रण, और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए आवश्यक है, और देशी बीज इस जैव विविधता का आधार हैं।

निष्कर्ष

चावल की जीनोम संपादित किस्में खाद्य सुरक्षा और फसल सुधार के लिए नई संभावनाएं खोलती हैं, लेकिन ये भारत सरकार की प्राकृतिक खेती योजना के सिद्धांतों के साथ गहरे विरोधाभास में हैं। बीज संप्रभुता का क्षरण, देशी बीजों की आनुवंशिक शुद्धता पर खतरा, और जैव विविधता का नुकसान ऐसे गंभीर मुद्दे हैं जिन पर नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, और किसानों को मिलकर विचार करना होगा।
प्राकृतिक खेती योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ऐसी नीतियां आवश्यक हैं जो उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ किसानों की स्वायत्तता, देशी बीजों के संरक्षण, और जैव विविधता की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। जीनोम संपादन जैसी तकनीकों का मूल्यांकन सावधानीपूर्वक और समग्र दृष्टिकोण के साथ किया जाना चाहिए, जिसमें प्राकृतिक खेती के महत्व और भारत की समृद्ध कृषि विरासत को प्राथमिकता दी जाए। एक टिकाऊ और समावेशी कृषि भविष्य के लिए हमें नवाचार और स्थिरता के बीच संतुलन बनाना होगा, ताकि किसान सशक्त हों और हमारी कृषि परंपराएं सुरक्षित रहें।

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