कामाख्या देवी,शक्ति, सृष्टि और तांत्रिक रहस्यों का जीवित केंद्र

3-1-13.jpeg

शिवानी दुर्गा

गुवाहाटी: असम के नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या मंदिर सिर्फ एक देवी का धाम नहीं, बल्कि संपूर्ण तांत्रिक परंपरा का धड़कता हुआ हृदय माना जाता है। यहाँ पूजा किसी साधारण वैदिक क्रम से नहीं, बल्कि स्त्री स्वरूप शक्ति के रजस्वला, गर्भ, योनितत्त्व और सृष्टि-संहृति के रहस्यों को केंद्र में रखकर की जाती है। यही कारण है कि कामाख्या को “कौलाचार का सर्वोच्च पीठ”, “गुप्त कामरूप” और “आदिशक्ति का वास्तविक गर्भ” कहा गया है।
कामाख्या में देवी की प्रतिमा नहीं है। यहाँ देवी योनि रूप में प्रतिष्ठित हैं , पृथ्वी की गर्भनाल के रूप में बहता हुआ जल, जिसे ‘नीलांचल जल’ कहा जाता है, स्वयं शक्ति की जीवित उपस्थिति का प्रमाण माना जाता है। गर्भगृह में उतरते ही साधक को अंधेरे, गीले चबूतरे पर स्थापित उस प्राकृतिक चट्टानी योनि के दर्शन होते हैं, जो निरंतर शीतल जलधारा से अभिषिक्त होती रहती है। इसे “योनि कुंड” कहा जाता है और यही वह स्थान है जहाँ देवी का साक्षात् रूप अनुभव किया जाता है।

कामाख्या में बलि, कौलाचार, पाञ्चरात्र, शाक्तागम, योगिनी साधना, कुमारी पूजन और तांत्रिक यज्ञ की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। यहाँ बलि सिर्फ बाहरी अनुष्ठान नहीं, बल्कि अहंकार, वासना और अविद्या की आंतरिक बलि का संकेत है। पशु बलि का ऐतिहासिक स्वरूप आज प्रतीकात्मक रूप से किया जाता है, जिसमें साधक अपने भीतर के ‘पशु भाव’ का विसर्जन करता है।

कामाख्या पीठ में छोटी बच्चियों की पूजा का विशेष महत्व है। कन्या पूजन यहाँ सृष्टि के संभावित रूप ‘नवजात शक्ति’ की आराधना मानी जाती है। माना जाता है कि कन्या स्वरूप में शक्ति का शुद्धतम रूप प्रकट होता है, इसलिए तांत्रिक और गृहस्थ दोनों इस पूजा को अत्यंत श्रद्धा से करते हैं। यह पूजा किसी व्रत या त्योहार का हिस्सा नहीं, बल्कि स्वयं देवी की प्रधान साधना मानी जाती है।

कामाख्या में यज्ञ का स्वरूप वैदिक अग्नि से अलग तांत्रिक अग्नि का है। यह अग्नि देवताओं को नहीं, बल्कि शक्तियों और योगिनी मंडलों को समर्पित होती है। यहाँ के यज्ञ मंडलों में 64 योगिनी, दाकिनी-शाकिनी, भैरवी, भैरव, मातृका और कौलाचार की विभिन्न परंपराएँ प्रतिष्ठित हैं। यज्ञ के दौरान साधक अपनी ऊर्जा को देवियों के मंडल से जोड़ता है और अपनी साधना में उन्नति के लिए शक्तियों को आह्वान करता है।

कामाख्या के गर्भगृह में प्रवेश किसी साधारण मंदिर के गर्भगृह जैसा नहीं है। यहाँ उतरते हुए हर सीढ़ी साधक को अपनी देह-चेतना से अलग करती जाती है। भीतर प्रवेश करते ही अंधकार, शीतल जल, प्राकृतिक गुफा जैसी संरचना और देवी की निश्चल उपस्थिति मन पर ऐसा प्रभाव डालती है कि साधक को भीतर ही भीतर कंपन और ऊर्जा का आघात अनुभव होता है। यह वही स्थान है जहाँ देवी सति का यौनांग (योनि) गिरी थी। इसी कारण यह स्थान स्त्री शक्ति, प्रजनन, सृष्टि और काम इन सभी तत्त्वों का आदिम केंद्र माना जाता है। इसी ‘काम’ से ‘कामाख्या’ नाम की उत्पत्ति मानी जाती है।

कामाख्या का पर्व अंबुबाची मेला पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, जब देवी तीन दिनों तक रजस्वला मानी जाती हैं। इस दौरान गर्भगृह बंद रहता है और देवी का ‘रजस्वला जल’ साधकों को ऊर्जा, सिद्धि, रक्षा और अध्यात्मिक उन्नति का वरदान देता है। यह मेला इस बात का प्रमाण है कि सनातन परंपरा में स्त्री के रजस्वला होने को कभी अपवित्र नहीं माना गया, बल्कि उसे सृष्टि का परम पवित्र रूप स्वीकार किया गया।

कामाख्या में तांत्रिक साधना का मार्ग कई स्तरों में विभाजित है और यहाँ साधक अपने-अपने पथ के अनुसार दीक्षा लेकर साधनाएँ करते हैं। इस पीठ से जुड़ी तांत्रिक परंपराएँ कश्मीर शैव मत, कौलाचार, वाममार्ग, दक्षिणमार्ग और कापालिक मार्ग सभी को समाहित करती हैं। कहा जाता है कि जो साधक कामाख्या के गर्भगृह में सच्चे भाव से देवी को समर्पित होता है, उसकी इच्छा, यज्ञ, मंत्र और संकल्प अवश्य सिद्ध होते हैं।
कामाख्या सिर्फ एक मंदिर नहीं है , यह वह स्थान है जहाँ देवी स्वयं पृथ्वी की गर्भनाल के रूप में जीवित हैं। जहाँ ऊर्जा मूर्ति में नहीं, बल्कि जल में, चट्टान में, अंधेरे में और स्त्री स्वरूप में धड़कती है। जो साधक इस पीठ पर आता है, वह देवी के मूल स्वरूप सृष्टि, कामना, शक्ति और मुक्ति का अनुभव लेकर लौटता है।
इसलिए कामाख्या को ‘शक्ति का स्रोत’ नहीं, बल्कि शक्ति की शिरा कहा गया है , जहाँ से तांत्रिक मार्ग की हर सिद्धि, हर शक्ति और हर आशीर्वाद प्रवाहित होता है।

(लेखिका तंत्र साधक और तंत्र विषय की शोधार्थी हैं)

Share this post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

scroll to top