किस रास्ते निकल पड़े हैं ये एनजीओ

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बीते एक सप्ताह में पांच ऐसे एनजीओ के कार्यक्रमों में जाना हुआ जो खुद को राष्ट्रवादी एनजीओ कहते हैं। वहां देखकर निराशा हुई कि जिस डिजाइनर एनजीओ का विरोध मोदी सरकार में होता रहा है। जिस तरह के एनजीओ पर गृह मंत्रालय ने नकेल कसने की मुहिम चला रखी है। ठीक उसी रास्ते पर चलते हुए ये राष्ट्रवादी एनजीओ भी दिखाई दे रहे हैं।

कार्यक्रम करना अच्छी बात है लेकिन कार्यक्रम करने के लिए कार्यक्रम नहीं किया जाना चाहिए। किसी कॉलेज से, किसी स्कूल से पचास बच्चों को बुला लेना और उस कार्यक्रम में बीजेपी या फिर आएसएस से एक अधिकारी को बुला कर दीप प्रज्ज्वलित करा लेना। यही आम तौर पर ऐसे एनजीओ के काम करने की दशा और दिशा है।

एनजीओ द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों का उद्देश्य समाज का प्रबोधन करना तो नहीं लगता। पिछले दिनों एक कार्यक्रम में आरएसएस के एक वरिष्ठ अधिकारी मंच थे, वहां वेद पर अंग्रेजी में चर्चा चल रही थी और सुनने के लिए संस्कृत विद्यालय के बच्चों को सामने बिठा दिया गया था।

एक दूसरा कार्यक्रम लूटियन दिल्ली में हुआ। जहां बीजेपी के एक बड़े पदाधिकारी की उपस्थिति में एक कॉलेज के पचास साठ छात्र छात्राओं को धूप में सामने बिठा दिया गया था। उन बच्चों की विषय में कोई रूचि है। उन्हें देखकर लग नहीं रहा था। वे यहां वहां जा रहे थे। उन्हें कार्यक्रम तक लाने वाले बार बार उन्हें बिठाने का प्रयास कर रहे थे।

दिल्ली में ऐसे कई महत्वपूर्ण संस्थाएं थीं। जहां जाना और वहां से जुड़ना सम्मान की बात होती थी। सभी संस्थाओं में ‘जुगाड़बाज’ घुन की तरह लगे हुए हैं। धीरे—धीरे बौद्धीक संस्थाएं खत्म हो रहीं हैं और मुनव्वर फार्रुकी, समय रैना, रणवीर अल्लाहबादिया जैसे दोयम तीसरे दर्जे के लोग सेलीब्रीटी बन रहे हैं और समाज में सम्मान पा रहे हैं।

सरकार बदलना और व्यवस्था का बदलना दो अलग अलग बातें हैंं। सरकार बदलने के लिए पांच साल में सभी मतदाताओं के पास एक अवसर आता है लेकिन व्यवस्था बदलने के लिए समाज को जागना होता है। एक जगा हुआ समाज ही व्यवस्था को बदलने के लिए मुहिम चला सकता है लेकिन यू ट्यूब, इंस्टा और भारतीय मीडिया जैसा समाज तैयार कर रहे हैं। उससे हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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