जिस सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिका कब्जा करना चाहता है, यह द्वीप कभी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। जिसे बंटवारे के समय भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को दे दिया था। दूसरी तरफ अमेरिका 1955 से ही इस द्वीप को हथियाने की कोशिश कर रहा है। 1955 से 2024 के बीच उसने बांग्लादेश से इसे लीज पर लेने के कई प्रयास किए
बांग्लादेश की निवर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 05 अगस्त 2024 को इस्तीफा दे दिया, क्योंकि प्रदर्शनकारियों की बड़ी भीड़ ने उनके सरकारी आवास को घेर लिया था। वह सोमवार का दिन था, जब उनके इस्तीफे की घोषणा सेना प्रमुख वकर-उज-जमा ने की थी। उसी दिन, जब हालात नियंत्रण में दिखाई नहीं दिए, शेख हसीना एक अराजक माहौल से खुद को बचाकर भारत आईं, पहले इस यात्रा के लिए उन्होंने कार का इस्तेमाल किया, फिर हेलीकॉप्टर और अंत में विमान से वे दिल्ली के पास गाजियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पर उतरी।
युवा पत्रकार सुभाष यादव बताते हैं कि 05 अगस्त की ही शाम जब वे दिल्ली के रायसीना रोड़ स्थित प्रेस क्लब आफ इंडिया पहुंचे तो वहां जश्न का माहौल था। बांग्लादेश में फैली अराजकता और शेख हसीना की विदाई पर वहां विचारधारा विशेष के पत्रकार मिठाई बांट रहे थे। सुभाष को यह देखकर हैरानी हुई कि प्रेस क्लब में लगी बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर को उस दिन अपनी जगह से हटा दिया गया था। सुभाष ने एक जागरूक पत्रकार का कर्तव्य निभाते हुए, तस्वीर हटाने से खाली हुई जगह और उस खाली जगह के नीचे लगे नेम प्लेट की तस्वीर मोबाइल में कैप्चर करके टवीट किया। उन्होंने अपने टवीट में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री, बांग्लादेश उच्चायोग, प्रेस क्लब आफ इंडिया, प्रेस काउंसिल आफ इंडिया जैसे तमाम संस्थाओं को टैग करके अपनी आपत्ति दर्ज कराई। उनकी आपत्ति ने काम किया और प्रेस क्लब में शेख मुजीबुर की तस्वीर फिर अपनी जगह पर लगा दी गई।
इस बात पर हर एक भारतीय को विचार करना चाहिए कि यदि बांग्लादेश का विद्रोह शेख हसीना के खिलाफ था। फिर उसे खत्म हो जाना चाहिए था। शेख हसीना तो विद्रोह के डर से देश छोड़ गईं थी। प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया था। शेख हसीना इस्तीफा दे देने के बाद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भी नहीं थी। सत्ता की बागडोर उनके हाथों से लेकर नए हाथों में सौंप दी गई थी।
यदि हिंसा की वजह शेख हसीना नहीं, बल्कि आरक्षण का विरोध था। उस विरोध में पब्लिक बेकाबू हुई तो आरक्षण भी समाप्त हो गया था। फिर भी हिंसा नहीं रूकी। इस पूरी हिंसा के लिए बांग्लादेश के हिन्दू तो बिल्कुल जिम्मेवार नहीं थे फिर यह हिंसा अचानक हिंदुओं के खिलाफ क्यों बढ़ गई?
हजारों लाखों हिन्दू बांग्लादेश में सड़क पर आने को मजबूर क्यों हुए? दुख की बात है कि बांग्लादेश के हिन्दुओं को भारतीय हिन्दूओं से कोई विशेष समर्थन नहीं मिला। आनंद बाजार पत्रिका (एबीपी) न्यूज चैनल के एंकर संदीप चौधरी ने अपने शो में उन हिन्दुओं के लिए इसलिए सहानुभूति ना रखने की अपील कर दी क्योंकि वे तो बांग्लादेशी हिन्दू हैं। उनकी इस बात में हां में हां मिलाने वाले पत्रकार दीबांग थे। ऐसा लग रहा था कि बांग्लादेश के हिन्दू अकेले छोड़ दिए गए हैं मरने के लिए। वहां हमला करने वाला उनकी जाति नहीं पूछ रहा था। उसके लिए हिन्दू होना ही हमला करने के लिए पर्याप्त कारण था।
अकेले पड़े बांग्लादेश के हिन्दुओं ने मुश्किल समय में हार नहीं मानी और वे एक जुट होकर ढाका की सड़कों पर उतरे। उन्होंने दुनिया भर के हिन्दुओं को संदेश दिया कि जातियों में बंटकर रहने से बार बार मारे जाएंगे। इसलिए अपनी पहचान सनातनी हिन्दू की होनी चाहिए। हिन्दू होना ही दुनिया भर में बसे 125 करोड़ हिन्दुओं की पहचान होनी चाहिए।
बांग्लादेश से जान बचाकर भारत की तरफ भागकर आए हजारों हिन्दू सीमा पर रोक दिए गए। वहां से भागकर आई शेख हसीना को भारत में प्रवेश मिल गया। उन्होंने बांग्लादेश के नागरिकों और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के नाम एक कथित चिटठी लिखी है। जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि यदि वे अमेरिका को बांग्लादेश का सेंट मार्टिन द्वीप देने को तैयार हो जाती तो बांग्लादेश में उनकी सरकार बच जाती। उन्हें बांग्लादेश छोड़ने को मजबूर ना होना पड़ता। इस द्वीप को बांग्लादेश में कोकोनट आयलैंड कहते हैं। इस द्वीप की आबादी 7000 है। यह इतना छोटा द्वीप है कि दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के अंदर ऐसे ऐसे सात द्वीप बस सकते हैं। मतलब बांग्लादेश में जिस तख्ता पलट को स्वाभाविक दिखाने का प्रयास हो रहा था, वह क्रांति नहीं एक साजिश थी। इसके पीछे अमेरिका का हाथ था।
जिस सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिका कब्जा करना चाहता है, यह द्वीप कभी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। जिसे बंटवारे के समय भारत ने पूर्वी पाकिस्तान को दे दिया था। दूसरी तरफ अमेरिका 1955 से ही इस द्वीप को हथियाने की कोशिश कर रहा है। 1955 से 2024 के बीच उसने बांग्लादेश से इसे लीज पर लेने के कई प्रयास किए।
अब प्रश्न है कि ऐसा क्या खास है, इस द्वीप में, जिसके लिए अमेरिका को इतनी बड़ी साजिश रचनी पड़ी। इस द्वीप से बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर, म्यांमार और चीन पर एक साथ निगाह रखी जा सकती है। इसलिए अमेरिका यहां अपनी नौसेना के लिए नेवल बेस बनाना चाहता है।
नेवल बेस एक ऐसी जगह होती है, जहां युद्धपोत और अन्य नौसैनिक जलयानों के रख रखाव और ठहरने का प्रबंध होता है। यहां जलयानों की मरम्मत की व्यवस्था भी होती है। यह एक स्टेशन की तरह काम करता है। जहां इंधन भरने से लेकर आवश्यक सामान लाने तक की पूरी व्यवस्था होती है। यहां पर नौसैनिक अपने परिवार के साथ रूक सकते हैं। या फिर यात्री यहां विश्राम कर सकते हैं। मतलब अमेरिका दक्षिण एशिया के इस हिस्से में अपना एक सैनिक कैम्प बनाना चाहता है। शेख हसीना दक्षिण एशिया में अमेरिका के इस नेवल बेस के खतरे को समझते हुए, तैयार नहीं हुईं। पिछले साल जून में शेख हसीना ने अपने भाषण में भी कहा था, जब तक बांग्लादेश में उनकी सरकार है, तब तक सेंट मार्टिन्स द्वीप अमेरिका को नहीं सौंपा जाएगा। शेख हसीना को इस बात का डर था कि यदि बांग्लादेश में खालिदा जिया की सरकार आ गई तो वह इसे अमेरिका को बेच देगी। यदि अमेरिका बांग्लादेश में अपना नेवल बेस तैयार करने में कामयाब हो जाता है तो यह चीन और भारत दोनों के लिए ही खतरनाक होगा।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ शेख हसीना के आरोपों की वजह से अमेरिका पर तख्ता पलट का संदेह जाता है। बल्कि इस बात को बांग्लादेश की मीडिया ने भी रिपोर्ट किया कि चुनाव के दौरान अमेरिका के कुछ लोग आए और उन्होंने जमाते इस्लामी और खालिदा जिया से मुलाकात की। यह समय था, जब शेख हसीना अपने लोगों को बता रहीं थी कि अमेरिका एक बड़ा ही ताकतवर देश है। वह किसी भी देश की सरकार को गिरा सकता है।
दूसरी तरफ अमेरिका का कहना था कि वह बांग्लादेश के लोकतंत्र को मजबूत करना चाहता है। इसलिए उसने बांग्लादेश के विपक्ष के नेताओं से मिलने के लिए अपने बड़े अधिकारियों को भेजा था। अमेरिका की इस बात पर कैसे यकिन हो, क्योंकि जिस जमाते इस्लामी पर बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने प्रतिबंध लगाया हुआ है। उनके नेताओं से मिलकर अमेरिका के अधिकारी बांग्लादेश में कौन सा लोकतंत्र बचा रहे थे? इस प्रश्न का जवाब अमेरिका के पास नहीं है।इसलिए बांग्लादेश के तख्ता पलट को लेकर यह सवाल उठा कि क्या यह मुलाकात लोकतंत्र बचाने की जगह, बांग्लादेश के लोकतंत्र पर हमला करने की योजना बनाने के लिए हुई थी? शेख हसीना को तो यही लगा था और उनकी आशंका सच साबित भी हुई। बांग्लादेश की चुनी हुई सरकार, गिरा दी गई।
26 मई को शेख हसीना का बयान आता है कि उनकी सरकार नौसैनिक अड्डा बनाने के लिए सेंट मार्टिन द्वीप देने को तैयार नहीं है और दस दिनों के बाद ही ढाका के न्यायालय ने आरक्षण की व्यवस्था को बहाल करने का फैसला सुनाया। उसके बाद बांग्लादेश में हिंसा भड़की। तख्ता पलट के तार अमेरिका से इसलिए भी जोड़े जा रहे हैं क्योंकि अमेरिकी डिप्लोमेट डोनल्ड लू पांचवीं बार शेख हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद तीन बार बांग्लादेश आए। डोनल्ड लू पर पाकिस्तान में हुए चुनाव के दौरान यह आरोप लगा था कि वे इमरान खान को वहां की सरकार से बाहर रखना चाहते हैं। शेख हसीना की तरह इमरान खान ने भी आरोप लगाया था कि उनकी सरकार अमेरिका ने गिराई है।
अमेरिकी डिप्लोमैट पीटर हास 25 जुलाई को ढाका छोड़कर अमेरिका लौट गए। जबकि 21 जुलाई को छात्र आंदोलन खत्म हो गया था। उसके बाद बांग्लादेश के हालात सामान्य होने लगे थे। फिर पीटर हास के पास ऐसी क्या खुफिया जानकारी थी, जिसके आधार पर हिंसा शुरू होने से ठीक पहले वे बांग्लादेश छोड़कर निकल गए। यह किसी से छुपी हुई बात नहीं है कि पीटर हास के रिश्ते खालिदा जिया की पार्टी के साथ बहुत मधुर हैं। जिस मोहम्मद युनूस को बांग्लादेश की सत्ता की बागडोर अभी सौंपी गई है, उन्हें भी बांग्लादेश में अमेरिकी प्रतिनिधि ही माना जाता है। 7 अगस्त 2024 को राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने मुहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का नेता नियुक्त किया। 08 अगस्त 2024 को उन्होंने शपथ ली और बांग्लादेश की सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में अब वे कार्य कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि बिना अमेरिकी सहयोग के उन्हें यह महत्वपूर्ण भूमिका हासिल नहीं हो सकती थी। वे अकेले बांग्लादेशी हैं, जिसे अमेरिका ने अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया है।
बहरहाल मीडिया में खबरों को देखने के साथ साथ हमें बिटवीन द लाइन्स को भी पढ़ना और समझते रहना है। आज के समय की यह आवश्यकता है।