नई दिल्ली: पिछले हफ्ते नई दिल्ली में, एआईएडीएमके (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिला। यह मुलाकात सिर्फ कॉफी और इडली-वड़ा के साथ हुई एक आम बैठक नहीं थी—बल्कि इसे एक राजनीतिक दिशा परिवर्तन का संकेत माना जा रहा है। जाहिर है नेताओं ने घर वापसी की एक रणनीतिक योजना के साथ मुलाकात की होगी जो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में वापसी और 2021 के चुनाव में सत्ता गंवाने वाली गलती को सुधारने का प्रयास होगा।
पिछले चुनाव में, डीएमके के नेतृत्व वाले धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील गठबंधन ने 234 में से 159 सीटें जीतीं, जिसकी वजह एआईएडीएमके के खिलाफ जनाक्रोश था। अब एआईएडीएमके इस गठबंधन के जरिए न सिर्फ राजनीतिक जमीन वापस पाना चाहती है, बल्कि उस राज्य में अपना प्रभुत्व भी कायम करना चाहती है, जहां कभी उसका दबदबा था। क्या यह नया गठबंधन उनकी राजनीतिक वापसी की चाबी होगा? वक्त ही बताएगा।
2021 के बाद से, डीएमके ने क्षेत्रीय गौरव को भुनाया है और हिंदी थोपने तथा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन जैसी केंद्रीय नीतियों का विरोध किया है। पार्टी ने कलाइग्नर मगलिर उरिमाई थित्तम (महिलाओं के लिए मासिक आय सहायता योजना) जैसी महत्वाकांक्षी कल्याणकारी योजनाएं भी शुरू की हैं। तमिल हितों को कमजोर करने वाली केंद्रीय नीतियों का डीएमके का विरोध उसकी लोकप्रियता का मुख्य आधार बना हुआ है।
पॉलिटिकल एनालिस्ट्स बताते हैं कि इस मुकाबले में एक नया मोड़ तमिल सिनेमा के सुपरस्टार विजय का राजनीतिक प्रवेश है, जिन्होंने 2024 में अपनी पार्टी तमिऴगा वेत्री कड़गम (टीवीके) लॉन्च की, जिसकी रणनीति प्रशांत किशोर संभाल रहे हैं। विजय का राजनीति में कदम तमिलनाडु की उस परंपरा को आगे बढ़ाता है, जहां फिल्मी सितारे सत्ता तक पहुंचे हैं-एम.जी. रामचंद्रन (एमजीआर) और जयललिता जैसी हस्तियों की विरासत को याद करते हुए। पीढ़ियों तक फैले अपने विशाल फैन बेस के साथ, विजय की अपील उनके स्क्रीन वाले “आम आदमी के मसीहा” वाले व्यक्तित्व में है, जिसे अब वे राजनीतिक संदेश में बदल रहे हैं।
प्रोफेसर पारस नाथ चौधरी के मुताबिक, “विजय की टीवीके डीएमके-एआईएडीएमके के द्वंद्व को तोड़ सकती है। उनकी पार्टी ने पहले ही उन्हीं क्षेत्रीय भावनाओं को भुनाना शुरू कर दिया है, जिन पर डीएमके कब्जा जमाए हुए है-हिंदी वर्चस्व का विरोध और तमिल संस्कृति की रक्षा-साथ ही खुद को राज्य के पुराने राजनीतिक दलों के मुकाबले एक ताजा विकल्प के रूप में पेश किया है। 2024 के अंत में हुए उनके रैलियों ने भीड़ जुटाने की उनकी क्षमता दिखाई, जिससे लगता है कि वे युवा मतदाताओं और पारंपरिक पार्टियों से नाराज लोगों को जुटा सकते हैं। एक ऐसे राज्य में, जहां सिनेमा और राजनीति गुथे हुए हैं, विजय का स्टार पावर डीएमके और एआईएडीएमके दोनों के वोट काट सकता है, जिससे 2026 का चुनाव त्रिकोणीय मुकाबला बन सकता है।”
कोयंबटूर के गोपाल कृष्णन कहते हैं, *”तमिलनाडु की राजनीति में अभिनेताओं ने हमेशा धूम मचाई है। एमजीआर की एआईएडीएमके ने 1977 में उनकी सिनेमाई लोकप्रियता के दम पर सत्ता हासिल की, जबकि जयललिता ने दशकों तक पार्टी का वर्चस्व कायम रखा। विजय के सामने चुनौती है कि वे अपने फैन फॉलोइंग को एक सुसंगत राजनीतिक ताकत में बदलें, लेकिन उनके शुरुआती कदम शिक्षा, रोजगार और तमिल गौरव जैसे मुद्दों पर केंद्रित हैं-जो व्यापक अपील कर सकते हैं।”
चेन्नई के पर्यवेक्षकों को लगता है कि विजय की टीवीके बड़ी उलट फेर कर सकती है, क्योंकि उनकी करिश्माई छवि दोनों गुटों को चुनौती दे सकती है। 2021 के नतीजे-डीएमके की 133 सीटें और एआईएडीएमके की 66 के मुकाबले इस बार दांव ऊंचे हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बिना किसी बड़े द्रविड़ सहयोगी के 11.24% वोट हासिल किए थे, जो उसकी बढ़ती लोकप्रियता जाहिर करता है, लेकिन अकेले डीएमके को चुनौती देने के लिए उसके पास जमीनी ताकत नहीं है। एआईएडीएमके के साथ गठबंधन करने से एंटी-डीएमके वोट एकजुट हो सकते हैं, क्योंकि एआईएडीएमके ने 2024 में 20.46% वोट हासिल किए थे। अगर वोट ट्रांसफर प्रभावी रहा और डीएमके के खिलाफ जनाक्रोश बना रहा, तो एनडीए को 25-30% वोट मिल सकते हैं।
बीजेपी के प्रमुख नेताओं, जैसे कि आक्रामक राज्य अध्यक्ष के. अन्नामलाई, की अहम भूमिका होगी। अन्नामलाई का द्रविड़ विरोधी रुख पार्टी को दृश्यता तो देता है, लेकिन जयललिता जैसे एआईएडीएमके नेताओं के खिलाफ उनके पुराने बयान गठबंधन को मुश्किल में डाल सकते हैं। तमिलिसाई साउंदराजन (पूर्व राज्यपाल) और एल. मुरुगन (केंद्रीय मंत्री) जैसे नरम छवि वाले नेता गठबंधन की खाई पाट सकते हैं।
मुख्यमंत्री स्टालिन के उत्तर-विरोधी, द्रविड़ समर्थक रुख का मुकाबला करने के लिए, बीजेपी को अपनी कहानी बदलनी होगी, क्योंकि जून 2024 के कच्छतीवु द्वीप विवाद ने उसे कोई खास फायदा नहीं पहुंचाया था। स्टालिन बीजेपी को हिंदी थोपने वाली पार्टी बताकर तमिल गौरव को भुनाना चाहते हैं। बीजेपी इसका जवाब संघवाद पर जोर देकर, तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर उभारकर और स्थानीय नेताओं को आगे करके दे सकती है। आर्थिक वादे-रोजगार, उद्योग और बुनियादी ढांचा-पहचान की राजनीति को विकास की बहस में बदल सकते हैं। अन्नामलाई का 2026 तक डीएमके को हटाने तक नंगे पांव रहने का संकल्प उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अगर एआईएडीएमके के साथ गठजोड़ होता है, तो सत्ता की राह आसान होगी—वरना, इस द्रविड़ गढ़ में बीजेपी का सफर अकेला, लंबा और कठिन होगा।