लघु उद्योगों के प्रति दिल्ली सरकार की उपेक्षा से दिल्ली के उद्यमियों में रोष

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दिल्ली के राजस्व और रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले दिल्ली के सूक्ष्म और लघु उद्यमियों के प्रतिनिधियों ने आज अपने प्रति दिल्ली सरकार के उपेक्षापूर्ण और प्रताड़ित करने वाले व्यवहार के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए दिल्ली के प्रैस क्लब में एक प्रैस कॉन्फ्रेंस की।

उपस्थित उद्योग प्रतिनिधि इस बात से बहुत आक्रोशित थे कि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में राजनैतिक पार्टियों के चुनाव घोषणापत्रों में भी उद्यमियों के मुद्दों को स्थान नही दिया गया है।

दिल्ली में देश में *सबसे महंगी औद्योगिक बिजली* के लिए वर्तमान दिल्ली सरकार को दोषी ठहराते हुए उद्योग प्रतिनिधियों ने बताया कि दिल्ली में औद्योगिक बिजली के दाम पिछले 10 वर्षों में दोगुने हो गए हैं। बिजली की मूल दर पर मनमाने और अपारदर्शी ढंग से अन्य शुल्क लगाए गए हैं। यँहा तक कि सरकारी कर्मचारियों को पेंशन देने का बोझ भी बिजली के बिलों में शामिल किया गया है।
इसके कारण दिल्ली में औद्योगिक बिजली के बिलों में प्रति युनिट प्रभावी दर सभी पड़ौसी राज्यों की तुलना में दुगुनी हो गई है। इस कारण दिल्ली के छोटे उद्यमी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से बाहर होकर दिल्ली से पलायन कर रहे हैं या बन्द हो रहे हैं।

दिल्ली की वर्ष 2023-24 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार दिल्लीमें कुल 3.94 लाख पंजीकृत MSME है जिनमें 93% सूक्ष्म श्रेणी के है। 2011 -12 की तुलना में 2023 -24 में दिल्ली की GDP में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 33% कम हो गया है।

*न्यूनतम 20 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देने और राजस्व में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले उद्योग दिल्ली सरकार की प्राथमिकता में कहीं नही हैं। यह इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि वर्ष 2023 -24 में दिल्ली सरकार ने इस क्षेत्र पर मात्र 110 करोड़ खर्च किये, जबकि दिल्ली की जेलों पर ही 129 करोड़ रुपये खर्च किये गए।*

दिल्ली के औद्योगिक भूखण्डों को लीज होल्ड से *फ्रीहोल्ड* करने की माँग उद्यमी अनेक वर्षों से कर रहे है। इस हेतु 2005 में लाई गई पॉलिसी राज्य सरकारकी उदासीनता और DDA आदि अन्य केंद्रीय एजेंसियों से समन्वय के अभाव में अभी तक क्रियान्वित नही हो पाई है। अनेक उद्यमियों द्वारा इस हेतु पूरा भुगतान कर दिए जाने के बाद भी फ्रीहोल्ड के अधिकार देने की बजाय उनको अनावश्यक न्यायालयों में उलझा दिया गया है। एक मामले में तो दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा उद्यमियों के पक्ष में दिए निर्णय के विरुद्ध DSIIDC सुप्रीम कोर्ट तक चली गई है। *रिलोकेशन स्कीम 1996* के 52000 से अधिक उद्यमियों को 2005 की फ्रीहोल्ड पॉलिसी में अभी तक सम्मिलित नही किया गया है।
उद्यमियों को अपनी भूमि का मालिकाना अधिकार ना मिलना दिल्ली के औद्योगिक विकास को रोक रहा है। यदि दिल्लीकी औद्योगिक सम्पत्तियां फ्री होल्ड हो जाये तो दिल्ली में अनेक प्रकार के नए उद्योग लगने की अपार संभावनाएं है।

*दिल्ली जल बोर्ड* दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में पर्याप्त पानी उपलब्ध नही करा पा रहा परन्तु पानी के कनेक्शन के नाम पर भारी भरकम राशि वसूल रहा है। दिल्ली का छोटा उद्यमी पानी की कमी से जूझ रहा है।
*उल्लेखनीय है कि उद्योगों को पानी की कमी से राहत देने के लिये भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय द्वारा MSME को 10000 लीटर भूजल दोहन की अनुमति दिल्ली सरकार ने अभी तक लागू नही की है।*

आज जब पिछले 10 वर्षों में देश की *ईज ऑफ डूइंग बिजनेस* रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, दिल्ली में ये रैंकिंग निरन्तर गिर रही है। आज उत्तरप्रदेश इस मामले में दिल्ली से कँही आगे है।
इसका कारण दिल्ली में अनेकों प्रकार के अनावश्यक लाइसेंस और अनुमतियां लेने की प्रकिया का पारदर्शी ना होना है। इसका एक उदाहरण नगर निगम का अनावश्यक फैक्ट्री लाइसेंस है जिसे समाप्त करने की सिफारिश 2016 में तत्कालीन तीनों नगर निगमों ने राज्य सरकार को भेज दी थी लेकिन राज्य सरकार आज तक इसे समाप्त करने की पहल नहीं कर सकी।

*औद्योगिक इंफ्रास्ट्रक्चर* का विकास दिल्ली सरकार की प्राथमिकता में ही नही है। उद्यमियों से लीज रेंट, प्रोपर्टी टैक्स और मेंटेनेन्स चार्ज के नाम पर अलग-अलग राशि वसूलने के बाद भी दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र मूल भूत सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं, औद्योगिक इंफ्रास्ट्रक्चर मिलना तो दूर की बात है।
दिल्ली सरकार की उदासीनता को समझने के लिए *आनन्द पर्वत से टीकरी बॉर्डर* तक जाने वाली रोहतक रोड, जिसके दोनों ओर दिल्ली के दर्जनों औद्योगिक क्षेत्र स्तिथ है, की बदहाल स्थिति का एक उदाहरण ही पर्याप्त है। इस पर प्रायः ट्रैफिक जाम रहता है लेकिन राज्य सरकार स्तिथि को सुधारने के लिए कुछ नही कर रही है।

दिल्ली की सड़कों की खराब स्तिथि और अतिक्रमण के कारण बढ़ते प्रदूषण का दुष्परिणाम भी GRAP के रूप में दिल्ली के उद्यमियों को भुगतना पड़ता है। GRAP के समय औद्योगिक -व्यापारिक गतिविधियां ठप्प हो जाती हैं। निर्माण गतिविधियों पर रोक लगने से भी सभी उद्योग प्रभावित होते है।

*उद्योग प्रतिनिधियों ने एक स्वर में दिल्ली में ऐसी सरकार लाने का आह्वान किया, जो दिल्ली के उद्यमियों की समस्याओं को समझकर दिल्ली में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियां बनाकर उन्हें क्रियान्वित करे, बिजली के अतार्किक रूप से महंगे बिलों से राहत दिलाये और औद्योगिक क्षेत्रों सहित पूरी दिल्ली के आधारभूत ढांचे को सुदृढ़ बनाकर बढ़ते प्रदूषण से दिल्ली को राहत दिलाये।

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