लौटे पुस्तक की ओर – परंपरा और विचारों की ओर वापसी

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चंदन झा
बेतिया (बिहार) : मोबाइल की चमकती स्क्रीन ने हमारी आंखों को बांध लिया है, लेकिन मन को खोखला कर दिया है। अंगूठे चलाकर हम अनगिनत सूचनाएं खींच लाते हैं, पर मन में स्थायी ज्ञान नहीं भर पाते। वहीं, एक पुरानी किताब का पन्ना खोलते ही शब्दों की खुशबू और विचारों की गहराई मन को छू लेती है। दादी-नानी की कहानियां सिर्फ सुनाने का आनंद नहीं देती थीं, बल्कि संस्कार, इतिहास और परंपरा की जड़ें मजबूत करती थीं।

किताबें हमें धैर्य, एकाग्रता और गहन सोच सिखाती हैं। मोबाइल हमें क्षणिक मनोरंजन देता है, लेकिन किताब जीवन का दीर्घकालिक मार्गदर्शन करती है। पुस्तक पढ़ना मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ़ करता है, शब्द भंडार बढ़ाता है और कल्पना को पंख देता है।

आरोही कला संस्कृति वेलफेयर ट्रस्ट की मुहिम “लौटे पुस्तक की ओर” इसी खोई आदत को फिर से जगाने का प्रयास है – ताकि हम फिर से अपने बच्चों को कहानियों में जीवन के सबक दे सकें, परंपरा को बचा सकें और विचारों की गहराई से जुड़ सकें। मोबाइल सूचना का स्रोत हो सकता है, लेकिन किताबें ही ज्ञान, संस्कार और रचनात्मकता का सच्चा घर हैं। आइए, पन्नों की ओर लौटें।

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