तमाम संगठन जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी के बाहर हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद यूनिवर्सिटी में पुलिस के घुसने और छात्रों के साथ किए गए बर्ताव को लेकर अपनी-अपनी याचिकाएं लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू, जामिया और सिटीजनशिप एक्ट के विरोध में हुई हिंसा से जुड़ी कई याचिकाओं को एक साथ सुनना शुरू किया। सॉलिसिटर जनरल के बयान को लेकर मीडिया के लगभग सभी पत्रकारों ने गलत रिपोर्टिंग कर डाली। ब्रेकिंग चलना शुरू हो गई और देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भिड़ गए जामिया के चीफ प्रॉक्टर वसीम अहमद।
दरअसल, देश के लगभग सभी बड़े न्यूज चैनल्स और वेबसाइट्स ने ब्रेकिंग खबर चलाई कि सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे तुषार मेहता ने दावा किया है कि जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी में पुलिस तभी घुसी, जब वहां के चीफ प्रॉक्टर ने बाकायदा लिखित में पुलिस से इसकी रिक्वेस्ट की। उन्होंने लिखा कि कैसे उपद्रवी तत्व छात्रों के बीच मिलकर यूनिवर्सिटी का लॉ एंड ऑर्डर खराब कर रहे हैं। यह खबर वाकई में चौंकाने वाली थी, क्योंकि एक दिन पहले जामिया के प्रॉक्टर वसीम अहमद यह दावा कर चुके थे कि दिल्ली पुलिस बिना उनकी अनुमति के यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसी। जामिया की वाइस चांसलर सलमा अख्तर ने भी यही दावा किया था।
खबर ब्रेक होते ही मीडिया के सभी बड़े रिपोर्टर जामिया के चीफ प्रॉक्टर को फोन लगाने में जुट गए और कुछ तो उनके दफ्तर भी पहुंच गए। अब तक चीफ प्रॉक्टर को यह खबर लग चुकी थी। उन्होंने एक लिखित बयान जारी किया कि सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट में झूठ बोला है, मैंने इस तरह की कोई परमिशन या रिक्वेस्ट न ही दी और न मांगी बल्कि मैंने तो दिल्ली पुलिस की निंदा की थी। यही बात उन्होंने न्यूज़ एजेंसी ‘एएनआई’ को दिए विडियो इंटरव्यू में भी कही।
सरकार से सारी मीडिया इस बारे में बयान देने को कहने लगी। होम मिनिस्ट्री के अफसरों को फोन लगाया जाने लगा कि क्या सॉलिसिटर जनरल को कोर्ट में होम मिनिस्ट्री ने गलत जानकारी दी थी। लगभग 2 घंटे बाद यूपी पुलिस की तरफ से बयान आया कि सॉलिसिटर जनरल ने प्रॉक्टर की रिक्वेस्ट की जो बात कही थी, वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी एएमयू के बारे में थी, न कि जामिया के बारे में और बाकायदा एएमयू के चीफ प्रॉक्टर का रिक्वेस्ट लेटर मीडिया के लिए जारी किया गया।
यानी कि मीडिया के चंद ‘उत्साही’ रिपोर्टर्स की वजह से सारा मामला गड़बड़ हो गया। ऐसा लगा कि सॉलिसिटर जनरल सुप्रीम कोर्ट में खड़े होकर सरासर झूठ बोल रहे हैं। लेकिन सारी की सारी मीडिया एक साथ क्यों गलत हो गई, उसकी वजह भी है। ज्यादातर रिपोर्टर्स कोर्ट के अंदर जाते ही नहीं है, वह बाहर लाइव पर खड़े रहते हैं और उनके साथी रिपोर्टर जो गिनती के होते हैं, वो वॉट्सऐस ग्रुप्स में खबर को डाल देते हैं और फिर पूरी मीडिया में वही मैसेज सर्कुलेट होता है। जाहिर है जिसने ग्रुप में डाला, यह गलती उसकी थी, उसे शायद कंफ्यूजन हुआ कि सॉलिसिटर जनरल ने एएमयू के बजाए जामिया पर ऐसा बोला है और उसी के चलते ये गलतफहमी पैदा हुई।