मटन भात के महाभोज में तो नहीं कट गए, मुंगेर से गायब एक हजार कुत्ते

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मटन भात के महाभोज में मुंगेर के कुत्ते और जदयू-भाजपा गठबंधन की सियासत ने चुनावी रंग को बिहार में थोड़ा गाढ़ा कर दिया है। बिहार की सियासत में हमेशा कुछ न कुछ नया मसाला मिलता है, और इस बार मटन भात के महाभोज के साथ मुंगेर के एक हजार कुत्तों का गायब होना चर्चा का केंद्र बन गया है।

जदयू और भाजपा का गठबंधन बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों में जुटा है, लेकिन इस ‘महाभोज’ ने सियासी हलकों में नई अटकलों को जन्म दिया है। क्या यह गठबंधन इतना मजबूत है कि हर तूफान को झेल ले, या फिर यह ‘कुत्तों की गुमशुदगी’ गठबंधन में दरार डाल सकती है?

जदयू और भाजपा का गठबंधन बिहार की राजनीति में लंबे समय से एक मजबूत साझेदारी रहा है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू ने 2005 और 2010 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के साथ मिलकर शानदार जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस गठबंधन ने बिहार की 40 में से 39 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई।

हालांकि, 2014 में नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के विरोध में गठबंधन तोड़ दिया था, लेकिन बाद में फिर से एनडीए में शामिल हो गए। यह गठबंधन बिहार की जटिल जातीय समीकरणों और नीतीश की सुशासन की छवि पर टिका है। लेकिन मुंगेर जैसे क्षेत्रों में स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षाएं और जदयू के भीतर ललन सिंह जैसे नेताओं की राजद के प्रति पुरानी नजदीकी गठबंधन की राह में कांटे बिछा सकती है।

ललन सिंह, जो जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं और मुंगेर से सांसद हैं, नीतीश के करीबी माने जाते हैं। लेकिन उनकी राजद के प्रति नरम भावनाएं कोई रहस्य नहीं। अगर मटन भात के इस ‘महाभोज’ में तेजस्वी यादव, उनकी पत्नी रेचल गोडिन्हो, या चर्चित यूट्यूबर अजीत अंजुम को न्योता दिया जाता, तो शायद यह सावन को ना मानने वालों का मिलन बनता। लेकिन इनकी अनुपस्थिति ने सवाल उठाए हैं कि क्या जदयू बिहार में राजद की राह पर चल पड़ा है? मुंगेर में कुत्तों की गुमशुदगी का रहस्य भले ही स्थानीय स्तर का मजाक बन गया हो, लेकिन यह सियासी तौर पर गठबंधन की एकता पर सवाल उठा रहा है।

तेजस्वी यादव की राजद इस समय महागठबंधन के साथ मिलकर बिहार में अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी है। तेजस्वी का ‘मुस्लिम-यादव’ समीकरण और युवा मतदाताओं पर फोकस जदयू-भाजपा के लिए चुनौती है। नीतीश कुमार की रणनीति अब महिला वोटरों और गैर-यादव ओबीसी समुदायों को साधने पर केंद्रित है। लेकिन अगर जदयू के भीतर नेताओं की निष्ठा पर सवाल उठते हैं, तो गठबंधन की राह मुश्किल हो सकती है।

मुंगेर का यह ‘महाभोज’ और कुत्तों की गुमशुदगी भले ही हल्का-फुल्का किस्सा लगे, लेकिन बिहार की सियासत में छोटी घटनाएं भी बड़े बदलाव का संकेत देती हैं। गठबंधन टूटेगा या नहीं, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल नीतीश और भाजपा को इस महाभोज के स्वाद पर हो रही राजनीति को संभालने की जरूरत है।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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