अरे सुपीरिया, झुकना न था
अरे सुपीरिया, झुकना न था
पाकी के आगे बिछना न था
किस-किस के आगे झुकोगी
किस-किस के आगे बिछोगी
चंद रूपल्ली सिक्कों खातिर
अपना मान लुटाना न था
अरे सुपीरिया झुकना न था
इस-उस के आगे बिछना न था।
अरे सुपीरिया झुकना न था
लड़की हो लड़ सकती हो तो
आतंकी-पाकी से लड़ती तुम
नक्सल, भ्रष्टाचारी
चोर-लुटेरे, बटमारों से …
लड़-लड़ आगे बढ़ना भी था
अरे सुपीरिया झुकना न था
इस-उस के आगे बिछना न था
अरे सुपीरिया …..
कुछ तो लाज-लिहाज करो तुम
हिन्दुस्थान पे नाज करो तुम
बेटी हो परवाज करो तुम
भारत की आवाज बनो तुम
कांग्रेस का बंटाधार करो तुम
माटी की कीमत पर बिकना न था
अरे सुपीरिया ….
तुम भारत की बेटी थी
वर्धन की श्रीनेती थी
पिता का करती ऊंचा नाम
कुछ तो करती अच्छा काम
देश को न बदनाम करो तुम
आसमान पे थूकना न था
अरे सुपीरिया…
फादर आज जहां भी होंगे
बिटिया पर शर्मिंदा होंगे
स्वर्ग में करते निंदा होंगे
बेबस-लाचार परिंदा होंगे
हरष वहां विषादित होंगे
पालन पर पछताते होंगे
अपने पर सकुचाते होंगे
रोते और खोखियाते होंगे
पीड़ा का पारावार न होगा
सोचा ऐसा बंटाधार न होगा
परवरिश का मान घटाना न था
अरे सुपीरिया ….
भारत जब इतिहास लिखेगा
तब तेरा उपहास लिखेगा
पाकिस्तानी परिहास लिखेगा
करती भोग-विलास लिखेगा
गद्दार तुम्हें सायास लिखेगा
गाली तेरी दर्ज करेगा
काली करतूतों को तेरी
अपने पन्नों में मर्ज करेगा
मीरों-जयचंदों की टोली में
अपना नाम लिखाना न था
अरे सुपीरिया बिकना न था
राहुल के आगे टिकना न था
अरे सुपीरिया
बिकना न था
अरे सुपीरिया
टिकना न था
अरे सुपीरिया
बिछना न था
अरे सुपीरिया मिटना ही था
अरे सुपीरिया …….
पंकज कुमार झा की कविता, अरे सुपीरिया झुकना नहीं था…
