भारत-नेपाल सीमा पर स्थित रक्सौल, बिहार का एक अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है, जो न केवल सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि घुसपैठ, तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए भी चर्चा में रहता है। इस सीमा की खुली प्रकृति इसे अपराधियों और घुसपैठियों के लिए एक आसान रास्ता बनाती है, जिससे भारत सरकार का गृह मंत्रालय हमेशा चिंतित रहता है। ऐसे में, रक्सौल थाना प्रभारी राजीव नंदन सिन्हा का हालिया निलंबन न केवल स्थानीय प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि सीमा सुरक्षा और पुलिस विभाग की साख को भी कटघरे में खड़ा करता है।
राजीव नंदन सिन्हा, जो पहले बेतिया के मुफस्सिल थाना और गौनाहा में तैनात रहे हैं, पर गंभीर आरोप लगे हैं। उनके खिलाफ एक स्थानीय दुकानदार ने शिकायत की थी कि उन्होंने लाखों रुपये का सामान लिया, लेकिन जब भुगतान की मांग की गई, तो उन्होंने दुकानदार को झूठे मुकदमे में फंसा दिया। यह मामला इतना गंभीर था कि यह डीआईजी हरीकिशोर राय तक पहुंचा। डीआईजी की जांच में यह सत्य सामने आया कि थाना प्रभारी ने न केवल अनैतिक कार्य किया, बल्कि अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर एक निर्दोष व्यक्ति को प्रताड़ित किया। परिणामस्वरूप, राजीव नंदन सिन्हा को निलंबित कर दिया गया है। यह घटना न केवल उनके व्यक्तिगत चरित्र पर दाग है, बल्कि पूरे पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाती है।
रक्सौल जैसे संवेदनशील क्षेत्र में, जहां घुसपैठ और तस्करी का खतरा हमेशा बना रहता है, पुलिस की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। भारत-नेपाल की खुली सीमा का लाभ उठाकर बांग्लादेशी और अन्य विदेशी नागरिक अवैध रूप से भारत में प्रवेश करते रहे हैं। हाल के वर्षों में, रक्सौल और आसपास के क्षेत्रों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जहां सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) ने घुसपैठियों को पकड़ा है। ऐसी स्थिति में, यदि थाना प्रभारी जैसे जिम्मेदार अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं, तो यह देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। राजीव नंदन सिन्हा जैसे अधिकारी, जो कथित तौर पर पैसों के लिए अपने ईमान को दांव पर लगाते हैं, न केवल कानून-व्यवस्था को कमजोर करते हैं, बल्कि आम जनता के बीच पुलिस के प्रति अविश्वास को भी बढ़ाते हैं।
इस घटना के बाद चंपारण के लोग यह भी मांग कर रहे हैं कि राजीव नंदन सिन्हा के पिछले कार्यकाल की भी जांच होनी चाहिए। उनके द्वारा निष्पादित पुराने मामलों की पड़ताल आवश्यक है, क्योंकि यह संभव है कि उनकी गलत कार्यशैली के कारण कई पीड़ितों को न्याय न मिला हो। बेतिया मुफ्फसिल थाना और गौनाहा में उनकी तैनाती के दौरान भी उनके कामकाज पर सवाल उठे हैं। यदि इन मामलों की गहन जांच हो, तो यह स्पष्ट हो सकता है कि क्या उन्होंने पहले भी अपने पद का दुरुपयोग किया था।
यह मामला पुलिस विभाग के लिए एक सबक है। रक्सौल जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात अधिकारियों का चयन और उनकी कार्यप्रणाली पर कड़ी निगरानी जरूरी है। डीआईजी हरीकिशोर राय की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त नियम, नियमित ऑडिट, और पारदर्शी जांच प्रक्रिया को लागू करना होगा। साथ ही, स्थानीय लोगों को भी सशक्त बनाना होगा ताकि वे बिना डर के ऐसी घटनाओं की शिकायत कर सकें।
राजीव नंदन सिन्हा का निलंबन एक चेतावनी है कि भ्रष्टाचार और लापरवाही देश की सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। रक्सौल जैसे क्षेत्रों में पुलिस और प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से लेना होगा। सरकार को चाहिए कि वह सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था को और सुदृढ़ करे और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे। तभी हम एक सुरक्षित और भरोसेमंद व्यवस्था की ओर बढ़ सकेंगे।