प.पू. डॉ एम. भागवत के बौद्धिक का विश्लेषण

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Caption: विश्व संवाद केंद्र - मालवा

डॉ. आदित्य

आज सरसंघचालकडॉ मोहन राव भागवत जी ने विजयादशमी पर अपना उद्बोधन दिया। यह उद्बोधन काफी सामान्य श्रेणी का था। संघ कभी अराजक बौद्धिक नहीं करता । यहां साधारण  लहजे में की जाने वाली बातों को भी बौद्धिक ही कहा जाता है। हम प्रत्येक से पू. गोलवलकर वाली उम्मीद नहीं कर सकते। उनका बौद्धिक सामान्य सोसल मीडिया कंटेंट की तरह प्रतीत हो रहा है।  डॉ भागवत ऐसी ही बातें करते हैं। विजयादशमी के बौद्धिक में कोई कोडीफाइड ज्ञान या संकेत नहीं है। संघ बोलने में कमजोर है या यूं कहें कि संगठन को डिसलेक्सिया है।

संघ का विकास ही ऐसा हुआ है। संघ बहुत व्यवहारिक संस्था है। ये बोलने से ज्यादा करने में विश्वास करता है। संघ के राष्ट्र की परिकल्पना के लिये लाखों प्रचारकों ने अपना जीवन लगा दिया है। लाखों मतलब लाखों। प्रचारक बन जाने के कारण कई घर सूने हो गए । संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि भाजपा है।

संघ पहले राजनीतिक शक्ति से ज्यादा सामाजिक शक्ति में भरोसा करता था। चूंकि स्वत्रंतर्योत्तर भारतीय समाज कायर है अतः संघ, सामाजिक शक्ति से ज्यादा राजनीतिक शक्ति में निवेश करने लगा। हरियाणा चुनाव में ऐसा लग रहा था कि भाजपा हार जाएगी। लेकिन संघ ने जीजान लगाकर भाजपा को जितवा दिया। 

संघ से बेहतर राजनीतिक सलाह देने वाली आजतक कोई संस्था ही नहीं है। भारत में लोकतंत्र अध्ययन के लिये बड़ी बड़ी संस्थाएं हैं। अशोक यूनिवर्सिटी, ADR, CSDS etc लेकिन ये राजनीति को संघ से बेहतर नहीं समझ सकते। आज डॉ भागवत ने कल्चरल मार्क्सवाद, डीप स्टेट और वोकइज्म शब्द का इस्तेमाल किया।

वस्तुतः लगभग 6 दशक पूर्व ही सांस्कृतिक मार्क्सवाद का देहांत हो चुका है। इस विषय पर आज चर्चा करना हास्यास्पद है, ऐसा लगता है संघ इस जिन्न को पोटली से बाहर निकालना चाहता है।भारत वोकइज्म का विश्व बाप है, भारत से ज्यादा वोक इस दुनियां में पैदा ही नहीं हुए। महात्मा बुद्ध से लेकर मक्कली गोशला सब वोक ही तो थे ! और आज से लगभग 300 ईसापूर्व (?) चाणक्य ने डीप स्टेट के विषय में भरपूर बोला, समझाया और उदाहरण प्रस्तुत करके गए। 

इसलिये ये सब कोई नई बातें नहीं हैं। पूरब की बातें जब पश्चिम से घूम कर आती है तो नया और क्रांतिकारी विचार लगने लगता है। कुल मिलाकर आज का प्रबोधन हर बार की तरह समाधान मूलक ना होकर बस समस्या और विफलता मूलक था। 

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