जयपुर : कुछ दिन पहले मुझे एक पॉडकास्ट के लिए कुदरत स्टूडियो में बुलाया गया। वहां पहुंचने की कहानी भी रोचक है—एक कार्यकर्ता ने ही उनके कार्यक्रम में मेरी भेंट करवाई थी। रिकॉर्डिंग शुरू हुई, और मैंने लोकसभा में राहुल गांधी के अराजक भाषण व व्यवहार पर अपनी राय रखी। तभी स्टूडियो के लोग बोले, “हम किसी का नाम नहीं लेंगे, न ही किसी से शत्रुता मोल लेंगे। सबको साथ लेकर चलना है। हिंदुत्व पर भी नरम लहजे में बात करें तो बेहतर होगा।” मैंने स्पष्ट कहा, “मैं अपने अंदाज में ही बोलूंगा। आपका चैनल है, आपको जैसा उचित लगे, एडिट कर लीजिएगा। लेकिन मैं आपके नियंत्रण में नहीं बंध सकता।”
बाद में पता चला कि ये महाशय अपने “दायित्ववान” कार्यकर्ताओं को स्टूडियो घूमाने के बहाने बुलाते हैं, ताकि उनकी हरियाणा वाली मूल कंपनी को मोबाइल टावर के ठेके आसानी से मिल सकें। इस जुगत में वे दिन-रात लगे हैं। विडंबना देखिए, हमारे कुछ लोग प्रेमवश वहां चले जाते हैं, और भाईसाहब मुख्यमंत्री के साथ अपनी फोटो डीपी पर लगाकर अपना कद बढ़ाने में मशगूल हैं।
कई लोग मुझसे फोन पर पूछते हैं, “भाई साहब आपका स्टूडियो कैसा है? एक बार देख लें?” मैं कहता हूं, “बस एक लैपटॉप, छोटा-सा माइक और मोबाइल से काम चल जाता है।” यह सुनकर वे आते नहीं। लेकिन बड़े-बड़े माइक वाले इन तथाकथित पॉडकास्ट स्टूडियोज में हंसते-हंसाते रिकॉर्डिंग के लिए पहुंचना उन्हें आनंददायक लगता है।
खैर, मेरी बेबाक प्रतिक्रिया शायद उन्हें पची नहीं। नतीजा? न तो कार्यक्रम के टाइटल में, न थंबनेल में, न ही डिस्क्रिप्शन में मेरा नाम या परिचय शामिल किया गया। चूरमा खिलाने की बातें हो रही थीं, मगर अंत में एक चाय के साथ ही घर वापसी हो गई।
अब तो कुदरत स्टूडियो और कुदरत न्यूज के नाम से जहां भी बात होगी, साफ-साफ उनका नाम बताकर चलूंगा।