दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने इंडिया न्यूज के ‘कॉफी पर कुरुक्षेत्र’ कार्यक्रम में 1952 के रामपुर चुनावों का हवाला देते हुए ऐतिहासिक मतदान धोखाधड़ी के उदाहरणों पर चर्चा की, जहां प्रारंभिक घोषणा में मौलाना आज़ाद हार गए थे। सिंह ने बताया कि आज़ाद की हार मामूली हार नहीं थी। वे 20,000 वोटों के अंतर से हारे थे।
हार की घोषणा के बाद भी कांग्रेस की सत्ता में विजेता के हिस्से के मतों को उठाकर मौलाना आजाद के डिब्बे में भर दिया गया और घोषणा बदल दी गई। मौलाना आजाद जो 20,000 वोटोंं से हारे थे, उन्हें विजेता घोषित किया गया, जिसका श्रेय उस समय के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को दिया जा सकता है। मतों का सारा हेर फेर उनकी निगरानी में ही हुआ था।
प्रदीप सिंह ने उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हस्तक्षेप किया और तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत को आज़ाद की जीत सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। नेहरू ने कहा कि यदि मौलाना हार जाएंगे तो पंत भी मुख्यमंत्री नहीं रह पाएंगे। फिर पंत ने डीएम को धमकाया। धमकी काम कर गई। विजेता उम्मीदवार के बक्से से बैलेट पेपर्स को आज़ाद के बक्से में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे उनकी जीत हुई। इसे प्रदीप सिंह ने ‘वोट चोरी’ का एक रूप बताया। जबकि यह चोरी नहीं, कांग्रेस राज में होने वाली सीधी डकैती थी।
श्री सिंह के अनुसार उत्तर प्रदेश के पूर्व सूचना निदेशक शम्भूनाथ टंडन ने अपने एक लेख में इस पूरी घटना का जिक्र किया है।