राजद प्रवक्ताओं की अभद्रता: टीवी डिबेट में तथ्यों की जगह अपशब्द और प्रोपेगेंडा

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दिल्ली। हाल के दिनों में, सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की प्रवक्ताओं—कंचना यादव, सारिका पासवान और प्रियंका भारती—के टीवी डिबेट्स में अभद्र व्यवहार और अपशब्दों से भरे वीडियो वायरल हो रहे हैं। इन प्रवक्ताओं का व्यवहार न केवल राजनीतिक चर्चा के स्तर को नीचे लाता है, बल्कि लोकतंत्र की गरिमा को भी ठेस पहुंचाता है। न्यूज चैनलों पर होने वाली पैनल चर्चाओं में ये प्रवक्ता तथ्यों और तर्कों के बजाय व्यक्तिगत हमलों, अपशब्दों और प्रोपेगेंडा का सहारा लेती नजर आ रही हैं, जिसकी कड़ी आलोचना हो रही है।

इन वीडियो में कंचना यादव, सारिका पासवान और प्रियंका भारती द्वारा अन्य पैनलिस्टों के साथ किया गया व्यवहार निंदनीय है। ये प्रवक्ता अक्सर चर्चा के दौरान विषय से भटककर व्यक्तिगत टिप्पणियां करती हैं और विरोधी पक्ष के तर्कों को सुनने की बजाय चीख-चिल्लाकर अपनी बात मनवाने की कोशिश करती हैं। हाल ही में एक डिबेट में, कंचना यादव ने एक पैनलिस्ट को अपशब्द कहते हुए उनकी योग्यता पर सवाल उठाया, जबकि सारिका पासवान ने बिना किसी तथ्य के विपक्षी दलों पर कीचड़ उछालने की कोशिश की। प्रियंका भारती ने भी एक चर्चा में तर्कों को नजरअंदाज करते हुए भावनात्मक प्रोपेगेंडा और महिला व पिछड़ा कार्ड खेलने की कोशिश की, जो उनकी कमजोर तैयारी को उजागर करता है। इस तरह की हरकतें न केवल उनके राजनीतिक दल की छवि को धूमिल करती हैं, बल्कि जनता के बीच भी गलत संदेश देती हैं।

यह विशेष रूप से शर्मनाक है कि ये प्रवक्ता अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए बार-बार महिला और पिछड़ा होने का कार्ड खेलती हैं। यह रणनीति न केवल पुरानी हो चुकी है, बल्कि यह समाज के उन लोगों का भी अपमान करती है जो वास्तव में अपने समुदाय के लिए संघर्ष करते हैं। अगर इन प्रवक्ताओं को वंचित वर्ग से आने वाले किसी व्यक्ति से प्रेरणा लेनी है, तो उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता डॉ. गुरु पासवान को देखना चाहिए। डॉ. पासवान, जो स्वयं एक वंचित समाज से आते हैं, अपनी हर बात को तथ्यों और तर्कों के साथ पेश करते हैं। वह किसी भी प्रश्न से पीछे नहीं हटते और न ही व्यक्तिगत हमलों का सहारा लेते। उनकी पढ़ाई-लिखाई और गहन विषय-ज्ञान उन्हें एक प्रभावी वक्ता बनाता है। क्या राजद की प्रवक्ताएं उनसे कुछ नहीं सीख सकतीं? डॉ. पासवान का व्यवहार और उनकी तार्किक क्षमता इस बात का प्रमाण है कि सामाजिक पृष्ठभूमि कोई बहाना नहीं होनी चाहिए; मेहनत और ज्ञान ही असली ताकत हैं।

इन राजद प्रवक्ताओं की सबसे बड़ी कमी उनकी तथ्यहीनता और तैयारी की कमी है। चर्चा में जब तथ्य और आंकड़े मांगे जाते हैं, तो ये प्रवक्ता या तो विषय बदल देती हैं या फिर चीख-चिल्लाकर माहौल को विषाक्त करने की कोशिश करती हैं। उदाहरण के लिए, एक हालिया डिबेट में जब उनसे बिहार में राजद शासन के दौरान शिक्षा और रोजगार के आंकड़ों पर सवाल किया गया, तो कंचना यादव ने जवाब देने के बजाय विपक्षी पैनलिस्ट पर व्यक्तिगत टिप्पणी की। यह व्यवहार न केवल उनकी अक्षमता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि वे जनता के असल मुद्दों से कितनी दूर हैं।

 


सोशल मीडिया पर इन वीडियो को देखकर जनता का गुस्सा साफ झलकता है। लोग इन प्रवक्ताओं की तुलना उन नेताओं से कर रहे हैं जो तथ्यों और तर्कों के साथ अपनी बात रखते हैं। यह समय है कि राजद अपनी प्रवक्ताओं को प्रशिक्षित करे और उन्हें समझाए कि राजनीतिक चर्चा का मकसद प्रोपेगेंडा फैलाना नहीं, बल्कि जनता को सच्चाई से अवगत कराना है। इन प्रवक्ताओं को यह समझना होगा कि अपशब्द और अभद्रता उनकी कमजोरियों को और उजागर करती है। अगर वे डॉ. गुरु पासवान जैसे प्रवक्ताओं से प्रेरणा लें, तो शायद वे अपनी विश्वसनीयता को बचा सकें।

अंत में, राजद को अपनी प्रवक्ताओं की इस तरह की हरकतों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। जनता अब ऐसी राजनीति को बर्दाश्त नहीं करेगी जो तथ्यों के बजाय शोर-शराबे और अपशब्दों पर टिकी हो। इन प्रवक्ताओं को अपनी गलतियों से सबक लेना होगा और राजनीतिक चर्चा को एक सभ्य और तार्किक स्तर पर लाना होगा।

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आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु

आशीष कुमार अंशु एक पत्रकार, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आम आदमी के सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों तथा भारत के दूरदराज में बसे नागरिकों की समस्याओं पर अंशु ने लम्बे समय तक लेखन व पत्रकारिता की है। अंशु मीडिया स्कैन ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं और दस वर्षों से मानवीय विकास से जुड़े विषयों की पत्रिका सोपान स्टेप से जुड़े हुए हैं

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