विनय यादव
नेपाल के इतिहास में राजशाही को हिंदू धर्म का संरक्षक बताया जाता रहा है, लेकिन वास्तविकता इसके बिल्कुल विपरीत है। हिंदू अधिराज्य का नारा देकर सत्ता चलाने वाले राजाओं ने ही नेपाल में हिंदू धर्म को कमजोर करने का षड्यंत्र रचा। धर्मांतरण का खुला खेल राजाओं के संरक्षण में हुआ, हिंदू धर्मगुरुओं को दमन में रखा गया, और हिंदू संस्थाओं को नष्ट करने की योजनाबद्ध नीति लागू की गई।
राजाओं का हिंदू राष्ट्रवाद सिर्फ दिखावा था। सच्चाई यह है कि दरबार के भीतर ही विदेशी धर्मों के प्रति आकर्षण था। विदेशी शक्तियों से मिलकर इस्लामिक और पश्चिमी प्रभाव को बढ़ाने का खेल खेला गया। हिंदू धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं को कमजोर करने के हर प्रयास में राजसत्ता शामिल थी।
हिंदू संस्थाओं पर कब्जा, संतों का दमन
नेपाल में हिंदू जागरण का केंद्र मठ-मंदिर थे, लेकिन राजाओं ने उनकी रक्षा करने के बजाय उन्हें अपने नियंत्रण में ले लिया। गुठी संस्थान बनाकर पूरे देश के मठ-मंदिरों को राजकीय संपत्ति घोषित कर दिया गया। हिंदू धर्म को मजबूत बनाने में संत-महात्माओं की भूमिका अहम होती है, लेकिन उन्हें नेपाल से जबरन निकाला गया।
हिंदू राष्ट्र के संरक्षक बनने चाहिए थे राजाओं को, लेकिन वे ही हिंदू धर्म के शत्रु बन बैठे।
नेपाल में हिंदू समाज को संगठित करने के प्रयास हुए, लेकिन उन्हें योजनाबद्ध रूप से रोका गया। जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने नेपाल में गीता कक्षाएं चलानी शुरू कीं, तो राजाओं ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया। संघ के प्रचारक स्व. लक्ष्मणराव भिड़े पर गिरफ्तारी वारंट जारी कर उन्हें भारत लौटने पर मजबूर कर दिया गया।
इसके विपरीत, ईसाई मिशनरियों, मदरसों और इस्लामिक संघों को राजकीय संरक्षण दिया गया। दरबार के भीतर ही पशुपतिनाथ मंदिर की आय को निजी विलासिता में खर्च किया गया। हिंदू जागरण के लिए कोटिहोम की स्थापना करने वाले योगी नरहरिनाथ को जेल में डाल दिया गया। बाद में उनका शव बागमती के जंगल में फेंक दिया गया। वे किसी तरह बचकर भारत भागने को विवश हुए और प्रवासी जीवन बिताने लगे। बहुदलीय व्यवस्था आने के बाद ही वे नेपाल लौट सके।
शाही सरकार ने हिंदू स्वयंसेवक संघ (HSS) के कार्यालयों पर छापा मरवाया। संघ के वार्षिक प्रशिक्षण शिविर को नेपाल में अनुमति नहीं दी गई, जिसके कारण प्रशिक्षण कार्यक्रम भारत के सुनौली में आयोजित करना पड़ा।
राजशाही का हिंदू धर्म रक्षक होना एक भ्रम
आज भी कई हिंदू राष्ट्रवादी, राजशाही की बहाली को हिंदू राष्ट्र स्थापना का उपाय मानते हैं। लेकिन सत्य यह है कि राजाओं ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कभी ठोस कदम नहीं उठाए। हिंदू धर्म पर सुनियोजित हमले का केंद्र ही राजसंस्था थी।
राजनीतिक असफलता और हिंदू समाज की कमजोरी
नेपाल की धर्मनिरपेक्षता के लिए केवल 2063 साल (2006 ईस्वी) का राजनीतिक परिवर्तन जिम्मेदार नहीं है। हिंदू अधिराज्य के दौर में ही नेपाल में धर्मांतरण व्यापक रूप से हुआ।
2047 साल के संविधान में नेपाल को हिंदू अधिराज्य घोषित किया गया था, लेकिन उसी समय चर्च, मस्जिद और विदेशी धर्म प्रचारकों की संख्या में दिन-ब-दिन वृद्धि होती गई।
भारत में धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस के शासन में हिंदू समाज कमजोर रहा, लेकिन जब हिंदू चेतना जागी, तब मोदी और योगी जैसे नेता उभरे। नेपाल में भी यही मॉडल अपनाना होगा—हिंदू राजा पर आश्रित होने के बजाय, हिंदू नेतृत्व को सत्तासीन करना होगा।
राजाओं की मौनता: इस्लामिक प्रभाव और विदेशी शक्तियों से साँठगाँठ
शाही शासनकाल में अयोध्या स्थित राम मंदिर पर इस्लामिक आतंकियों ने हमला किया। दुनियाभर के हिंदू संगठनों ने विरोध किया, लेकिन नेपाल के राजाओं ने मौन साध लिया। जब कुछ हिंदू राष्ट्रवादियों ने तत्कालीन गृहमंत्री कमल थापा से नेपाल सरकार द्वारा निंदा वक्तव्य जारी करने की मांग की, तो उन्होंने कहा, “यह मेरे स्तर की बात नहीं है, राजा से बात करें।”
लेकिन जब राजा तक बात पहुँचाई गई, तो उनके सलाहकारों ने कहा—”अगर हम अयोध्या हमले की निंदा करेंगे, तो पाकिस्तान नाराज हो जाएगा।”
अब प्रश्न उठता है—अगर नेपाल हिंदू अधिराज्य था, तो हिंदू हित के मुद्दों पर राजाओं ने मौन क्यों साधा? वे विदेशी शक्तियों से क्यों डरते थे?
वीरगंज में स्थित श्रीराम सिनेमा के सामने की जमीन को इस्लामिक कट्टरपंथी समूह को ‘अतिमखाना’ (मृतक प्रार्थना स्थल) के लिए देने का प्रयास हुआ। हिंदू समाज ने विरोध किया, तो इस्लामिक समूह ने हिंदुओं पर हमला कर दिया, जिसमें मैं (लेखक) स्वयं गंभीर रूप से घायल हुआ।अगले दिन जब हिंदू समाज विरोध में उतरा, तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया, आंसू गैस छोड़ी और गोली चलाई।
अगर राजा सच में हिंदू धर्म के रक्षक थे, तो फिर हिंदू समाज पर गोली क्यों चलाई गई? इस्लामिक समूह को संरक्षण क्यों दिया गया?
समाधान क्या है? हिंदू नेतृत्व आवश्यक, राजतंत्र नहीं
आज भी कुछ हिंदू राष्ट्रवादी, राजशाही को ही हिंदू राष्ट्र स्थापना का उपाय मानते हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि नेपाल का इतिहास यह दिखा चुका है कि राजाओं ने कभी हिंदू धर्म की रक्षा नहीं की।
नेपाल में हिंदू राष्ट्र की पुनःस्थापना के लिए हिंदू समाज को जागरूक करना होगा, हिंदूवादी नेतृत्व को सत्तासीन करना होगा, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से संविधान संशोधन कर हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत सुनिश्चित करना होगा।
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, लेकिन मोदी सरकार हिंदू हित में फैसले लेने में सफल रही है। नेपाल में भी यही रणनीति अपनानी होगी।
हिंदू राष्ट्र की पुनःस्थापना के लिए राजा नहीं, हिंदू चेतना और हिंदू नेतृत्व की आवश्यकता है।
अब समय आ गया है कि हिंदू समाज भावनाओं में बहने के बजाय रणनीति अपनाए। हिंदू नेतृत्व को संसद में पहुंचाए, हिंदू संगठनों को सशक्त बनाए और हिंदू राष्ट्र की पुनःस्थापना के लिए लोकतांत्रिक साधनों का अधिकतम उपयोग करे। नेपाल में हिंदू राष्ट्र की पुनःस्थापना के लिए राजा नहीं, हिंदू चेतना और नेतृत्व का उदय ही एकमात्र समाधान है।
(लेखक नेपाल में राष्ट्रीय एकता अभियान के अध्यक्ष हैं)