“राजधर्म का पालन करने वाला विश्व का एकमात्र देश भारत है” – शिवशंकर

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मुरैना: शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के 22वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मुरैना में “भारतीय ज्ञान परंपरा एवं न्यास की विकास यात्रा” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक एवं पर्यावरण गतिविधि के प्रांत संयोजक शिवशंकर रहे। उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा पर प्रकाश डालते हुए एक प्रेरणादायक प्रसंग साझा किया, जिसमें दो मित्रों के आपसी ईमानदारी और न्यायप्रियता से संबंधित निर्णय को राजा द्वारा राजधर्म के आधार पर सुलझाया गया। उन्होंने कहा, “भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां राजधर्म का पालन युगों से होता आ रहा है।”

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष एवं भाजपा के प्रदेश खेल प्रकोष्ठ संयोजक नीरज शर्मा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सराहना करते हुए कहा कि वर्तमान युग युवाओं के लिए स्वर्णिम अवसरों से भरा हुआ है। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा युवाओं के हित में लाई गई नीतियों की प्रशंसा की और कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लागू होने से भारत एक बार फिर विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है।

मध्यप्रदेश की नई शिक्षा नीति 2020 की प्रदेश क्रियान्वयन समिति के सदस्य एवं न्यास के प्रांत संयोजक धीरेन्द्र भदौरिया ने पूर्व सरकारों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में की गई अनियमितताओं की आलोचना करते हुए कहा कि बिना योजना के पाठ्यक्रम बनाकर भारतीय मूल्यों और ज्ञान परंपरा को हानि पहुंचाई गई। उन्होंने ‘चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास’ पर चर्चा करते हुए उपनिषदों में वर्णित पंचकोशीय अवधारणा को विस्तृत रूप से समझाया और कहा कि यह शिक्षा नीति व्यक्ति को स्थूल से सूक्ष्म, और फिर आनंद की ओर ले जाने वाली एक आध्यात्मिक यात्रा है।

न्यास के केंद्रीय प्रचार समिति सदस्य एवं प्रांत प्रचार प्रमुख अर्पित शर्मा ने छात्रों को मातृभाषा, मातृभूमि और माँ के प्रति सम्मान का महत्व समझाते हुए कहा कि मातृभाषा केवल बोली नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक आत्मा है, और इसकी रक्षा व प्रचार सभी भारतीयों का कर्तव्य है।

न्यास के विभाग संयोजक श्री राजकुमार वाजपेयी ने न्यास की स्थापना से लेकर अब तक की विकास यात्रा को रेखांकित किया।

महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. ऋषिपाल सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि शिक्षा तभी पूर्ण होती है जब उसमें संस्कार समाहित हों। उन्होंने छात्रों से देश की संस्कृति और परंपरा के प्रति सम्मान और गर्व की भावना रखने का आह्वान किया।

लगभग दो घंटे तक चली इस संगोष्ठी में छात्रों ने भारतीय ज्ञान परंपरा की गहराईयों को आत्मसात किया और इसे एक “ज्ञान की गंगा” की अनुभूति बताई।

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